हज़रत ज़हीन शाह ताजी और उनका सूफ़ियाना कलाम

बाबा ताजुद्दीन नागपुरी महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत हुए हैं। मेहर बाबा ने इन्हें अपने समय के पाँच बड़े अध्यात्मिक गुरुओं में से एक माना है। महात्मा गाँधी भी बाबा ताजुद्दीन से मिलने जाया करते थे। बाबा ताजुद्दीन का व्यक्तित्व बड़ा रहस्यमयी रहा है।

हजरत बाबा ताजुद्दीन का जन्म नागपुर शहर से 15 कि.मी. दूर कामठी गाँव में 27 जनवरी, 1861 को हुआ था। उनके पिता सैयद बद्रुद्दीन फ़ौज में सूबेदार थे। उनकी माता मरियम बी मद्रासी पलटन के सूबेदार मेजर शैख़ मीराँ साहब की पुत्री थीं। बाबा जब एक वर्ष के थे तभी उनके पिता का देहान्त हो गया था लेकिन 9 वर्ष की उम्र पूरी होते ही उनकी माँ भी चल बसी। नानी ने ही इन्हें पाल पोसकर बड़ा किया और कामठी स्थित मदरसे में तालीम हेतु भेज दिया।

जब वे 18 वर्ष के थे तब कामठी में बहने वाली कन्हान नदी में (सन् 1879-80) बाढ़ आ गई, जिससे उनके घर को काफ़ी क्षति पहुँची। सन् 1881 में उनके मामा ने तालीम पूरी होने पर उन्हें नागपुर की रेजीमेंट नं. 13 में भर्ती करवा दिया। फ़ौज में तीन साल बा’द उन्हें सागर जाना पड़ा। हज़रत दाऊद साहेब हज़रत ताजुद्दीन बाबा के अध्यात्मिक गुरु थे। कुछ ही दिनों के बा’द उन्होंने नौकरी छोड़ दी और मस्त हो कर सागर की सड़कों पर घूमना शुरू कर दिया। जब उनके रिश्तेदारों और दोस्तों को इसके बारे में पता चला तब उन्होंने उन्हें कामठी वापस बुलाया। ’आम लोगों ने उन्हें पागल समझ लिया व बच्चों के झुण्ड उन पर पत्थर फेंकने लगे पर उन्होंने कभी  उफ़ तक नहीं की। वह उल्टा उन पत्थरों को एकत्रित कर लेते थे। यदि कोई व्यक्ति उन बच्चों को रोकता तो वह उस आदमी से ख़फ़ा हो जाते थे। उन्होंने ऐ’लान कर दिया कि वो अब पागलख़ाने जाएँगे। उन्होंने अगले दिन जब कामठी के यूरोपियन क्लब के समक्ष नंगे बदन घूमना शुरू’ कर दिया तो कुछ अंग्रेज़ ’औरतों ने ग़ुस्से में पुलिस को बुला लिया। 26 अगस्त, 1892 को कामठी के कैन्टोनमेन्ट व जिला मजिस्ट्रेट ने उन्हें पागलख़ाने भेज दिया।

पागलख़ाने में बंद किये जाने के उपरांत भी बाबा ताजुद्दीन शहर की सड़कों व गलियों में घूमते नज़र आए। कई बड़े अफ़सरों ने भी बाबा को बाहर देखा तो उनके पैरों की ज़मीन खिसक गई। नागपुर से बड़े फ़ौजी अफ़सर जब सच्चाई का पता लगाने पहुँचे तो डाक्टर ने कहा वह तो कमरे में बंद हैं। 21 सितंबर, 1908 ई. को नागपुर के महाराजा श्रीमंत राजा बहादुर राधोजी राव भौंसले की कोशिशों से बाबा पागलख़ाने से रिहा होकर राजा के शाही महल शकरदरा के सामने बनी ‘लालकोठी’ में ठहराए गए जहाँ स्वयं राजा सुबह-शाम हाज़िरी देते थे। बाबा हिंदू-मुस्लिम सभी शिष्यों के यहाँ रहे। धीरे-धीरे बाबा की सेहत नासाज़ होने लगी। 66 वर्ष की उम्र में 17 अगस्त, 1925 ई. को शकरहरा में उनकी आत्मा इस नश्वर चोले को छोड़कर चल बसी।

बाबा ताजुद्दीन के मुरीदों की संख्या लाखों में है और उनके सिलसिले के लोग अपने नाम के आगे ‘ताजी’ लगाते हैं। बाबा ताजुद्दीन के ही एक ख़लीफ़ा हज़रत युसूफ़ शाह ताजी अजमेरी के मुरीद हज़रत ज़हीन शाह ताजी थे जिनकी शाइरी आज हिंदुस्तान और पाकिस्तान की हर दरगाह में पढ़ी जाती है। 

हज़रत ज़हीन शाह ताजी का जन्म 1902 ई’स्वी में राजस्थान की राजधानी जयपुर के शेख़ावटी की एक तहसील झुंझुनूँ में पैदा हुए जहाँ हज़रत क़मरुद्दीन अबुल-उ’लाई का तारीख़ी और क़दीमी आस्ताना है। इब्तिदाई ता’लीम अपने घर पर ही अपने वालिद से हासिल की। बाबा ज़हीन शाह ताजी को इब्तिदाई ख़िलाफ़त और सज्जादगी अपने पिता से मिली जो चिश्तिया, साबिरीया,नक़्शबंदिया और क़ादरिया सिलसिले से त’अल्लुक़ रखते थे । ख़ानदान का इल्मी माहौल ऐसा था कि ’उमूमन ’इल्म-ओ-अदब और शे’र-ओ-शायरी की नशिस्तों का आयोजन हुआ करता था जिसकी वजह से नौ ’उम्री ही में आपका शायरी के प्रति रुझान बढ़ता गया और कम ’उम्र से ही में ना’तें और आरिफ़ाना अश’आर लिखन शुरु कर दिया। वालिद साहिब ने आपका तख़ल्लुस ज़हीन रखा और आप इसी नाम से जाने-पहचाने जाते हैं । जवानी ही में आप के वालिद का इंतिक़ाल हो गया।

वालिद के इंतिक़ाल के बा’द ज़हीन शाह ताजी अजमेर पहुँचे और वहाँ मौलाना अ’ब्दुल करीम जयपुरी मा’रूफ़ ब-हज़रत युसुफ़ शाह ताजी से बै’अत हुए। ज़हीन शाह ताजी की अध्यात्मिक यात्रा का यह एक अहम पड़ाव था। हज़रत युसुफ़ शाह ताजी ने कई सालों तक अजमेर में इन की तर्बियत की और इनकी रूह को कुंदन बनाया। अजमेर शरीफ़ में एक महफ़िल-ए-समाअ के दौरान हज़रत ज़हीन शाह ताजी को ख़िलाफ़त और सज्जादगी प्रदान की गई। जब हज़रत युसुफ़ शाह के विसाल का समय क़रीब आया  तो अजमेर शरीफ़ में ख़्वाजा साहब के चिल्ले के समीप एक जगह देखी गई लेकिन उनकी इच्छा कराची जाने की थी। उनकी इच्छा के मुताबिक उन्हें कराची लाया गया। कराची पहुँचने के तीन दिन बाद ही उनका विसाल हो गया। उन्हें मेवा शाह क़ब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक़ किया गया।वहाँ हज़रत युसुफ़ शाह ताजी की मज़ार तामीर हुई और हज़रत ज़हीन शाह ताजी मसनद नशीन हुए। कुछ ही समय में कराची में अजमेर शरीफ़ का समां नज़र आने लगा।

यही हज़रत ज़हीन शाह ताजी ने हज़रत इब्न-ए-’अरबी की किताब “फ़ुसुलुल-हिकम” और “फ़ुतूहात-ए-मक्किया” का उर्दू में तर्जुमा किया। ज़हीन शाह ताजी को जहाँ ’उलूम-ए-दीनी पर ’उबूर हासिल था ठीक उसी तरह उ’लूम-ए-अदब पर भी दस्तरस हासिल थी। इस के अ’लावा उन्होंने मंसूर हल्लाज  की किताब “किताबुत्तवासीन” का भी तर्जुमा किया। उनकी अन्य किताबों में आयत-ए-जमाल, लम्हात-ए-जमाल, जमाल-ए-आयत, जमालिस्तान, इज्माल-ए-जमाल, लमआ’त-ए-जमाल आदि महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने ताजुल-औलिया के नाम से हज़रत बाबा ताजुद्दीन की जीवनी भी लिखी है।

उन्होंने तसव्वुफ़ के प्रचार के लिए एक पत्रिका ‘ताज’ भी शुरु की थी जो आज भी निकल रही है।

आप का विसाल 22 जून सन् 1978 ई. को कराची में हुआ। उनके सज्जादानशीन हज़रत अनवर शाह ताजी ने एक ख़ूबसूरत दरगाह तामीर करवाई जहाँ आज भी लोग अक़ीदत के फूल पेश करते हैं।

हज़रत ज़हीन शाह ताजी के कलाम में एक ताज़गी है जो पढ़ने वाले की रूह को भी ताज़ा कर देती है। उन्होंने फ़ारसी और उर्दू में शायरी की है। उनकी शायरी को दो हिस्सों में बाँटा जा सकता है। पहले हिस्से में दीनी शायरी है जिस में ना’त, मंक़बत और सलाम आदि शामिल हैं।

दूसरे हिस्से में ग़ज़लें, फ़ारसी कलाम और रुबाईयात शामिल हैं।

हज़रत ज़हीन शाह ताजी की ग़ज़लों की भाषा बहुत सरल है लेकिन इन ग़ज़लों में सूफ़ीवाद के गहरे रहस्य छुपे हैं। वहदत-उल-वुजूद के प्रबल पैरोकार ज़हीन शाह ताजी अपनी ग़ज़लों में इंसान-दोस्ती और किर्दार की सच्चाई को महत्व देते हैं –

आग़ाज़ अच्छा अंजाम अच्छा

निस्बत जो अच्छी हर काम अच्छा

सब नाम उन के हर नाम अच्छा

अच्छों से अपना हर काम अच्छा

अच्छे हैं यूँ तो सब नाम उन के

वो जिस से ख़ुश हों वो नाम अच्छा

वहीं दूसरी ओर अच्छाई और बुराई दोनों से ऊपर उठ कर सब कुछ ईश्वर को समर्पित कर बे-नियाज़ नज़र आते हैं –

तू ने दीवाना बनाया तो मैं दीवाना बना

अब मुझे होश की दुनिया में तमाशा न बना

’इश्क़ में दीदा-ओ-दिल शीशा-ओ-पैमाना बना

झूम कर बैठ गए हम वहीं मय-ख़ाना बना

ये तमन्ना है कि आज़ाद-ए-तमन्ना ही रहूँ

दिल-ए-मायूस को मानूस-ए-तमन्ना न बना

दिल-ए-बेताब को तस्कीन तबस्सुम से न दे

चश्म-ए-मजनूँ के लिए महमिल-ए-लैला न बना

ज़ौक़-ए-बर्बादी-ए-दिल को भी न कर तू बर्बाद

दिल की उजड़ी हुई बिगड़ी हुई दुनिया न बना

जब इंसान हार-जीत, जीवन-मरण, यश-अपयश सब कुछ विधाता के साथ छोड़ कर इस संसार की हर सूरत में उसी महबूब का दीदार कर लेता है तो उस के लिए सब एक बराबर हो जाता है –

जी चाहे तू शीशा बन जा जी चाहे पैमाना बन जा

शीशा पैमाना क्या बनना मय बन जा मय-ख़ाना बन जा

मय बन कर मय-ख़ाना बन कर मस्ती का अफ़्साना बन जा

मस्ती का अफ़्साना बन कर हस्ती से बेगाना बन जा

हस्ती से बेगाना होना मस्ती का अफ़्साना बनना

इस होने से उस बनने से अच्छा है दीवाना बन जा

सुमन मिश्र

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