Articles By Sufinama Archive

Sufinama Archive is an initiative to reproduce old and rare published articles from different magazines specially on Bhakti movement and Sufism.

शैख़ सलीम चिश्ती-ख़्वाजा हसन निज़ामी

मशहूर तो यूं है कि हिन्दुस्तान में इस्लाम का ज़माना मोहम्मद ग़ौरी से शुरूअ’ होता है मगर हक़ीक़त में दौर-ए-इस्लामी हज़रत ख़्वाजा हसन संजरी अल-मा’रूफ़ ब-ख़्वाजा मुई’नुद्दीन चिश्ती अजमेरी से चला और उन्हीं के सिलसिला से अब तक इस सर-ज़मीन पर बाक़ी है। बादशाहों ने मुल्क फ़त्ह किया और चिश्तियों ने दिलों की इक़्लीम।ख़्वाजा हसन… continue reading

कबीर दास

महात्मा कबीर से हिंदुस्तान का बच्चा-बच्चा वाक़िफ़ है। शायद ही कई ऐसा नज़र आए जो कबीर के नाम से ना आशना हो। उन के सबक़-आमूज़ भजन आज भी ज़बान-ए-ज़द-ओ-ख़लाएक़ हैं जहाँ दो-चार साधू बैठे या सत्संग हुआ, वहाँ कबीर के ज्ञान का दरिया मौजें मारने लगा। बावजूद ये कि महात्मा कबीर जाहिल थे। लेकिन उन… continue reading

हज़रत सय्यिदना अ’ब्दुल्लाह बग़दादी -हज़रत मैकश अकबराबादी

नाम सय्यिद अ’ब्दुल्लाह,लक़ब मुहीउद्दीन सानी, मौलिद बग़दाद शरीफ़।नसब 12 वास्ते से शैख़ुल-कुल ग़ौस-ए-आ’ज़म हज़रत सय्यिद मुहीउद्दीन अ’ब्दुल क़ादिर जीलानी तक पहुंचता है।जो आपका सिलसिला-ए-नस्ब है वही सिलसिला-ए-तरीक़त है।अपने वालिद-ए-मोहतरम सय्यिद अ’ब्दुल जलील रहमतुल्लाहि  अ’लैह के बा’द आप ख़ानक़ाह-ए-ग़ौसियत-मआब के सज्जादे हुए और ब-हुक्म-ए- हज़रत ग़ौस-ए-पाक हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाए।सन-ए-तशरीफ़-आवरी ब-क़ौल-ए-बा’ज़ सन 1185 हिज्री है और ब-क़ौल-ए-बा’ज़ सन 1190 हिज्री।बा’ज़ अरबाब-ए-तारीख़ ने आपको… continue reading

मसनवी की कहानियाँ -5

एक बादशाह का दो नव ख़रीद ग़ुलामों का इम्तिहान लेना(दफ़्तर-ए-दोम) एक बादशाह ने दो ग़ुलाम सस्ते ख़रीदे। एक से बातचीत कर के उस को अ’क़्लमंद और शीरीं- ज़बान पाया और जो लब ही शकर हो तो सिवा शर्बत के उनसे क्या निकलेगा। आदमी की आदमियत अपनी ज़बान में मख़्फ़ी है और यही ज़बान दरबार-ए-जान का… continue reading

मसनवी की कहानियाँ -4

लोगों का अँधेरी रात में हाथी की शनाख़्त पर इख़्तिलाफ़ करना ऐ तह देखने वाले, काफ़िर-ओ-मोमिन-ओ-बुत-परस्त का फ़र्क़ अलग अलग पहलू से नज़र डालने के बाइ’स ही तो है। किसी ग़ैर मुल्क में अहल-ए-हिंद एक हाथी दिखाने लाए और उसे बिलकुल तारीक मकान में बांध दिया। लोग बारी बारी से आते और उस अंधेरे घर… continue reading

गीता और तसव्वुफ़-मुंशी मंज़ूरुल-हक़ कलीम

हिन्दुस्तान जिस तरह तमद्दुन-ओ-मुआ’शरत में दूसरी मोहज़्ज़ब क़ौमों का गुरू था उसी तरह वो रूहानियत में भी कमाल पर पहुंचा हुआ था।श्री कृष्ण जी की गीता उस ज़र्रीं अ’ह्द की बेहतरीन याद-गार है। गीता महा-भारत मुसन्निफ़ा वेद व्यास के भीष्म पर्व का जुज़्व है।उस में अठारह बाब और सात सौ मंत्र हैं जिनमें वो उसूल-ओ-नसीहतें… continue reading

उ’र्फ़ी हिन्दी ज़बान में-मक़्बूल हुसैन अहमदपुरी

दूसरे मशाहीर-ए-अ’हद-ए-मुग़लिया की तरह उ’र्फ़ी भी संस्कृत या हिन्दी ज़बान न जानता था।लेकिन हिंदूओं के रस्म-ओ-रिवाज और उनके अ’क़ाइद के मुतअ’ल्लिक़ आ’म बातों से वाक़िफ़ था।चुनाँचे उसने अपने अश्आ’र में जा-ब-जा अहल-ए-हिंद के रुसूम की तरफ़ इशारा किया है।और ये दिल-फ़रेब किनाए ज़्यादा-तर उसके ग़ज़लियात के मज्मूआ’ में पाए जाते हैं। ब-हैसियत-ए-इन्सान उ’र्फ़ी की हक़ीक़ी… continue reading

मसनवी की कहानियाँ -3

एक सूफ़ी का अपना ख़च्चर ख़ादिम-ए-ख़ानक़ाह के हवाले करना और ख़ुद बे-फ़िक्र हो जाना(दफ़्तर-ए-दोम) एक सूफ़ी सैर-ओ-सफ़र करता हुआ किसी ख़ानक़ाह में रात के वक़्त उतर पड़ा। सवारी का ख़च्चर तो उसने अस्तबल में बाँधा और ख़ुद ख़ानक़ाह के अंदर मक़ाम-ए-सद्र में जा बैठा। अह्ल-ए-ख़ानक़ाह पर वज्द-ओ-तरब की कैफ़ियत तारी हुई फिर वो मेहमान के… continue reading

मसनवी की कहानियाँ -2

एक गँवार का अंधेरे में शेर को खुजाना (दफ़्तर-ए-दोम) एक गँवार ने गाय तबेले में बाँधी। शेर आया और गाय को खा कर वहीं बैठ गया। वो गँवार रात के अंधेरे में अपनी गाय को टटोलता हुआ तबेले पहुंचा और अपने ख़याल में गाय को बैठा पाकर शेर के हाथ पैर पर, कभी पीठ और… continue reading

फ़िरदौसी-अज़ सय्यद रज़ा क़ासिमी साहिब हुसैनाबादी

ताज़ा ख़्वाही दाश्तन गर दाग़-हा-ए-सीनः रा गाहे-गाहे बाज़ ख़्वाँ ईं क़िस्सा-ए-पारीनः रा अबुल-क़ासिम मंसूर, सूबा-ए-ख़ुरासान के इब्तिदाई दारुस्सुल्तनत तूस में सन 935 ई’स्वी में पैदा हुआ था। उसके बाप का नाम इस्हाक़ बिन शरफ़ था जो सूबा-दार-ए-तूस मुसम्मा अ’मीद की एक जाएदाद का मुहाफ़िज़ था। उस मिल्कियत का नाम फ़िरदौस था।इसी रिआ’यत से अबुल-क़ासिम ने अपना तख़ल्लुस फ़िरदौसी… continue reading