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अजमेर विवाद का अविवादित पक्ष

“अजमेरा के मायने चार चीज़ सरनाम ख़्वाजे साहब की दरगाह कहिए, पुष्कर में अश्नान मकराणा में पत्थर निकले सांभर लूण की खान” -(अजमेर हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिपटिव किताब से ) ख़्वाजा साहब और अजमेर का ऐसा नाता है जैसा चन्दन और पानी का है । अजमेर सूफ़ी संतों के लिए एक ऐसा झरना है जहाँ देश… continue reading

हकीम सफ़दर अ’ली ‘सफ़ा’ वारसी : साहिब-ए-जल्वा-ए-वारिस

हिन्द-ओ-नेपाल सरहद पर आबाद एक छोटा सा ज़िला’ बहराइच इ’लाक़ा-ए-अवध का एक तारीख़ी इ’लाक़ा है जिसे सुल्तानुश्शोह्दा फ़िल-हिंद हज़रत सय्यिद सालार मस्ऊ’द ग़ाज़ी (रहि.) की जा-ए-शहादत होने का शरफ़ हासिल है।बहराइच ज़माना-ए-क़दीम से इ’ल्म का मरकज़ रहा है।दरिया-ए-घाघरा के किनारे सूबा-ए-उत्तर प्रदेश के दारुल-हुकूमत लखनऊ से 125 किलो मीटर के फ़ासला पर वाक़े’ बहराइच सूबा-ओ-ख़ित्ता-ए-अवध… continue reading

ज़ियाउद्दीन बर्नी की ज़बानी हज़रत महबूब-ए-इलाही का हाल- ख़्वाजा हसन सानी निज़ामी

शैख़ुल-इस्लाम निज़ामुद्दीन (रहि.)ने बैअ’त-ए-आ’म का दरवाज़ा खोल रखा था। गुनहगार लोग उनके सामने अपने गुनाहों का इक़्बाल करते और उनसे तौबा करते और वो उनको अपने हल्क़ा-ए-इरादत में शामिल कर लेते। ख़्वास-ओ-अ’वाम, मालदार-ओ-मुफ़्लिस, अमीर-ओ-फ़क़ीर, आ’लिम-ओ-जाहिल, शरीफ़-ओ-रज़ील, शहरी-ओ-दहक़ानी,ग़ाज़ी-ओ-मुजाहिद, आज़ाद-ओ-ग़ुलाम, उन सबसे वो तौबा कराते और उनको ताक़िया और मिस्वाक सफ़ाई के लिए देते। उन लोगों में से कसीर ता’दाद (जमाहीर) जो ख़ुद को… continue reading

समाअ’ और आदाब-ए-समाअ’-मुल्ला वाहिदी साहब,देहलवी

आप पत्थर पर लोहे की हथौड़ी मारिए  पत्थर से आग निकलेगी इतनी आग कि जंगल के जंगल जला कर भस्म कर दे।यही हाल इन्सान के दिल का है। उस पर भी चोट पड़ती है तो ख़ाली नहीं जाती।इन्सानी दिल पर चोट लगाने वाली चीज़ों में एक बहुत अहम चीज़ ख़ुश-गुलूई और मौज़ूँ-ओ-मुनासिब तरन्नुम है।इन्सानी दिल में आग… continue reading

क़व्वाली का माज़ी और मुस्तक़बिल

हज़रत ख़ाजा-ए-ख़्वाज-गान के वक़्त से आज तक हिन्दुस्तान में क़व्वाली की मक़्बूलियत कभी कम नहीं हुई बल्कि इसमें दिन-ब-दिन इज़ाफ़ा होता रहा।आज-कल तो ये कहना ग़लत नहीं होगा कि मौसीक़ी की कोई भी फ़ार्म क़व्वाली के बराबर अ’वाम-ओ-ख़्वास में मक़्बूल नहीं है।लेकिन क़व्वाली के दाएरे को जो वुस्अ’त मौजूदा दौर में मिली है उसका एक… continue reading

हज़रत ख़्वाजा नूर मोहम्मद महारवी-प्रोफ़ेसर इफ़्तिख़ार अहमद चिश्ती सुलैमानी

पैदाइश-ओ-ख़ानदान क़िब्ला-ए-आ’लम हज़रत ख़्वाजा नूर मोहम्मद महारवी रहमतुल्लाहि अ’लैह की विलादत-ए-बा-सआ’दत 14 रमज़ानुल-मुबारक 1142 हिजरी 2 अप्रैल 1730 ई’स्वी को मौज़ा’ चौटाला में हुई जो महार शरीफ़ से तीन कोस के फ़ासला पर है। आपके वालिद-ए-गिरामी का इस्म-ए-मुबारक हिन्दाल और वालिदा-ए-मोहतरमा का नाम आ’क़िल बी-बी था।आपके वालिद-ए-गिरामी पहले मौज़ा’ चौटाला में रहते थे। आपके तीन भाई मलिक सुल्तान, मलिक बुर्हान और मलिक अ’ब्दुल… continue reading