आदाब-ए-समाअ’ पर एक नज़र-मोहम्मद अ’ली मैकश अकबराबादी
मैंने इस रिसाले में गाने के ज़ाहिरी पहलू पर नज़र की है या’नी शरई’ हैसियत से बह्स की है। सूफ़िया का एक फ़िर्क़ा ख़ुसूसन चिश्तिया गाने को सुलूक में मुफ़ीद ख़्याल करता है और चूँकि ये तक़र्रुब इलाल्लाह का सबब होता है इसलिए ताआ’त-ओ-इ’बादात में शामिल हो जाता है। जिन बुज़ुर्गों ने इससे फ़ाइदा उठाया है… continue reading