तज़्किरा-ए-फ़ख़्र-ए-जहाँ देहलवी -प्रोफ़ेसर निसार अहमद फ़ारूक़ी
मियाँ अख़लाक़ अहमद साहिब मरहूम मुहिब्बान-ए-औलिया-उल्लाह में से थे। मेरे हाल पर भी नज़र-ए-इ’नायत रखते थे। कभी कभी ख़त लिख कर याद फ़रमाया करते थे। मेरी बद-क़िस्मती है कि कभी उनसे मुलाक़ात का शरफ़ हासिल नहीं हुआ और 1989 ई’सवी में जब मेरा लाहौर जाना हुआ तो उनके मज़ार पर ही हाज़िरी हो सकी। अल्लाह… continue reading