तारीख़-ए-वफ़ात निज़ामी गंजवी-जनाब क़ाज़ी अहमद साहब अख़्तर जूनागढी
इख़्तिलाफ़-ए-सन :
फ़ारसी शोरा के हालात में आ’म तौर पर सिनीन-ओ-तवारीख़ ब-लिहाज़-ए-सेहत मुश्तबा और बसा औक़ात मुख़्तलिफ़ पाई जाती हैं, लेकिन जैसा शदीद इख़्तिलाफ़ निज़ामी की तारीख़-ए-वफ़ात में है, शायद ही किसी शाइ’र या मुसन्निफ़ की निस्बत पाया गया हो, इसकी वजह ज़्यादा-तर यही मा’लूम हुई है कि निज़ामी की मस्नवियाँ जिनसे उनकी तारीख़-ए-वफ़ात पर इस्तिनाद किया जता है वह तस्हीफ़ात से लबरेज़ हैं, चुनांचे इन मस्नवियों की तवारीख़-तसनीफ़ मुतअ’द्दिद नुस्ख़ों में आपस में एक दूसरी से इस क़दर मुख़्तलिफ़ हैं कि उनसे सहीह सिनीन –ओ-तवारीख़ का मा’लूम करना बहुत दुशवार अम्र है यही सबब है कि तमाम तज़्किरा-नवीस निज़ामी की तारीख़-ए-वफ़ात पर मुत्तफ़िक़ नहीं हैं
निज़ामी का तज़्किरा लिखने वालों में सबसे क़दीम मुहम्मद औ’फ़ी साहिब-ए-लुबाबुल-अल्बाब है, मगर उसने सिवाए चंद बे-मानी मद्हिया सुतूर और चंद ग़ज़लियात-ए-निज़ामी के और कुछ नहीं लिखा, उसके बा’द क़दीम माख़ज़ में मौलाना जामी हैं, जिन्हों ने बहारिस्तान और नफ़ख़ातुल-उन्स में निज़ामी का मुख़्तसर तज़्किरा लिखा है, उन्होंने आख़िरुज़्ज़िक्र किताब में इतमाम-ए-सिकन्दर-नामा की तारीख़ सन592 हिज्री बयान करते हुए लिखा है, कि निज़ामी की उ’म्र उस वक़्त साठ साल से मुतजाविज़ थी
उनके अ’लावा और कई मुअर्रिख़ीन और तज़्किरा-नवीसों ने निज़ामी की तारीख-ए-वफ़ात का ज़िक्र किया है, जिनको हम ज़ैल में दर्ज करते हैं:
मशरिक़ी मुसन्निफ़ीन की दी हुई तारीख़ें:
(1) मशहूर जुग़राफ़िया-नवीस क़ज़वीनी ने गंजा का ज़िक्र करते हुए निज़ामी का मुख़्तसर तज़्किरा लिखा है, और तारीख़-ए-वफ़ात तक़रीबन सन590 हिज्री बताई है
(2) दौलत शाह समरक़ंदी ने अपने तज़्किरा में लिखा है, कि निज़ामी ने तुग़रल बिन अर्सलान के अ’ह्द सन571۔ सन590 मैं वफ़ात पाई, और सन576 हिज्री तारीख़-ए-वफ़ात बयान की है
(3) हाजी ख़लीफ़ा ने कश्फ़ुल-ज़ुनून में मुख़्तलिफ़ मक़ामात पर मुख़्तलिफ़ तारीखें लिखी हैं:
सन 576हिज्री। सन 796 हिज्री। सन 597 हिज्री। सन 599 हिज्री
(4) मुल्ला अब्दुन-नबी ने मय-ख़ाना में 84 बरस की उ’म्र पर सन 502 हिज्री में निज़ामी की वफ़ात बयान की है, जो यक़ीनन ग़लत है। जैसा कि ख़ुद इस किताब के मुदव्विन का ख़याल है
(5) लुतफ़ अ’ली आज़र ने सन 588 हिज्री लिखी है, मगर बंबई वाले नुस्ख़ा में ये सन नहीं पाया जाता, कि लफ़्ज़ “सन के बाद इस में से तारीख़ महज़ूफ़ है
(6) तारीख़-ए-हबीबुस्सियर में सिर्फ़ इत्माम-ए-सिकन्दर-नामा की तारीख़ ब-क़ौल-ए-जामी बयान की गई है, लेकिन हाशिया पर मुहम्मद तक़ी तुस्तरी ने एक मुख़्तसर नोट लिखा है, जिसमें इत्माम-ए-सिकन्दर- नामा की तारीख़ सन597 हिज्री बता कर तज़्किरा-ए-नताइजुल-अफ़कार, और सुब्ह-ए-सादिक़ के हवाला से निज़ामी का इस तारीख़ के बा’द पाँच साल और ज़िंदा रहना साबित किया है, और इस लिहाज़ से सन 602 हिज्री तारीख़-ए-वफ़ात बताई है
(7) तारीख़-ए-जहहाँ-आरा में सन 597 हिज्री है
(8) मुख़्बबुरल-वासिलीन में गंजवी ‘गुल-ए-जन्नत’ माद्दा-ए-तारीख़ लिखा है, जिससे सन 592 हिज्री बर-आमद होती है, तामस विलियम बेल और मौलाना आज़ाद इतमाम-ए-सिकन्दर-नामा की तारीख़ सन 597 हिज्री नक़ल कर के इस तारीख़ की तग़लीत की है
(9) तक़ी काशी साहिब-ए-सुब्ह-ए-सादिक़ ने सन 606 हिज्री लिखी है
(10) हिदायत क़ुली ने अपने तज़्किरा में सन 576 हिज्री ग़ालिबन दौलत शाह के ततब्बो’ में लिखी है
मुस्तश्रिक़ीन-ए-यूरोप की दी हुई तारीख़ें:
इन मशरिक़ी माख़ज़, नीज़ अपनी ज़ाती तहक़ीक़ात की बिना पर मुस्तश्रिक़ीन-ए-यूरोप ने मुंदरजा-ए-ज़ैल सिनीन लिखे हैं:
1- मुहल-ओ-दीबाचा-ए-शाहनामा सफ़हा 72
2- वान हैमर तारीख़-ए-अदब-ए-फ़ारसी
3-अर्डमीन फ़लूगुल तारीख़-ए-अदब-ए-फ़ारसी सन 576 हिज्री
4-सर गोरोसले sir Gourousley सन 597 हिज्री
5۔ डाक्टर विल्हेम बाख़र,( Dr, Wilhelm Bacher) सन 599
6۔ डाक्टर रियो, (Dr. Riev) सन 599-598 हिज्री
7۔ डाक्टर एथे,( Herman Ethe) सन 599 हिज्री
8۔ डाक्टर मोदी (J.J. Modi) सन 597 हिज्री
8۔प्रोफ़ेसर ब्राउन (E.G.Browen) सन 599 हिज्री
इन सब में जर्मनी के मुस्तश्रिक़ बाख़र ने निज़ामी की मस्नवियात के बा’ज़ अशआ’र की बिना पर उनकी तारीख़-ए-वफ़ात से मुतअल्लिक़ एक नज़रिया क़ाइम किया है, जिसकी अक्सर मुस्तश्रिक़ीन ने ताईद की है, ये नज़रिया अपनी तफ़सीलात के ए’तबार से क़ाबिल-ए-ग़ौर है। और हम उसका ख़ुलासा ज़ैल में दर्ज करते हैं
बाख़र का नज़रिया:
(अलिफ़) निज़ामी ने लैला मज्नू की तारीख़-ए-तसनीफ़ सन 584 हिज्री बयान की है, जैसा कि अशआ’र-ए-ज़ैल से साबित होता है:
बर जल्वा-ए-ईं अ’रूस-ए-आज़ाद
आबाद तर आँ कि गोयद आबाद
का रास्ता शुद बह बेहतरीन हाल
दर सल्ख़-ए-रजब सा-ओ-फ़ा-ओ-दाल
तारीख़-ए-अययाँ कि दाशत बा-ख़ूद
हश्ताद-ओ-चहार बा’द-ए-पांसद
इस मस्नवी के इख़्तताम के वक़्त निज़ामी की उ’म्र 49) बरस की थी, जैसा कि इसी मस्नवी के सबब तालीफ़ में फ़रमाते हैं:
मजमूआ-ए-हफ़्त सब्अ’ ख़्वांदी
या हफ़्त हज़ार साल माँदी
और:
ज़ान सहर सहर गही कि रानम
मजमूआ-ए-हफ़्त सब्अ’ ख़्वानम
अब अगर सन584 हिज्री से उनकी उ’म्र के49 साल वज़ा किए जाएं तो सन535 हिज्री उनका साल-ए-विलादत होता है
(बा) ख़मसा-ए-निज़ामी के किसी जामे’ या हाशिया-नवीस ने जिसने बा’द में उनकी तदवीन-ओ-तर्तीब की होगी, सिकन्दर-नामा के आख़िर में निज़ामी की वफ़ात के मुतअ’ल्लिक़ अशआ’र-ए-ज़ैल इज़ाफ़ा कर दिए हैं
निज़ामी चू ईं दास्तान शुद तमाम
ब-अ’ज़्म-ए-शुदन तेज़ बर्दाश्त गाम
न बस रोज़गारे बर ईं बर गुज़िश्त
कि तारीख-ए-उ’म्रश वरक़ दर नविश्त
फ़ुज़ूँ बूद शश मह ज़े शस्त-ओ-सेह साल
कि बर अ’ज़्म-ए-रह बरो बल ज़ूद दाल
इन अशआ’र के मुताबिक़ निज़ामी ने सिकन्दर-नामा के इतमाम के बा’द ही वफ़ात पाई है, और उस वक़्त उनकी उ’म्र 64 साल या साढे़ 63 साल की थी, लिहाज़ा अगर सन 584 हिज्री में उनकी उ’म्र 64 साल की हो तो लाज़िमी है कि पंद्रह साल के बाद 49+15=64۔ सन 599 हिज्री जब कि उन्होंने इंतिक़ाल किया सन 599 हिज्री तारीख-ए-वफ़ात होनी चाहिए
नज़रिया-ए-मज़कूरा बाला से मा’लूम होगा कि बाख़र ने ख़ुद मुसन्निफ़ की सनद पर नहीं , बल्कि उस मुदव्वन या जामे-ए-ख़मसा के क़ौल पर इस की बुनियाद रखी है, जिसने निज़ामी की उ’म्र साढे़ 63 साल ताई है
बाख़र का ख़याल है कि निज़ामी ने सिकन्दर-नामा की तारीख़-ए-तसनीफ़ नहीं बयान की, चुनांचे वो लिखता है:
“सिकन्दर-नामा की तारीख़-ए-तसनीफ़ का तअ’य्युन हनूज़ बाक़ी है, जिसको निज़ामी ने बराह-ए-रास्त नहीं बयान किया”
लेकिन ये अम्र तअ’ज्जुब-ख़ेज़ है कि बावजूद कि सिकन्दर-नामा के दोनों हिस्सों (शरफ़-नामा-ओ-इक़बाल नामा, या बर्री-ओ-बहरी मैं सिनीन-ए-तसनीफ़ सन 597 हिज्री और सन 599 अ’लत्तर्तीब दे गए हैं, बाख़र को या तो सिकन्दर-नामा के वो मख़्तूते नहीं मिले जिनमें ये सिनीन मौजूद हैं, या उसने उनको सहीह नहीं तस्लीम किया
बाख़र के तमाम नज़रिया की बुनियाद लैला-मज्नू के अशआ’र-ए- मुंदरजा-बाला हैं, लेकिन ये समझ में नहीं आता कि “हफ़्त सब्आ’ ख़्वान्दन के मा’नी सात को सात से ज़र्ब देने के कैसे हो गए? फ़ारसी के किसी मो’तबर लुग़त या फ़र्हंग में इसके ये मा’नी नहीं पाए जाते, तअ’ज्जुब है कि बाख़र की कोराना तक़लीद में तमाम मुस्तश्रिक़ीन हत्ता कि रियो और ब्राउन जैसे मुहक़्क़िक़ीन भी इस को इन मा’नों में सहीह समझते हैं, “हफ़्त सब्आ से मुराद क़ुरआन-ए-करीम की सात मंज़िलें या हिस्से हैं, जो क़ारियों ने क़िराअत की सुहूलत की ग़रज़ से मुक़र्रर किए हैं, ताकि एक हफ़्ता में पढ़ा जा सके। सा’दी ने भी एक शे’र में हफ़्त सब्आ’ ख़्वान्दन का ज़िक्र किया है:
अगर ख़ुद हफ़्त सब्आ अज़ बर ब-ख़्वानी
चू अलिफ़ बा ता न-दानी
बहर-हाल इस में शक नहीं कि डाक्टर बाख़र ने जो नज़रिया क़ाइम किया है, गो नतीजा के लिहाज़ से वो सहीह हो, मगर तफ़सीलात के लिहाज़ से ग़लत है, चुनांचे डाक्टर रियो के क़ौल से इस ख़याल की ताईद होती है, कि ना-काफ़ी मवाद की वजह से बाख़र के नताइज की तफ़सील अग़्लात से पाक नहीं है”
तारीख-ए-वफ़ात मालूम करने का सहीह और मुकम्मल तरीक़ा:
हमारे ख़याल में निज़ामी की तारीख-ए-वफ़ात मा’लूम करने का बेहतरीन और मुकम्मल तरीक़ा ये है, कि मस्नवियों की तारीख़-ए-तसनीफ़, उनकी उ’म्र की निसबत इशारात,उनके साहिबज़ादा की उ’म्र, उन फ़रमा-रवाओं के सिनीन-ए-हुकूमत जिनके नाम पर पर ये मस्नवियाँ मु’अनवन हुईं हैं, इन सब में सहीह तौर पर मुताबक़त देकर तारीख़-ए-वफ़ात मा’लूम की जाए, ताकि बा’द में किसी क़िस्म का इख़्तिलाफ़ पैदा न हो, चुनांचे मुंदरजा-ज़ैल तरीक़ा से निज़ामी की तारीख़-ए-वफ़ात के मुतअल्लिक़ हम एक सही नतीजा पर पहुंच सकते हैं:
(अलिफ़) तारीख़-ए-विलादत:
1۔ मसनवी शीरीं ख़ुसरो का साल-ए-इतमाम मो’तबर क़लमी और मतबूआ’ नुस्ख़ों के मुताबिक़ सन 576 हिज्री:
गुज़िश्त अज़ पांसद-ओ-हफ़्ताद-ओ- शश साल
नज़्द-ए-बर ख़द-ए-ख़ूबाँ कस चुनीं ख़ाल
अगरचे तुग़रल बिन अर्सलान सल्जूक़ी सन 573 हिज्री की मद्ह ,मुहम्मद जहान पहलवान अताबुक की वफ़ात (सन 586 हिज्री) का ज़िक्र, क़ज़्ल अर्सलान के क़त्ल (सन 587 हिज्री) का वाक़िआ’ और अबू-बकर नस्रुद्दीन अताबुक (सन 587-607 हिज्री) की वफ़ात इतनी चीज़ें इस मस्नवी में पाई जाती हैं, लेकिन इनसे सिर्फ़ इसी क़दर मालूम होता है, कि निज़ामी ने इसी किताब को तुग़रल के बा’द क़ज़्ल के नाम, और उस की वफ़ात के बा’द नस्रुद्दीन के नाम से जो, फ़रमा-रवान-ए-वक़्त थे, मंसूब किया था, और इसलिए ये मदहिया अशआ’र बा’द को इज़ाफ़े किए गए हैं, लेकिन इस में शक नहीं कि अस्ल किताब सन 573 हिज्री से शुरू’ हो कर सन 576 हिज्री में पूरी हो चुकी थी, जैसा कि ख़ुद निज़ामी ने तसरीह किया है
2۔ इस मस्नवी में वो अपने साहिब-ज़ादा को नसीहत करते हुए फ़रमाते हैं:
ब-बीं ईं हफ़्त साल: क़ुर्रतुल-ऐ’न
मक़ाम-ए-ख़्वेशतन दर क़ाब-क़ौसैन
जिससे मा’लूम होता है कि उनके साहिब-ज़ादा की उ’म्र उस वक़्त सात साल की थी, सबब-ए-नज़्म-ए-किताब में निज़ामी ने अपने दोस्त की ज़बानी अपनी उ’म्र चालीस साल की बताई है:
पस अज़ पंजाह चिल्ल: दर चहल साल
म-ज़न पंज: बर ईं हर्फ़-ए-वरक़ माल
इस तरह मा’लूम हुआ कि सन 576 हिज्री में निज़ामी की उ’म्र तक़रीबन40 साल की थी, अब अगर इस सन में से उनकी उ’म्र के चालीस बरस की जाए तो उनका साल-ए-विलादत सन 536 हिज्री होगा
(बा) तारीख़-ए-वफ़ात
1۔ मस्नवी लैला मज्नू सन 584 हिज्री में लिखी गई, जैसा कि इसके तारीख़ी हुरूफ़ और साल-ए-इतमाम से साफ़ ज़ाहिर हैं :
कारास्ता शुद ब-बेहतरीन-ए-हाल
दर सल्ख़-ए-रजब ब सा-ओ-फ़ा दाल
तारीख़-ए-यां कि दाश्त बा-ख़ूद
हफ़ताद-ओ-चहार बा’द-ए-पांसद
इस मस्नवी की तस्नीफ़ के वक़्त उनके साहिब-ज़ादा की उ’म्र14 साल की थी, चुनांचे उसको मुख़ातब कर के फ़रमाते हैं:
ऐ चारदह साल: क़ुर्रतुल-ऐ’न
बालिग़ नज़र-ए-उलूम-ए-कौनैन
और जैसा कि ऊपर बयान हो चुका है, कि मस्नवी शीरीं ख़ुसरो की तस्नीफ़ के वक़्त या’नी सन 576 हिज्री में उनके साहिब-ज़ादा की उ’म्र सात साल की थी और उनकी उ’म्र चालीस साल की, इस तरह लैला मज्नूं ,ख़ुसरो शीरीं से सात साल के बा’द लिखी गई, या यूं कहो कि सन 584 हिज्री ख़त्म हुई, , लिहाज़ा इस हिसाब से निज़ामी की उ’म्र उस सन में 47 या 48 साल की होनी चाहिए
2۔ लैला मजनूं के3 साल बा’द या’नी सन587 हिज्री में सिकन्दर-नामा या शरफ़-नामा का आग़ाज़ होता है, कि इसका ज़माना-ए-तस्नीफ़ सन 597 हिज्री है, जैसा कि अपने साहिब-ज़ादा की उ’म्र 17 साल की जो सन 587 हिज्री ही में हो सकती है। बताते हुए कहते हैं :
वज़ ईं हफ़दा ख़िसल आवर्दीन ब-दस्त
शुद: हफ़द: साल: ब-दीन्साँ कि हस्त
इसी में वो अपनी उ’म्र पच्चास बरस की बताते हैं:
चू तारीख-ए-पंज: दर-आमद ब-साल
दिगर गून: शुद बर शताबिंद: हाल
यानी सन 587 हिज्री में निज़ामी की उ’म्र पच्चास साल की थी, इस मस्नवी की तारीख़-ए-इतमाम सन 597 हिज्री ज़ैल से मा’लूम होती है:
ब-गुफ़्तम मन ईं नाम: रा दर जहाँ
कि ता दौर आख़िर बुवद दर जहाँ
ब-तारीख़-ए-पांसद नवद हफ़्त साल
चहारुम मुहर्रम ब-वक़्त-ए-ज़वाल
3۔ सिकन्दर-नामा का दूसरा हिस्सा या इक़बाल-नामा सन 599 हिज्री इतमाम को पहुंचता है। जैसा कि फ़रमाते हैं:
जहाँ बुर्द हम रोज़ बूद अज़ायार
नवद नोह गुज़श्त: ज़े पांसद शुमार
इस तरह सन 587 से लेकर सन 599 हिज्री तक सिकन्दर-नामा हर दो हिस्सा की तकमील होती है। और इसी अस्ना (ग़ालिबन सन 597 हिज्री में वो अपनी उ’म्र 60 बरस की बताए हैं:
ब-शस्त आमद अंदाज़-ए-साल-ए-मन
नगशत अज़ ख़ुद अंदाज़-ए-हाल मन
इस हिसाब से सन 599 मैं सिकन्दर-नामा ख़त्म हुआ, उस वक़्त उनकी उम्र 62 या 63 साल की होती है
4۔ अब उन अशआर को लीजिए जो किसी ने सिकन्दर-नाम-ए-बहरी या इक़बाल-नामा के आख़िर में ‘अंजामश रोज़गार-ए-निज़ामी रहमतुल्लाह अलैह के उ’न्वान से इल्हाक़ कर दिए हैं,उन अशआ’र का लिखने वाला ग़ालिबन जामे’-ए-औराक़ या कातिब होगा, जो मा’लूम होता है, कि निज़ामी के “दम-ए-वापसीं के वक़्त हाज़िर था, और जिसको निज़ामी की उ’म्र का भी सही इ’ल्म था
मुम्किन हो कि वो निज़ामी का कोई क़रीबी अ’ज़ीज़ या दोस्त हो, बहर-हाल ये अशआ’र क़दीम-तरीन नुस्ख़ों में भी पाए जाते हैं और हसब-ए-ज़ैल हैं:
निज़ामी चू ईं दास्ताँ शुद तमाम
ब-अ’ज़्म-ए-शुदन तेज़ बर्दाश्त गाम
ज़े-बस रोज़गारे बर ईं बर गुज़िश्त
कि तारीख़-ए-उ’म्रश वरक़ दर नविश्त
फ़ुज़ूँ बूद शश मह ज़े शिस्त-ओ-सेह साल
कि बर अज़्म-ए-रह बुर्द हल ज़द-ओ-दाल
चूँ हाल-ए-हकीमान-ए-पेशीन: गुफ़्त
हकीमाँ ब- ख़ुफ़्तन्द–ओ-ऊ नीज़ ख़ुफ़्त
रफ़ीक़ान-ए-ख़ुद रा ब-गाह-ए-रहील
गह अज़ रह ख़बर दाद-ओ- गह अज़ दलील
ब-ख़न्दीद-ओ- गुफ़्ता कि आमुर्ज़गार
ब-आमुर्ज़िशम कर्द-ओ-उम्मीदवार
अशआ’र-ए-मर्क़ूम-ए-बाला से दो बातें मा’लूम होती हैं जो ज़्यादा क़रीन-ए-क़ियास हैं एक ये कि दास्तान-ए-सिकन्दर-नामा ख़त्म होने के बा’द बहुत ही क़लील अ’र्सा में निज़ामी ने वफ़ात पाई, दूसरी ये कि इंतिक़ाल के वक़्त निज़ामी की उ’म्र साढे़ 63 बरस की थी, लिहाज़ा इस क़ियास की तस्दीक़ होती है, कि सन 599 हिज्री में निज़ामी साढे़ 63 साल की उ’म्र को पहुंच चुके थे, और कि सन 599 हिज्री में या’नी इतमाम-ए-सिकन्दर-नामा के साथ ही उनका भी ख़ातमा हो गया, जैसा कि रियो, बाख़र, और ब्राउन का ख़याल है, या कम-अज़-कम ये कि वो सन 599 हिज्री तक ज़िंदा थे
प्रोफ़ेसर शीरानी की तहक़ीक़:
इस सिलसिला में ये मा’लूम करना दिलचस्पी से ख़ाली ना होगा कि प्रोफ़ेसर महमूद ख़ान शीरानी सन 607 हिज्री तक निज़ामी का ज़िंदा रहना बताते हैं, चुनांचे अपनी तन्क़ीद शेरुल-अ’जम में फ़रमाते हैं:
“निज़ामी की वफ़ात का हादिसा इक़बाल-नामा के इख़्तिताम के बा’द तसव्वुर करना चाहिए
इस से किसी को इन्कार नहीं हो सकता, लेकिन आगे चल कर सिकन्दर-नामा की मुख़्तलिफ़ इशाअ’तों का ज़िक्र करते हुए लिखते हैं:
” इसकी आख़िरी इशाअ’त अताबुक नस्रुउद्दीन अबू-बकर की ख़िदमत में पेश की जाती है, और सन 607 हिज्री में इसकी ग़ालिबन शीरानी साहिब को मुंदरजा-ए-ज़ैल अशआर पर से धोका हुआ होगा, जो सिकन्दर-नामा-ए-बहरी के बा’ज़ क़लमी नुस्ख़ों में पाए जाते हैं, और जिनको डाक्टर रियो ने भी नक़ल किया है:
तरफ़दार-ए-मूसिल ब-मर्दांगी
क़दर-ख़्वान-ए-शाहाँ ब-फ़र्ज़ांगी
सर-ए-सरफ़राज़ान-ए-गर्दन कशां
मलिक इ’ज़्ज़उद्दीन क़ाहिर-ए-शह निशां
ब-तुग़रा-ए-दौलत चू तुग़रल नगीं
अबुल फ़त्ह मसऊ’द बिन नूरुद्दीन
आख़िरी शे’र में मसऊ’द बिन नूरुद्दीन का नाम है, लेकिन इन अशआ’र में भी शीरानी साहब के ख़याल के मुताबिक़ नूरुद्दीन अर्सलान नहीं बल्कि उस के बेटे मसऊ’द का नाम है, और चूँकि “क़ाहिर का लक़ब भी मौजूद है इस बिना पर डाक्टर रियो को भी मुग़ालता हो गया कि ये उल-मलिकुल-क़ाहिर इ’ज़्ज़ुद्दीन मसऊ’द सानी बिन नूरुद्दीन अर्सलान है।चुनांचे ख़ुम्स-ए-निज़ामी के एक मख़तूता सन 578 हिज्री में इक़बाल-नामा का ज़िक्र करते हुए डाक्टर रियो रक़म-तराज़ है:
“शुरू’ में उल-मलिकुल-क़ाहिर इ’ज़्ज़ुद्दीन मसऊ’द सानी बिन नूरुद्दीन वाली-ए-मूसिल के नाम पर इंतिसाब है जो इस तरह शुरू’ होता है
तरफ़दार-ए-मूसिल ब-मर्दांगी। अलख़
उल-मलिकुल क़ाहिर आख़िर-ए-रजब सन 607 हिज्री में अपने बाप का जानशीन हुआ (कामिल इब्न-ए- असीर12 सफ़हा 193) अगर ये इंतिसाब वाक़ई निज़ामी का लिखा हुआ है, तो इस से मा’लूम होगा कि निज़ामी उस तारीख़ के बा’द तक भी ज़िंदा रहे हैं, और आख़िर में भी मलिक इ’ज़्ज़ुद्दीन मसऊ’द की मद्ह पाई जाती है
लेकिन इस से पेशतर रियो ख़ुद ही लिख चुका है कि
निज़ामी की वफ़ात के मुतअल्लिक़ इस तहदिया बनाम इ’ज़्ज़ुद्दीन मसऊ’द से शुबहा पैदा होता है, कि ये तहदिया बहुत से क़दीम मख़तूतात नीज़ मतबूआ’ नुस्ख़ों में नहीं है, और सबसे बढ़कर इश्तिबाह-अंगेज़ अम्र तो ये है कि ब-ग़ौर मुआ’इना करने से ये मा’लूम होता है कि सिवाए नामों के ये मद्ह तमाम-तर सिकन्दर-नामा हिस्सा अव़्वल से (जो मलिक नस्रुद्दीन के नाम पर मु’अनवन है) नक़ल कर दी गई है
इ’ज़्ज़ुद्दीन बिन क़ुतुबुद्दीन मौदूद अपने भाई सैफ़ुद्दीन ग़ाज़ी की वफ़ात के बा’द सन 576 हिज्री में मूसिल का फ़रमारवा हुआ और शा’बान सन589 हिज्री में रिहलत किया (देखो इब्न-ए-ख़लक़ान और कामिल इब्न-ए- असीर 12 सफ़हा 66 ) डाक्टर बाख़र का ख़याल है कि ये ततिम्मा सिकन्दर-नामा की किसी अगली इशाअ’त का टुकड़ा है, चुनांचे एक इत्तिफ़ाक़ी हवाला से जिसमें निज़ामी के साहबज़ादा की उ’म्र 17 साल बताई गई है:
शुद: हफ़द: साल: बद ईंसाँ कि हस्त
डाक्टर बाख़र ने क़ियास किया है कि चूँकि लैला मज्नू की तसनीफ़ (सन 584 हिज्री) वक़्त निज़ामी के साहबज़ादे की उ’म्र 14 साल की थी इसलिए ये ततिम्मा उसके तीन साल के बा’द यानी सन 587 में लिखा गया होगा
ब-हर कैफ़ अगर ये तहदिया सहीह हो तो भी यहाँ इ’ज़्ज़ुद्दीन मसऊ’द से मुराद पोता नहीं, बल्कि दादा है, जैसा कि आख़िरी मिस्’रा में इस की कुनिय्यत अबुल फ़त्ह इस पर सरीहन दलालत कर रही है, इसलिए बाख़र का ये ख़याल सहीह कि सिकन्दर-नामा की अगली इशाअ’त इसी के नाम से मंसूब की गई है, प्रोफ़ेसर ब्राउन के क़ौल से भी इसकी तस्दीक़ होती है:
“सिंकदर-नामा पहले इज़्ज़ुद्दीन मसऊ’द (अव़्वल अताबुक मूसिल के नाम मुअ’नवन किया गया, और बा’द-ए-नज़र-ए-सानी उस की दूसरी इशाअ’त नुस्रतुद्दीन अबूबकर बशकीन के नाम मंसूब की गई जो अपने चचा क़ज़्ल अर्सलान के बा’द सन 587 हिज्री में अताबुक-ए-आज़रबाइजान की हैसियत से जानशीन हुआ
मुंदरजा-बाला बयानात की बिना पर प्रोफ़ेसर शीरानी के इस ख़याल की कमा-हक़्क़हू तरदीद हो जाती है, कि निज़ामी ने सन 607 हिज्री के बा’द इसी किताब को नूरुद्दीन अर्सलान के नाम से मंसूब किया
साभार – मारिफ़ पत्रिका
Guest Authors
- Aatif Kazmi
- Absar Balkhi
- Afzal Muhammad Farooqui Safvi
- Ahmad Raza Ashrafi
- Ahmer Raza
- Akhlaque Ahan
- Arun Prakash Ray
- Balram Shukla
- Dr. Kabeeruddin Khan Warsi
- Dr. Shamim Munemi
- Faiz Ali Shah
- Farhat Ehsas
- Iltefat Amjadi
- Jabir Khan Warsi
- Junaid Ahmad Noor
- Kaleem Athar
- Khursheed Alam
- Mazhar Farid
- Meher Murshed
- Mustaquim Pervez
- Qurban Ali
- Raiyan Abulolai
- Rekha Pande
- Saabir Raza Rahbar Misbahi
- Shamim Tariq
- Sharid Ansari
- Shashi Tandon
- Sufinama Archive
- Syed Ali Nadeem Rezavi
- Syed Moin Alvi
- Syed Rizwanullah Wahidi
- Syed Shah Tariq Enayatullah Firdausi
- Umair Husami
- Yusuf Shahab
- Zafarullah Ansari
- Zunnoorain Alavi