हज़रत शैख़ अबुल हसन अ’ली हुज्वेरी रहमतुल्लाह अ’लैहि
आख़िरी ज़िंदगी तक लाहौर ही में क़ियाम-पज़ीर रहे, और यहीं अबदी नींद सो रहे हैं।साल-ए-वफ़ात सन 465 हिज्री है। इंतिक़ाल के बा’द मज़ार ज़ियारत-गाह बन गया। हज़रत ख़्वजा मुई’नुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अ’लैह ने उनकी क़ब्र पर चिल्ला किया, और जब मुद्दत ख़त्म कर के रुख़्सत होने लगे तो ये शे’र पढ़ा:-
गंज-बख़्श-ए-हर दो-आ’लम मज़हर-ए-नूर-ए-ख़ुदा
कामिलाँ रा हुनर-ए-कामिल नाक़िसाँ रा राहनुमा
तज़्किरा-निगारों का बयान है कि गंज-बख़्श के नाम से शोहरत का सबब यही है.