Articles By Sufinama Archive

Sufinama Archive is an initiative to reproduce old and rare published articles from different magazines specially on Bhakti movement and Sufism.

मसनवी की कहानियाँ -1

एक ख़रगोश का शेर को चालाकी से हलाक करना (दफ़्तर-ए-अव्वल) कलीला-ओ-दिमना से इस क़िस्से को पढ़ इस में से अपने हिस्से की नसीहत हासिल कर। कलीला-ओ-दिमना में जो कुछ तूने पढ़ा वो महज़ छिलका और अफ़्साना है इस का मग़्ज़ अब हम पेश करते हैं। एक सब्ज़ा-ज़ार में चरिन्दों की शेर से हमेशा कश्मकश रहती… continue reading

उ’र्स-ए-बिहार शरीफ़

पाँचवें शव्वाल को हम लोग ब-तक़रीब-ए-उ’र्स हज़रत बुर्हानुल-आ’रिफ़ीन मख़्दूम-ए-जहाँ शैख़ शरफ़ुद्दीन अहमद यहया अल-मनेरी अल-बिहारी, बिहार हाज़िर हुए।उ’र्स बि-हम्दिल्लाह ख़ैर-ओ-ख़ूबी से तमाम हुआ। इस साल मेला का भारी जमाव था। मजमा’ बहुत ज़्यादा था। अतराफ़-ओ-जवार के अ’लावा ज़िला’ पूर्निय-ओ-भागलपूर,दरभंगा-ओ-ज़िला मुंगेर-ओ-ज़िला सारन वग़ैरा वग़ैरा दूर-दराज़ मक़ामात के लोग अ’वाम-ओ-अ’माइद-ओ-मोअ’ज़्ज़ेज़ीन हाज़िर थे।आज़ाद फ़ुक़रा का बड़ा गिरोह और… continue reading

शम्स तबरेज़ी-ज़ियाउद्दीन अहमद ख़ां बर्नी

आपका असली नाम शम्सुद्दीन है।आपके वालिद-ए-माजिद जनाब अ’लाउद्दीन फिर्क़ा-ए-इस्माई’लिया के इमाम थे।लेकिन आपने अपना आबाई मज़हब तर्क कर दिया था।आप तबरेज़ में पैदा हुए और वहीं उ’लूम-ए-ज़ाहिरी की तहसील की।आप अपने बचपन का हाल ख़ुद बयान फ़रमाते हैं कि उस वक़्त मैं इ’श्क़-ए-रसूल सल्लल्लाहु अ’लैहि व-सल्लम में इस क़दर मह्व था कि कई कई रोज़… continue reading

तसव़्वुफ का अ’सरी मफ़्हूम-डॉक्टर मस्ऊ’द अनवर अ’लवी काकोरी

तसव्वुफ़ न कोई फ़ल्सफ़ा है न साइंस। ये न कोई मफ़रूज़ा है न हिकायत और न ख़्वाब कि जिसकी ता’बीरें और मफ़्हूम ज़मानों के साथ तग़य्युर-पज़ीर होते हों।यह एक हक़ीक़त है।एक न-क़ाबिल-ए-तरदीद हक़ीक़त।एक तर्ज़-ए-हयात है।एक मुकम्मल दस्तूर-ए-ज़िंदगी है जिसको अपना कर आदमी इन्सानियत की क़बा-ए-ज़र-अफ़्शाँ ज़ेब-तन करता है।तो आईए सबसे पहले ये देखा जाए कि इसका असली… continue reading

सुल्तानुल-मशाइख़ और उनकी ता’लीमात-हज़रत मोहम्मद आयतुल्लाह जा’फ़री फुलवारवी

सुल्तानुल-मशाइख़ की शख़्सियत पर अब तक बहुत कुछ लिखा जा चुका है इसलिए उनकी शख़्सियत के किसी नए गोशे का इन्किशाफ़ मुश्किल है।सीरत-ओ-शख़्सियत के किसी नए पहलु तक मुहक़्क़िक़ीन और अहल-ए-क़लम ही की रसाई हो सकती है।ख़ाकसार इसका अहल नहीं।ये चंद सतरें सुल्तानुल-मशाइख़ महबूब-ए-इलाही हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया, क़ुद्दिसा सिर्रहु से अ’क़ीदत-ओ-मोहब्बत के नतीजे में और सिलसिला-ए-चिश्तिया… continue reading

ज़ियाउद्दीन बर्नी की ज़बानी हज़रत महबूब-ए-इलाही का हाल- ख़्वाजा हसन सानी निज़ामी

शैख़ुल-इस्लाम निज़ामुद्दीन (रहि.)ने बैअ’त-ए-आ’म का दरवाज़ा खोल रखा था। गुनहगार लोग उनके सामने अपने गुनाहों का इक़्बाल करते और उनसे तौबा करते और वो उनको अपने हल्क़ा-ए-इरादत में शामिल कर लेते। ख़्वास-ओ-अ’वाम, मालदार-ओ-मुफ़्लिस, अमीर-ओ-फ़क़ीर, आ’लिम-ओ-जाहिल, शरीफ़-ओ-रज़ील, शहरी-ओ-दहक़ानी,ग़ाज़ी-ओ-मुजाहिद, आज़ाद-ओ-ग़ुलाम, उन सबसे वो तौबा कराते और उनको ताक़िया और मिस्वाक सफ़ाई के लिए देते। उन लोगों में से कसीर ता’दाद (जमाहीर) जो ख़ुद को… continue reading

समाअ’ और आदाब-ए-समाअ’-मुल्ला वाहिदी साहब,देहलवी

आप पत्थर पर लोहे की हथौड़ी मारिए  पत्थर से आग निकलेगी इतनी आग कि जंगल के जंगल जला कर भस्म कर दे।यही हाल इन्सान के दिल का है। उस पर भी चोट पड़ती है तो ख़ाली नहीं जाती।इन्सानी दिल पर चोट लगाने वाली चीज़ों में एक बहुत अहम चीज़ ख़ुश-गुलूई और मौज़ूँ-ओ-मुनासिब तरन्नुम है।इन्सानी दिल में आग… continue reading

क़व्वाली का माज़ी और मुस्तक़बिल

हज़रत ख़ाजा-ए-ख़्वाज-गान के वक़्त से आज तक हिन्दुस्तान में क़व्वाली की मक़्बूलियत कभी कम नहीं हुई बल्कि इसमें दिन-ब-दिन इज़ाफ़ा होता रहा।आज-कल तो ये कहना ग़लत नहीं होगा कि मौसीक़ी की कोई भी फ़ार्म क़व्वाली के बराबर अ’वाम-ओ-ख़्वास में मक़्बूल नहीं है।लेकिन क़व्वाली के दाएरे को जो वुस्अ’त मौजूदा दौर में मिली है उसका एक… continue reading

हज़रत ख़्वाजा नूर मोहम्मद महारवी-प्रोफ़ेसर इफ़्तिख़ार अहमद चिश्ती सुलैमानी

पैदाइश-ओ-ख़ानदान क़िब्ला-ए-आ’लम हज़रत ख़्वाजा नूर मोहम्मद महारवी रहमतुल्लाहि अ’लैह की विलादत-ए-बा-सआ’दत 14 रमज़ानुल-मुबारक 1142 हिजरी 2 अप्रैल 1730 ई’स्वी को मौज़ा’ चौटाला में हुई जो महार शरीफ़ से तीन कोस के फ़ासला पर है। आपके वालिद-ए-गिरामी का इस्म-ए-मुबारक हिन्दाल और वालिदा-ए-मोहतरमा का नाम आ’क़िल बी-बी था।आपके वालिद-ए-गिरामी पहले मौज़ा’ चौटाला में रहते थे। आपके तीन भाई मलिक सुल्तान, मलिक बुर्हान और मलिक अ’ब्दुल… continue reading

याद रखना फ़साना हैं ये लोग-अज़ भारत रत्न डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन ख़ाँ

तारीख़ दो तरह की होती है।एक वाक़ई’ तारीख़ जो बड़ी तलाश-ओ-तहक़ीक़,बड़ी छान-बीन के बा’द किताबों में लिखी जाती है और एक अफ़्सानवी तारीख़ जो तख़य्युल के बू-क़लमूँ और जज़्बात के रंगों से अ’वाम के दिलों पर नक़्श होती है।सल्तनत-ए-मुग़लिया में बड़े बड़े अ’ज़ीमुश्शान,जलीलुल-क़द्र,ऊलुल-अ’ज़्म बादशाह गुज़रे हैं जिनमें से हर एक उस अ’ह्द की दास्तान का… continue reading