हज़रत अ’लाउद्द्दीन अहमद साबिर कलियरी

ख़ानदानी हालात:- वालिद-ए-माजिद की तरफ़ से आप सय्यद हैं और ग़ौसुल-आ’ज़म मीरान मुहीउद्दीन हज़रत अ’ब्दुल क़ादिर जीलानी की औलाद में से हैं। वालिदा माजिदा की तरफ़ से आपका सिलसिला-ए-नसब अमीरुल-मुमिनीन हज़रत उ’मर बिन ख़त्ताब पर मुंतहा होता है।

वालिद-ए-माजिदः– आपके वालिद-ए-माजिद का नाम अ’ब्दुर्रहीम है।

वालिदा माजिदा:- आपकी वालिदा का नाम हाजिरा है और जमीला ख़ातून के लक़ब से मशहूर हैं।

विलादत-ए-मुबारक:- आपने 719 रबीउल-अव्वल 592 हिज्री को हिरात में इस आ’लम को ज़ीनत बख़्शी।

नाम-ए-नामी:- आपका नाम अ’ली अहमद है।

ख़िताबातः- आपके ख़िताबात मख़दूम और साबिर हैं।

लक़बः- आपका लक़ब अ’लाउद्दीन है।

बचपन का सदमा:- पाँच साल की उ’म्र में 17 रबीउ’लअव्वल 597 हिज्री को वालिद-माजिद का साया आपके सर से उठ गया।

ता’लीम-ओ-तर्बियतः- आपकी इब्तिदाई ता’लीम-ओ-तर्बियत अपने वालिद के साए में हुई।वालिद के इंतिक़ाल के बा’द आपकी वालिदा माजिदा ने आपकी ता’लीम-ओ-तर्बियत पर काफ़ी तवज्जोह दी।अजोधन में आपकी ता’लीम-ओ-तर्बियत हज़रत बाबा फ़रीदुद्दीन मसऊ’द गंज शकर की निगरानी में हुइ।अ’रबी, फ़ारसी के अ’लावा आपने फ़िक़्ह, हदीस, तफ़्सीर, मंतिक़,मआ’नी वग़ैरा में दस्तगाह हासिल की।

Dargah Baba Farid, Pakpattan

अजोधन में आमदः- आप अपनी वालिदा के साथ अजोधन आए और आप अपने मामूँ हज़रत बाबा फ़रीदुद्दीन मसऊद गंज शकर के पास रहने लगे।हज़रत बाबा फ़रीदुद्दीन गंज शकर ने लंगर तक़्सीम करने की ख़िदमत आपके सुपुर्द फ़रमाई।आप 12 साल के अ’र्सा में बहुत कम खाते थे ।हज़रत बाबा साहिब को जब ये मा’लूम हुआ तो उन्हों ने फ़रमाया अ’लाउद्दीन अहमद “साबिर” हैं। उस रोज़ से आप साबिर के ख़िताब से मशहूर हुए।

वालिदा का विसालः- आपकी वालिदा अजोधन में कुछ अ’र्सा क़याम कर के हिरात चली गईं थीं।हिरात से फिर अजोधन वापस तशरीफ़ लाईं और 2 मुहर्रम 614 हिज्री को इंतिक़ाल फ़रमाया।

बैअत-ओ-ख़िलाफ़त:-हज़रत बाबा फ़रीदुद्दीन मसऊ’द गंज शकर ने आपको बैअ’त से मुशर्रफ़ फ़रमाया और 14 ज़िल-हिज्जा 650 हिज्री को ख़िर्क़ा-ए-ख़िलाफ़त अ’ता फ़रमाया।दिल्ली की विलायत आपके सुपुर्द फ़रमाई कि दिल्ली जाने से क़ब्ल हांसी जाकर हज़रत जमालुद्दीन से ख़िलाफ़त-नामा पर मुहर लगवाएं और फिर दिल्ली चले जाएं।

Dargah Hazrat Shaikh Jamaluddin Hansvi R.A.

हांसी पहुंच कर आप हज़रत जमालुद्दीन की ख़ानक़ाह में चंडोल पर सवार हो कर दाख़िल हुए।ख़ानक़ाह में चंडोल से उतरे। ये बात जमालुद्दीलीन हाँसवी को नागवार लगी। नमाज़ के बा’द आपने अपने पीर-ओ-मुर्शिद की अ’ता की हुई शाल निकाली और हज़रत जमालुद्दीन हांस्वी से उस पर मुहर लगाने को कहा| हज़रत जमालुद्दीन हांस्वी ने चराग़ मंगाया और ख़िलाफ़त-नामा को पढ़ना शुरूअ’ किया।हवा तेज़ चल रही थी। चराग़ यकायक गुल हो गया।

हज़रत जमालुद्दीन हांस्वी ने आपसे कहा कि चूँकि चराग़ गुल हो गया है,लिहाज़ा ख़िलाफ़त-नामा पर कल दस्तख़त कर दिए जाऐंगे। आपने जब सुना तो फूंक मारी और चराग़ रौशन हो गया|

हज़रत जमालुद्दीन हांस्वी को ये बात नागवार मा’लूम हुई और उन्होंने आप से कहा:

“ता ब-दम ज़दन-ए-शुमा देहली कुजा दारद कि ब-यक दम-ज़दन तमाम-ए-देहली रा ख़्वाहेद सोख़्त (देहली वाले कब आपको बर्दाश्त कर सकेंगे।आप तो ज़रा सी देर में दिल्ली को जला कर ख़ाक कर देंगे।

ये कह कर हज़रत जमालुद्दीन हांस्वी ने आपका ख़िलाफ़त-नामा फाड़ दिया|ख़िलाफ़त-नामा पर मुहर नहीं लगाई।आपने ग़ुस्सा की हालत में हज़रत जमालुद्दीन हांस्वी से फ़रमाया:

“ चूँ तू मिसाल-ए-मन पार: कर्दी मन सिलसिला-ए-तू पार: कर्दम”

(चूँकि आप ने मेरी मिसाल को चाक कर दिया, मैंने आप के सिलसिला को मिटा दिया)

हज़रत जमालुद्दीन हांस्वी ने पूछा:

“अज़ अव़्वल या अज़ आख़िर” (शुरूअ’ से या आख़िर से ?)

आपने जवाब दिया: “अज़ अव़्वल”। (शुरूअ’ से)

वापसीः-आप अजोधन वापस आए और सारा माजरा हज़रत बाबा साहिब के गोश-गुज़ार किया।हज़रत बाबा साहिब ने फ़रमायाः

“पारा कर्दः-ए-जमाल रा फ़रीद नतवाँ दोख़्त।”

(“जमाल के पारा किए हुए को फ़रीद नहीं सी सकता।”)

हज़रत बाबा साहिब ने आपको कलियर की विलायत सुपुर्द फ़रमाई।आपकी मिसाल पर आपने दस्तख़त किए और इस मर्तबा आपको हज़रत जमालुद्दीन हांस्वी के पास जाने की ताकीद नहीं फ़रमाई।

कलियर में क़याम:- ब-हुक्म अपने पीर-ओ-मुर्शिद आप कलियर पहुँचे।कलियर उस ज़माने में एक बड़ा शहर था।उसकी आबादी भी काफ़ी थी।उ’ल्मा-फ़ुज़ला  और मशाइख़ काफ़ी ता’दाद में वहाँ रहते थे।जुमआ’ की नमाज़ के लिए चार-सौ चंडोल आए थे।रईस-ए-कलियर और क़ाज़ी-ए-शहर पर आपकी रुश्द-ओ-हिदायत का कोई असर न हुआ।

जब कलियर के लोगों की ना-फ़रमानी और सर-कशी हद से बढ़ चुकी तो आपको ज़ब्त का यारा न रहा।आप जुमआ’ की नमाज़ के वास्ते जामे’ मस्जिद गए और पहली सफ़ में बैठ गए।इतने में रईस-ए-कलियर और क़ाज़ी-ए-शहर मस्जिद में आए|आप को पहली सफ़ में देख कर आपको और आपके मो’तक़िदीन को बुरा-भला कहा और पहली सफ़ से हटा दिया।

आप वहाँ से उठकर मस्जिद से बाहर आ कर बैठ गए।थोड़ी देर न गुज़री थी कि मस्जिद एक दम गिरी और वो सब लोग दब कर मर गए।

शादी:– आपकी वालिदा के इसरार पर हज़रत बाबा फ़रीदुद्दीन गंज शकर ने अपनी लड़की ख़दीजा बेगम उ’र्फ़ शरीफ़ा का निकाह आपसे कर दिया था।आप उस ज़माने में हज़रत बाबा साहिब के पास अजोधन में थे।आपकी वालिदा माजिदा ने आपके हुज्रे में रौशनी की और दुल्हन को हुज्रे में लाकर बिठा दिया।जब आप अपने हुज्रे में तशरीफ़ ले गए तो हुज्रे में रौशनी और एक औ’रत को बैठा हुआ देखकर मुतअ’ज्जिब हुए।आपने पूछाः-

“ तुम कौन हो”?

दुल्हन ने जवाब दिया कि

“आपकी बीवी हूँ”

ये सुनकर आपने फ़रमायाः

“ये कैसे मुमकिन है कि एक दिल में दो की मोहब्बत को जगह दूं। मैं तो एक को दिल में जगह दे चुका हूँ, दूसरे की क़त्अ’न गुंजाइश नहीं”

वफ़ात शरीफ़ः- आप 13,रबीउ’ल-अव्वल 690 हिज्री को वासिल ब-हक़ हुए|आपका मज़ार-ए-पुर-अनवार कलियर में फ़ुयूज़-ओ-बरकात का सर-चश्मा है।

ख़लीफ़ाः हज़रत शम्सुद्दीन तुर्क पानीपती आपके ख़लीफ़ा हैं|

सीरत-ए-मुबारकः- आप में शान-ए-जलाली ब-दर्जा-ए-अतम थी।आपको निस्बत-ए-फ़ना आ’ला दर्जा की हासिल थी| रियाज़त,इ’बादत और मुजाहिदा में हमा-तन मशग़ूल रहते थे।आपके पीर-ओ-मुर्शिद हज़रत बाबा फ़रीदुद्दीन गंज शकर आपसे बहुत मोहब्बत करते थे।

बाबा साहिब फ़रमाया करते थे :

“इ’ल्म-ए-सीना-ए-मन दर ज़ात-ए-शैख़ निज़ामुद्दीन बदायूनी, इ’ल्म-ए-दिल मन शैख़ अ’लाउ’द्दीन अ’ली अहमद सरायत कर्दः”

मेरे सीने के इ’ल्म ने शैख़ निज़ामुद्दीन बदायूनी की ज़ात में और मेरे दिल के इ’ल्म ने शैख़ अ’लाउ’द्दीन अ’ली अहमद साबिर की ज़ात में सरायत की है।

आपकी विलायत का तअ’ल्लुक़ विलायत-ए-मूसा से है और क़ल्ब आपका क़ल्ब-ए-इसराफ़ील अ’लैहिस्सलाम पर वाक़े’ हुआ था।आप तरीक़त में हज़रत शैख़ नज्मुद्दीन से मुनासिबत रखते हैं।

ख़ुराक:- आप रोज़े ब-कसरत रखते थे।पानी में उबले हुए गूलर ब-ग़ैर नमक मिलाए खाते थे।

पोशाकः- आप सिर्फ़ तहबंद बाँधते थे और रंगीन ख़िर्क़ा गुल-ए-अर्मनी का पहनते थे।जूता नहीं पहनते थे।

शेर-ओ-शाइरी:-

आपको शे’र-ओ-शाइ’री का शौक़ था। फ़ारसी में आपका तख़ल्लुस “अहमद” है।हिन्दी में आपका तख़ल्लुस कहीं “साबिर” है और कहीं “अलाउ’द्दीन” ।

Deewan Hazrat Makhdoom Ahmad Sabir Kaliyari (R.A.)

आपका एक शे’र जिसमें “साबिर” तख़ल्लुस इस्ति’माल किया गया है हसब-ए-ज़ैल है।

इस तरह डूब उस में ऐ साबिर

कि ब-जुज़ हू के ग़ैर-ए-हू न रहे

आपका वो शे’र जिसमें “अ’लाउ’द्दीन” तख़ल्लुस इस्ति’माल किया है ,हसब-ए-ज़ैल है|

ये तन हर वा ईख था तीस बबूल कर दीं

गन्ने में गुड़ परख लो कहीं अ’लाउ’द्दीन

आपकी मशहूर ग़ज़ल हसब-ए-ज़ैल है|

इमरोज़ शाह-ए-शाहाँ मेहमाँ शुदस्त मा रा

जिबरील बा-मलाएक दरबाँ शुदस्त मा रा

दर जल्वः-गाह-ए-वहदत कसरत कुजा ब-गुंजद

मुज़्द: हज़ार आ’लम यकसाँ शुदस्त मा रा

मा ख़ान:-ए-जहाँ रा बिस्यार सैर कर्देम

ऐ शैख़ बुत-परस्ती ईमाँ शुदस्त मा रा

दर महफ़िल-ए-गदायाँ मुर्सल कुजा ब-गुंजद

बे-बर्ग-ओ-बे-नवाई सामाँ शुदस्त मा रा

अहमद बहिश्त-ओ-दोज़ख़ बर आ’शिकाँ हरामस्त

ईं रा रज़ा-ए-जानाँ रिज़्वाँ शुदस्त मा रा

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