Articles By Sufinama Archive

Sufinama Archive is an initiative to reproduce old and rare published articles from different magazines specially on Bhakti movement and Sufism.

हज़रत गेसू दराज़ हयात और ता’लीमात-प्रोफ़ेसर निसार अहमद फ़ारूक़ी

हज़रत ख़्वाजा सय्यिद मोहम्मद हुसैनी गेसू दराज़ (रहि·) सिलसिला-ए-आ’लिया चिश्तिया निज़ामिया की ऐसी बुलंद-पाया शख़्सियत हैं जिन्हों ने इस सिलसिले का रुहानी फैज़ान जुनूबी हिंद के आख़िरी सिरे तक पहुंचा दिया। आज सर-ज़मीन-ए-दकन की सैकड़ों चिश्ती ख़ानक़ाहें हज़रत गेसू दराज़ (रहि·) की कोशिशों का समरा हैं।आपके बारहवें दादा सय्यिद अ’ली हुसैनी हिरात से दिल्ली तशरीफ़ लाए… continue reading

ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी-हज़रत मुल्ला वाहिदी देहलवी

दिल्ली की जामा’ मस्जिद से साढे़ ग्यारह मील जानिब-ए-जनूब मेहरवली एक क़स्बा है जो बिगड़ कर मेहरौली हो गया है। दिल्ली वाले इसे क़ुतुब साहिब और ख़्वाजा साहिब भी कहते हैं। यहाँ बड़े-बड़े औलिया-अल्लाह मदफ़ून हैं। इनमें सबसे बड़े क़ुतुबुल-अक़ताब ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी रहमतुल्लाहि अ’लैहि हैं। यहीं क़ुतुब की नादिरुल-वजूद लाठ है। ये सुल्तान क़ुतुबुद्दीन ऐबक की मस्जिद क़ुव्वतुल-इस्लाम का मीनार है। यहीं दरवेश मनिश बादशाह शम्सुद्दीन अल्तमिश का मज़ार है और दिल्ली जिन बुज़ुर्गों की वजह से ‘बाईस ख़्वाजा की चौखट’ से मशहूर है उन बाईस में से अक्सर ख़्वाजगान इसी क़स्बा में आराम फ़रमा रहे हैं।

बक़ा-ए-इंसानियत के सिलसिला में सूफ़िया का तरीक़ा-ए-कार- मौलाना जलालुद्दीन अ’ब्दुल मतीन ,फ़िरंगी महल्ली,लखनऊ

बात की इब्तिदा तो अल्लाह या ईश्वर के नाम ही से है जो निहायत मेहरबान और इंतिहाई रहम वाला है और सब ता’रीफ़ तो ईश्वर या अल्लाह की ही है जो सब जगतों का पालनहार है।जिसका कोई साझी नहीं है।जो निहायत रहम वाला मेहरबान है।उसका सलाम मोहम्मद सल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम,आल-ए-मोहम्मद,अस्हाब-ए-मोहम्मद सल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम और उनके… continue reading

हज़रत मीराँ जी शम्सुल-उ’श्शाक़- प्रोफ़ेसर निसार अहमद फ़ारूक़ी

उर्दू ज़बान की सर-परस्ती सब से ज़ियादा सूफ़िया ने की है।इसलिए कि उनका राब्ता अ’वाम और उनके मसाइल से था जिसके लिए अ’वामी ज़रिआ’-ए-इज़हार को समझना और बरतना भी ज़रूरी था।जब कि उ’लमा का सर-ओ-कार बेशतर इ’ल्मी मसाइल की तशरीह-ओ-तावील,तफ़्सीर-ओ-ता’बीर से रहा।और इस मक़्सद के लिए उन्हों ने अक्सर फ़ारसी ज़बान को वसीला बनाया जो… continue reading

हज़रत बंदा नवाज़ गेसू दराज़-अज़ जनाब सय्यिद हाशिम अ’ली अख़तर

आपका इस्म-ए-मुबारक सय्यिद मोहम्मद था।अबुल-फ़त्ह कुनिय्यत और अलक़ाब सदरुद्दीन वलीउल-अकबर अस्सादिक़ लेकिन वो हमेशा हज़रत बंदा-नवाज़ गेसू दराज़ के नाम से मशहूर रहे।ख़ुद अपनी ज़िंदगी में उन्हें इसी नाम से मक़्बूलियत थी। नसब आपके जद्द-ए-आ’ला अबुल-हसन जुन्दी हिरात से दिल्ली तशरीफ़ लाए थे।दिल्ली में क़याम फ़रमाया। एक जिहाद में शरीक हो कर जाम-ए-शहादत नोश फ़रमाया।हज़रत गेसू… continue reading

अमीर ख़ुसरो के अ’हद की देहली-जनाब हुस्नुद्दीन अहमद

ये बात बड़ी ख़ुश-आइंद है कि सात सौ साल के बा’द हिन्दुस्तान में अमीर ख़ुसरो की बाज़याफ़्त की कोशिश मुनज़्ज़म और वसीअ’ पैमाना पर हो रही है।इस सिलसिले में एक अहम काम अमीर ख़ुसरो के अ’हद के देहली और उसकी ज़िंदगी के मुतअ’ल्लिक़ ज़्यादा से ज़्यादा मालू’मात फ़राहम करना है।इन मा’लूमात से अगर एक तरफ़… continue reading

हज़रत गेसू दराज़ का मस्लक-ए-इ’श्क़-ओ-मोहब्बत-जनाब तय्यब अंसारी

हज़रत अबू-बकर सिद्दीक़ रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु ने फ़रमाया था: परवाने को चराग़ है, बुलबुल को फूल बस सिद्दीक़ के लिए है ख़ुदा का रसूल बस रसूलुल्लाहि सल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम अफ़ज़ल हैं या सय्यिद मोहम्मद ? तो उसने हज़रत अबू-बकर सिद्दीक़ रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु की तरह कुछ ऐसा ही जवाब दिया। “हज़रत मोहम्मद रसूलुल्लाहि सल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम अगर्चे पैग़म्बर-ए-ख़ुदा हैं… continue reading

गुरु बाबा नानक जी-(अ’ल्लामा सर अ’ब्दुल क़ादिर मरहूम)

दुनिया के उन चीदा बुज़ुर्गों में जिन्हों ने अपनी ज़िंदगियाँ ख़ल्क़-ए-ख़ुदा की रहनुमाई के लिए वक़्फ़ कर दीं और अपने ज़ाती आराम और आसाइश पर ख़ुदा के बंदों की ख़िदमत को तरजीह दी गुरू बाबा नानक जी बहुत दर्जा रखते थे।हमारे पयारे वतन का वो गोशा जो पाँच दरियाओं से सैराब होता है और उसी… continue reading

हिन्दुस्तान में क़ौमी यक-जेहती की रिवायात-आ’ली-जनाब बिशम्भर नाथ पाण्डेय (साबिक़ गवर्नर,उड़ीसा)

बंगाल के ख़ुद-मुख़्तार पठान सुल्तान बंगला ज़बान के बहुत बड़े हिमायती थे।सुलतान हुसैन शाह ने सरकारी ख़र्च पर महाभारत, रामायण, उपनिषद जैसी संस्कृत की मज़हबी किताबों का बंगला में तर्जुमा कराया।बंगला अदीबों को इनआ’म और इकराम दिए।उस ज़माने के बहुत बड़े मैथिली और बंगला ज़बान के शाइ’र विद्यापति ने हुसैन शाह की ता’रीफ़ में बहुत सी… continue reading

हज़रत ख़्वाजा मुई’नुद्दीन चिश्ती की दरगाह- प्रोफ़ेसर निसार अहमद फ़ारूक़ी

 तारीख़ की बा’ज़ अदाऐं अ’क़्ल और मंतिक़ की गिरफ़्त में भी नहीं आतीं। रू-ए-ज़मीन पर ऐसे हादसात भी गुज़र गए हैं जिनसे आसमान तक काँप उठा है मगर तारीख़ के हाफ़िज़े ने उन्हें महफ़ूज़ करने की ज़रूरत नहीं समझी और एक ब-ज़ाहिर बहुत मा’मूली इन्फ़िरादी अ’मल-ए-जावेदाँ बन गया है और उसके असरात सदियों पर फैल… continue reading