पद्म श्री अ’ज़ीज़ अहमद ख़ाँ वारसी क़व्वाल
फ़नकार अपने मुल्क की तहज़ीब-ओ-तमद्दुन का नुमाइंदा होता है और तहज़ीब-ओ-तमद्दुन किसी मुल्क की सदियों पुरानी रिवायात का नाम है, अगरचे कि तरक़्क़ी-पसंद अफ़राद रिवायात से चिमटे रहने के बजाय नई सम्तें मुत’अय्यन कर के, अपने आपको ‘अस्र-ए-हाज़िर से हम-आहंग करने में अपनी बक़ा महसूस करते हैं और ज़माना भी उनकी हौसला-अफ़ज़ाई करता है, लेकिन… continue reading