online casino india

हज़रत शैख़ नजीबुद्दीन मुतवक्किल

हज़रत शैख़ नजीबुद्दीन मुतवक्किल साहिब-ए-दिल थे, आप साहब-ए-कश्फ़-ओ- करामात,सनद-ए-औलिया और हुज्जत-ए-मशाएख़-ए-वक़्त,मुशाहिदात-ओ- मक़ालात-ए-‘आली में यकता,तमाम मशाएख़-ए-वक़्त के कमालात-ए-सुवरी-ओ- मा’नवी के मक़र्र थे। आप हज़रत बाबा फ़रीदुद्दीन मसऊ’द गंज शकर के हक़ीक़ी भाई, मुरीद और ख़लीफ़ा थे। ख़ानदानी हालात: आप फ़र्रूख़ शाह के ख़ानदान से थे, फ़र्रूख़ शाह काबुल के बादशाह थे, जब गज़नी ख़ानदान का ऊ’रुज… continue reading

सूफ़ी क़व्वाली में गागर

कोऊ आई सुघर पनिहार, कुआँ नाँ उमड़ चला
के तुम गोरी साँचे की डोरी. के तुम्ही गढ़ा रे सोनार
कुआँ नाँ उमड़ चला

Mulla Nasiruddin Modern Tales 10

“In tolerance, be like the sea”—a message of wholehearted acceptance that’s very much the need of the hour. Inscribed somewhere in Konya, on a wall. Believed to be a quote of Mevlana Rumi.

सतगुरू नानक साहिब

बाबा प्यारे! हमको ये बता कि आ’लिम और जाहिल में क्या फ़र्क़ है? इर्शाद हुआ:
“आ’लिम एक तालाब की मानिंद है।जाहिल और मुतअ’स्सिब लोग जो इर्फ़ान-ए-इलाही से बे-नसीब हैं मेंढ़क की तरह कीचड़ में फंसे हुए हैं।और आ’रिफ़ान-ए-अहदियत उस तालाब में कंवल के फूल हैं और तालिबान-ए-हक़ भँवरे हैं।
“मेंढ़क कंवल के पास ही रहता है लेकिन हक़ीक़त में हज़ारों कोस दूर है क्यूँकि कंवल की ख़ुशबू से बे-बहरा है।और भौंरा जंगल में रहता है मगर चूँकि वो ख़ुश्बू की लज़्ज़त और कंवल रस का शाएक़ होता है,दूर से आ कर लुत्फ़-ए-सोहबत उठाता है और तसल्ली-ए-राहत पाता है।”

हज़रत हकीम सय्यद शाह तक़ी हसन बल्ख़ी फ़िरदौसी

हज़रत इब्राहीम बिन अद्हम बल्ख़ी सिल्सिला-ए-सुलूक-ओ-मा’रिफ़त के अ’ज़ीम सूफ़ी बुज़ुर्ग गुज़रे हैं।जिन्हों ने बल्ख़ की बादशाहत और फ़रमा -रवाई छोड़कर नजात-ए-हक़ीक़ी और फ़लाह-ए-उख़्रवी में सुलूक-ओ-मा’रिफ़त की राह इख़्तियार की।हज़रत हकीम सय्यद शाह तक़ी हसन बल्ख़ी उसी सिल्सिला-ए-ख़ानदान की औलाद हैं।हिन्दुस्तान में इब्राहीम बिन अद्हम बल्ख़ी के ख़ानदान का वुरूद हज़रत शम्सुद्दीन बल्ख़ी से हुआ।जब ये… continue reading