वालिद-ए-बुज़ुर्गवार के विसाल के बा’द जब रुश्द-ओ-हिदायत की मसनद पर मुतमक्किन हुए तो तर्का में सात लाख नक़्द मिले। मगर ये सारी रक़म एक ही रोज़ में फ़ुक़रा-ओ-मसाकीन में तक़्सीम करा दी और अपने लिए एक दिरम भी न रखा। किसी ने अ’र्ज़ की कि आपके वालिद-ए-बुज़ुर्गवार अपने ख़ज़ाने में नक़्द-ओ-जिंस जम्अ’ रखते थे और उसको थोड़ा थोड़ा सर्फ़ करना पसंद करते थे।आपका अ’मल भी उन्हीं की रविश के मुताबिक़ होना चाहिए था।शैख़ सदरुद्दीन रहमतुल्लाह अ’लैह ने इर्शाद फ़रमाया कि हज़रत बाबा दुनिया पर ग़ालिब थे, इसलिए दौलत उनके पास जम्अ’ हो जाती तो उनको अ’लाइक़-ए-दुनिया का कोई ख़तरा लाहिक़ न होता, और वो दौलत को थोड़ा थोड़ा ख़र्च करते थे। मगर मुझ में ये वस्फ़ नहीं, इसलिए अंदेशा रहता है कि दुनिया के माल के सबब दुनिया के फ़रेब में मुब्तला न हो जाऊँ,इसलिए मैं ने सारी दौलत अ’लाहिदा कर दी।
By Sufinama Archive
July 5, 2021