हज़रत शैख़ जमालुद्दीन कोल्हवी
(मुहिब्ब-ए-मोह्तरम मौलाना-ओ-हकीम सय्यिद नासिर नज़ीर साहिब फ़िराक़ देहलवी के एक ख़त का ख़ुलासा) वुफ़ूर-ए-रहमत-ए-बारी ने मय-ख़्वारों पर उन रोज़ोंजिधर से अब्र उठता है सू-ए-मय-ख़ाना आता है साढे़ तीन महीना में इ’लाज के मदारिज तय हो लिए और नाज़िरुद्दीन अहमद ख़ान साहिब का मिज़ाज ए’तिदाल पर आ गया और उन्होंने दिल्ली जाने की इजाज़त दे दी।… continue reading