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अजमेर विवाद का अविवादित पक्ष

“अजमेरा के मायने चार चीज़ सरनाम ख़्वाजे साहब की दरगाह कहिए, पुष्कर में अश्नान मकराणा में पत्थर निकले सांभर लूण की खान” -(अजमेर हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिपटिव किताब से ) ख़्वाजा साहब और अजमेर का ऐसा नाता है जैसा चन्दन और पानी का है । अजमेर सूफ़ी संतों के लिए एक ऐसा झरना है जहाँ देश… continue reading

तारीख़-ए-वफ़ात निज़ामी गंजवी-जनाब क़ाज़ी अहमद साहब अख़्तर जूनागढी

इख़्तिलाफ़-ए-सन : फ़ारसी शोरा के हालात में आ’म तौर पर सिनीन-ओ-तवारीख़ ब-लिहाज़-ए-सेहत मुश्तबा और बसा औक़ात मुख़्तलिफ़ पाई जाती हैं, लेकिन जैसा शदीद इख़्तिलाफ़ निज़ामी की तारीख़-ए-वफ़ात में है, शायद ही किसी शाइ’र या मुसन्निफ़ की निस्बत पाया गया हो, इसकी वजह ज़्यादा-तर यही मा’लूम हुई है कि निज़ामी की मस्नवियाँ जिनसे उनकी तारीख़-ए-वफ़ात पर इस्तिनाद किया जता… continue reading

Mulla Nasiruddin Modern tales-12

‘Blessing is excess, so to speak, an excess of everything. Don’t be content with being a faqih (religious scholar), say I want more – more than being a Sufi (a mystic), more than being a mystic – more than each thing that comes before you. Nasruddin loved this quote by his fellow guest from the… continue reading

सुल्तान सख़ी सरवर लखदाता-मोहम्मदुद्दीन फ़ौक़

आबा-ओ-अज्दाद पौने सात सौ साल का ज़िक्र है कि एक बुज़ुर्ग ज़ैनुल-आ’बिदीन नाम रौज़ा-ए-रसूल-ए-पाक के मुजाविरों में थे।इसी हाल में वहाँ उनको बरसों गुज़र गए।रसूल-ए-करीम की मोहब्बत से सरशार और रौज़ा-ए-अक़्दस की ख़िदमात में मस्त थे कि ख़ुद आँ-हज़रत सलल्ल्लाहु अ’लैहि व-सलल्लम ने एक रात ख़्वाब में फ़रमाया कि उठ और हिन्दुस्तान की सैर कर।आप… continue reading

हज़रत शाह-ए-दौला साहब-मोहम्मदुद्दीन फ़ौक़

शाह-ए-दौला की चूहियाँ और चूहे अक्सर लोगों ने देखे होंगे।उनके सर छोटे-छोटे होते हैं।बाक़ी क़द-ओ-क़ामत और डील-डोल सब दूसरे लोगों से मिलती जुलती है।अक्सर लोगों का ऐ’तिक़ाद है कि अगर किसी बे-औलाद शख़्स को औलाद की ज़रूरत हो और वो शाह-ए-दौला साहब के मज़ार पर जा कर मिन्नत मान आए कि अगर मेरे हाँ ख़ुदा औलाद दे तो पहली औलाद ख़्वाह वो बेटी हो या बेटा हज़रत के मज़ार पर आ कर ब-तौर-ए-नज़्र पेश कर जाऊँगा तो अल्लाह तआ’ला उसकी मुराद पूरी कर देता है।

हज़रत शैख़ सैयद ज़ैनुद्दीन अ’ली अवधी चिश्ती

पुन मैं अख्खर की सुद्ध पाई
तुर्की लिख हिंदू की गाई
(फिर मैं ने इन लफ़्ज़ों की हक़ीक़त पा ली
तुर्की (फ़ारसी) में लिख लिख कर मैं ने हिंदवी को गाया)