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Suf, Tasawwuf aur Mausiqi: Episode-1 (Fariduddin Ayaz)

We travelled by an auto rickshaw in the streets of Old Delhi, people from air conditioned SUVs rolled down their window to wish him with the humblest of salaams, he responded to them with his folded hands. Some strangers from the pavement recognized him at Connaught place and requested him to pray for them. He… continue reading

सन्यासी फ़क़ीर आंदोलन – भारत का पहला स्वाधीनता संग्राम

बात उस समय की है जब अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान पर अपना अधिकार जमाने के पश्चात इसे लूटना प्रारंभ कर दिया था । हिन्दुस्तान की जनता उनके तरह तरह के हथकंडों से परेशान हो चुकी थी. । अंग्रेजों ने अपने साथ यहाँ के जमींदारों और साहूकारों को भी मिला  लिया था और इनकी सांठ-गाँठ से देश… continue reading

हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया-अपने पीर-ओ-मुर्शिद की बारगाह में

हज़रत निज़ामुद्दीन को जो घोड़ा मिला वो कुछ सरकश और बद-लगाम था। उसने चलने में बहुत परेशान किया। नतीजा ये हुआ कि शम्स दबीर और शैख़ जमाल तो आगे निलक गए और हज़रत कई मील पीछे रह गए।आप तन्हा सफ़र कर रहे थे। मौसम सख़्त था| प्यास शदीद लग रही थी| ऐसे में घोड़े ने सरकशी की और बिदक कर आपको ज़मीन पर गिरा दिया। आप इतने ज़ोर से ज़मीन पर गिरे कि बे-होश हो गए और बहुत देर तक वहीं जंगल में बे-होश पड़े रहे।जब होश आया तो देखा कि हज़रत बाबा फ़रीद रहि· का नाम का विर्द कर रहे है। ख़ुदा का लाख लाख शुक्र अदा किया और सोचा कि इस से उम्मीद बंधती है कि इंशा-अल्लाह मरते वक़्त भी शैख़ का नाम मेरी ज़बान पर जारी रहेगा।

बाबा फ़रीद के मुर्शिद और चिश्ती उसूल-ए-ता’लीम-(प्रोफ़ेसर प्रीतम सिंह)

कहते हैं कि शैख़ क़ुतुबुद्दीन (रहि.) ने बाबा फ़रीद को चिल्ला-ए-मा’कूस करने की हिदायत फ़रमाई थी। ये बड़ी सख़्त रियाज़त थी जो चालीस दिन तक जारी रही थी।ये वाज़ेह नहीं होता कि आया शैख़ क़ुतुबुद्दीन ने हज़रत बाबा फ़रीद की क़ुव्वत-ए-सब्र-ओ-बर्दाश्त, अहलियत और जमई’यत-ए-ख़ातिर का इम्तिहान लेने की ग़रज़ से ये हिदायात दी थीं या ये उन सलाहियतों और ख़ूबियों को उनके अंदर पैदा करने का एक ज़रिआ’ था।

बाबा फ़रीद के श्लोक-जनाब महमूद नियाज़ी

हज़रत बाबा साहिब की काठ की रोटी मशहूर है।जिसके मुतअ’ल्लिक़ ये रिवायत है कि हज़रत बाबा साहिब अपने मुसलसल रोज़ों का इफ़्तार अपने लकड़ी के प्याले को घिस कर करते थे जिससे उस प्याले के तमाम किनारे ख़त्म हो गए थे और उसने रोटी की मानिंद शक्ल इख़्तियार कर ली थी।मशहूर है किसी दरगाह में आज तक ये रोटी मौजूद है।अब एक श्लोक देखिए जिसमें रोटी की तल्मीह वाज़ेह तौर पर मौजूद है।क्या इस शे’र को शैख़ इब्राहीम से मंसूब किया जा सकता है।

हज़रत बाबा फ़रीद के ख़ुलफ़ा-प्रोफ़ेसर ख़लीक़ अहमद निज़ामी फ़रीदी

क मर्तबा शैख़ निज़ामुद्दीन औलिया अजोधन जाते हुए शैख़ जमाल के यहाँ क़ियाम-पज़ीर हुए।शैख़ जमाल ने उनसे इल्तिमास किया कि वो शैख़ फ़रीद को उनकी बद-हाली और उ’सरत से मुत्तला’कर दें।जब शैख़ निज़ामुद्दीन औलिया ने ये पैग़ाम पहुँचाया तो शैख़ फ़रीद फ़रमाने लगे-
“ऊ रा ब-गो चूँ विलायत ब-कसे दादः-शवद ऊ रा वाजिब अस्त इस्तिमालत”
(उनसे कहो कि जब किसी को विलायत दी जाती है तो उस पर वाजिब है कि पूरी तरह अल्लाह की तरफ़ मुतवज्जिह रहे।)