online casino india

क़व्वाली और गणपति

गणपति (गणेश चतुर्थी) महाराष्ट्र का एक ऐसा त्यौहार है जिसे यहाँ के हिंदू बाशिंदे हर साल चौथी चतुर्थी में इंतिहाई जोश-ओ-ख़रोश के साथ मनाते थे लेकिन अब इसकी तक़ारीब में दीगर मज़ाहिब के लोग भी शरीक होने लगे हैं। ख़ुसूसियत के साथ अब मुस्लिम नौजवान ज़्यादा हिस्सा लेने लगे हैं। महाराष्ट्र में इस त्यौहार के… continue reading

कबीर दास

महात्मा कबीर से हिंदुस्तान का बच्चा-बच्चा वाक़िफ़ है। शायद ही कई ऐसा नज़र आए जो कबीर के नाम से ना आशना हो। उन के सबक़-आमूज़ भजन आज भी ज़बान-ए-ज़द-ओ-ख़लाएक़ हैं जहाँ दो-चार साधू बैठे या सत्संग हुआ, वहाँ कबीर के ज्ञान का दरिया मौजें मारने लगा। बावजूद ये कि महात्मा कबीर जाहिल थे। लेकिन उन… continue reading

मसनवी की कहानियाँ -6

मज्नूँ और लैला की गली का कुत्ता(दफ़्तर-ए-सेउम) मज्नूँ एक कुत्ते की बलाऐं लेता था, उस को प्यार करता था और उस के आगे बिछा जाता था।जिस तरह हाजी का’बे के गिर्द सच्ची निय्यत से तवाफ़ करता है उसी तरह मज्नूँ उस कुत्ते के गिर्द फिर कर सदक़े क़ुर्बान हो रहा था। किसी बाज़ारी ने देखकर… continue reading

हज़रत सय्यिदना अ’ब्दुल्लाह बग़दादी -हज़रत मैकश अकबराबादी

नाम सय्यिद अ’ब्दुल्लाह,लक़ब मुहीउद्दीन सानी, मौलिद बग़दाद शरीफ़।नसब 12 वास्ते से शैख़ुल-कुल ग़ौस-ए-आ’ज़म हज़रत सय्यिद मुहीउद्दीन अ’ब्दुल क़ादिर जीलानी तक पहुंचता है।जो आपका सिलसिला-ए-नस्ब है वही सिलसिला-ए-तरीक़त है।अपने वालिद-ए-मोहतरम सय्यिद अ’ब्दुल जलील रहमतुल्लाहि  अ’लैह के बा’द आप ख़ानक़ाह-ए-ग़ौसियत-मआब के सज्जादे हुए और ब-हुक्म-ए- हज़रत ग़ौस-ए-पाक हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाए।सन-ए-तशरीफ़-आवरी ब-क़ौल-ए-बा’ज़ सन 1185 हिज्री है और ब-क़ौल-ए-बा’ज़ सन 1190 हिज्री।बा’ज़ अरबाब-ए-तारीख़ ने आपको… continue reading

मसनवी की कहानियाँ -5

एक बादशाह का दो नव ख़रीद ग़ुलामों का इम्तिहान लेना(दफ़्तर-ए-दोम) एक बादशाह ने दो ग़ुलाम सस्ते ख़रीदे। एक से बातचीत कर के उस को अ’क़्लमंद और शीरीं- ज़बान पाया और जो लब ही शकर हो तो सिवा शर्बत के उनसे क्या निकलेगा। आदमी की आदमियत अपनी ज़बान में मख़्फ़ी है और यही ज़बान दरबार-ए-जान का… continue reading

मसनवी की कहानियाँ -4

लोगों का अँधेरी रात में हाथी की शनाख़्त पर इख़्तिलाफ़ करना ऐ तह देखने वाले, काफ़िर-ओ-मोमिन-ओ-बुत-परस्त का फ़र्क़ अलग अलग पहलू से नज़र डालने के बाइ’स ही तो है। किसी ग़ैर मुल्क में अहल-ए-हिंद एक हाथी दिखाने लाए और उसे बिलकुल तारीक मकान में बांध दिया। लोग बारी बारी से आते और उस अंधेरे घर… continue reading