उ’र्फ़ी हिन्दी ज़बान में-मक़्बूल हुसैन अहमदपुरी
दूसरे मशाहीर-ए-अ’हद-ए-मुग़लिया की तरह उ’र्फ़ी भी संस्कृत या हिन्दी ज़बान न जानता था।लेकिन हिंदूओं के रस्म-ओ-रिवाज और उनके अ’क़ाइद के मुतअ’ल्लिक़ आ’म बातों से वाक़िफ़ था।चुनाँचे उसने अपने अश्आ’र में जा-ब-जा अहल-ए-हिंद के रुसूम की तरफ़ इशारा किया है।और ये दिल-फ़रेब किनाए ज़्यादा-तर उसके ग़ज़लियात के मज्मूआ’ में पाए जाते हैं। ब-हैसियत-ए-इन्सान उ’र्फ़ी की हक़ीक़ी… continue reading