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Suf, Tasawwuf aur Mausiqi: Episode-1 (Fariduddin Ayaz)

We travelled by an auto rickshaw in the streets of Old Delhi, people from air conditioned SUVs rolled down their window to wish him with the humblest of salaams, he responded to them with his folded hands. Some strangers from the pavement recognized him at Connaught place and requested him to pray for them. He… continue reading

हज़रत महबूब-ए-इलाही ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी के मज़ार-ए-मुक़द्दस पर एक दर्द-मंद दिल की अ’र्ज़ी-अ’ल्लामा इक़बाल

हिन्द का दाता है तू तेरा बड़ा दरबार है
कुछ मिले मुझको भी इस दरबार-ए-गौहर-बार से

ख़्वाजा-ए-ख़्वाजगान हज़रत ख़्वाजा मुई’नुद्दीन चिश्ती अजमेरी- आ’बिद हुसैन निज़ामी

ये 582 हिज्री की बात है।निशापुर के क़रीब क़स्बा हारून में वक़्त के एक मुर्शिद-ए-कामिल ने अपने मुरीद-ए-बा-सफ़ा को ख़िर्क़ा-ए-ख़िलाफ़त से नवाज़ा और चंद नसीहतें इर्शाद फ़रमा कर हुकम दिया कि अब अल्लाह की ज़मीन पर सियाहत के लिए रवाना हो जाओ।
मुरीद-ए-बा-सफ़ा ता’मील-ए-इर्शाद की ग़रज़ से रुख़्सत होने लगा तो जुदाई के तसव्वुर से मुर्शिद-ए-कामिल की आँखों में आँसू आ गए। आगे बढ़ कर मुरीद-ए-बा-सफ़ा के सर और आँखों को बोसा दिया और फ़रमाया- तू महबूब-ए-हक़ है और तेरी मुरीदी पर फ़ख़्र है।

ख़्वाजा बुज़ुर्ग के पीर भाई

इलाही ता बुवद ख़ुर्शीद-ओ-माही
चराग़-ए-चिश्तियाँ रा रौशनाई

ख़्वाजा बुज़ुर्ग शाए’र के लिबास में-अ’ल्लामा ख़्वाजा मा ’नी अजमेरी

जिसको मोहब्बत-ओ-नफ़रत अ’ता किए जाते हैं उसे वहशत नहीं दी जाती कि वो उस पर फ़रेफ़्ता हो जाए।

(ख़्वाजा ग़रीब-नवाज़ (रहि·)

हज़रत शाह ‘अकबर’ दानापुरी और “हुनर-नामा”

फिरेंगे कैसे दिन हिंदुस्ताँ के

बला के ज़ुल्म हैं इस आसमाँ के

अगर हिंदू-मुसलमाँ मेल कर लें

अभी घर अपने ये दौलत से भर लें

गया इक़्बाल फिर आए हमारा

अभी इदबार गिर जाए हमारा

इलाही एक दिल हो जाएं दोनों

वज़ारत इंडिया की पाएं दोनों