’अज़ीज़ सफ़ीपुरी और उनकी उर्दू शा’इरी
उर्दू की तर्वीज-ओ-इशा’अत और फ़रोग़-ओ-इर्तिक़ा में सूफ़िया-ए-किराम ने जो ख़िदमात पेश कीं वो किसी साहिब-ए-नज़र से पोशीदा नहीं। इस ज़बान को ’अवाम के दरमियान मक़बूल बनाने और इसके अदबी सरमाए को वुस्’अत ’अता करने में उन ख़ुदा-रसीदा बुज़ुर्गों ने इब्तिदा ही से ग़ैर-मा’मूली कारनामे अंजाम दिए हैं। ये उन्हीं का फ़ैज़ान है कि ज़माना-ए-क़दीम ही… continue reading