ख़्वाजा बुज़ुर्ग के पीर भाई
इलाही ता बुवद ख़ुर्शीद-ओ-माही
चराग़-ए-चिश्तियाँ रा रौशनाई
“अजमेरा के मायने चार चीज़ सरनाम ख़्वाजे साहब की दरगाह कहिए, पुष्कर में अश्नान मकराणा में पत्थर निकले सांभर लूण की खान” -(अजमेर हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिपटिव किताब से ) ख़्वाजा साहब और अजमेर का ऐसा नाता है जैसा चन्दन और पानी का है । अजमेर सूफ़ी संतों के लिए एक ऐसा झरना है जहाँ देश… continue reading
इलाही ता बुवद ख़ुर्शीद-ओ-माही
चराग़-ए-चिश्तियाँ रा रौशनाई
जिसको मोहब्बत-ओ-नफ़रत अ’ता किए जाते हैं उसे वहशत नहीं दी जाती कि वो उस पर फ़रेफ़्ता हो जाए।
(ख़्वाजा ग़रीब-नवाज़ (रहि·)
फिरेंगे कैसे दिन हिंदुस्ताँ के
बला के ज़ुल्म हैं इस आसमाँ के
अगर हिंदू-मुसलमाँ मेल कर लें
अभी घर अपने ये दौलत से भर लें
गया इक़्बाल फिर आए हमारा
अभी इदबार गिर जाए हमारा
इलाही एक दिल हो जाएं दोनों
वज़ारत इंडिया की पाएं दोनों
It is rare that a man excels in more than one facet of life. Yet when he does, he leaves an indelible mark in the history of his country and often in the annals of the world. It is about one such towering personality that in my humble way I wish to speak today to… continue reading
कोऊ आई सुघर पनिहार, कुआँ नाँ उमड़ चला
के तुम गोरी साँचे की डोरी. के तुम्ही गढ़ा रे सोनार
कुआँ नाँ उमड़ चला