अजमेर विवाद का अविवादित पक्ष

“अजमेरा के मायने चार चीज़ सरनाम ख़्वाजे साहब की दरगाह कहिए, पुष्कर में अश्नान मकराणा में पत्थर निकले सांभर लूण की खान” -(अजमेर हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिपटिव किताब से ) ख़्वाजा साहब और अजमेर का ऐसा नाता है जैसा चन्दन और पानी का है । अजमेर सूफ़ी संतों के लिए एक ऐसा झरना है जहाँ देश… continue reading

पद्म श्री अ’ज़ीज़ अहमद ख़ाँ वारसी क़व्वाल

फ़नकार अपने मुल्क की तहज़ीब-ओ-तमद्दुन का नुमाइंदा होता है और तहज़ीब-ओ-तमद्दुन किसी मुल्क की सदियों पुरानी रिवायात का नाम है, अगरचे कि तरक़्क़ी-पसंद अफ़राद रिवायात से चिमटे रहने के बजाय नई सम्तें मुत’अय्यन कर के, अपने आपको ‘अस्र-ए-हाज़िर से हम-आहंग करने में अपनी बक़ा महसूस करते हैं और ज़माना भी उनकी हौसला-अफ़ज़ाई करता है, लेकिन… continue reading

क़व्वाली और गणपति

गणपति (गणेश चतुर्थी) महाराष्ट्र का एक ऐसा त्यौहार है जिसे यहाँ के हिंदू बाशिंदे हर साल चौथी चतुर्थी में इंतिहाई जोश-ओ-ख़रोश के साथ मनाते थे लेकिन अब इसकी तक़ारीब में दीगर मज़ाहिब के लोग भी शरीक होने लगे हैं। ख़ुसूसियत के साथ अब मुस्लिम नौजवान ज़्यादा हिस्सा लेने लगे हैं। महाराष्ट्र में इस त्यौहार के… continue reading

ग्रामोफ़ोन क़व्वाली

क़व्वाली अरबी के क़ौल शब्द से बना है जिस का शाब्दिक अर्थ बयान करना है। इसमें किसी रुबाई या ग़ज़ल के शेर को बार-बार दुहराने की प्रथा थी लेकिन तब इसे क़व्वाली नहीं समाअ कहा जाता था। महफ़िल-ए-समाअ का प्रचलन हिंदुस्तान के सूफ़ी ख़ानक़ाहों में बहुत पहले से रहा है। समाअ या क़व्वाली जब हिंदुस्तान… continue reading

हज़रत ज़हीन शाह ताजी और उनका सूफ़ियाना कलाम

बाबा ताजुद्दीन नागपुरी महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत हुए हैं। मेहर बाबा ने इन्हें अपने समय के पाँच बड़े अध्यात्मिक गुरुओं में से एक माना है। महात्मा गाँधी भी बाबा ताजुद्दीन से मिलने जाया करते थे। बाबा ताजुद्दीन का व्यक्तित्व बड़ा रहस्यमयी रहा है। हजरत बाबा ताजुद्दीन का जन्म नागपुर शहर से 15 कि.मी. दूर कामठी… continue reading

हज़रत पीर नसीरुद्दीन “नसीर”

“बात इतनी है और कुछ भी नहीं” हज़रत पीर नसीरुद्दीन ‘नसीर’ मशहूर शाइर, अदीब, रिसर्चदाँ, ख़तीब, आलिम और गोलड़ा शरीफ़ की दरगाह के सज्जादा-नशीन थे। वो उर्दू, फ़ारसी, पंजाबी के साथ-साथ अरबी, हिन्दी, पूरबी और सरायकी ज़बानों में भी शाइरी करते थे, इसीलिए उन्हें “सात ज़बानों वाला शाइर” के नाम से भी याद किया जाता… continue reading

Suf, Tasawwuf aur Mausiqi: Episode-1 (Fariduddin Ayaz)

We travelled by an auto rickshaw in the streets of Old Delhi, people from air conditioned SUVs rolled down their window to wish him with the humblest of salaams, he responded to them with his folded hands. Some strangers from the pavement recognized him at Connaught place and requested him to pray for them. He… continue reading

क़व्वाली और अमीर ख़ुसरो – अहमद हुसैन ख़ान

एक सौत-ए-सर्मदी है जिस का इतना जोश है।

वर्ना हर ज़र्रा अज़ल से ता-अबद ख़ामोश है।।

सूफ़ी क़व्वाली में गागर

कोऊ आई सुघर पनिहार, कुआँ नाँ उमड़ चला
के तुम गोरी साँचे की डोरी. के तुम्ही गढ़ा रे सोनार
कुआँ नाँ उमड़ चला

महफ़िल-ए-समाअ’ और सिलसिला-ए-वारसिया

अ’रबी ज़बान का एक लफ़्ज़ ‘क़ौल’ है जिसके मा’नी हैं बयान, गुफ़्तुगू और बात कहना वग़ैरा।आ’म बोल-चाल की ज़बान में यह  लफ़्ज़  क़रार, वा’दा या क़सम के मा’नी में भी इस्ति’माल किया जाता है। अ’रबी और ईरानी ज़बान में लफ़्ज़-ए-क़ौल का स्ति’माल मख़्सूस तरीक़े से गाए जाने वाले शे’र के लिए होता है जिसमें अ’रबी इस्तिलाह… continue reading