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Suf, Tasawwuf aur Mausiqi: Episode-1 (Fariduddin Ayaz)

We travelled by an auto rickshaw in the streets of Old Delhi, people from air conditioned SUVs rolled down their window to wish him with the humblest of salaams, he responded to them with his folded hands. Some strangers from the pavement recognized him at Connaught place and requested him to pray for them. He… continue reading

अमीर ख़ुसरो बुज़ुर्ग और दरवेश की हैसियत से-मौलाना अ’ब्दुल माजिद दरियाबादी

ख़ालिक़-बारी का नाम भी आज के लड़कों ने न सुना होगा। कल के बूढ़ों के दिल से कोई पूछे किताब की किताब अज़-बर थी।ज़्यादा नहीं पुश्त दो पुश्त उधर की बात है कि किताब थी मकतबों में चली हुई, घरों में फैली हुई, ज़बानों पर चढ़ी हुई| गोया अपने ज़माना-ए-तस्नीफ़ से सदियों तक मक़्बूल-ओ-ज़िंदा, मश्हूर-ओ-ताबिंदा।… continue reading

हज़रत बख़्तियार काकी रहमतुल्लाहि अ’लैह-मोहम्मद अल-वाहिदी

ज़िंदः-ए-जावेदाँ ज़े-फ़ैज़-ए-अ’मीमकुश्तः-ए-ज़ख़्म-ए-ख़ंजर-ए-तस्लीम आपका पूरा नाम ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी है। सरज़मीन-ए-अद्श में (जो मावराऊन्नहर के इ’लाक़ा में वाक़े’ है) पैदा हुए थे। आपकी निस्बत बहुत से ऐसे वाक़िआ’त बयान किए जाते हैं जिनसे मा’लूम होता है कि आपकी विलायत का सिक्का आपकी विलादत-ए-बा-सआ’दत से पहले ही बैठना शुरूअ’ हो गया था। लेकिन अफ़्सोस है अ’जीब-ओ-ग़रीब… continue reading

मंसूर हल्लाज

हज़रत हुसैन बिन मंसूर हल्लाज की शहादत का क़िस्सा लिखने से पहले ये बता देना ज़रूरी है कि आपका फ़साना इस क़दर पेचीदा और पुर-असरार है कि इस मुख़्तसर बयान में समाता मा’लूम नहीं होता। शोर-ए-मंसूर अज़ कुजा-ओ-दार-ए-मंसूर अज़ कुजा। ख़ुद ज़दी बांग-ए-अनल-हक़  बर सर-ए-दार आमदी।। ये कुछ ईरान-ओ-अ’रबिस्तान ही में नहीं बल्कि अक्सर मुल्कों… continue reading

ख़्वाजा उ’स्मान हारूनी: सीरत, करामात,अक़्वाल-ओ-ता’लीमात

 (विलादत 526 या 510 हिज्री1129 ई’स्वी, विसाल 6 शव्वालुल-मुकर्रम 617 हिज्री 1220, 3 नवंबर)‘आँ इमाम-ए-अस्हाब-ए-विलाएत,आँ सुल्तान-ए-क़ाफ़िला-ए- हिदायत,आँ दाइम ब-मक़ाम-ए-मुशाहिदः-ए-बातिनी’(1) (बह्र-ए-ज़ख़ाइर, सफ़्हा 433) अल्लाह यूँ  तो हर दौर में वली पैदा फ़रमाता है जो दुनिया-ए-मा’रिफ़त का निज़ाम चलाते हैं लेकिन उसमें उ’रूज-ओ-ज़वाल कमी-ओ-बेशी आती रहती है। जो मरातिब तक़सीम होते हैं उनमें ज़माने के हलात-ओ-ज़रूरियात का… continue reading

हज़रत शैख़ जमालुद्दीन कोल्हवी

(मुहिब्ब-ए-मोह्तरम मौलाना-ओ-हकीम सय्यिद नासिर नज़ीर साहिब फ़िराक़ देहलवी के एक ख़त का ख़ुलासा) वुफ़ूर-ए-रहमत-ए-बारी ने मय-ख़्वारों पर उन रोज़ोंजिधर से अब्र उठता है सू-ए-मय-ख़ाना आता है साढे़ तीन महीना में इ’लाज के मदारिज तय हो लिए और नाज़िरुद्दीन अहमद ख़ान साहिब का मिज़ाज ए’तिदाल पर आ गया और उन्होंने दिल्ली जाने की इजाज़त दे दी।… continue reading