हज़रत ख़्वाजा सैयद नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी
ख़्वाजा-ए-ख़्वाजगान हज़रत ख़्वाजा सैयद नसीरुद्दीन महमूद रौशन चिराग़ देहलवी सिलसिला-ए-चिश्तिया के रौशन चराग़ हैं। हज़रत की पैदाइश अयोध्या में 675 हिज्री (1276/77 ई’स्वी) में हुई थी।आपके वालिद माजिद का नाम हज़रत सैयद अल-मुई’द यहया युसूफ़ अल-गिलानी था। आपके दादा का नाम सैयद अबू नस्र अ’ब्दुल लतीफ़ रशीदुद्दीन अल-गिलानी था जो यमन, ख़ुरासान, नेशापुर, लाहौर, दिल्ली से होते हुए अयोध्या तशरीफ़ लाये थे। चूँकि आप सहीउल-नसब सादात थे इसलिए अवध की अ’वाम आप के ख़ानदान से बहुत हुस्न-ए-सुलूक और निहायत ही एहतिराम से पेश आती थी।
नसब नामाः
हज़रत ख़्वाजा नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी बिन हज़रत सैयद अल-मुई’द यहया यूसुफ़ अल-गिलानी बिन अबू नस्र सैयद अ’ब्दुल लतीफ़ रशीदुद्दीन अल-गिलानी,बिन अबू-आ’ला सैयद अमीनुद्दीन गिलानी यमनी क़ादरी बिन अबू मोहम्मद सैयद हसन मोहम्मद अल-गिलानी क़ादरी बिन हज़रत अबू मंसूर सैयद अ’ब्दुस्सलाम अल-गिलानी क़ादरी बिन हज़रत सैयद सैफ़ुद्दीन अ’ब्दुल वहाब अल-गिलानी क़ादरी बिन हज़रत मुहीउद्दीन अ’ब्दुल क़ादिर जीलानी गौस-ए-आ’ज़म-(रज़ी.)।
सियरुल-आ’रिफ़ीन,ख़ज़ीनतुल अस्फ़िया और तमाम क़ुतुब में हज़रत ख़्वाजा नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी के सादात-ए-हसनी का तज़्किरा किया गया है।
अयोध्या में मोहल्ला चिराग़ देहलवी
आप अयोध्या के जिस मोहल्ले में तवल्लिद हुए वो आपकी निस्बत से मोहल्ला चिराग़ देहलवी के नाम से मशहूर हुआ जो सदियों तक इसी नाम से मशहूर था लेकिन अब इसे मोहल्ला आ’लम गंज कटरा कहा जाता है।
आपकी आबाई हवेली
अयोध्या में आपके ख़ानदान की बहुत हुरमत-ओ-अदब था और आपके वालिद-और दादा जान पश्मीना का कार-ओ-बार भी करते थे। आपका ख़ानदान अयोध्या के रईस ख़ानदानों में था जिसकी वजह से आपके यहाँ तमाम नौकर-चाकर भी रहते थे। जहाँ आपकी हवेली थी वह मकान तो आज खंडहर में तब्दील हो चुका है लेकिन हज़रत की हवेली के अहाते में हज़रत ख़्वाजा फ़तहउल्लाह चिश्ती अवधी का मज़ार शरीफ़ है। हज़रत ख़्वाजा नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी ने ही हज़रत फ़तहउल्लाह अवधी की परवरिश की थी।
चाह-ए-सेहत
हज़रत चिराग़ देहलवी ने अपनी हवेली में एक कुआँ भी खुदवाया था।इस कुएँ को चाह-ए-सेहत के नाम से जाना जाता है।अयोध्या के लोग इस कुएँ के पानी को मरज़-ए-शिफ़ा समझकर इस्तिअ’माल करते थे। यहाँ कुआँ आज भी क़ाएम है और मोरज्जा-ए-ख़लाएक़ है।
वालिद का विसाल फ़रमाना
अभी आपकी उ’म्र शरीफ़ 9 साल हुई थी कि आपके वालिद का विसाल हो गया।
आपके वालिद हज़रत यहया यूसुफ़ अपने वालिद और भाई के हम-राह पश्मीना की तिजारत करते थे जिसमें आप हज़रात को काफ़ी उ’रूज हासिल था। इसके साथ ही अपने आबाई सिलसिला-ए-क़ादरिया की इशाअ’त और फ़रोग़ पर भी काफ़ी तवज्जोह फ़रमाते थे।
आपकी हमशीरा हज़रत बड़ी बुआ
हज़रत ख़्वाजा नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी की बड़ी बहन थीं जिनका नाम हज़रत सैयदा बीबी क़ताना उ’र्फ़ हज़रत बड़ी बुआ साहिबा (रहि.) है।आप अपने वक़्त की राबिया-ए-ज़मन और विलायत-ए-शहर-ए-अयोध्या थीं।आपका मज़ार-ए-मुबारक अयोध्या (गोरिस्तान-ए-बड़ी बुआ) में है। यहाँ साल में 2 बार उ’र्स लगता है। दरगाह-ए-बड़ी बुआ समाजिक एकता,सद्भावना-ओ-तहज़ीब का अ’ज़ीम मरकज़ है।
आपके वालिद के विसाल फ़रमाने के बा’द आपकी वालिदा माजिदा जो ख़ुद सैयद ज़ादी थीं, ने आपकी तर्बियत-ओ-तहसील-ए-इ’ल्म बहुत ही ख़ुसूसी तरीक़े से फ़रमाई।आपके ज़ुहद-ओ-तक़्वा के असर से हज़रत चिराग़ देहलवी बचपन से ही बा-जमाअ’त नमाज़ के पाबन्द हो गए थे।
चुनाँचे पहले उस्तादुल-उ’लमा हज़रत अ’ब्दुल करीम शेरवानी के ज़ेर-ए-ता’लीम रहे।
सियरुल-आ’रिफ़ीन में है कि इब्तिदा में मौलाना अ’ब्दुल करीम शेरवानी से हिदाया और बज़ूदी को पढ़ा लेकिन ख़ैरुल-मजालिस के एक मल्फ़ूज़ात में है कि फ़िक़्ह की मशहूर किताब बज़ूदी क़ाज़ी मुहीउद्दीन काशानी से पढ़ी। हज़रत मौलाना शेरवानी की वफ़ात के बा’द आपने हज़रत मौलाना इफ़्तिख़ारुद्दीन गिलानी से उ’लूम-ए-ज़ाहिरी हासिल की।
तर्क-ए-तजरीद
25 साल की उ’म्र में तर्क-ए-तजरीद इख़्तियार फ़रमाई और मुहासबा-ए-नफ़्स में मशग़ूल हुए।
अयोध्या और उसके गिर्द-ओ-नवाह के जंगलों में एक कामिल दरवेश के हम-राह आठ साल तक रहे। उस ज़माने में भी बा-जमाअ’त नमाज़ के पाबन्द रहे और रोज़े भी तर्क नहीं हुए। इफ़्तार बर्ग-ए-संभालू के पत्तों से किया करते थे। (सियरुल-आ’रिफ़ीन-पेज 40)
हज़रत महबूब-ए-इलाही के दरबार में
हज़रत ख़्वाज़ा नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी (1296-1316) के दौर-ए-हुकूमत में दिल्ली तशरीफ़ लाए। ख़ैरुल-मजालिस (पेज-282) और सियरुल-आ’रिफ़ीन (पेज-92) में है कि आप 43 साल की उ’म्र में हज़रत ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया की ख़िदमत में हाज़िर होकर बैअ’त से मुशर्रफ़ हुए। हज़रत महबूब-ए-इलाही ने कुछ अ’र्से के बा’द आपको ख़िलाफ़त से नवाज़ा।
जाँ-नशींनी
आप पर हज़रत महबूब-ए-इलाही की ख़ास नवाज़िश-ओ-मेहरबानी थी।हज़रत महबूब-ए-इलाही ने आपको जाँ-नशीं बनाया और वो तमाम तबर्रुकात जो आपको हज़रत बाबा फ़रीदुद्दीन गंज शकर से अ’ता हुए थे,ख़्वाजा नसीरुद्दीन महमूद चिराग़ देहलवी के सुपुर्द फ़रमाया और नसीहत फ़रमाई की वो उन तबर्रुकात को उसी तरह अपने पास रखें जिस तरह उन्होंने और ख़्वाजगान-ए-चिश्त ने ब-सद एहतिराम-ओ- अदब रखा है।हज़रत ख़्वाजा चिराग़ देहलवी मसनद-ए-सज्जादगी पर लगभग 32 साल तक फ़ाएज़ रहे।
चिराग़ देहलवी का लक़ब
हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद के रुश्द-ओ-हिदायत-ओ-विलायत का चर्चा पूरे आ’लम मे चल रहा था।जब हज़रत मख़दूम जहानियाँ जहाँ गश्त मक्का मुअ’ज़्ज़मा तशरीफ़ ले गए तो वहाँ शैख़ इमाम अ’ब्दुल्ला याफ़ई’ से मुलाक़ात हुई। शैख़-ए-मक्का ने हज़रत मख़दूम से फ़रमाया कि देहली के तमाम अ’ज़ीम मशाइख़ पर्दा फरमा चुके हैं,अब तो शैख़ नसीरुद्दीन अवधी ही दिल्ली के चराग़ हैं।
आपके चिराग़ देहली लक़ब की एक दूसरी वहज ये है कि एक दफ़्आ’ बादशाह ने जो हज़रत महबूब-ए-इलाही से हसद रखता था ऐ’न उ’र्स के मौक़े’ पर हज़रत महबूब-ए-इलाही की ख़ानक़ाह के वास्ते तेल बंद कर दिया।हज़रत नसीरुद्दीन महमूद ने हुजूर महबूब-ए-इलाही की बारगाह में मुआ’मला पेश किया तो हज़रत ने फ़रमाया “बावली जो खुद रही है उसके पानी से चराग़ों को रौशन करो”।हज़रत नसीरुद्दीन महमूद ने ऐसा ही किया और तमाम चराग़ों को पानी से रौशन किया।हज़रत नसीरुद्दीन महमूद सारे आ’लम में चिराग़ देहलवी के लक़ब से मशहूर हुए।
एक बार हज़रत की ख़ानक़ाह में कुछ मलंग आए हुये थे । शेख़ नसीरुद्दीन को भी बुलाया गया । वहाँ पहुँचकर शेख़ ने अर्ज़ किया कि वह अगर बैठते हैं तो उनकी पीठ मलंगो की ओर हो जाएगी । इसपर हज़रत ने फ़रमाया – चिराग़ की कोई पीठ नहीं होती वह सब तरफ़ से रोशनी देता है ।
एक वाक़िआ’
हज़रत बहाउद्दीन ज़करीया के मुरीद ख़्वाजा मोहम्मद गाज़रूनी एक मर्तबा हज़रत महबूब-ए-इलाही की ख़ानकाह में आए और रात में जमाअ’त-ख़ाना में रहे। जब तहज्जुद की नमाज़ का वक़्त आया तो आपने जमाअ’त-ख़ाना में कपड़े रख कर वुज़ू करने लगे। जब वापस आए तो कपड़ा वहाँ न पाया।तलाश में शोर-ओ-शग़फ़ करने लगे। हज़रत शैख़ नसीरुद्दीन महमूद ख़ानक़ाह के एक गोशे में इ’बादत में मशग़ूल थे।आपने जब ये गुफ़्तुगू सुनी तो आप उठे और अपना कपड़ा ख़्वाजा मोहम्मद गाज़रूनी को देकर क़िस्सा ख़त्म किया।
सुब्ह को जब ये वाक़िआ’ हज़रत महबूब-ए-इलाही को मा’लूम हुआ तो हज़रत नसीरुद्दीन महमूद को बाला-ख़ाने पर तलब करके अपनी ख़ास पोशाक अ’ता की और उनके लिए दुआ’-ए-ख़ैर फ़रमाई और आप को दीनी-ओ-दुनियावी नेअ’मत से सरफ़राज़ फरमाया।
सुल्तान मोहम्मद बिन तुग़लक़ हज़रत ख़्वाजा नसीरुद्दीन से हसद रखता था और आपको तकलीफ़ देने का कोई मौक़ा’ भी गँवाना नहीं चाहता था।
शम्स सिराज अ’फीफ़, तारीख़-ए-फ़ीरोज़ शाही में लिखता है कि सुल्तान मोहम्मद बिन तुग़लक़ ने हज़रत नसीरुद्दीन को ईज़ा देने के लिए थट्टा (बग़ावत को दबाने के लिए)अपने साथ ले गया था।इस पर आपने फ़रमाया था कि “सुलतान का इस सफ़र में मेरा साथ लेना मुबारक नहीं है क्यूँकि वो सही सलामत वापस नही आएगा।
चुनाँचे ऐसा ही हुआ।सुल्तान मोम्मद बिन तुग़लक़ का इंतिक़ाल हो गया और आपकी दुआ’ से फ़ीरोज़ शाह बादशाह बना।
आपके ख़्वाहर-ज़ादगान
हज़रत ख़्वाजा नसीरुद्दीन महमूद अपनी बड़ी बहन के विसाल के बा’द अपने ख़्वाहर-ज़ादग़ान हज़रत ख्वाजा सैयद कमालुद्दीन अ’ल्लामा चिश्ती और सैयद ज़ैनुद्दीन अ’ली को अपने साथ हज़रत महबूब-ए-इलाही की ख़ानक़ाह मे लेकर आए।हज़रत महबूब-ए-इलाही ने उन्हें देख कर हज़रत नसीरुद्दीन से फरमाया कि “अच्छा किया जो तुम इन्हें यहाँ ले आए।’’
हज़रत ख्वाजा सैयद कमालुद्दीन अ’ल्लामा चिश्ती को हज़रत महबूब-ए-इलाही और अपने मामू हज़रत नसीरुद्दीन महमूद दोनों हज़रात से ख़िर्क़ा-ए-ख़िलाफ़त अता हुआ था।
हज़रत ख़्वाजा नसीरुद्दीन महमूद चिराग़ देहलवी ने ख्वाजा कमालुद्दीन अ’ल्लामा के बेटे हज़रत ख़्वाजा शैख़ सैयद सिराजुद्दीन चिश्ती (मज़ार-पाटन,गुजरात) को सिर्फ़ 4 साल की उ’म्र में ख़िलाफ़त से नवाज़ा था।
राक़िमुल-हुरूफ़,रिज़वानुल्लाह वाहिदी के जद्द-ए-आ’ला हज़रत ख़्वाजा कमालुद्दीन अ’ल्लामा चिश्ती हैं।
मल्फ़ूज़ात
हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद के 2 मल्फ़ूज़ात मशहूर-ए-ज़माना हुए।
(1) ख़ैरुल-मजालिस (मुरत्तब-मौलाना हमीद क़लंदर)
(2) मिफ़्ताहुल आ’शिक़ीन (मुरत्तब-मौलाना मुहिब्बुल्लाह)
एक तीसरा मल्फ़ूज़ात भी मशहूर हुआ जिसका नाम सहाफ़ुस्सुलूक है।
हज़रत की एक फ़ारसी ग़ज़ल भी मिलती है –
बा कारम-ओ-बे-कारम चूँ मुद ब-हिसाब अंदर
गोयानम-ओ-ख़ामोशम चूँ ख़त ब-किताब अंदर
ऐ ज़ाहि द-ए-ज़ाहि र-बीं अज़ क़ुर्ब चे मी-पुर्सी
ऊ दर मन-ओ-मन दर वय चूँ बू ब-गुलाब अंदर
गह शादम-ओ-गह ग़मगीं अज़ हाल-ए-ख़ुदम ग़ाफ़िल
मी-गिर्य म-ओ-मी-ख़ंदम चूँ तिफ़्ल ब-ख़्वा ब अंदर
दरिया रवद अज़ चश्मम लब तर न-शवद हर्गिज़
ईं रम्ज़-ए-अ’जायब बीं लब ति श्न: ब-आब अंदर
दर सीन: ‘नसीरुँद्दीं’ जुज़ इ’श्क़ नमी-गुंजद
ईं तुर्फ़: तमाशा बीं दरिया ब-हबाब अंदर
क़ातिलाना हमला
साहिब-ए-ख़ज़ीनतुल-अस्फ़िया (सफ़हा-224) में फ़रमाते हैं की एक रोज़ हज़रत चिराग़ देहलवी नमाज़-ए-ज़ोहर के बा’द जमाअ’त-ख़ाना से आ कर अपने हुज्रा-ए-ख़ास में मुराक़बा में मशग़ूल थे कि एक क़लंदर तुराब हुज्रे में दाख़िल हुआ।ये शख़्स कई बरसों से हज़रत के ख़िलाफ़ आतिश-ए-हसद में जलता रहा था। उसने देखा कि शैख़ आज तन्हा हैं तो उसने बग़ल से छुरी निकालकर 11 ज़ख़्म लगाए।ख़ून हुज्रे के बाहर बहने लगा लेकिन हज़रत के इस्तिग़राक़ में कोई फ़र्क़ नहीं आया।ख़ून देख कर मुरीदीन हुज्रे में आ गए और क़लंदर को सज़ा देनी चाही लेकिन हज़रत चिराग़ देहलवी ने उन्हें रोका।और शैख़ सदरुद्दीन तबीब और ख़्वाहर ज़ादे शैख़ ज़ैनुद्दीन को क़सम देकर कहा कि इसे कुछ न कहा जाए। फिर क़लंदर से फ़रमाया तुमने बहुत मशक़्क़त और मेहनत की है अगर छुरियाँ मारते वक़्त तुम्हारे हाथ को तक्लीफ़ पहुँची हो तो मुआ’फ़ करना और बीस टंका देकर उसे रुख़्सत किया।
विसाल शरीफ़
हज़रत का विसाल शरीफ़ 18 रमज़ान 757 हिज्री ब-मुताबिक़ 14 सितंबर 1356 ई’स्वी में हुआ।
सुल्तान फ़ीरोज़ शाह तुग़लक़ ने आपकी दरगाह ता’मीर कराई। मुग़ल बादशाह फ़र्रूख़ सियर ने दरगाह में एक मस्जिद ता’मीर कराई।आपकी दरगाह “दरगाह चिराग़ देहलवी” के नाम से पूरे आ’लम में मशहूर है।
खुलफ़ा-ए-किराम
आपके बहुत से ख़लीफ़ा हैं। बाज़ मशहूर ख़लीफ़ा हस्ब-ए-ज़ैल हैं।
(1) हज़रत ख़्वाजा सैयद कमालुद्दीन अ’ल्लामा चिश्ती,चिराग़ देहलवी,दिल्ली,
(2) हज़रत ख़्वाजा बंदा नवाज़ गेसू दराज़, गुलबर्ग
(3) हज़रत ख़्वाजा सैयद ज़ैनुद्दीन अ’ली,चिराग़ देहलवी, दिल्ली
(4) हज़रत मख़दूम जहाँनिया जहाँ गश्त,ऊँच शरीफ़
(5) हज़रत शैख़ सदरुद्दीन तबीब दूल्हा, दिल्ली
(6) हज़रत सैयद मोहम्मद बिन जा’फ़र मक्की, सरहिंद
(7) हज़रत मीर सैयद अ’लाउद्दीन,संडिला, हरदोई
(8) हज़रत शैख़ दानियाल
(9) हज़रत शैख़ अ’ब्दुल मुक़्तदिर
(10) हज़हत मख़दूम शैख़ सुलैमान रुदौलवी
(11) हज़रत मौलाना ख़्वाजगी,कालपी
(12) हज़रत मौलाना अहमद थानेसरी
(13) हज़रत शैख़ क़वामुद्दीन,लखनऊ
(14) हज़रत शैख़ सदरुद्दीन हकीम
(15) हज़रत शैख़ मोहम्मद मुतवक्किल,कंतूरी
(16) हज़रत सैयद सिराजुद्दीन चिश्ती पाटन,गुजरात
किताबियात
ख़ैरुल-मजालिस-मलफ़ूज़ात-ए-ख़्वाजा मख़दूम नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी
सियरुल-आ’रिफ़ीन-हज़रत हामिद बिन फ़ज़लुल्लाह (शैख़ जमाली)
मिरअतुल असरार-शैख़ अ’ब्दुर्रहमान चिश्ती
अख़बारुल-अख़यार- शैख़ अ’ब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी
मजलिस-ए-हसनियाँ-शैख़ मोहम्मद चिश्ती
तारीख़-ए-फ़ीरोज़ शाही-शम्स सिराज-ए-अ’फ़ीफ़
ख़ज़ीनतुल-अस्फ़िया-हज़रत ग़ुलाम सरवर
ख़ानदानी बयाज़- रिज़वानुल्लाह वाहिदी,सिकंदरपुर,बलिया,यू-पी
Guest Authors
- Aatif Kazmi
- Absar Balkhi
- Afzal Muhammad Farooqui Safvi
- Ahmad Raza Ashrafi
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