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Suf, Tasawwuf aur Mausiqi: Episode-1 (Fariduddin Ayaz)

We travelled by an auto rickshaw in the streets of Old Delhi, people from air conditioned SUVs rolled down their window to wish him with the humblest of salaams, he responded to them with his folded hands. Some strangers from the pavement recognized him at Connaught place and requested him to pray for them. He… continue reading

नाथ-योगी-सम्प्रदाय के ‘द्वादश-पंथ’-परशुराम चतुर्वेदी

नाथ-योगी सम्प्रदाय के इतिहास पर विचार करते समय हमारी दृष्टि, स्वभावतः, इसके उन अनेक पंथों व शाखा-प्रशाखाओं की ओर भी चली जाती है जिनके विभिन्न केन्द्र भारत के प्रायः प्रत्येक भाग में बिखरे पड़े हैं। उनके विषय में कभी-कभी ऐसा कहा जाता है कि वे पहले, केवल 12 पृथक्-पृथक् संस्थाओं के ही रूप में, संघटित… continue reading

हाजी वारिस अ’ली शाह का पैग़ाम-ए-इन्सानियत- डॉक्टर सफ़ी अहमद काकोरवी

उन्नीसवीं सदी का दौर है। अवध की फ़िज़ा ऐ’श-ओ-इ’श्रत से मा’मूर है। फ़ौजी क़ुव्वतें और मुल्की इक़्तिदार रू ब-ज़वाल हैं। मगर उ’लमा-ए-हक़ और सूफ़िया-ए-पाक-तीनत का फ़ुक़दान नहीं है। उन सूफ़िया-ए-साफ़ बातिन ने अ’वाम-ओ-ख़्वास और अपने हाशिया-नशीनों को इन्सानियत का मफ़्हूम समझाया। उन्हों ने आ’ला अक़्दार इस तरह लतीफ़ पैराए में उनके ज़िहन-नशीन कराए कि वो… continue reading

तज़्किरा-ए-फ़ख़्र-ए-जहाँ देहलवी -प्रोफ़ेसर निसार अहमद फ़ारूक़ी

मियाँ अख़लाक़ अहमद साहिब मरहूम मुहिब्बान-ए-औलिया-उल्लाह में से थे। मेरे हाल पर भी नज़र-ए-इ’नायत रखते थे। कभी कभी ख़त लिख कर याद फ़रमाया करते थे। मेरी बद-क़िस्मती है कि कभी उनसे मुलाक़ात का शरफ़ हासिल नहीं हुआ और 1989 ई’सवी में जब मेरा लाहौर जाना हुआ तो उनके मज़ार पर ही हाज़िरी हो सकी। अल्लाह… continue reading

हज़रत सय्यिद मेहर अ’ली शाह – डॉक्टर सय्यिद नसीम बुख़ारी कलीमी फ़रीदी

हज़रत सय्यिद मेहर अ’ली शाह1859 ई’स्वी में रावलपिंडी से ग्यारह मील के फ़ासिला पर क़िला गोलड़ा में पैदा हुए। आपके वालिद हज़रत सय्यिद नज़र शाह को आपकी विलादत की ख़ुश-ख़बरी एक मज्ज़ूब ने दी थी। मज्ज़ूब ना-मा’लूम इ’लाक़ा से आया था और सय्यिद मेहर अ’ली शाह की विलादत के फ़ौरन बा’द आप की ज़ियारत कर… continue reading

बाबा बुल्ले शाह और उनका काव्य

इश्क़ शब्द अरबी के इश्क़िया (عشقیہ)  से निकला है. यह एक प्रकार की वनस्पति है जिसे फ़ारसी में इश्क़ पेचां तथा अरबी में लबलाब कहते हैं. जब यह किसी पेड़ से लिपट जाती है तो वह पूरा वृक्ष सुखा देती है. यही हालत इश्क़ की है. इश्क़ भी जिस तन को लग जाता है वह… continue reading