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Suf, Tasawwuf aur Mausiqi: Episode-1 (Fariduddin Ayaz)

We travelled by an auto rickshaw in the streets of Old Delhi, people from air conditioned SUVs rolled down their window to wish him with the humblest of salaams, he responded to them with his folded hands. Some strangers from the pavement recognized him at Connaught place and requested him to pray for them. He… continue reading

सूफ़ी क़व्वाली में महिलाओं का योगदान

सूफ़ी क़व्वाली में महिलाओं का योगदान

मिस्टिक लिपिस्टिक और मीरा

डर्हम के बिशप को भी विक्टोरिया के समय में कहना पड़ा था कि “मिस्टिक लोगों में ‘मिस्ट’ नहीं है। वह बहुत साफ़ साफ़ देखते हैं और कहते हैं।” पश्चिम में इसका सब से बड़ा प्रमाण विलियम लौ की ‘सीरियस कौल’ नामी पुस्तक है जिसने अठारवीं सदी में भी इंग्लिस्तान में धर्म की धारा बहाई और… continue reading

हज़रत शैख़ अ’लाउ’द्दीन क़ुरैशी-ग्वालियर में नवीं सदी हिज्री के शैख़-ए-तरीक़त और सिल्सिला-ए-चिश्तिया के बानी

हिन्दुस्तान की तारीख़ भी कितनी अ’ज़ीब तारीख़ है। यहाँ कैसी कैसी अ’दीमुन्नज़ीर शख़्सियतें पैदा हुईं। इ’ल्म-ओ-इर्फ़ान के कैसे कैसे सोते फूटे।
हिंदुस्तान से अ’रब का तअ’ल्लुक़ एक क़दीम तअ’ल्लुक़ है। मशाएख़ीन-ए-तरीक़त ने अपनी बे-दाग़ ज़िंदगी यहाँ अ’वाम के सामने रखी। यहाँ की बोलियों में उनसे कलाम किया।

हज़रत मुन्इ’म-ए-पाक अबुल-उ’लाई-शाह हुसैन अब्दाली इस्लामपुरी

आपने अपनी सारी ज़िंदगी फ़क़्र-ओ-फ़ाक़ा में बसर की।और रहने के लिए मकान नहीं बनाया और न मुतअह्हिल हुए। आप उमरा से मिलते थे और न नज़्र क़ुबूल करते थे और न अपने पास रुपया पैसा ही रखते थे।

सिर्र-ए-हक़ रा बयाँ मुई’नुद्दीन

गांधी जी जब 1922 में दरगाह पर हाज़िर हुए तो आपने तक़रीर करते हुए कहा कि लोग अगर सच्चे जज़्बे के साथ ख़्वाजा साहिब के दरबार में जाएं तो आज भी उनके बातिन के बहुत सी ख़राबियाँ हमेशा के लिए ना-पैद हो सकती हैं और आदमी अपने अंदर ग़ैर-मा’मूली क़ुव्वत का इद्राक कर सकता है। मुझे ये देखकर दुख होता है कि आ’म तौर पर लोग सिर्फ़ दुनियावी मक़ासिद लेकर ख़्वाजा साहिब के पास जाते हैं और ये नहीं सोचते कि उनकी पूरी ज़िंदगी अंदर की ता’लीम देते गुज़रे।उन्होंने रूह की रौशनी को बाक़ी रखने के लिए जो पैग़ाम दिया उसे कोई नहीं सुनता।नहीं तो ये एक दूसरे से लड़ने झगड़ने की बात क्यूँ करते।