क़व्वाली का माज़ी और मुस्तक़बिल
हज़रत ख़ाजा-ए-ख़्वाज-गान के वक़्त से आज तक हिन्दुस्तान में क़व्वाली की मक़्बूलियत कभी कम नहीं हुई बल्कि इसमें दिन-ब-दिन इज़ाफ़ा होता रहा।आज-कल तो ये कहना ग़लत नहीं होगा कि मौसीक़ी की कोई भी फ़ार्म क़व्वाली के बराबर अ’वाम-ओ-ख़्वास में मक़्बूल नहीं है।लेकिन क़व्वाली के दाएरे को जो वुस्अ’त मौजूदा दौर में मिली है उसका एक… continue reading