हज़रत सय्यिदना अ’ब्दुल्लाह बग़दादी -हज़रत मैकश अकबराबादी
नाम सय्यिद अ’ब्दुल्लाह,लक़ब मुहीउद्दीन सानी, मौलिद बग़दाद शरीफ़।नसब 12 वास्ते से शैख़ुल-कुल ग़ौस-ए-आ’ज़म हज़रत सय्यिद मुहीउद्दीन अ’ब्दुल क़ादिर जीलानी तक पहुंचता है।जो आपका सिलसिला-ए-नस्ब है वही सिलसिला-ए-तरीक़त है।अपने वालिद-ए-मोहतरम सय्यिद अ’ब्दुल जलील रहमतुल्लाहि अ’लैह के बा’द आप ख़ानक़ाह-ए-ग़ौसियत-मआब के सज्जादे हुए और ब-हुक्म-ए- हज़रत ग़ौस-ए-पाक हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाए।सन-ए-तशरीफ़-आवरी ब-क़ौल-ए-बा’ज़ सन 1185 हिज्री है और ब-क़ौल-ए-बा’ज़ सन 1190 हिज्री।बा’ज़ अरबाब-ए-तारीख़ ने आपको बग़दाद शरीफ़ का सज्जादा-नशीन लिखा है।इस की ताईद ख़ुद हज़रत के तहरीर फ़र्मूदा ख़िलाफ़त-नामों से होती है,जहाँ हज़रत ने अपने आपको इस तरह तहरीर फ़रमाया है।
‘व-अनल-फ़क़ीरुलवरा-व-ख़ादिमुल-फ़ुक़रा सय्यिद अ’ब्दुल्लाह इब्न-ए-मरहूम सय्यिद अ’ब्दुल जलील अल-क़ादरी ख़ादिम सज्जादा सय्यिद अ’ब्दुल क़ादिर अल जीलानी क़ुद्दिसल्लाहु सिर्रहुल-अ’ज़ीज़ बि-बग़दाद अलमहमिया।’
आगरा तशरीफ़-आवरी और अ’ता-ए-ख़िलाफ़त
हज़रत बग़दादी साहिब रहमतुल्लाहि अ’लैह के ख़ास ख़लीफ़ा मौलाना सय्यिद अमजद अ’ली शाह साहिब रहमतुल्लाहि अ’लैह ने सन 1216 हिज्री में हज़रत बग़दादी साहिब के विसाल के 8-9 साल के बा’द एक तहरीर लिखी गई थी उसका ख़ुलासा दर्ज है जिस में हज़रत बग़दादी साहिब के आगरे में आमद और ख़िलाफ़त का तज़्किरा है।वो लिखते हैं:
“जब फ़र्ज़न्द–ए-महबूब-ए-सुबहानी हज़रत सय्यिद अ’ब्दुल्लाह बग़दादी क़ादरी आगरे तशरीफ़ लाए और मोहल्ला ताज-गंज में क़याम फ़रमाया तो मैं भी हाज़िर-ए-ख़िदमत हुआ और क़दम-बोसी की।हज़रत ने मेरा सर अपने सीने से लगा लिया और मजमा-ए’-कसीर के सामने फ़रमाया ऐ मेरे बेटे अमजद अ’ली मैं आगरे में अपने जद्द हज़रत ग़ौस-ए-आ’ज़म के हुक्म से इसलिए आया हूँ कि तुम्हें ख़िर्क़ा-ए-बुज़ुर्गान, कुलाह, अ’लम और ख़िलाफ़त इ’नायत करूँ।मैं हज़रत ग़ौस-ए-पाक के हुक्म के इत्तिबा’ में यहाँ तक पहुंचा हूँ। तुम्हें मुबारक हो कि ये दौलत बे-मांगे मिल रही है। ये सुन कर ख़ुशी की हद न रही और मुझ पर एक बे-ख़ुदी तारी हो गई।जब मुझे होश आया तो मैंने अ’र्ज़ किया ऐ मेरे आक़ा कमज़ोर च्यूँटी से पहाड़ का बोझ कैसे बर्दाश्त हो सकता है। हज़रत ने तबस्सुम फ़रमाया और इर्शाद फ़रमाया। वल्लाहु ग़ालिबुन अ’ला अमरिहि व-लाकिन्न अक्सरन्नासि ला-या’लमून।(क़ुरआन) ये मन्सब मेरे जद्द हज़रत ग़ौस-ए-आ’ज़म ने तुम्हें इ’नायत फ़रमाया है। मेरे हाथ से लो और क़ुदरत-ए-क़ादिर का तमाशा देखो। यफ़्अ’लुल्लाहु मा-यशा। हज़रत ग़ौस-ए-पाक ने एक दुज़्द-ए-रू-सियाह को एक नज़र में कुतुब-ए-वक़्त बना दिया था। तुम तो शरीफ़-ए-क़ौम और साहिब-ए-इ’ल्म हो। सय्यिद हो और दरवेशों से निस्बत रखते हो। तुम्हारे वालिद भी इसी सिलसिले से तअ’ल्लुक़ रखते हैं। अगर तुम्हें अपनी शफ़क़त की वजह से इस नेअ’मत से नवाज़ा गया तो क्या बई’द है। फिर चंद मवा’निआ’त की वजह से कुछ ताख़ीर होती रही यहाँ तक कि ग्यारहवीं के दिन मुझे तलब फ़रमाया और शुरफ़ा, नुजबा और मशाइख़ के एक बड़े मजमा’ के सामने अपने हाथ से मुझे ख़िर्क़ा-ए-ख़िलाफ़त पहनाया और अपने सर-ए-मुबारक की कुलाह मेरे सर पर रखी और अ’लम-ए-क़ादरी और ख़िलाफ़त-नामा जो मेरे पास मौजूद है अ’ता फ़रमाया और मुरीदों को हुक्म दिया कि इनको मेरा क़ायम-मक़ाम और नाएब समझते हुए हर महीने की ग्यारहवीं और ख़ासकर बड़ी ग्यारहवीं के फ़ातिहा में इनके मुमिद्द और मुआ’विन रहें और मेरे जद्द की नियाज़ इनको पहुंचाएं और बाल बराबर इनके हुक्म से इन्हिराफ़ न करें। जो कोई इनके ख़िलाफ़ होगा वो मेरे और मेरे जद्द-ए-बुजु़र्ग-वार के ख़िलाफ़ है और उसी रोज़ ख़्वाजा मोहम्मद मीर साहिब को ख़िर्क़ा-ए-ख़िलाफ़त,कुलाह-ए-ख़ास और अ’लम मरहमत फ़रमाया। उस के बा’द मौलवी शम्सुज़्ज़ुहा और सय्यिद हसन अ’ली साहिब को ख़िर्क़ा-ए-ख़िलाफ़त,कुलाह और ख़िलाफ़त-नामा अ’ता हुआ। जब हज़रत क़िब्ला-ए-हक़ीक़ी आगरे से रामपुर तशरीफ़ ले गए जहाँ हज़रत का मज़ार-ए-मुबारक है तो वहाँ पहुंच कर मुझे तलब फ़रमाया और वहाँ ख़िल्अ’त-ए-ख़ास, दस्तार अपने सर-ए-मुबारक की,और पंजा-ए-बग़दादी और अ’लम मरहमत फ़रमाया और पंजा बग़दाद शरीफ़ का बना हुआ है और उस में या सय्यिद सुल्तान अ’ब्दुल क़ादिर जीलानी शैयअन लिल्लाहिल मदद कंदा किया हुआ है। ये अ’लम हज़रत बग़दाद शरीफ़ से हिन्दुस्तान तशरीफ़-आवारी के वक़्त साथ लाए थे।फ़रमाया कि ये अ’लम-ए-मुबारक मेरे जद्द और मेरे आक़ा ग़ौसतुस्सक़लैन के मज़ार-ए-अक़्दस के सिरहाने इस्तादा रहता था।मैं इसे हिन्दुस्तान ले आया था अब हज़रत की ये अमानत उनके हस्बल-अम्र तुम्हें इ’नायत करता हूँ। इस की ता’ज़ीम जैसी चाहिए वैसी करना। चुनाँचे वो अ’लम शरीफ़ मेरे पास है और मज्लिस-ए- याज़्दहुम वग़ैरा में एक मकान में जो कटरा आबरेशम में है और जिसके मालिकों ने वो मकान हज़रत ग़ौस-ए-आ’ज़म की नज़्र कर दिया है इस्तादा होता है और हज़ारों मुरीदीन और तालिबीन उस रोज़ उसकी ज़ियारत करते हैं।आठ साल इस वाक़िए’ को गुज़र चुके हैं और हज़रत ग़ौस-ए-आ’ज़म सानी के इर्शाद की बरकत से तरक़्क़ियात-ए-ज़ाहिरी-ओ-बातिनी मुझे नसीब हो रही हैं। इस वक़्त कि सन 1216 हिज्री है क़रीब एक हज़ार आदमी सिलसिले में दाख़िल हो चुके हैं और सैंकड़ो आदमी दकन, ख़ानदेश मालवा, मश्रिक़, पंजाब और दूसरे शहरों से आकर दीन-ए-क़ादरी से मुस्तफ़ीज़ होते हैं।”
हज़रत सय्यिद अ’ब्दुल्लाह बग़दादी की रामपुर आमद
आप दिल्ली से रौनक़-अफ़रोज़-ए-रामपुर हुए।नव्वाब फ़ैज़ुल्लाह ख़ाँ साहिब वाली-ए-रामपुर मुरीद हुए और वो बहुत ख़िदमत-गुज़ार और अ’कीदत-मंद थे। सय्यिद साहिब ने एक आ’ली-शान मस्जिद और चहार-दीवारी और मकानात तैयार फ़रमाए।हर-चंद नव्वाब साहिब ने अ’र्ज़ किया कि इस काम के वास्ते रुपया मैं नज़्र करता हूँ आपने क़ुबूल नहीं फ़रमाया और जिस मुसल्ले पर आप तशरीफ़ फ़रमा थे तमाम दिन जिस ख़र्च की ज़रूरत होती उसी के नीचे से निकाल कर दिया करते थे। एक रोज़ एक मज़दूर ने ये ख़याल कर के सय्यिद साहिब का सब रुपया वग़ैरा इस मुसल्ले के नीचे गड़ा रहता है रात को आकर उस जगह को खोदा।कुछ बरामद नहीं हुआ। नादिम हो कर उस ज़मीन को वैसे ही बराबर कर दिया। अगले रोज़ फिर सय्यिद साहिब ने उसी मुसल्ले पर तशरीफ़ रखी और तमाम दिन जिस काम की ज़रूरत हुई उसी के नीचे से निकाल कर दिया। शाम के वक़्त जब सब को मज़दूरी तक़्सीम फ़रमाई तो उसको दो-गुनी मज़दूरी मरहमत फ़रमाई और फ़रमाया कि एक आज दिन की और एक रात की है। वो मज़दूर बहुत शर्मिंदा हुआ और क़दमों पर गिर गया और क़ुसूर मुआ’फ़ कराया।
हज़रत नियाज़ बे-नियाज़ की बैअ’त
जब दिल्ली में हज़रत नियाज़ बे-नियाज़ के कमाल की शोहरत हुई तो हासिदों ने ये मशहूर किया कि उनको किसी से बैअ’त ही नहीं कमाल क्या होगा। ये सुनकर नियाज़ बे-नियाज़ को सख़्त मलाल हुआ। कई रोज़ के बा’द मौलाना फ़ख़्रुद्दीन देहलवी रहमतुल्लाहि अ’लैह सुब्ह के वक़्त मकान से बरामद हुए। सब ख़ुद्दाम सलाम के लिए हाज़िर थे।मौलाना ने नियाज़ बे-नियाज़ की तरफ़ देखकर फ़रमाया कि मियाँ आज शब में हज़रत पीरान-ए-पीर ने तुम्हारी बैअ’त अपने दस्त-ए-मुबारक पर क़ुबूल फ़रमाई और मुझको एक सूरत दिखलाई है और फ़रमाया कि अपनी ख़ास औलाद में से उनको भेजता हूँ ब-ज़ाहिर उनके हाथ पर तकमील करा देना। ये सुनकर नियाज़ बे-नियाज़ ने मौलाना के क़दम चूमे।
इस बात को छः महीने गुज़र गए कि एक दिन मैलाना सुब्ह को बरामद हुए और फ़रमाया कि हज़रत पीरान-ए-पीर फ़रमाते हैं कि हमारे फ़र्ज़न्द-ए-मुर्सला को आज तीन रोज़ दिल्ली पहुंचे हुए गुज़रे और तुम उनसे ग़ाफ़िल हो। ये फ़रमा कर लोगों को तलाश के लिए भेजा। उनमें से एक शख़्स ने आ कर बयान किया कि एक साहिब बग़दाद शरीफ़ के रहने वाले जामे’-मस्जिद दिल्ली में मुक़ीम हैं।आपने उनकी वज़्अ’ और क़त्अ’ दरयाफ़्त फ़रमाई।जैसा मौलाना ने आ’लम-ए-रूया में देखा वही वज़्अ’ और क़त्अ’ उसने बयान की। ये सुनकर मौलाना ने मिठाई लाने का हुक्म दिया। जब मिठाई आ गई तो उसको ख़्वान में रखकर उस ख़्वान को अपने सर पर उठाया। हर-चंद ख़ादिमों और ख़ुलफ़ा ने अ’र्ज़ किया कि ये हमारा काम है हुज़ूर हमको दें। मौलाना ने क़ुबूल नहीं फ़रमाया और इस हैसियत से कि मिठाई का ख़्वान सर पर और दाहिने हाथ से हाथ हज़रत नियाज़ का पकड़े हुए दिल्ली की जामे’-मस्जिद में दाख़िल हुए।देखा कि मस्जिद के बीच के दर में साहिब बैठे हुए हैं।ये वही साहिब हैं जिनकी सूरत मुझे दिखलाई गई थी। और उन बुज़ुर्ग ने जिनका इस्म-ए-मुबारक सय्यिद अ’ब्दुल्लाह बग़दादी है हज़रत नियाज़ बे-नियाज़ को देखकर फ़रमाया कि इन्ही की सूरत मुझको दिखलाई गई थी जिनके लिए मैं भेजा गया हूँ। ग़’र्ज़ कि ख़्वान मिठाई का हज़रत मौलाना ने सर से उतार कर हज़रत अ’ब्दुल्लाह बग़दादी के सामने रखा और आपने वहीं मेहराब-ए-मस्जिद में बा’द अदा-ए-दोगाना तहिय्यात-ओ-दुआ’-ए-मासूरा-ए-ख़ानदानी के बैअ’त फ़रमाई और हर क़िस्म की ता’लीम और तल्क़ीन से आपको माला-माल कर दिया।अ’लावा अश्ग़ाल के बावन तरीक़े से ज़िक्र-ए-नफ़ी-इस्बात ता’लीम हुआ जो ख़ुद्दाम-ए-हक़ीक़ी में मौजूद है।और अ’रबी में ख़िलाफ़त-नामा लिख कर जो मुज़य्यन पाँच मुहरों से है मआ’ अपनी दस्तार के मरहमत फ़रमाया जो तबर्रुकन इस वक़्त तक ख़ानक़ाह में मौजूद है।और नीज़ अपनी साहिब-ज़ादी का निकाह हज़रत नियाज़ बे-नियाज़ के साथ कर दिया जो चंद साल के बा’द ला-वलद इस आ’लम-ए-फ़ानी से आ’लम-ए-जाविदानी को रवाना हुईं। इन्ना लिल्लाहि व-इन्ना इलैहि राजिऊ’न।
–करामात-ए-निज़ामिया सफ़हा 19-20
आपका तसर्रुफ़
कहते हैं कि आपका ऐसा तसर्रुफ़ था कि जिस शहर और क़स्बे में तशरीफ़ ले जाते वहाँ के रईस और ग़रीब सब आपकी पालकी को कंधा देते और नज़्राना पेश करते थे। जब आप रामपुर पहुंचे तो नव्वाब फ़ैज़ुल्लाह ख़ाँ वालीए-रामपुर ने अपनी सआ’दत-ए-दीन-ओ-दुनिया तसव्वुर करते हुए आपसे अपने शहर में क़याम फ़रमाने की इल्तिजा की और आग़ापूर गाँव की नज़्र किया। हुज़ूर को इससे बहुत ज़्यादा ग़ैब से फ़ुतूहात हासिल होती थीं जिसे आप फ़ुक़रा-ओ-मसाकीन पर ख़र्च फ़र्मा देते थे। बड़े सिक़ा लोगों ने बयान किया है कि आपको हज़रत ग़ौस-ए-पाक की रूह-ए-मुबारक से कमाल-ए-निस्बत और तवज्जोह हासिल थी और इस वजह से दुनिया और दीन के अक्सर उमूर आप पर मुन्कशिफ़ हो जाते थे। ग़ालिबन आपको इस कश्फ़ वग़ैरा के ज़ाहिर करने की इजाज़त भी थी।चुनाँचे मशहूर है कि जब आप बड़ी मस्जिद ता’मीर करा रहे थे तो एक रोज़ आपको अज़ रू-ए-इल्हाम या अपने जद्द हुज़ूर ग़ौस-ए-पाक से मा’लूम हुआ कि ये मस्जिद गिर जाएगी।आप फ़ौरन ख़ल्वत-ख़ाना से बाहर तशरीफ़ लाए और मज़दूरों से फ़रमाया अना बाबा जल्दी नीचे उतर आओ।अना बाबा हुज़ूर का तकिया-ए-कलाम था। चुनाँचे मज़दूर नीचे उतर आए और उसी वक़्त मस्जिद गिर गई। उस के बा’द दुबारा मस्जिद की ता’मीर हुई।
दिल्ल्ली में ए’ज़ाज़
इ’राक़ में सख़्त-तरीन ताऊ’न फैल जाने की वजह से बग़दाद छोड़कर आप हिन्दुस्तान आए।ये ज़माना हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिस,हज़रत मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ और हज़रत मौलाना फ़ख़्र रहमतुल्लाहि अ’लैह का था।दिल्ली में उन तमाम अकाबिरीन ने आपका बड़ा ए’ज़ाज़ किया।दिल्ली में एक मुशाइ’रा हुआ जिसमें सय्यिद साहिब भी तशरीफ़ फ़रमा थे।हज़रत मिर्ज़ा साहिब ने इस रिआ’यत से अपने मक़्ता’ में फ़रमाया था
गुफ़्त मज़हर ग़ज़ले बहर-ए-जिगर-गोश:-ए-तू
ग़ौस-ए-आ’ज़म सिला-ए-क़िब्ला-ए-पाकां मददे
इस ग़ज़ल का एक शे’र ऐसा बेहतर हुआ था कि तमाम शो’रा ने अपने क़लम रख दिए वो शे’र ये है।
रफ़्तम अज़ मय-कदः अम्मा ब-दुआ’ मी-ख़्वाहम
कि अज़ीं दर न-रवम लग़्ज़िश-ए-मस्ताँ मददे
लग़्ज़िश-ए-मस्ताँ को किसी ने इस अंदाज़ से नहीं बाँधा है।शैख़ अ’ली हज़ीं भी इस मुशाए’रे में मौजूद थे।सय्यिद अ’ब्दुल्लाह बग़दादी फुलवारी भी तशरीफ़ लाए और हमारे बड़े हज़रत शाह मुजीबुल्लाह के मेहमान हुए थे।हज़रत ने आपको कोठे पर ठहराया था ताकि हज़रत ग़ौस-ए-पाक के फ़र्ज़न्द का क़दम मेरे सर पर रहे।
पटना में पज़ीराई
पटना में हज़रत मख़्दूम मुन्इ’म-ए-पाक ने सय्यिद साहिब का बेहद ए’हतिराम किया।एक मज्लिस में जब कि सद्र पर हज़रत सय्यिद अ’ब्दुल्लाह बग़दादी तशरीफ़ फ़रमा थे और आपके सामने मख़्दूम मुन्इ’म-ए-पाक हज़रत शाह मुजीबुल्लाह फुलवारी वग़ैरा मुअद्दब बैठे थे किसी मुसव्विर ने तस्वीर भी खींच ली थी।
ख़ातम-ए-सुलैमानी मुसन्नफ़ा शाह ग़ुलाम हुसैन साहिब नदवी फुलवारवी
सफ़हा 64-65
“जब हज़रत शाह अ’ब्दुल्लाह बग़दादी पटना तशरीफ़ लाए थे तो यहाँ के मश्हूर मा’रूफ़ सूफ़िया-ए-किराम ने आपका बड़ा ए’ज़ाज़-ओ-इस्तिक़बाल किया।एक मस्जिद में जब कि आप तशरीफ़ रखते थे किसी मुसव्विर ने आपकी-ओ-दीगर मशाइख़ान-ए-किराम की जो वहाँ मौजूद थे तस्वीर ले ली थी।”
उस मज्लिस की नशिस्त हस्ब-ए-ज़ैल है।
सद्र में एक क़ालीन और एक गाव-तकिया जिस पर हज़रत सय्यिद शाह अ’ब्दुल्लाह बग़दादी चहार ज़ानू बैठे हैं।और आपकी पुश्त पर आपका ग़ुलाम चुनरी लिए खड़ा है और आपके सामने एक पेचवान है और आप हुक़्क़ा नोश फ़रमा रहे हैं। आपके सामने मस्नद से बाहर हज़रत मख़्दूम मुन्इ’म-ए-पाक जो बिहार में अपने वक़्त के सबसे ज़यादह मुअ’ज़्ज़ज़ बा-असर मशाइख़-ए-किराम थे मोअदद्ब दो ज़ानू बैठे हैं और आपसे गुफ़्तुगू फ़रमा रहे हैं। हज़रत शाह अ’ब्दुल्लाह बग़दादी के चारों तरफ़ बैठने वालों में हज़रत रुकनुद्दीन इ’शक़,हज़रत अबुल-उ’लाई अ’ज़ीमाबादी और अ’ली अशरफ़ जिनका मक़बरा पटना में अ’ली अशरफ़ का मक़बरा मश्हूर है और हज़रत ताजुल-आ’रिफ़ीन के मुरीद-ओ-क़व्वाल अहमद और मदारी जो उस वक़्त मशाइख़ की निगाह में बहुत मक़्बूल थे,अपने साज़ के साथ बैठे हैं (इस से मा’लूम होता है कि शाह अ’ब्दुल्लाह बग़दादी को समाअ’ से भी शग़फ़ था) सब मोअद्दब ज़ानू बैठे हुए हैं। इस मुरक़्क़ा को ख़ातम-ए-सुलैमानी मुवल्लिफ़ साहिब ने देखा है।
रिवायत अज़ शाह ग़ुलाम हुसैन नदवी फ़ुलवारवी
हज़रत बग़दादी की ख़िदमत में नव्वाब फ़ैज़ुल्लाह ख़ान की हाज़िरी
हज़रत बग़दादी साहिब रहमतुल्लाहि अ’लैहि की ख़िदमत में नव्वाब फ़ैज़ुल्लाह ख़ान साहिब की हाज़िरी के मुतअ’ल्लिक़ बा’ज़ रिवायतों से मा’लूम होता है कि जब हज़रत बग़दादी साहिब दिल्ली तशरीफ़ फ़रमा थे तो नव्वाब साहिब शाह-आ’लम,बादशाह-ए-दिल्ली,के मेहमान थे और जब शाह-आ’लम हज़रत की ख़िदमत में हाज़िर हो कर बैअ’त हुए तो नव्वाब साहिब भी बैअ’त हुए और जब से बराबर मुल्तमिस-ओ-मुतमन्नी रहे कि हज़रत रामपुर तशरीफ़ लाएंगे।लेकिन शाह-आ’लम की आरज़ू थी कि हज़रत दिल्ली में क़याम फ़रमा रहें।लेकिन हज़रत बग़दादी साहिब ने जब इर्शाद फ़रमाया कि मेरी आख़िरी आराम-गाह रामपुर में मुक़र्र है तो बादशाह मजबूर हो गए और सफ़र-ए-रामपुर का एहतिमाम-ओ-इंसिराम कर दिया और हज़रत वहाँ से रामपुर के लिए रवाना हो गए।ये भी कहा गया है कि हज़रत बग़दादी साहिब बरेली से मुरादाबाद तशरीफ़ ले जा रहे थे कि नव्वाब फ़ैज़ुल्लाह ख़ाँ साहिब को ख़बर हुई और उन्होंने हाज़िर हो कर रामपुर क़याम फ़रमाने की इल्तिमास की।जैसा कि अनवारुल-आ’रिफ़ीन के मुसन्निफ़ ने भी लिखा है। ये बात मशहूर और मुसल्लम है कि हज़रत बग़दादी साहिब को हक़-तआ’ला की तरफ़ से एक क़ुबूल-ए-ख़ास और तस्ख़ीर-ए-आ’म हासिल थी। चुनाँचे दिल्ली तशरीफ़-आवरी के मौक़ा’ पर हज़रत मौलाना फ़ख़्रुद्दीन देहलवी,हज़रत मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ वग़ैरा ने और रामपुर तशरीफ़-आवरी के वक़्त ख़ुद नव्वाब फ़ैज़ुल्लाह ख़ाँ साहिब और उनके अ’लावा हाफ़िज़ जमालुल्लाह शाह दरगाही साहिब,मुल्ला फ़क़ीर अखुंद साहिब वग़ैरा ने दरिया-ए-कोसी (सरहद-ए-रामपुर)पर हाज़िर हो कर इस्तिक़्बाल किया और और हज़रत की पालकी को कंधा देते हुए दाखिल-ए-शहर हुए।ये अखुंद फ़क़ीर वही हैं जिनके लिए साहिब-ए-अनवरुल-आ’रिफ़िन ने लिखा है कि हज़रत बग़दादी साहिब ने उनके अहल-ए-हल्क़ा के ज़िक्र का तरीक़ा मुलाहिज़ा फ़रमा के फ़रमाया था कि बाबा अखुंद तुम ने ये तरीक़ा-ए-ज़िक्र हमारे अहल-ए-तरीक़ से हासिल किया है।
हज़रत बग़दादी का मसनद-ए-दर्स
साहिब-ए-तालीफ़-ए-मोहम्मदी ने लिखा है कि हज़रत बग़दादी साहिब को उ’लूम-ए-तफ़्सीर, हदीस, फ़िक़्ह और सियर में बड़ी अच्छी महारत थी।दूसरे तज़्किरों से मा’लूम होता है कि हज़रत तलबा को दर्स भी दिया करते थे।तलबा के अ’लावा अहल-ए-मोहल्ला और दूसरे लोग कसरत से हज़रत के लंगर-ख़ाने से फ़ैज़याब होते थे और हज़रत का लंगर-ख़ाना रोज़ाना जारी रहता था।
बंदगान-ए-ख़ुदा की हर मुसीबत में दस्त-गीरी
सीरत-ए-मुबारक के मुतअ’ल्लिक़ जो इजमाली हालात मा’लूम हुए हैं उनसे मा’लूम होता है कि लोगों को खिलाना हज़रत का महबूब मश्ग़ला था।इस के अ’लावा बंदगान-ए-ख़ुदा की हर मुसीबत में दस्त-गीरी करना और साइल के सवाल पूरा करना हज़रत का मा’मूल था और इस में मुस्लिम और ग़ैर मुस्लिम ख़्वेश-ओ-बे-गाना का कोई इम्तियाज़ न था।इसी तरह मा’मूलात-ए-मुबारक में तलबा को दर्स देना और अ’वाम को पंद-ओ-नसीहत भी शामिल थी। इन मसरुफ़ियात के साथ कहा जाता है कि किसी ने हज़रत को कभी सोते नहीं देखा।
मौलाना सय्यिद अमजद अ’ली शाह साहिब के ख़ानदान में ये रिवायत चली आती है कि रामपुर में हाज़िरी के ज़माने में मौलाना सय्यिद अमजद अ’ली शाह एक लकड़ी के कशकोल में पानी लिए जा रहे थे।हज़रत बग़दादी साहिब ने फ़रमाया देखूँ क्या है।मौलाना ने कशकोल हाज़िर कर दिया।हज़रत बग़दादी साहिब ने कशकोल फेंक दिया और फ़रमाया कि चाहिए कि ज़ाहिर-ए-सुल्तानी और बातिन-ए-रब्बानी रखे।
इस रिवायत को इस मौक़ा’ पर बयान करने का मक़सद ये है कि इस वाक़िआ’ से हज़रत बग़दादी साहिब के मिज़ाज और सीरत पर रौशनी पड़ती है।
चंद ज़रूरी गुज़ारिशें
(1) हज़रत सय्यिदना अ’ब्दुल्लाह बग़दादी रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु की हिन्दुस्तान तशरीफ़-आवरी के सबब के बारे में इख़्तिलाफ़ है।
साहिब-ए-अनवारुल-आ’रिफ़ीन का बयान ये है कि:
“आपके साहिब-ज़ादे का इंतिक़ाल हो गया था इस ग़म में बग़्दाद से हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाए।”
ख़ातम-ए-सुलैमानी के जामे’ ने ये क़ौल नक़ल किया है।
“इ’राक़ में सख़्त ताऊ’न फैल जाने की वजह से बग़दाद छोड़कर आप हिन्दुस्तान आए।”
ये दोनों सबब अज़ रू-ए-रिवायत दोनों तरह सहीह नहीं हैं क्योंकि फ़र्ज़न्द का ग़म और ताऊ’न का ख़ौफ़ किसी को भी अपने वतन से इतनी दूर आने के मुतक़ाज़ी नहीं हो सकते,जब कि ताऊ’न की वजह से वतन छोड़ना शरअ’न महमूद भी नहीं समझा जाता।इस के अ’लावा हज़रत की तशरीफ़-आवरी की वजह जो ख़ुद हज़रत ने बयान की और हज़रत के ख़ुलफ़ा ने उसे रिवायत किया और अपनी तहरीर में उसका ज़िक्र किया वही वजह तशरीफ़-आवरी की सही समझी जाएगी।चुनाँचे हज़रत मौलाना सय्यिद अमजद अ’ली शाह साहिब तहरीर फ़रमात हैं:-
“जब हज़रत सय्यिद अ’ब्दुल्लाह बग़दादी आगरे तशरीफ़ लाए और ताज-गंज में क़याम फ़रमाया और मैं ख़िदमत-ए-बा-बरकत में हाज़िर हुआ तो हज़रत ने मेरे सर को अपने सीने से लगाया और मजमा’-ए-कसीर के सामने फ़रमाया या वलदी अमजद अ’ली मैं अकबराबाद अपने जद्द हज़रत ग़ौस-ए-आ’ज़म के हुक्म से इसलिए आया हूँ कि तुम्हें बुज़ुर्गों का ख़िर्क़ा और कुलाह और अ’लम-ए-ख़िलाफ़त अ’ता करूँ।मैं यहाँ हुक्म-ए-मुबारक के इत्तिबाअ’ में पहुंचा हूँ।”
करामात-ए-निज़ामिया और तज़्किरा-ए-औलिया-ए-हिंद भी इस आख़िरी वज्ह की ताईद में हैं और हज़रत की तशरीफ़-आवरी की वजह हज़रत क़िब्ला शाह नियाज़ अहमद रहमतुल्लाहि अ’लैह की तर्बियत-ए-बातिन पर मुत्तफ़िक़ हैं। इस से ज़ाहिर है कि हज़रत बग़दादी साहिब की तशरीफ़-आवरी का मक़सद यहाँ के चंद असहाब को ता’लीम और फैज़ान-ए-क़ादरिया पहुंचाना था जिसके लिए वो जनाब-ए-ग़ौसियत से मामूर फ़रमाए गए थे।
(2) माहनामा ‘आस्ताना’ देहली बाबत जनवरी सन 1959 ई’स्वी में ख़्वाजा अफ़ज़ल इमाम साहिब फ़ुलवारवी का एक मज़मून ब-उ’नवान “हज़रत शाह अ’ब्दुल्लाह बग़दादी रामपुरी (रहि.) शाए’ हुआ था।उसके जवाब में मौलाना अबू हुरैरा मंसूर हुसैनुल-क़ादरी (कलकत्ता)का एक मज़मून रोज़-नामा” उख़ुव्वत’’ कलकत्ता में शाए’ हुआ।उससे मा’लूम हुआ कि कोई बुज़ुर्ग सय्यिद अ’ब्दुल्लाह बग़दादी अल-जीलानी सन 1180 हमें हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाए थे और अपने दो साहिब-ज़ादों सय्यिद रौशन अ’ली, सय्यिद ज़ाकिर अ’ली और एक पोते सय्यिद तुफ़ैल अ’ली क़ादरी को हिन्दुस्तान छोड़ कर फिर बग़दाद तशरीफ़ ले गए और वहीं विसाल फ़रमाया।उनकी उ’म्र हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाते वक़्त सौ साल की थी।सय्यिद ज़ाकिर अ’ली साहिब का मज़ार मंगल कोट ज़िला बर्दवान में है।इस ख़ानदान की ख़ानक़ाहें कलकत्ता और मिदनापुर में भी हैं जहाँ उ’र्स-ओ-फ़ातिहा का सिलसिला जारी है।उन सय्यिद अ’ब्दुल्लाह अल-जीलानी का सिलसिला-ए-नसब और सिलसिला-ए-तरीक़त हज़रत सय्यिद अ’ब्दुल्लाह बग़दादी रामपुरी से मुख़्तलिफ़ है।अव्वलुज़्ज़िकर हज़रत शैख़ अ’ब्दुर्रज़्ज़ाक़ रहमतुल्लाहि अ’लैह की औलाद में थे और सय्यिदना हज़रत अ’ब्दुल्लाह बग़दादी रामपुरी हज़रत सय्यिद शैख़ अ’ब्दुल अ’ज़ीज़ रहमतुल्लाहि अ’लैह की औलाद में थे।ये दोनों हज़रात हुज़ूर ग़ौस-ए-आ’ज़म रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु के साहिब-ज़ादे हैं।
इस सराहत की इसलिए ज़रूरत पेश आई कि आस्ताने के मज़मून-निगार की तरह फिर किसी को ग़लत-फ़हमी न हो और रिवायात की छान-बीन करते वक़्त इसका लिहाज़ रखा जाए।
(3 ) ख़ातम-ए-सुलैमानी के मुसन्निफ़ साहिब ने अपने बुज़ुर्गों से रिवायत करते हुए लिखा है कि दिल्ली में एक मुशाइ’रा हुआ जिसमें हज़रत बग़दादी साहिब रहमतुल्लाहि अ’लैहि भी तशरीफ़ फ़रमा थे।उस के बा’द लिखा है कि उस मुशाइ’रे में शैख़ अ’ली हज़ीं भी मौजूद थे।लेकिन शैख़ अ’ली हज़ीं का इन्तिक़ाल सन 1180 हिज्री में हो चुका था और ये भी मा’लूम है कि शैख़ हज़ीं ने अपनी उ’म्र का आख़िरी बड़ा हिस्सा बनारस ही में गुज़ारा और बनारस से वो बाहर कहीं नहीं गए।
विसाल
साहिब-ए-तालीफ़-ए-मोहम्मदी और इनके इ’लावह तमाम तज़्किरा-निगारों ने बिल-इत्तिफ़ाक़ हज़रत का सन-ए-विसाल 1307 हिज्री और तारीख़ विसाल 14 मुहर्रम लिखा है।तारीख़-ए-मोहम्मदी में वक़्त-ए-विसाल मग़रिब का वक़्त बयान किया गया है।और लिखा है कि उस वक़्त उ’म्र शरीफ़ सत्तर साल से मुतजाविज़ थी।रिवायत किया गई है कि हज़रत की नमाज़-ए-जनाज़ा हाफ़िज़ जमालुल्लाह साहिब ने पढ़ाई और विसाल के दूसरे रोज़ बा’द नमाज़-ए-ज़ुहर उसी गुंबद में सपुर्द-ए-ख़ाक कर दिया गया जो हज़रत ने उसी मक़सद के लिए ता’मीर कराया था।
हज़रत बग़दादी साहिब रहमतुल्लाहि अ’लैहि जब बग़दाद शरीफ़ से आ’ज़िम हिन्द हुए तो मिन-जुमला और तबर्रुकात के हुज़ूर सरवर-ए-काएनात का नक़्शा-ए-क़दम भी साथ-साथ था।ये नक़्शा-ए-क़दम अब हज़रत बग़दादी साहिब के मज़ार-ए-अक़दस पर नस्ब था और ज़ियारत-गाह-ए-आ’म है।ये रिवायत मशहूर है कि उस नक़्शा-ए-क़दम की नव्वाब फ़ैज़ुल्लाह ख़ान साहिब ने तमन्ना की थी कि ये उनकी क़ब्र पर नस्ब किया जाए।हज़रत ने उनके सवाल को रद्द नहीं फ़रमाया।अलबत्ता ये फ़रमाया कि जिसका इंतिक़ाल पहले हो उसी को ये शरफ़ हासिल हो।कहते हैं कि नव्वाब साहिब बहुत बीमार हुए और उन में ज़ीस्त मुन्क़तेए’ हो गई तो हाज़िरीन ने हज़रत से ये माजरा अ’र्ज़ किया।हज़रत ने वुज़ू के लिए पानी तलब फ़रमाया।वुज़ू किया और कलिमा-ए-तय्यिबा पढ़ कर विसाल फ़रमाया।
इन्नालिल्लाहि व-इंन्ना एलैहि राजिउ’न
कहते हैं कि विसाल के बा’द भी हरकत-ए-क़ल्ब जारी रही और बहुत देर तक लोग ये तअ’य्युन करने में मुतअम्मिल रहे कि हज़रत ने विसाल फ़रमाया है।
मज़ार-ए-मुबारक के दरवाज़े पर ये तारीख़-ए-विसाल कंदा है।ये हज़रत मौलाना सय्यिद अमजद अ’ली शाह असग़र अकबराबादी का फ़रमाया हुआ बयान किया जाता है।एक मुवर्रिख़ ने हज़रत के हालात बयान करते हुए लिखा है कि:
“हज़रत के मज़ार पर क़ित्आ’-ए-तारीख़ कंदा है शायद वो किसी ईरानी शाइ’र का कहा हुआ है”
द़रेग़ा हसरता क़ुतुब-ए-मुअ’ज़्ज़म
चराग़-ए-दूदमान-ए-ग़ौस-ए-आ’ज़म
गिरामी गौहर-ए-दरिया-ए-पुर-नूर
कि नामश सय्यिद अ’ब्दुल्लाह मशहूर
ब-यक शंब: वो व-चारहा अज़ मुहर्रम
बरूँ ज़द ख़ीमः अज़ आफ़ाक़-ए-आ’लम
बरीं ग़म बा-हज़ाराँ आह-ओ-हसरत
तलब कर्दम ज़े दिल तारीख़-ए-रेहलत
ब-दिल गुफ़्तः सरोश-ए-रहमत-ए-हक़
जिनाँ रा रूह-ए-पाकश दाद रौनक़
1207 हिज्री
बग़दाद शरीफ़ से जो ग़ुलाम हज़रत के साथ हिन्दुस्तान आए थे उनकी ता’दाद सोलह बयान की गई है। उनमें से एक का नाम अलमास और दूसरे का या’क़ूत था। इनके अ’लावा एक ख़ादिम-ए-ख़ास फ़रहाद भी थे। हज़रत के विसाल के बा’द हज़रत के मज़ार की ख़िदमत और तौलियत फ़रहाद मियाँ के सपुर्द रही और अब भी उनकी औलाद के यके बा’द दीगरे ये ख़िदमत सपुर्द होती रही है।मौजूदा मुतवल्ली मियाँ चराग़ अ’ली शाह साहिब और उनसे पहले उनके वालिद-ए-बुजु़र्ग-वार मियाँ सदर अ’ली शाह साहिब मुतवल्ली रहे।
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