हज़रत मुन्इ’म-ए-पाक अबुल-उ’लाई-शाह हुसैन अब्दाली इस्लामपुरी
सूबा-ए-बिहार के पेशतर ख़ानवादों में अबुल-उ’लाइया तरीक़त-ए-ता’लीम मुरव्वज है। “हज़रत मुहम्मद मुन्इ’म-ए-पाक” सूबा-ए-बिहार में इस सिल्सिला के मशहूर-ओ-मा’रूफ़ बुज़ुर्ग हैं। और आप ही की निस्बत से अबुल-उ’लाइया तरीक़त में मुंइ’मिया का इज़ाफ़ा हुआ है। आप बैअ’तन क़ादरी और तरीक़तन अबुल-उ’लाई थे। इस मज़्मून में कुछ आपकी सीरत पर रौशनी डाली जाएगी।
नाम-ओ-नसब-और-पैदाइशः-
सन-ए-पैदाइश का पता नहीं। आपका नाम मुहम्मद मुन्इ’म था। ख़ादान-ए-सादात से तअ’ल्लुक़ था। मौज़ा’ “पचना” ज़िला’ मुंगेर में पैदा हुए थे और मख़दूम श्म्सुद्दीन हक़्क़ानी रहि· की औलाद में हैं । तारीख़-ए-हसन के सफ़हा 79 के हाशिया पर तहरीर है।“ दर मौज़ा’-ए-बिलोरी औलाद-ए-हज़रत मख़दूम शम्सुद्दीन हक़्क़ानी क़ुद्दिसा सिर्रहु कि यके अज़ अज्दाद-ए-हज़रत मुन्इ’म-ए-पाक रहि· अबुल-उ’लाई बूदंद-ओ-अज्दाद-ए-मादरी–ए-हज़रत-ए-मौसूफ़ दर पचना आबाद बूदंद।”
ता’लीम-ओ-बैअ’तः-
शाह मुहम्मद अ’ब्दुल क़ादिर साहिब रहि· इस्लामपुर, पटना, अपनी तस्नीफ़ “अनवार-ए-विलायत” में तहरीर फ़रमाते हैं कि आपको बैअ’त तरीक़ा-ए-क़ादिरया में हज़रत सय्यद ख़लीलुद्दीन क़ुतबी क़ादरी से थी और आपका सिल्सिला ब-वास्ता हज़रत क़ुतुबुद्दीन के हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन सुहरवर्दी रहि· से मिल कर हज़रत ग़ौस-ए-पाक से मिलता है।आपने ज़ाहिरी ता’लीम देहली में हासिल की।”
पहले आप हज़रत शाह मुहम्मद फ़रहाद रहि· के हल्क़ा में बैठे और उनके इंतिक़ाल के बा’द हज़रत मीर सय्यद असदुल्लाह की ख़िदमत में हाज़िर हुए और उन्हीं से तक्मील की।तारीख़-ए-हसन सफ़हा 79 हाशिया में तहरीर है की हज़रत मुहम्मद मुन्इ’म-ए-पाक वली-ए- मादर-ज़ाद बूद दर तजर्रुदी गुज़ाश्त, ब-तलब-ए-मुर्शिद अज़ वतन-ए-मालूफ़ देहली रसीद-ओ-दर तरीक़ा-ए-क़ादरिया अज़ हज़रत शाह ख़लील बिहारी-ओ-दर तरीक़ा-ए-अबुल-उ’लाईया अज़ ख़्वाजा फ़रहाद ख़िलाफ़त याफ़्त”। तारीख़-ए-हसन में आपके पीर का नाम ग़लत तहरीर है।शजरा में ख़लीलुद्दीन ही है।आप मीर असदुल्लाह रहि· के मशहूर ख़ुलफ़ा में थे।
रुश्द-ओ-हिदायतः
आप पचास बरस तक उस मदरसा में जो जामा’ मस्जिद देहली की पुश्त पर वाक़े’ था, मुक़ीम रहे। और लोग आप से फ़ैज़-याब होते रहे। जब आप पटना तशरीफ़ लाए तो तकिया की मस्जिद में क़ियाम किया। फिर मलाबीन की मस्जिद में सुकूनत इख़्तियार की। और ता-वफ़ात वहीं मुक़ीम रहे। सूबा-ए-बिहार के बेशतर ख़ानवादों में बातिनी ता’लीम का तरीक़ा अबुल-उ’लाइया मुंइ’मिया है।और आपने तरीक़ा-ए-अबुल-उ’लाइया को तमाम सूबा में फैलाया।मुरीदीन-ओ-मो’तमिदीन कसीर ता’दाद में थे। और आपके मुतरश्शिद भी बुहत थे। बड़े-बड़े कासिब-ओ-शाग़िल लोग आपके मुतरश्शिदों में दाख़िल थे। ख़ानक़ाह-ए-मख़दू-मुल्क हज़रत शैख़ शर्फ़ुद्दीन अहमद बिहार शरीफ़, ख़ानक़ाह-ए-शैख़ मख़दूम शुए’ब रहि·, ख़ानक़ाह-ए-मख़दूम शाह यहया अ’ली रहि·, ख़ानक़ाह-ए-हज़रत शाह-ए-विलायत अ’ली हम्दानी रहि· इस्लामपुर पटना, ख़ानक़ाह-ए-शाह मुहम्मद सज्जाद रहि· दानापुर, पटना, के सज्जादगान की ता’लीम अबुल-उ’लाइया मुंइ’मिया ही है। और इन ख़ानक़ाहों का हल्क़ा-ए-असर सूबा में बहतु है। इसके अ’लावा और भी ख़ानक़ाहों को इस सिल्सिला से बहुत फ़ैज़ पहुँचा है।
मुतफ़र्रिक़ातः
आपने अपनी सारी ज़िंदगी फ़क़्र-ओ-फ़ाक़ा में बसर की।और रहने के लिए मकान नहीं बनाया और न मुतअह्हिल हुए। आप उमरा से मिलते थे और न नज़्र क़ुबूल करते थे और न अपने पास रुपया पैसा ही रखते थे।आप हर वक़्त मुराक़बे में रहते थे। आप बराबर रोज़ा रखते थे। और फ़क़्र इस दर्जा अ’ज़ीज़ था कि तीसरे चौथे रोज़ इफ़्तार करते थे। “अनवार-ए-विलायत’’ सफ़हा 111 में तहरीर है कि जब आपके मुरीद फ़ाक़ा से बे-ताब हो जाते तो आप मिस्रा’ फ़रमाते ‘जूअ’ मर ख़ासान-ए-हक़ रा आमदः’। आपके इस फ़रमाने से लोगों की तश्शफ़ी हो जाती और क़ूत-ए-रूही मिल जाती थी।
आप हर साल मख़दूमुल-मुल्क हज़रत शैख़ शर्फ़ुद्दीन अहमद बिहार शरीफ़ के उ’र्स में ज़रूर तशरीफ़ ले जाते थे।हज़रत अ’ब्दुल क़ादिर जीलानी रहि· से आपको बे-हद अ’क़ीदत और उंस था। इल्हामात-ए-मुन्इ’मिया आपकी आ’ला दर्जा की तस्नीफ़ है।
ख़ुलफ़ा:
मख़दूम शाह हसन अ’ली रहमतुल्लाह पटना, हज़रत रुक्नुद्दीन इ’श्क़ अ’ज़ामाबादी, हज़रत मौलाना हसन रज़ा रायपुरी पटना और सूफ़ी दाएम शाह ढ़ाका आपके तर्बियत-याफ़्ता ख़ुलफ़ा में बहुत मशहूर-ओ-मा’रूफ़ गुज़रे हैं और इन बुज़ुर्गों से बहुत फ़ैज़ जारी हुए और इनके अ’लावा और ख़ुलफ़ा भी है।
वफ़ातः
आपकी वफ़ात सन 1185 हिज्री में 11रजब ब-रोज़-ए-जुमआ’ हुई। मज़ार पटना के मोहल्ला मित्तन घाट में दरिया के किनारे वाक़े’ है।
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