online casino india

मधुमालती के अली मंझन शत्तारी राजगीरी

हज़रत इमाम हसन के वंश में से एक सूफ़ी हज़रत मीर सय्यद मोहम्मद हसनी बग़दाद से ख़ुरासान और ख़ुरासान से भारत आए और यहीं बस गए। आप का सिलसिला इस तरह हज़रत इमाम हसन से जा कर मिलता है- मीर सय्यद इमाद-उद्दीन हसनी बिन ताज-उद्दीन बिन मोहम्मद बिन अज़ीज़-उद्दीन हुसैन बिन मोहम्मद अल-क़रशी बिन अबू… continue reading

हज़रत शैख़ जमालुद्दीन कोल्हवी

(मुहिब्ब-ए-मोह्तरम मौलाना-ओ-हकीम सय्यिद नासिर नज़ीर साहिब फ़िराक़ देहलवी के एक ख़त का ख़ुलासा) वुफ़ूर-ए-रहमत-ए-बारी ने मय-ख़्वारों पर उन रोज़ोंजिधर से अब्र उठता है सू-ए-मय-ख़ाना आता है साढे़ तीन महीना में इ’लाज के मदारिज तय हो लिए और नाज़िरुद्दीन अहमद ख़ान साहिब का मिज़ाज ए’तिदाल पर आ गया और उन्होंने दिल्ली जाने की इजाज़त दे दी।… continue reading

सुलूक-ए-नक़्शबंदिया-नासिर नज़ीर फ़िराक़ चिश्ती देहलवी

सिल्सिला-ए-आ’लिया नक़्शबंदिया की इस्तिलाहों की शर्ह में मुतक़द्दिमीन-ओ-मुतअख़्ख़िरीन सूफ़िया रहिमहुमुल्लाह ने दफ़्तर के दफ़्तर सियाह कर डाले हैं। हज़ारों रिसाले और सैंकड़ों किताबें दिखाई देती हैं मगर हज़रत उ’र्वतुल-उस्क़ा ख़्वाजा मोहम्मद मा’सूम ने जो हज़रत मुजद्दिद-अल्फ़-ए-सानी रज़ीयल्लाहु अ’न्हु के फ़र्ज़ंद हैं इस बारे में कमाल किया है। या’नी एक मुरीद के पूछने पर एक छोटे… continue reading

संत साहित्य-श्री परशुराम चतुर्वेदी

कुछ दिनों पूर्व तक संतों का साहित्य प्रायः नीरस बानियों एवं पदों का एक अनुपयोगी संग्रह मात्र समझा जाता था और सर्व साधारण की दृष्टि में इसे हिंदी-साहित्य में कोई विशिष्ट पद पाने का अधिकार नहीं था। किंतु संत साहित्य को विचार-पूर्वक अध्ययन एवं अनुशीलन करने पर यह बात एक प्रकार से नितांत निराधार सिद्ध… continue reading

लिसानुल-ग़ैब हाफ़िज़ शीराज़ी- मोहम्मद अ’ब्दुलहकीम ख़ान हकीम।

दफ़्तर-ए-शो’रा में जिस पसंदीदा निगाह से लिसानुल-ग़ैब शम्सुद्दीन मोहम्मद हाफ़िज़ शीराज़ी अ’लैहिर्रहमा का कलाम  देखा जाता है उसका उ’श्र-ए-अ’शीर भी किसी बड़े से बड़े सुख़नवर के कलाम को नसीब नहीं हुआ। लारैब आपके दीवान का एक एक शे’र ख़ुम-ख़ाना-ए-फ़साहत और मयकदा-ए-बलाग़त की किलीद है। अल्लाह तआ’ला की मा’रिफ़त और तौहीद की झलक जो आपके कलाम… continue reading

ख़्वाजा ग़रीब नवाज़-अबुल-आज़ाद ख़लीक़ी देहलवी

ये किसी तअ’स्सुब की राह से नहीं  बल्कि हक़्क़ुल-अम्र और कहने की बात है कि हिन्दुस्तान की ख़ुश-नसीब सरज़मीन तहज़ीब-ओ-तमद्दुन और हुस्न-ए-मुआ’शरत के लिहाज़ से जैसी भी कुछ थी वो बहुत अच्छी सही लेकिन जिन पैरों तले आकर ये रश्क-ए-आसमान बनी और जिन हाथों से इसका निज़ाम दुरुस्त हुआ, जिन दिमाग़ी फ़ुयूज़ से यहाँ आ’म… continue reading