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अजमेर विवाद का अविवादित पक्ष

“अजमेरा के मायने चार चीज़ सरनाम ख़्वाजे साहब की दरगाह कहिए, पुष्कर में अश्नान मकराणा में पत्थर निकले सांभर लूण की खान” -(अजमेर हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिपटिव किताब से ) ख़्वाजा साहब और अजमेर का ऐसा नाता है जैसा चन्दन और पानी का है । अजमेर सूफ़ी संतों के लिए एक ऐसा झरना है जहाँ देश… continue reading

ज़िक्र-ए-ख़ैर ख़्वाजा अमजद हुसैन नक़्शबंदी माह अज़ीमाबादी

हिन्दुस्तान में ख़ानक़ाहें और बारगाहें कसरत से वजूद में आईं जहाँ शब ओ रोज़ बंदगान ए ख़ुदा को तालीम ओ तल्क़ीन दी जाती रही। उन मुतबर्रक ख़ानक़ाहों में बाज़ ऐसी भी ख़ानक़ाहें हुईं जो बिल्कुल मतानत ओ संजीदगी और सादगी ओ सख़ावत का मुजस्समा साबित हुईं जहाँ रूहानियत और मारिफ़त का ख़ास ख़याल रखा जाता… continue reading

हज़रत ख़्वाजा सय्यद कमालुद्दीन अ’ल्लामा चिश्ती

शहर-ए-अवध या’नी अयोध्या अहल-ए-तसव्वुफ़ का अ’ज़ीम मरकज़ रहा है। इसकी आग़ोश में अपने वक़्त के अ’ज़ीम-तरीन सूफ़िया-ए-उज़्ज़ाम और मशाइख़-ए-इस्लाम ने परवरिश पाई है। इस शहर को ला-सानी शोहरत क़ुतुब-मदार हुज़ूर सय्यिद ख़्वाजा नसीरुद्दीन महमूद अवधी चिराग़ देहलवी से हुई।आपके ख़ानवादे और सिलसिले में हर दौर में ऐसे-ऐसे नाबिग़ा-ए-रोज़गार अफ़राद होते रहे जिनकी वजह से अवध… continue reading

साहिब-ए-मा’लूमात-ए-मज़हरिया शाह नई’मुल्लाह बहराइची

हज़रत मौलाना शाह नई’मुल्लाह की पैदाइश 1153 हिज्री मुताबिक़1738 में हुई।आपका मक़ाम-ए-पैदाइश मौज़ा’ भदौनी क़स्बा फ़ख़्रपुर ज़िला’ बहराइच है।आपके वालिद का नाम ग़ुलाम क़ुतुबुद्दीन था। (आसार-ए-हज़रत मिर्ज़ा ‘मज़हर’ जान-ए-जानाँ शहीद 2015, सफ़हा 260) शाह नई’मुल्लाह साहिब अ’लवी सय्यिद थे।आपके मुरिस-ए-आ’ला ख़्वाजा इ’माद ख़िलजी हम-राह सय्यिद सालार मसऊ’द ग़ाज़ी के हिंदुस्तान आए थे और बाराबंकी के क़स्बा केंतोर… continue reading

अस्मारुल-असरार-डॉक्टर तनवीर अहमद अ’ल्वी

अस्मारुल-असरार हज़रत ख़्वाजा सदरुद्दीन अबुल- फ़त्ह सय्यिद मोहम्मद हुसैनी गेसू-दराज़ बंदा नवाज़ की तस्नीफ़-ए-मुनीफ़ है और जैसा कि इसके नाम से ज़ाहिर है कि हज़रत के रुहानी अफ़्कार और कश्फ़-ए-असरार से है जिसका बयान आपकी ज़बान-ए-सिद्क़ से रिवायात-ओ-हिकायात की सूरत में हुआ है।जिनके साथ कलामुल्लाह की रौशन आयात और अहादीस-ए-रसूल-ए-मक़्बूल से इस्तफ़ाद-ओ-इस्तिनाद किया गया है।असरार-ए-ग़ैब… continue reading

ज़िक्र-ए-ख़ैर हज़रत सय्यद शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन मुनइ’मी

सूबा-ए-बिहार का दारुस्सुल्तनत अ’ज़ीमाबाद न सिर्फ़ मआ’शी-ओ-सियासी और क़दीमी लिहाज़ से मुम्ताज़ रहा है बल्कि अपने इ’ल्म-ओ-अ’मल, अख़्लाक़-ओ-इख़्लास, अक़्वाल-ओ-अफ़्आ’ल, गुफ़्तार-ओ-बयान और मा’रिफ़त-ओ-हिदायात से कई सदियों को रौशन किया है। यहाँ औलिया-ओ-अस्फ़िया की कसरत है। बंदगान-ए-ख़ुदा की वहदत है। चारों जानिब सूफ़ियों की शोहरत है।वहीं अहल-ए-दुनिया के लिए ये जगह निशान-ए-हिदायत है। चौदहवीं सदी हिज्री में बिहार के मशाइख़ का अ’ज़ीम कारनामा ज़ाहिर… continue reading