online casino india

अजमेर विवाद का अविवादित पक्ष

“अजमेरा के मायने चार चीज़ सरनाम ख़्वाजे साहब की दरगाह कहिए, पुष्कर में अश्नान मकराणा में पत्थर निकले सांभर लूण की खान” -(अजमेर हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिपटिव किताब से ) ख़्वाजा साहब और अजमेर का ऐसा नाता है जैसा चन्दन और पानी का है । अजमेर सूफ़ी संतों के लिए एक ऐसा झरना है जहाँ देश… continue reading

मंसूर हल्लाज

हज़रत हुसैन बिन मंसूर हल्लाज की शहादत का क़िस्सा लिखने से पहले ये बता देना ज़रूरी है कि आपका फ़साना इस क़दर पेचीदा और पुर-असरार है कि इस मुख़्तसर बयान में समाता मा’लूम नहीं होता। शोर-ए-मंसूर अज़ कुजा-ओ-दार-ए-मंसूर अज़ कुजा। ख़ुद ज़दी बांग-ए-अनल-हक़  बर सर-ए-दार आमदी।। ये कुछ ईरान-ओ-अ’रबिस्तान ही में नहीं बल्कि अक्सर मुल्कों… continue reading

ख़्वाजा उ’स्मान हारूनी: सीरत, करामात,अक़्वाल-ओ-ता’लीमात

 (विलादत 526 या 510 हिज्री1129 ई’स्वी, विसाल 6 शव्वालुल-मुकर्रम 617 हिज्री 1220, 3 नवंबर)‘आँ इमाम-ए-अस्हाब-ए-विलाएत,आँ सुल्तान-ए-क़ाफ़िला-ए- हिदायत,आँ दाइम ब-मक़ाम-ए-मुशाहिदः-ए-बातिनी’(1) (बह्र-ए-ज़ख़ाइर, सफ़्हा 433) अल्लाह यूँ  तो हर दौर में वली पैदा फ़रमाता है जो दुनिया-ए-मा’रिफ़त का निज़ाम चलाते हैं लेकिन उसमें उ’रूज-ओ-ज़वाल कमी-ओ-बेशी आती रहती है। जो मरातिब तक़सीम होते हैं उनमें ज़माने के हलात-ओ-ज़रूरियात का… continue reading

हज़रत शैख़ जमालुद्दीन कोल्हवी

(मुहिब्ब-ए-मोह्तरम मौलाना-ओ-हकीम सय्यिद नासिर नज़ीर साहिब फ़िराक़ देहलवी के एक ख़त का ख़ुलासा) वुफ़ूर-ए-रहमत-ए-बारी ने मय-ख़्वारों पर उन रोज़ोंजिधर से अब्र उठता है सू-ए-मय-ख़ाना आता है साढे़ तीन महीना में इ’लाज के मदारिज तय हो लिए और नाज़िरुद्दीन अहमद ख़ान साहिब का मिज़ाज ए’तिदाल पर आ गया और उन्होंने दिल्ली जाने की इजाज़त दे दी।… continue reading

सुलूक-ए-नक़्शबंदिया-नासिर नज़ीर फ़िराक़ चिश्ती देहलवी

सिल्सिला-ए-आ’लिया नक़्शबंदिया की इस्तिलाहों की शर्ह में मुतक़द्दिमीन-ओ-मुतअख़्ख़िरीन सूफ़िया रहिमहुमुल्लाह ने दफ़्तर के दफ़्तर सियाह कर डाले हैं। हज़ारों रिसाले और सैंकड़ों किताबें दिखाई देती हैं मगर हज़रत उ’र्वतुल-उस्क़ा ख़्वाजा मोहम्मद मा’सूम ने जो हज़रत मुजद्दिद-अल्फ़-ए-सानी रज़ीयल्लाहु अ’न्हु के फ़र्ज़ंद हैं इस बारे में कमाल किया है। या’नी एक मुरीद के पूछने पर एक छोटे… continue reading

संत साहित्य-श्री परशुराम चतुर्वेदी

कुछ दिनों पूर्व तक संतों का साहित्य प्रायः नीरस बानियों एवं पदों का एक अनुपयोगी संग्रह मात्र समझा जाता था और सर्व साधारण की दृष्टि में इसे हिंदी-साहित्य में कोई विशिष्ट पद पाने का अधिकार नहीं था। किंतु संत साहित्य को विचार-पूर्वक अध्ययन एवं अनुशीलन करने पर यह बात एक प्रकार से नितांत निराधार सिद्ध… continue reading