हज़रत शैख़ सारंग

जब मख़दूम जहानियां और शैख़ राजू क़त्ताल देहली तशरीफ़ लाए हुए थे उस वक़्त मलिक सारंग एक साहिब-ए-जमाल नौ-जवान थे। सुल्तान की तरफ़ से आप उनकी ख़िदमत पर मामूर हुए। दोनों बुज़ुर्गों की सोहबत ने जज़्बा-ए-इ’ताअत-ए-इलाही और हुब्ब-ए-हक़ीक़ी का शो’ला भड़का दिया तो आपने सुलूक की राह में क़दम रखा और शैख़ क़व्वामुद्दीन अ’ब्बासी रहमतुल्लाह अ’लैह के दस्त-ए-मुबारक पर बैअ’त हुए।