Articles By Sufinama Archive

Sufinama Archive is an initiative to reproduce old and rare published articles from different magazines specially on Bhakti movement and Sufism.

हज़रत शरफ़ुद्दीन अहमद मनेरी रहमतुल्लाह अ’लैह

ज़िक्र से मुराद ख़ुदा-वंद तआ’ला की याद है। इसकी चार क़िस्में हैं: 1 ज़बान पर हो लेकिन दिल में न हो, 2 ज़बान और दिल दोनों में हो, मगर दिल किसी वक़्त उससे ग़ाफ़िल हो जाता हो, लेकिन ज़बान पर जारी हो, 3 ज़बान और दिल में बराबर हो, 4 दिल में हो और ज़बान ख़ामोश हो।

TASAWWUF AND MODERN RESEARCH – KHAJA KHAN.

Tafriqa dar Ruhi haywani buad
Nafs Wahid Ruhi Insani buad
(Differentiations are in animal souls
The human soul is one individual.)

Music and Musicians of the court of Shah Jahan – A. Hatim.

The artists of the Qawwali school were Rauza Qawwal and Kalu Qawwal, the latter being a disciple of Sher Muhammad.
There were only two court musicians representing the Persian school of music, Muhammad Baqi Mughal, a good composer whose accomplishments declined owing to his taking too much opium, and Mir Imad, also a musician-composer, a Sayyid of Herat whose father had migrated from Central Asia.

Chandar Bhan Brahman-Iqbal Husain

Maraa dilest ba-kufr-aashnaa ki chandii.n baar
Ba-kaabaa burdam-o-baazash barhaman aawardam
“I possess the heart of an infidel. Many a time I took it to the Ka’ba but always brought it back a Brahman”.

हज़रत शैख़ बू-अ’ली शाह क़लंदर

नाम-ओ-नसबः- नाम शैख़ शर्फ़ुद्दीन और लक़ब बू-अ’ली क़लंदर था।इमाम-ए-आ’ज़म अबू हनीफ़ा की औलाद से थे।सिलसिला-ए-नसब ये है।शैख़ शर्फ़ुद्दीन बू-अ’ली क़लंदर बिन सालार फ़ख़्रुद्दीन बिन सालार हसन बिन सालार अ’ज़ीज़ अबू बक्र ग़ाज़ी बिन फ़ारस बिन अ’ब्दुर्रहीम बिन मोहम्मद बिन वानिक बिन इमाम-ए-आ’ज़म अबू हनीफ़ा। इनके वालिद सन 600 हिज्री में इ’राक़ से हिंदुस्तान आए।वो बड़े… continue reading

हज़रत शैख़ फ़ख़्रुद्दीन इ’राक़ी रहमतुल्लाह अ’लैह

नाम-ओ-नसबः- पूरा नाम शैख़ फ़ख़्रुद्दीन इब्राहीम है।तारीख़-ए-गुज़ीदा में सिलसिला-ए-नसब ये है।फ़ख़्रुद्दीन इब्राहीम बिन बज़रचमहर बिन अ’ब्दुल ग़फ़्फ़ार अल-जवालक़ी।मगर तज़्किरा-ए-दौलत शाह,मिर्अतुल-ख़याल,सीरतुल-आ’रिफ़ीन,मख़्ज़नुल-ग़राएब और ब्रिटिश म्यूज़ियम के फ़ारसी मख़्तूतात की फ़िहरिस्त में उनके वालिद-ए-बुज़ुर्गवार का इस्म-ए-गिरामी शहरयार मरक़ूम है।सियरुल आ’रिफ़ीन के मुअल्लिफ़ का बयान है कि- “शैख फ़ख़्रुद्दीन मोहम्मद शहरयार बहाउद्दीन ज़करिया की बहन के बेटे या’नी भाँजे… continue reading

हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आ’रिफ़ रहमतुल्लाह अ’लैह

वालिद-ए-बुज़ुर्गवार के विसाल के बा’द जब रुश्द-ओ-हिदायत की मसनद पर मुतमक्किन हुए तो तर्का में सात लाख नक़्द मिले। मगर ये सारी रक़म एक ही रोज़ में फ़ुक़रा-ओ-मसाकीन में तक़्सीम करा दी और अपने लिए एक दिरम भी न रखा। किसी ने अ’र्ज़ की कि आपके वालिद-ए-बुज़ुर्गवार अपने ख़ज़ाने में नक़्द-ओ-जिंस जम्अ’ रखते थे और उसको थोड़ा थोड़ा सर्फ़ करना पसंद करते थे।आपका अ’मल भी उन्हीं की रविश के मुताबिक़ होना चाहिए था।शैख़ सदरुद्दीन रहमतुल्लाह अ’लैह ने इर्शाद फ़रमाया कि हज़रत बाबा दुनिया पर ग़ालिब थे, इसलिए दौलत उनके पास जम्अ’ हो जाती तो उनको अ’लाइक़-ए-दुनिया का कोई ख़तरा लाहिक़ न होता, और वो दौलत को थोड़ा थोड़ा ख़र्च करते थे। मगर मुझ में ये वस्फ़ नहीं, इसलिए अंदेशा रहता है कि दुनिया के माल के सबब दुनिया के फ़रेब में मुब्तला न हो जाऊँ,इसलिए मैं ने सारी दौलत अ’लाहिदा कर दी।

हज़रत मौलाना ज़ियाउद्दीन नख़्शबी- सय्यद सबाहुद्दीन अब्दुर्रहमान

“एक दिन एक ख़्वाजा ने एक लौंडी ख़रीदी।जब रात हुई, लौंडी से कहा ऐ कनीज़क मेरा बिछौना दुरुस्त कर दे कि मैं सो रहूँ। लौंडी ने कहा ऐ मौला क्या तुम्हारा भी मौला है ।ख़्वाजा ने कहा- हाँ। लौंडी ने पूछा- क्या वो सोता है। ख़्वाजा ने कहा- नहीं ।लौंडी ने कहा- तुम्हें शर्म नहीं आती ।तुम्हारा मौला तो जागे और तुम सो रहो”।

Kabir as Depicted in the Persian Sufistic and Historical Works- Dr. Qamaruddin

We have great respect for the remarkable personality of Kabir for he was a true Indian saint and a great Indian poet. In his thoughts and beliefs he was an Indian out and out. Moreover he had an ennobling mission of uniting Hindu and Muslims, which alas, remains unfulfilled even after a lapse of so many centuries.

हज़रत क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागौरी

मौलाना क़ुतुबुद्दीन काशानी देहली आए तो फ़रमाया कि हमीदुद्दीन के इ’श्क़ की वजह से देहली आया हूँ। एक रोज़ उन्होंने क़ाज़ी हमीदुद्दीन की तमाम तसानीफ़ मँगवा कर पढ़ीं और अपने हमराही उ’लमा से कहा कि यारो !जो कुछ हम ने और तुम ने पढ़ा है, वो सब इन रिसालों में मौजूद है, और जो कुछ नहीं पड़ा है वो इ’ल्म भी इन किताबों में मौज़ूद है।