फ़तेहपुर सीकरी के रुहानी सुल्तान हज़रत शैख़ सलीम चिश्ती

ग़रीब नवाज़ ख़्वाजा मुई’नुद्दीन हसन चिश्ती अजमेरी के सिलसिला-ए-चिश्तिया के मा’रूफ़ सूफ़ी हज़रत बाबा फ़रीद मस्ऊ’द गंज शकर के नसबी फ़रज़ंद हज़रत शैख़ सलीम चिश्ती फ़तेहपुरी ने पंदरहवीं और सोलहवीं सदी ई’सवी मुताबिक़ एक हज़ार हिज्री के अवाख़िर में हिन्दुस्तान में सिलसिला-ए-चिश्तिया की जो दीनी और रुहानी ख़िदमात अंजाम दीं उससे सारी दुनिया वाक़िफ़ है।उस अ’ह्द में आपकी ज़ात आफ़ताब की मानिंद रौशन नज़र आती है। हज़रत अ’ब्दुल-अ’ज़ीज़ चिश्ती और हज़रत जलालुद्दीन थानेसरी भी उसी अ’ह्द से तअ’ल्लुक़ रखते हैं लेकिन शैख़ सलीम चिश्ती ने जो कारहा-ए-नुमायाँ अंजाम दिया वो बड़ा काम है।तसव्वुफ़ की शान और सूफ़ियों का वक़ार आप में मौजूद था।अगर “फ़क़ीरी में बादशाहत की मिसाल पेश की जाए तो शैख़ की ज़ात उसकी बेहतरीन मिसाल है।

शैख़ सलीम चिश्ती और शैख़ अ’ब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी (958 – 1052हिज्री) जो शैख़ सलीम चिश्ती से साठ साल उ’म्र में छोटे हैं या’नी तक़रीबन एक पुश्त बा’द की शख़्सियत हैं, हिन्दुस्तान में इ’ल्म-ए-हदीस को निसाब की शक्ल में राइज करने वाले पहले मुहद्दिस हैं ।ख़ुद भी सिलसिला-ए-क़ादरिया से तअ’ल्लुक़ रखते हैं ।फ़िक़्ह, सीरत,तसव्वुफ़ और हदीस पर आपकी बहुत सी किताबें संग-ए-मील का दर्जा रखती हैं।दरगाह क़ुतुबुल-अक़्ताब ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी (महरौली शरीफ़) के पास मज़ार है।अल-ग़र्ज़ उनकी ज़ात उ’लमा-ए-दीन में मुहताज-ए-तआ’रुफ़ नहीं। अपनी मशहूर-ए-ज़माना तस्नीफ़ “अख़बारुल-अख़्यार में शैख़ का ज़िक्र करते हुए लिखते हैं।

“शैख़ सलीम बिन बहाउद्दीन शैख़ फ़रीदुद्दीन गंज शकर की औलाद में से थे।897 हिज्री में पैदा हुए।जवानी के ज़माने में सिपाहियों जैसा लिबास पहनते थे और बे-इंतिहा रियाज़त-ओ-मुजाहिदा करते थे।उसी ज़माना में शादी करने से पहले मौसम-ए-सरमा में सफ़र का ख़याल आपके दिल में आया ।चुनाँचे 931 हिज्री में ज़ियारत-ए-हरमैन-ए-शरीफ़ैन से मुशर्रफ़ हुए ।अ’रब-ओ-अ’जम के शहरों में सैर-ओ-सियाहत की और वहाँ के मशाइख़ और बा-कमाल लोगों की मोहब्बतों से फ़ैज़ हासिल किया और बड़े-बड़े उमूर सर-अंजाम दिए।अ’र्सा-ए-दराज़ के बा’द सीकरी की तरफ़ रवाना हुए जहाँ आपके वालिद और भाई दिल्ली से आकर बा’ज़ नवाब के यहाँ मुलाज़िम हो गए थे और सीकरी ही में मुक़ीम थे।ग़र्ज़ कि आप सीकरी के एक पहाड़ी ग़ार में गोशा-नशीन हुए और इ’बादत-ए-इलाही करने लगे ।आख़िरी अय्याम-ए-हयात तक रोज़े रखे और उन चीज़ों से इफ़्तार करते जिनकी ख़ासियत सर्द है जैसे पुराना सिर्का और ठंडी तरकारी वग़ैरा। रोज़ाना ठंडे पानी से ग़ुस्ल करते और सख़्त जाड़ों में भी एक बारीक कुरता पहनते थे।

सीकरी आने के बा’द शादी की और बाल बच्चों वाले हुए।ज़माना की तरक़्क़ी के साथ आपके हालात-ओ-कवाइफ़ में भी तब्दीली हुई और आपने भी इ’मारतें, बाग़ और कुँएं वग़ैरा बनवाए।उसके बा’द मस्नद-ए-फ़क़ीरी पर बैठे ।अहल-ए-हरमैन-ए-शरीफ़ैन की तरह आप अव्वल-ए-वक़्त नमाज़ अदा करते और वो चीज़ें जो अ’वाम में रिवाज-पज़ीर हैं और इस्लाम में नाजाएज़ नहीं वो भी करने लगे ।तलब-गारों और मुरीदों को रियाज़त-ओ-मुजाहिदा की तल्क़ीन और रहनुमाई करते थे ।आपकी नशिस्त-गाह बिलकुल अमीरों और हाकिमों की तरह थी।किसी को नसीहत और किसी को तंबीह करते। आपके ख़ुद्दाम और मो’तक़िदीन अक्सर-ओ-बेशतर आपकी करामत ,तसर्रुफ़ और कश्फ़ के अ’जीब-ओ-ग़रीब क़िस्से बयान करते हैं। हेमू मलऊ’न की ईज़ा-रसानी के सबब से आप दूसरी मर्तबा 962 हिज्री में हरमैन-ए-शरीफ़ैन गए और सैर-ओ-सियाहत के बा’द 976 हिज्री में वापस हुए। मुग़लिया सल्तनत के बादशाह जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर का आपसे राबिता और ऐ’तिक़ाद बे-इंतिहा पुख़्ता हो गया था। चूँकि उसको औलाद न थी इसलिए वो शैख़ की तरफ़ खास तौर पर मुतवज्जिह हुआ और औलाद की ख़्वाहिश की। चुनाँचेह अल्लाह पाक ने आपकी दु’आ की बरकत से बादशाह को औलाद दे दी और उन शाहज़ादों की तर्बियत शैख़ के घर में होती थी ।अकबर बादशाह को आपके ख़ानदान से ज़ाहिरी-ओ-बातिनी तौर पर इतनी मोहब्बत-ओ-उल्फ़त पैदा हो गई थी कि दरमियानी हिजाबात उठ गए और तमाम मुत्तबिई’न मर्द-ओ-औ’रत और बच्चे बूढ़े सभी शाही इ’नायतों से सरफ़राज़ हुए ।आपने ब-हालत-ए-ए’तिकाफ़ 29 रमज़ान 979 हिज्री को इस दुनिया से कूच किया ।अपने इंतिक़ाल से पहले एक रौज़ा बनाने की बुनियाद डाली थी उसी के अंदर दफ़्न हुए।आपकी वफ़ात के बा’द उस रौज़ा की हाकिम-ए-वक़त ने ता’मीर मुकम्मल की। आपका रौज़ा और मस्जिद की इ’मारत ऐसी अच्छी है कि उस जैसी रूए-ज़मीन पर शायद ही कहीं हो। उस मस्जिद की ता’मीर की तारीख़ ‘सानी-ए- मस्जिदुल-हराम और रौज़ा की ‘ख़ानक़ाह-ए-अकबर है’।

हवाला अख़बारुल-अख़्यार (सफ़हा 566-67) मुसन्निफ़ शैख़ अ’ब्दुल-हक़ मुहद्दिस देहलवी)

ख़ानदानः नसबन फ़रीदी फ़ारूक़ी हैं।सिलसिला-ए-नसब बाबा फ़रीद गंज शकर से मिलता है। छः सात वास्तों से उनकी औलाद में से हैं। ख़ुद शैख़ बाबा फ़रीद हज़रत अ’ब्दुल्लाह बिन उ’मर बिन ख़त्ताब के नसब से हैं। इस तरह फ़ारूक़ी शैख़ हैं जो अ’रब में साहिब-ए-फ़ख़्र और आ’ली ख़ानदान माना जाता है।

(माहताब-ए-अजमेर ग़रीबनवाज़ सफ़हा 70-71)

सिलसिला-ए-नसब:

सलीम चिश्ती बिन शैख़ बहाउद्दीन बिन शैख़ बदरुद्दीन बिन शैख़ सुलैमान बिन शैख़ आदम बिन शैख़ मूसा बिन शैख़ मौदूद बिन शैख़ बदरुद्दीन बद्र आ’लम बिन बाबा फ़रीद।

शैख़ सलीम चिश्ती के दादा पाक पट्टन (पाकिस्तान) से तर्क-ए-वतन कर के अंदहयाना में आ बसे। शैख़ के वालिद बहाउद्दीन को ये जगह पसंद न आई।दिल्ली इक़ामत-गाह क़रार दिया। मोहल्ला सराय अ’लाउद्दीन ज़िंदा पीर में सुकूनत इख़्तियार की।

आपके वालिद दिल्ली में क़ियाम-पज़ीर थे ।वहीं आपकी 883 हिज्री में विलादत हुई ।बा’द में आपकी वालिदा और ख़ानदान सीकरी आ गया था। मौलाना मोहम्मद हुसैन आज़ाद दरबार-ए-अकबरी में लिखते हैं।

शाह-ए-विलायत हज़रत सय्यद अ’लाउद्दीन मज्ज़ूब (रहि.) से मुलाक़ात: शैख़ सलीम चिश्ती फ़रीदी बिलाद-ए-इस्लामिया की सियाहत पर निकले। रुम, शाम ,बस्रा, हरमैन-ए-शरीफ़ैन में चौबीस साल रहे। हर साल हज किया करते थे। हरम-ए-पाक और दयार-ए-यमन में बहुत सारे मशाइख़ की ज़ियारत करते हुए वापस आए तो आगरा में शैख़ अ’लाउद्दीन मज्ज़ूब की मजलिस में हाज़िर हुए। आपने फ़रमाया “कोह-ए-सीकरी को आपके लिए सोने से आरास्ता कर दिया गया, वहाँ क़ियाम फ़रमाएं।

क़स्र-ए-आ’रिफ़ाँ (सफ़हा162) 

“बस्रा में हज़रत ख़्वाजा फुज़ैल बिन अ’याज़ (रहि.) के सज्जादा-नशीं क़ुतुबुल-अक़्ताब हज़रत इब्राहीम से फ़ैज़ हासिल किया।ख़िर्क़ा अ’ता हुआ। बग़दाद शरीफ़ में क़ुतुब-ए-रब्बानी ग़ौस-ए-समदानी महबूब-ए-सुब्हानी हज़रत शैख़ अ’ब्दुल क़ादिर जीलानी (रहि.) और इमाम-ए-आ’ज़म अबू हनीफ़ा (रहि.) के मज़ार पर फ़ुयूज़ियात अ’ता हुए।

(आसार-ए-अकबरी या’नी तारीख़-ए-फ़तहपुरी सीकरी, सई’द अहमद मारहरवी सफ़हा 202 )

ता’लीम-ओ-तर्बियतः इब्तिदाई ता’लीम अपने बड़े भाई शैख़ मूसा  (रहि.) की सर-परस्ती में हासिल की।फिर सीकरी से सरहिंद तशरीफ़ लाए और मलिकुल-उ’लमा शैख़ मुजद्द्दिदीन से उ’लूम-ए-ज़ाहिरी की तहसील-ओ-तक्मील की।जिस ज़माने में आपका क़ियाम सरहिंद में था आप कभी कभी क़स्बा बदाली जाते और शैख़ ज़ैनुल-आ’बिदीन चिश्ती के मज़ार से फ़ैज़-ओ-बरकात लेते थे।हज़रत ख़्वाजा इब्रहीम जो छट्ठे वास्ता से ख़्वाजा फुज़ैल बिन ए’आज़ के फ़रज़ंद और सज्जादा-नशीन थे,से आपकी मुलाक़ात हुई ।उन से भी फ़ुयूज़-ओ-बरकात हासिल किए और बैअ’त की।आपने ख़िर्क़ा-ओ-ख़िलाफ़त अ’ता फ़रमाई।सफ़र के दौरान भी आपने बहुत सारे उ’लमा-ओ-मशाइख़ से इस्तिफ़ादा किया।

 सफ़र-ए-मुबारक: 

पहला सफ़र :931 हिज्री में हरमैन-ए-शरीफ़ैन की ज़ियारत की।कुछ अ’र्सा मक्का मुअ’ज़्ज़मा में क़ियाम फ़रमाया।फिर मदीना मुनव्वरा पहुँच कर दरबार-ए-रिसालत-पनाह में रहने लगे।फिर अ’रब-ओ-अ’जम, खुरासान, बस्रा और शाम की सैर-ओ-सियाहत फ़रमाई।

(तारीख़-ए-फ़रिश्ता जिल्द दोउम, फ़ारसी, सफ़हा 403 ، मुंतख़बुत्तवारीख़ वग़ैरा)

वापस आए तो गोशा-नशीन हो कर इ’बादत मुजाहिदात और रियाज़त में मश्ग़ूल हुए।

दूसरा सफ़रः ख़ुशकी-ओ-तरी के रास्ता दुबारा सफ़र में बग़दाद,शाम नजफ़-ए-अशरफ़ की ज़ियारत करते हुए यमन शरीफ़ आए। 962 हिज्री में बैतुल्लाह पहुँचे ।हर साल हज के मौक़ा’ पर मक्का मुअ’ज़्ज़मा रहते फिर सफ़र-ए-ज़ियारत पे निकल जाते। इस तरह बाइस हज किए। चौदह पहली दफ़ा’ और आठ दूसरी दफ़ा’।आख़िरी मर्तबा चार बरस मक्का मुअ’ज़्ज़मा ही में रहे और चार बरस मदीना मुनव्वरा में।मक्का शरीफ़ वाले चार बरसों में भी ख़ास ख़ास दिनों में मदीना मुनव्वरा जाते रहे।

वहाँ आप “शैख़ुल-हिंद कहलाते थे।971 हिज्री में सीकरी वापस तशरीफ़ लाए तो सीकरी जो एक गावँ आगरा के पास 12 कोस 36 किलोमीटर पर है वहीं रहते थे।शैख़ की तशरीफ़-आवारी का शोहरा हुआ। क्यों न होता कि सूरत-ओ-हाल ऐसी ही थी।कैसे मुक़द्दस और नामवर ख़ानदान से थे।चिश्ती सिलसिला से थे।

अख़ीर हज में शैख़ या’क़ूब कश्मीरी भी साथ में थे। उन्होंने आपकी वापसी पर तारीख कही।

हर कि ब-पुर्सीद ज़े-तारीख़-ए-साल

नह्नु अजब्नाहु दख़ल्नल-हरम

मुल्ला अ’ब्दुल क़ादिर बदायूनी ने भी तारीख़ कही:

ब-शमुर हर्फ़े-ओ-म-शमुर हर्फ़े

बहर-ए-तारीख़ ज़े-ख़ैरुल-मक़दम

दूसरी तारीख़

शैख़ुस्सलाम मुक़्तदा-ए-अनाम

र-फ़-अ’ल्लाहु क़द्रहु इस्लामी

अज़ मदीना चू सू-ए-हिंद आमद

 आँ हिदायत-पनाह-ए-नामी

गीर हर्फ़े-ओ-तर्क-ए-कुन हर्फ़े

बहर-ए-सालश ज़े-शैख़-ए-इस्लामी

(मुंतख़बुत्तवारीख़)

जलालुद्दीन अकबर का बैअ’त होना

अकबर की 27,28 साल उ’म्र हो गई थी ।कई बच्चे हुए और मर गए।ला-वलद था इसलिए औलाद की बड़ी आरज़ू थी। शैख़ बुख़ारी और हकीम ऐ’नुल-मुल्क  ने शैख़-ए मौसूफ़ के बहुत औसाफ़ बयान किए। अकबर ख़ुद सीकरी में गया और दु’आ की इल्तिजा की। जहाँगीर अपनी तुज़्क़ में लिखता है “जिन दिनों वालिद-ए-बुजु़र्ग-वार को फ़रज़ंद की बड़ी आरज़ू थी, एक पहाड़ में सीकरी इ’लाक़ा आगरा के पास शैख़ सलीम नाम के एक फ़क़ीर साहिब-ए-हाल थे, कि उ’म्र की बहुत मंज़िलें तय कर चुके थे।इधर के लोगों को उनका बड़ा ऐ’तिमाद था ।मेरे वालिद फ़ुक़रा के नियाज़-मंद थे इसलिए उनके पास गए।तवज्जुह और बे-ख़ुदी के आ’लम में उनसे पूछा कि हज़रत मेरे हाँ कितने फ़रज़ंद होंगे। फ़रमाया तुम्हें ख़ुदा तीन फ़रज़द देगा।वालिद ने कहा, मैंने मिन्नत मानी है कि पहले फ़रज़ंद को आपके दामन-ए-तर्बियत-ओ-तवज्जुह में डालुँगा और आपकी मेहरबानी को उसका हामी-ओ-हाफ़िज़ करूंगा। शैख़ की ज़बान से निकला कि मुबारक बाशद।मैं ने भी उसे अपना बेटा किया”।उन्हीं दिनों मा’लूम हुआ कि हरम-सरा में किसी को हमल है।बादशाह सुनकर बहुत ख़ुश हुए।उस हरम को हरीम-ए- शैख़ में भेज दिया।ख़ुद भी गए और वा’दा के इंतिज़ार में चंद रोज़ शैख़ की मुलाज़मत में रहे ।इसी सिलसिला में एक हरम-सरा की आ’ली-शान इ’मारत शैख़ की हवेली और ख़ानक़ाह के पास बनवानी शुरूअ’ की और शहर आबाद कर के सीकरी को फ़तेहपुर ख़िताब दिया ।बैअ’त हुआ और ख़ानदान के ज़्यादा-तर लोग शैख़ से मुरीद हुए।

977 हिज्री में जहाँगीर पैदा हुआ। शुक्राने कि लिए पा-पियादा अजमेर शरीफ़ गया जो सीकरी से 120 कोस है। शैख़ को भी साथ चलने की गुज़ारिश की और वहाँ आपके वसीले से हाज़िरी पेश की।अजमेर शरीफ़ में बड़ी देग नज़्र की और एक मस्जिद-ए-अकबरी भी बनवाई ।ख़ूब नज़्राना भी पेश किया। हज़रत  के नाम पर फ़रज़ंद का नाम सलीम रखा लेकिन अदब से शैख़ू जी कहता था।नाम नहीं लेता था।जिसे दुनिया जहाँगीर के नाम जानती है ।हज़रत की साहिबज़ादी ने दूध पिलाया।

ख़ानक़ाह की ता’मीर: दरबार-ए-अकबरी में मौलवी मोहम्मद हुसैन आज़ाद लिखते हैं।नई ख़ानक़ाह की बुनियाद डाली।आठ बरस में तैयार हुई थी। उस अ’ह्द के मुवर्रिख़ लिखते हैं कि दुनिया में उसका नज़ीर नहीं।हश्त बिहिशत से पहलू मारती है।

मुल्ला अ’ब्दुल क़ादिर बदायूनी साहिब फ़रमाते हैं ।मस्जिद-ओ-ख़ानक़ाह की तारीख़ मैंने निकाली।

(शहर-ए-फ़तेहपुर की तफ़्सील देखिए)

अ’रबी तारीख़:

क़ा-ल रूहुल-अमीनु तारीख़न-ला-युरा

फ़िल-बिलादि-सानिय्युहा

फ़ारसी तारीख़ः

सानी-ए-मस्जिदुल-हराम आमद

साथ ही मकानात और कुँएं भी बनवाए।

( मुंतख़बुत्तवारीख़)

शैख़ का हाल-ए-मुबारकः

शरीअ’त के ब-मूजिब इ’बादत का बजा लाना दर्दनाक रियाज़तें और सख़्त मशक़्क़तें उठा कर मनाज़िल फ़क़्र को तय करना उनका अ’मल और तरीक़ा का उसूल था और ये बात उस अ’ह्द के मशाइख़ में किसी को कम ही हासिल हुई। नमाज़-ए-पंजगाना ग़ुस्ल कर के जमाअ’त से पढ़ते थे और ये वज़ीफ़ा था कि फ़ौत नहीं हुआ।

मुल्ला अ’ब्दुल क़ादिर बदायूनी कहते हैं कि मैंने जो उनकी करामत देखी वो ये कि जाड़े के मौसम में फ़तेहपुर जैसे ठंडे मक़ाम में ख़ासे का कुर्ता और मलमल की चादर के सिवा कुछ और लिबास न होता था।जल्सा के दिनों में दो दफ़ा’ ग़ुस्ल होता था ।विसाल के रोज़े रखते थे ।ग़िज़ा आधा तरबूज़ बल्कि उस से भी कम।

मल्फ़ूज़ः

दरवेशों की हड्डियों में इ’श्क़-ए-इलाही के सबब बे-शुमार सुराख़ होते हैं।

ख़ुलफ़ा-ए-किराम:

बहुत से मशाइख़-ए-किबार आपसे फ़ैज़ पा कर दर्जा-ए-तक्मील को पहुँचे। उनमें आपके साहिबज़ादे शैख़ बदरुद्दीन शैख़ अहमद शैख़ क़ुतुबुद्दीन भी हैं । एक रिवायत के मुताबिक़ एक साहिब-ज़ादे ताजुद्दीन भी थे जिनका विसाल बचपन में हो गया था।

अ’रब में क़ियाम के दौरान सय्यद मोहम्मद वली, शैख़ महमूद शामी और शैख़ रजब अ’ली को ख़िर्क़ा-ए-ख़िलाफ़त से मुमताज़ फ़रमाया। इनके अ’लावा शैख़ अ’ब्दुल-वाहिद, शैख़ इमाम सरहिंदी ,इमाम सय्यद हुसैन, शैख़ रुकनुउद्दीन, शैख़ या’क़ूब, शैख़ हम्माद, शैख़ मोहम्मद ग़ौरी, शैख़ कबीर, शैख़ मोहम्मद बुख़ारी, शैख़ कमालुद्दीन, शैख़ फ़त्हुल्लाह वग़ैरा।हाजी हुसैन ख़ादिम-ए-ख़ास थे ।ख़ानक़ाह की अहम उमूर में पेश-पेश रहते।

विसालः 

बादशाह जहाँगीर अपनी तुज़्क में उनकी करामत के बाब में लिखते हैं एक दिन किसी तर्कीब से मेरे वालिद ने पूछा कि आपकी क्या उ’म्र होगी और आप कब मुल्क-ए-बक़ा को इंतिक़ाल फ़रमाएंगे। फ़रमाया आ’लिमुल-ग़ैब ख़ुदा है। बहुत पूछा तो मुझ नियाज़-मंद की तरफ़ इशारा कर के फ़रमाया कि जब शाहज़ादा इतना बड़ा होगा कि किसी के याद करवाने से कुछ सीख ले ।उस वक़्त आप बे-कहे जानना कि हमारा विसाल नज़दीक है। वालिद-ए-बुज़ुर्ग ने ये सुनकर ताकीद कर दी कि जो लोग ख़िदमत में हैं नज़्म, नस्र कुछ सिखाए नहीं। इस तरह दो बरस सात महीने गुज़रे। मोहल्ला में एक औ’रत रहती थी वो नज़र-गुज़र के लिए रोज़ मुझ पर दम कर जाती थी। उसे कुछ सदक़ा ख़ैरात मिल जात था एक दिन उसने मुझे अकेला पाया और उस मुक़द्दमा की उसे ख़बर न थी ।मुझे ये शे’र याद करवा दिया।

इलाही ग़ुंचः-ए-उम्मीद ब-कुशा

गुले अज़ रौज़ः-ए-जावेद ब-नुमा

मुझे पहले-पहल ये कलाम-ए-मौज़ूं एक अ’जीब चीज़ मा’लूम हुआ।शैख़ के पास गया तो उन्हें भी सुनाया ।वो ख़ुश हुए।अकबर हाज़िर हुए।उनसे फ़रमाया वा’दा-ए-विसाल पूरा हुआ।तुमसे रुख़्सत होते हैं।उसी रात बुख़ार हुआ और ज़ो’फ़ बढ़ता गया।यहाँ तक कि महबूब-ए-हक़ीक़ी का विसाल हासिल हुआ। सन 979 हिज्री था।

मुल्ला अ’ब्दुल क़ादिर बदायूनी लिख़ते हैं किबड़े साहिबज़ादे शैख़ बदरुद्दीन मक्का मुअ’ज़्ज़मा शरीफ़ चले गए।सात दिन का रोज़ा रखा था।सख़्त रियाज़तें कीं।आख़िर 990 हिज्री में शाह लुत्फ़ अज़ली के जाम से शहादत-ए-क़त्ल फ़ी-सबीलिल्लाह का शर्बत पिया।

हज़रत शैख़ सलीम चिश्ती (रहि.) के उ’र्स का आग़ाज़ 15 रमज़ान से हो जाता है।20 रमज़ानुल-मुबारक को ग़ुस्ल की रस्म अदा की जाती है। तबर्रुकात की ज़ियारत कराई जाती है। आख़िरी क़ुल 29 रमज़ानुल-मुबारक को होता है।सज्जादा-नशीन पीर-ज़ादा अल्हाज ऐ’जाज़ुद्दीन अल मा’रूफ़ रईस मियाँ चिश्ती उनके दोनों साहिबज़ादे पीर-ज़ादा अ’र्शद मियाँ चिश्ती पीर-ज़ादा सैफ़ मियाँ चिश्ती दरगाह ख़ानक़ाह की ख़िदमत अंजाम दे रहे हैं।

माख़ज़ः

अख़बारुल-अख़्यार मुसन्निफ़ शैख़ अ’ब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी (रहि.) सफ़हा 566-567

मुंतख़बुत्तावारीख़ः मुल्ला अ’ब्दुल क़ादिर बदायूनी सफ़हा 281-282

तारीख़-ए-फ़रिश्ताः जिल्द-ए-अव्वल मोहम्मद क़ासिम फ़रिश्ता उर्दू तर्जुमा अ’ब्दुल हई ख़्वाजा नाशिर मकतबा मिल्लत देवबंद, यूपी 1983 ई’स्वी सफ़हा 713, तारीख़-ए-फ़रिश्ता फ़ारसी जिल्द-ए-दोउम सफ़हा 403 ،404، मक्तबा देहली

महताब-ए-अजमेर ग़रीब नवाज़ इंतिज़ारुल्लाह शहाबी सफ़हा70،71

दरबार-ए-अकबरी मौलवी मोहम्मद हुसैन आज़ाद सफ़हाः

790،971،792،793،794،75،796

मे’राजुल-विलायतः सफ़हा 62 ،

ख़ुम-ख़ाना-ए-तसव्वुफ़ हिन्दुस्तान-ओ-पाकिस्तान के औलियाअल्लाह के तज़्किरा ज़ुहूरुल हसन शारिब 349،350،351 352،353،354 ،355،356

क़सर-ए-आ’रिफ़ाँ हज़रत शैख़ मौलवी अहमद अ’ली चिश्ती ख़ैराबादी (रही.) सफ़हा 162

तुज़्क-ए-जहाँगीरी, बादशाह सलीम जहाँगीर

(आसार-ए-अकबरी या’नी तारीख़-ए-फ़तेहपुरी सीकरी, सई’द अहमद मारहरवी सफ़हा 202 )

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