online casino india

हज़रत ज़हीन शाह ताजी और उनका सूफ़ियाना कलाम

बाबा ताजुद्दीन नागपुरी महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत हुए हैं। मेहर बाबा ने इन्हें अपने समय के पाँच बड़े अध्यात्मिक गुरुओं में से एक माना है। महात्मा गाँधी भी बाबा ताजुद्दीन से मिलने जाया करते थे। बाबा ताजुद्दीन का व्यक्तित्व बड़ा रहस्यमयी रहा है। हजरत बाबा ताजुद्दीन का जन्म नागपुर शहर से 15 कि.मी. दूर कामठी… continue reading

Krishna as a symbol in Sufism

सूफ़ियों की समा में श्याम रंग भारत में इस्लाम केवल मुसल्लह ग़ाज़ियों के ज़रिये ही नहीं बल्कि तस्बीह–ब–दस्त सूफ़ियों के करामात से भी दाख़िल हुआ था। सूफ़ी ‘हमा अज़ ऊस्त’(सारा अस्तित्व उसी परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है), तथा ‘हमा ऊस्त’(सम्पूर्ण अस्तित्व तथा परमेश्वर में कोई अन्तर नहीं है), की मान्यता के क़ायल रहे हैं। उन्हें… continue reading

सूफ़ी ‘तुराब’ के कान्ह कुँवर (अमृतरस की समीक्षा)

हिन्दुस्तान ने सभ्यता के प्रभात काल से ही विभिन्न पन्थों, मतों, परम्पराओं और वैचारिक पद्धतियों का हृदय से स्वागत किया है । जो भी वस्तु या विचार शुभ है, भद्र है भारत ने उसे हमेशा से आमन्त्रित किया है । ऋग्वेद का ऋषि इसी कामना को “आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः[1]” (सभी ओर से… continue reading

हज़रत ख़्वाजा ग़ुलाम हुसैन अहमद अल-मा’रूफ़ मिर्ज़ा सरदार बेग साहिब क़िब्ला बल्ख़ी सुम्मा हैदराबादी

हज़रत साहिब क़िब्ला का हमेशा तआ’म दो-चार चपातियाँ और एक प्याला भर शोरबा था। जब आपके खाने का वक़्त आता तो आप शोरबा नोश फ़रमाते।रोटियाँ मिर्ज़ा को दे दो फ़रमाते कि वो दकनी है और दकनियों को गोश्त मर्ग़ूब है। दो-चार दिन तक बोटियाँ खा लिए। बा’द अ’र्ज़ किए कि या हज़रत मैं यहाँ बोटियाँ खाने को हाज़िर नहीं हुआ या’नी ख़ुदा-तलबी के लिए हाज़िर हुआ हूँ।हुक्म हुआ कि मिर्ज़ा बे-मरे ख़ुदा नहीं मिलता।

हज़रत शैख़ अबुल हसन अ’ली हुज्वेरी रहमतुल्लाह अ’लैहि

आख़िरी ज़िंदगी तक लाहौर ही में क़ियाम-पज़ीर रहे, और यहीं अबदी नींद सो रहे हैं।साल-ए-वफ़ात सन 465 हिज्री है। इंतिक़ाल के बा’द मज़ार ज़ियारत-गाह बन गया। हज़रत ख़्वजा मुई’नुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अ’लैह ने उनकी क़ब्र पर चिल्ला किया, और जब मुद्दत ख़त्म कर के रुख़्सत होने लगे तो ये शे’र पढ़ा:-
गंज-बख़्श-ए-हर दो-आ’लम मज़हर-ए-नूर-ए-ख़ुदा
कामिलाँ रा हुनर-ए-कामिल नाक़िसाँ रा राहनुमा
तज़्किरा-निगारों का बयान है कि गंज-बख़्श के नाम से शोहरत का सबब यही है.

हज़रत शाह बर्कतुल्लाह ‘पेमी’ और उनका पेम प्रकाश

‘पेमी’ हिन्दू तुरक में, हर रंग रहो समाय
देवल और मसीत में, दीप एक ही भाय.