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Suf, Tasawwuf aur Mausiqi: Episode-1 (Fariduddin Ayaz)

We travelled by an auto rickshaw in the streets of Old Delhi, people from air conditioned SUVs rolled down their window to wish him with the humblest of salaams, he responded to them with his folded hands. Some strangers from the pavement recognized him at Connaught place and requested him to pray for them. He… continue reading

अलाउल की पद्मावती-वासुदेव शरण अग्रवाल

मलिक मुहम्मद जायसी कृत पद्मावत की व्याख्या लिखते हुए मेरा ध्यान पद्मावत के अन्य अनुवादों की ओर भी आकृष्ट हुआ। उनमें कई फ़ारसी भाषा के अनुवाद विदित हुए। किन्तु एक जिसकी और हिन्दी जगत का विशेष ध्यान जाना चाहिए वह बंगाली भाषा में किया हुआ वहाँ के प्रसिद्ध मुसलमान कवि अलाउल का अनुवाद है। यह… continue reading

Modern Tales of Mullah Nasiruddin -9

Out beyond ideas of wrongdoing and right doingthere is a field. I’ll meet you there.(Barks, the Essential Rumi, 36) The cop stopped his car near a coffee shop in Meram, in the outskirts of Konya. Nasruddin came out to face the young cop who had just been commissioned a year back. He showed his passport with… continue reading

रसखान के वृत्त पर पुनर्विचार-कृष्णचन्द्र वर्मा

      रसखान के जीवनवृत्त पर सर्वप्रथम प्रकाश डालने का श्रेय श्री किशोरीलाल गोस्वामी को है। वे रसखान की रचनाओं के अनन्य भक्त थे तथा बड़े श्रम से उन्होंने रसखान के काव्य और जीवनवृत्त से हिन्दी के साहित्यानुरागियों को सन् 1891 में ‘सुजान रसखान’ नामक ग्रंथ द्वारा परिचित कराया। लगभग 50 वर्ष तक हिंदी के विद्वानों… continue reading

कविवर रहीम-संबंधी कतिपय किवदंतियाँ -याज्ञिकत्रय

      प्रसिद्ध पुरुषों के विषय में जो जनश्रुतियाँ साधारण जन-समाज में प्रचलित हो जाती हैं, वे सर्वथा निराधार नहीं होतीं। यद्यपि उनमें कल्पना की मात्रा अधिक होती है, तथापि उनका ऐतिहासिक मूल्य भी कुछ-न-कुछ अवश्य होता है। किवदंतियों में मनोरंजन की सामग्री भी होती है, इस कारण वे मौखिक रूप में हो अनेकों शताब्दियों तक… continue reading

बक़ा-ए-इन्सानियत में सूफ़ियों का हिस्सा- (हज़रत शाह तुराब अ’ली क़लंदर काकोरवी के हवाला से)

क़ुरआन-ए-मजीद में इर्शाद है ‘लक़द मन्नल्लाहु अ’लल-मोमिनीना-इज़ा-ब’असा-फ़ीहिम रसूलन मिन-अन्फ़ुसिहिम यतलू अ’लैहिम आयातिहि-व-युज़क्कीहिम-व-युअल्लि’मुहुमुल-किताबा-वल-हिकमत’.(आल-ए-इ’मरान) या’नी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अ’लैहि-व-सल्लम की बि’सत का मक़्सद ये हुआ कि वो लोगों को अल्लाह तआ’ला की  आयात-ओ-निशानियों से बा-ख़बर करें।उनके नुफ़ूस का तज़्किया-ओ-निशानियों से ज़िंदगियाँ निखारें और सँवारें और उन्हें किताब-ओ-हिक्मत का सबक़ पढ़ाऐं। जिस तरह पैग़म्बरों की बि’सत मख़्लूक़ पर एहसान-ए-अ’ज़ीम… continue reading