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अजमेर विवाद का अविवादित पक्ष

“अजमेरा के मायने चार चीज़ सरनाम ख़्वाजे साहब की दरगाह कहिए, पुष्कर में अश्नान मकराणा में पत्थर निकले सांभर लूण की खान” -(अजमेर हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिपटिव किताब से ) ख़्वाजा साहब और अजमेर का ऐसा नाता है जैसा चन्दन और पानी का है । अजमेर सूफ़ी संतों के लिए एक ऐसा झरना है जहाँ देश… continue reading

सय्यद शाह शैख़ अ’ली साँगड़े सुल्तान-ओ-मुश्किल-आसाँ -मोहम्मद अहमद मुहीउद्दीन सई’द सरवरी

है रहमत-ए-ख़ुदा करम-ए-औलिया का नाम
ज़िल्ल-ए-ख़ुदा है साया-ए-दामान-ए-औलिया

हज़रत शैख़ बहाउद्दीन ज़करिया सुहरावर्दी रहमतुल्लाह अ’लैह

राहतुल-क़ुलूब (मल्फ़ूज़ात-ए-हज़रत बाबा गंज शकर) में है कि जिस वक़्त हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया का विसाल हुआ, उसी वक़्त अजोधन में हज़रत बाबा गंज शकर बेहोश हो गए।बड़ी देर के बा’द होश आया तो फ़रमाया कि-
“बिरादरम बहाउद्दीन ज़करिया रा अज़ीं बयाबान-ए-फ़ना ब-शहरिस्तान-ए-बक़ा बुर्दंद”

हज़रत सयय्द अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी का पंडोह शरीफ़ से किछौछा शरीफ़ तक का सफ़र-अ’ली अशरफ़ चापदानवी

विलादतः- अशरफ़-उल-मिल्लत-वद्दीन हज़रत सय्यद अशरफ़ की सन 722 हिज्री में सिमनान में विलादत-ए-बा-सआ’त हुई जो बा’द में अशरफ़-उल-मिल्लत-वद्दीन उ’म्दतुल-इस्लाम,ख़ुलासतुल-अनाम ग़ौस-ए-दाएरा-ए-ज़माँ,क़ुतुब-ए-अ’स्र हज़रत सयय्द अशरफ़ जहाँगीर अल- सिमनानी के नाम से मशहूर हुए।ये मा’नी-आफ़रीं इस्म-ए-मुबारक बारगाह-ए-मुस्तफ़वी सल्लल्लाहु अ’लैहि व-सलल्लम से तफ़्वीज़ हुआ था। हसब-ओ-नसबः– हज़रत सयय्द अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी क़ुद्दिस सिर्रहु सादात-ए-नूरिया से हैं। खुलफ़ा के अ’हद… continue reading

काउंट ग्लारज़ा का ख़त हज़रत वारिस पाक के नाम

सबा वारसी कहते हैं- दिलबर हो दिलरुबा हो आलम-पनाह वारिससुल्तान-ए-औलिया हो आलम-पनाह वारिस किस की मजाल है जो कशती मेरी डुबो देजब आप नाख़ुदा हो आलम-पनाह वारिस ये जान-ओ-दिल जिगर सब उस को निसार कर दूँजो तेरा बन गया हो आलम-पनाह वारिस हसरत यही है मेरी कि तो मेरे सामने होबाब-ए-करम खुला हो आलम-पनाह वारिस… continue reading

हज़रत मख़दूम अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी के जलीलुल-क़द्र ख़ुलफ़ा- हज़रत मौलाना सय्यद मौसूफ़ अशरफ़ अशरफ़ी जीलानी

हज़रत मख़दूम अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी की ज़ात-ए-गिरामी से सिलसिला-ए-आ’लिया क़ादरिया जलालिया अशरफ़िया और सिलसिला-ए-चिश्तिया निज़ामिया अशरफ़िया की तर्वीज-ओ-इशाअ’त हुई और कसीर औलिया-ए-रोज़गार-ओ-फ़ाज़िल उ’लमा-ओ-मशाइख़-ए-किबार दाख़िल-ए-सिलसिला हुए।आपके ख़ुलफ़ा की ता’दाद बहुत ज़ियादा है जिन्हें ख़ुद आपने अपनी हयात-ए-तय्यिबा में दुनिया के गोशे-गोशे में इशाअ’त-ए-इस्लाम और तब्लीग़-ए-दीन के लिए साहिब-ए-विलायत बना कर भेजा।आपके तक़रीबन सभी ख़ुलफ़ा अपने वक़्त के ज़बरदस्त आ’लिम-ओ-सूफ़ी थे।उन ख़ुलफ़ा ने इस्लाम की बड़ी ख़िदमत की।ज़ैल में हम आपके कुछ उन मशहूर-ओ-मा’रूफ़ ख़ुलफ़ा का ज़िक्र कर रहे हैं जिनका आपसे गहरा तअ’ल्लुक़ था।