बिहार के प्रसिद्ध सूफ़ी संत-मख़दूम मुन्इ’म-ए-पाक
मख़दूम मुन्इ’म-ए-पाक के जीवन का उद्देश्य मानवता से प्रेम करना, नफ़रतों के बाज़ार में मुहब्बतों का चराग़ जलाना और इन्सान को इन्सान से मिलाना था ताकि पूरी दुनिया मुहब्बतों के रंग में रंग जाए।
We travelled by an auto rickshaw in the streets of Old Delhi, people from air conditioned SUVs rolled down their window to wish him with the humblest of salaams, he responded to them with his folded hands. Some strangers from the pavement recognized him at Connaught place and requested him to pray for them. He… continue reading
मख़दूम मुन्इ’म-ए-पाक के जीवन का उद्देश्य मानवता से प्रेम करना, नफ़रतों के बाज़ार में मुहब्बतों का चराग़ जलाना और इन्सान को इन्सान से मिलाना था ताकि पूरी दुनिया मुहब्बतों के रंग में रंग जाए।
ख़्वाजा-ए-आ’ज़म ने जब आ’लम-ए-ख़ाक-ओ-बार को ख़ैरबाद कहा, उस वक़्त आपकी पेशानी परः हाज़ा हबीबुल्लाहि मा-त फ़ी-हुब्बिल्लाह।(ये अल्लाह का दोस्त है जिसने अल्लाह की मुहबब्त में जान दे दी) के कलिमात ज़ाहिर हुए।
इसलिए अगर तसव्वुफ़ की असलियत से वाक़िफ़ होना चाहते हो तो अपने पर आराम का दरवाज़ा बंद कर दो और फिर मोहब्बत के बल बैठ जाओ ! अगर तुम ने यह कर लिया तो समझो कि बस तसव्वुफ़ के आ’लिम हो गए।
अगर मैं आप से पूछूँ कि आपने कोई फ़क़ीर देखा है तो आपका उत्तर होगा क्यों नहीं! बहुत फ़क़ीर देखे हैं। मगर मैं कहूँगा कि नहीं फ़क़ीर आपने मुश्किल से ही कोई देखा होगा। आज कल तो हर फटे हाल बुरे अहवाल को लोग फ़क़ीर कह देते हैं और हर भीक माँगने वाला फ़कीर समझा जाता है। परंतु सच पूछिए तो ये लोग फ़क़ीर नहीं होते।अस्ली फ़क़ीर किसी से कुछ माँगता नहीं। बन पड़ता है तो अपने पल्ले ही से कुछ दे देता है।वो दुनिया से जी नही लगाता। धन-दौलत की परवाह नहीं करता और बस दो कामों में मगन रहता है।
दुनिया तज्रिबा-गाह के बाहर बहुत वसीअ’ है और ये इतनी बड़ी दुनिया भी काएनात की वुस्अ’त के सामने एक छोटी सी लेबोरेटरी और तज्रिबा-गाह से ज़्यादा हैसियत नहीं रखती।