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हज़रत शैख़ नजीबुद्दीन मुतवक्किल

हज़रत शैख़ नजीबुद्दीन मुतवक्किल साहिब-ए-दिल थे, आप साहब-ए-कश्फ़-ओ- करामात,सनद-ए-औलिया और हुज्जत-ए-मशाएख़-ए-वक़्त,मुशाहिदात-ओ- मक़ालात-ए-‘आली में यकता,तमाम मशाएख़-ए-वक़्त के कमालात-ए-सुवरी-ओ- मा’नवी के मक़र्र थे। आप हज़रत बाबा फ़रीदुद्दीन मसऊ’द गंज शकर के हक़ीक़ी भाई, मुरीद और ख़लीफ़ा थे। ख़ानदानी हालात: आप फ़र्रूख़ शाह के ख़ानदान से थे, फ़र्रूख़ शाह काबुल के बादशाह थे, जब गज़नी ख़ानदान का ऊ’रुज… continue reading

अयोध्या की राबिया-ए-ज़मन – हज़रत सय्यदा बड़ी बुआ

हिन्दुस्तान यूँ तो हमेशा सूफ़ियों और दरवेशों का अ’ज़ीम मरकज़ रहा है।इन हज़रात-ए-बा-सफ़ा ने यहाँ रहने वालों को हमेशा अपने फ़ुयूज़-ओ-बरकात से नवाज़ा है और ता-क़यामत नवाज़ते रहेंगें। इन्हीं बा-सफ़ा सूफ़ियों में हज़रत बीबी क़ताना उ’र्फ़ बड़ी बुआ साहिबा रहमतुल्लाहि अ’लैहा का नाम सर-ए-फ़िहरिस्त आता है। आप अपने वक़्त की मशहूर आ’बिदा, ज़ाहिदा ख़ातून थीं।आपको… continue reading

हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आ’रिफ़ रहमतुल्लाह अ’लैह

वालिद-ए-बुज़ुर्गवार के विसाल के बा’द जब रुश्द-ओ-हिदायत की मसनद पर मुतमक्किन हुए तो तर्का में सात लाख नक़्द मिले। मगर ये सारी रक़म एक ही रोज़ में फ़ुक़रा-ओ-मसाकीन में तक़्सीम करा दी और अपने लिए एक दिरम भी न रखा। किसी ने अ’र्ज़ की कि आपके वालिद-ए-बुज़ुर्गवार अपने ख़ज़ाने में नक़्द-ओ-जिंस जम्अ’ रखते थे और उसको थोड़ा थोड़ा सर्फ़ करना पसंद करते थे।आपका अ’मल भी उन्हीं की रविश के मुताबिक़ होना चाहिए था।शैख़ सदरुद्दीन रहमतुल्लाह अ’लैह ने इर्शाद फ़रमाया कि हज़रत बाबा दुनिया पर ग़ालिब थे, इसलिए दौलत उनके पास जम्अ’ हो जाती तो उनको अ’लाइक़-ए-दुनिया का कोई ख़तरा लाहिक़ न होता, और वो दौलत को थोड़ा थोड़ा ख़र्च करते थे। मगर मुझ में ये वस्फ़ नहीं, इसलिए अंदेशा रहता है कि दुनिया के माल के सबब दुनिया के फ़रेब में मुब्तला न हो जाऊँ,इसलिए मैं ने सारी दौलत अ’लाहिदा कर दी।

हज़रत शैख़ सारंग

जब मख़दूम जहानियां और शैख़ राजू क़त्ताल देहली तशरीफ़ लाए हुए थे उस वक़्त मलिक सारंग एक साहिब-ए-जमाल नौ-जवान थे। सुल्तान की तरफ़ से आप उनकी ख़िदमत पर मामूर हुए। दोनों बुज़ुर्गों की सोहबत ने जज़्बा-ए-इ’ताअत-ए-इलाही और हुब्ब-ए-हक़ीक़ी का शो’ला भड़का दिया तो आपने सुलूक की राह में क़दम रखा और शैख़ क़व्वामुद्दीन अ’ब्बासी रहमतुल्लाह अ’लैह के दस्त-ए-मुबारक पर बैअ’त हुए।

हज़रत मौलाना ज़ियाउद्दीन नख़्शबी- सय्यद सबाहुद्दीन अब्दुर्रहमान

“एक दिन एक ख़्वाजा ने एक लौंडी ख़रीदी।जब रात हुई, लौंडी से कहा ऐ कनीज़क मेरा बिछौना दुरुस्त कर दे कि मैं सो रहूँ। लौंडी ने कहा ऐ मौला क्या तुम्हारा भी मौला है ।ख़्वाजा ने कहा- हाँ। लौंडी ने पूछा- क्या वो सोता है। ख़्वाजा ने कहा- नहीं ।लौंडी ने कहा- तुम्हें शर्म नहीं आती ।तुम्हारा मौला तो जागे और तुम सो रहो”।

Kabir as Depicted in the Persian Sufistic and Historical Works- Dr. Qamaruddin

We have great respect for the remarkable personality of Kabir for he was a true Indian saint and a great Indian poet. In his thoughts and beliefs he was an Indian out and out. Moreover he had an ennobling mission of uniting Hindu and Muslims, which alas, remains unfulfilled even after a lapse of so many centuries.