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अजमेर विवाद का अविवादित पक्ष

“अजमेरा के मायने चार चीज़ सरनाम ख़्वाजे साहब की दरगाह कहिए, पुष्कर में अश्नान मकराणा में पत्थर निकले सांभर लूण की खान” -(अजमेर हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिपटिव किताब से ) ख़्वाजा साहब और अजमेर का ऐसा नाता है जैसा चन्दन और पानी का है । अजमेर सूफ़ी संतों के लिए एक ऐसा झरना है जहाँ देश… continue reading

प्यारे भाई क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी -ख्व़ाजा साहब के ख़ुतूत अपने मुरीद-ए-ख़ास के नाम

इसलिए अगर तसव्वुफ़ की असलियत से वाक़िफ़ होना चाहते हो तो अपने पर आराम का दरवाज़ा बंद कर दो और फिर मोहब्बत के बल बैठ जाओ ! अगर तुम ने यह कर लिया तो समझो कि बस तसव्वुफ़ के आ’लिम हो गए।

महापुरुष हज़रत ख़्वाजा मुई’नुद्दीन चिश्ती अजमेरी

अगर मैं आप से पूछूँ कि आपने कोई फ़क़ीर देखा है तो आपका उत्तर होगा क्यों नहीं! बहुत फ़क़ीर देखे हैं। मगर मैं कहूँगा कि नहीं फ़क़ीर आपने मुश्किल से ही कोई देखा होगा। आज कल तो हर फटे हाल बुरे अहवाल को लोग फ़क़ीर कह देते हैं और हर भीक माँगने वाला फ़कीर समझा जाता है। परंतु सच पूछिए तो ये लोग फ़क़ीर नहीं होते।अस्ली फ़क़ीर किसी से कुछ माँगता नहीं। बन पड़ता है तो अपने पल्ले ही से कुछ दे देता है।वो दुनिया से जी नही लगाता। धन-दौलत की परवाह नहीं करता और बस दो कामों में मगन रहता है।

सूफ़ी और ज़िंदगी की अक़दार-ख्व़ाजा हसन निज़ामी

दुनिया तज्रिबा-गाह के बाहर बहुत वसीअ’ है और ये इतनी बड़ी दुनिया भी काएनात की वुस्अ’त के सामने एक छोटी सी लेबोरेटरी और तज्रिबा-गाह से ज़्यादा हैसियत नहीं रखती।

हज़रत महबूब-ए-इलाही ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी के मज़ार-ए-मुक़द्दस पर एक दर्द-मंद दिल की अ’र्ज़ी-अ’ल्लामा इक़बाल

हिन्द का दाता है तू तेरा बड़ा दरबार है
कुछ मिले मुझको भी इस दरबार-ए-गौहर-बार से

ख़्वाजा-ए-ख़्वाजगान हज़रत ख़्वाजा मुई’नुद्दीन चिश्ती अजमेरी- आ’बिद हुसैन निज़ामी

ये 582 हिज्री की बात है।निशापुर के क़रीब क़स्बा हारून में वक़्त के एक मुर्शिद-ए-कामिल ने अपने मुरीद-ए-बा-सफ़ा को ख़िर्क़ा-ए-ख़िलाफ़त से नवाज़ा और चंद नसीहतें इर्शाद फ़रमा कर हुकम दिया कि अब अल्लाह की ज़मीन पर सियाहत के लिए रवाना हो जाओ।
मुरीद-ए-बा-सफ़ा ता’मील-ए-इर्शाद की ग़रज़ से रुख़्सत होने लगा तो जुदाई के तसव्वुर से मुर्शिद-ए-कामिल की आँखों में आँसू आ गए। आगे बढ़ कर मुरीद-ए-बा-सफ़ा के सर और आँखों को बोसा दिया और फ़रमाया- तू महबूब-ए-हक़ है और तेरी मुरीदी पर फ़ख़्र है।