
ज़िक्र-ए-ख़ैर ख़्वाजा अमजद हुसैन नक़्शबंदी माह अज़ीमाबादी
हिन्दुस्तान में ख़ानक़ाहें और बारगाहें कसरत से वजूद में आईं जहाँ शब ओ रोज़ बंदगान ए ख़ुदा को तालीम ओ तल्क़ीन दी जाती रही। उन मुतबर्रक ख़ानक़ाहों में बाज़ ऐसी भी ख़ानक़ाहें हुईं जो बिल्कुल मतानत ओ संजीदगी और सादगी ओ सख़ावत का मुजस्समा साबित हुईं जहाँ रूहानियत और मारिफ़त का ख़ास ख़याल रखा जाता था। उन मुक़द्दस बारगाहों में बारगाह हज़रत ए इश्क़ को इम्तियाज़ी शान हासिल है। तक़रीबन ढाई सदी से मुतवातिर बारगाह हज़रत ए इश्क़ का फ़ैज़ान आम होता रहा है ।यहाँ तवज्जोह ए ऐनी के साथ तवज्जोह ए क़ल्ब का होना ज़रूरी समझा जाता है। इल्म ए ज़ाहिर से ज़्यादा इल्म ए बातिन की तरफ़ तवज्जोह देना यहाँ का ख़ास्सा है।उलमा ए ज़माना हों या शाहान ए ज़माना हर एक यहाँ अक़ीदत से सलाम ओ नियाज़ पेश करते हैं। इमामुल आशिक़ीन हज़रत ख़्वाजा शाह रुकनुउद्दीन इश्क़ अज़ीमाबादी (वेसाल का साल 1203हिज्री) की तरह इस बारगाह के सज्जादगान ए ज़ीशान भी बेश्तर औसाफ ओ कमालात के मालिक हुए हैं। लिहाज़ा चहारुम सज्जादा नशीन हज़रत ख़्वाजा सय्यद शाह अमजद हुसैन नक़्शबंदी अबुल उलाई माह अज़ीमाबादी जो अपनी इल्मी ओ अमली सलाबत के लिहाज़ से मुआसिर मशाइख़ में सरफ़राज़ ओ बे नियाज़ थे,उनका ज़िक्र ए ख़ैर इस जगह किया जाता है।
हज़रत ख़्वाजा शाह अमजद हुसैन नक़्शबंदी की पैदाइश 1263 हिज्री मुवाफ़िक़ 1847 बारगाह हज़रत ए इश्क़ में हुई। आपके पिता हज़रत ख़्वाजा शाह लतीफ़ अली नक़्शबंदी अबुल उलाई (मुतवफ़्फ़ा 1299 हिज्री) मुराक़बा के बाद आपका नाम ‘अमजद हुसैन’ रखा। आपका बचपन काफ़ी नाज़ ओ नेमत में गुज़रा। ख़्वाजा लतीफ़ अली जैसी मुअज़्ज़ज़ हस्ती के ज़ेर ए असर आपकी तर्बियत होने लगी ।रफ़्ता-रफ़्ता तालीम की तरफ़ आप माएल हुए।पहले पहल ख़ानक़ाह में ही दूसरे बुज़ुर्गों से तालीम दी जाने लगी। जब थोड़ा आक़िल ओ बालिग़ हुए तो इल्म की तरफ़ मुतवज्जिह हुए।
साहिब ‘तज़किरातुस सालिहीन’ लिखते हैं:
“जब सिन्न ए शुऊर को पहूँचे तो तहसील ए इल्म ए ज़ाहिरी जनाब मौलवी कमाल साहिब और मौलाना सईद साहिब ओ हकीम ग़ुलाम अली साहिब से की और उलूम ए बातिनी की तकमील अपने वालिद ए माजिद से हासिल की” (पेज 68)
और बहुत जल्द आप उस इल्म में कामिल ओ अकमल हुए। हिदाया और वक़ाया जैसी किताब के आप मुस्तक़िल हाफ़िज़ हो चुके थे। इल्म ए फ़िक़्ह के बाद आपकी तबीअत फ़न्न ए हदीस की तरफ़ माएल हुई और बहुत जल्द अपने कमाल ए ज़ेहन से उस इल्म में भी वाक़फ़ियत हासिल कर ली। ख़्वाजा आपका मौरूसी लक़ब और अमीर मियाँ उर्फ़ियत है। आपके पिता ख़्वाजा लतीफ़ अली जद्द ए मुकर्रम हज़रत ख़्वाजा लुत्फ़ अली साहिब ए करामत बुज़ुर्ग गुज़रे हैं, जिनकी विलायत पर एक ज़माना शाहिद है। ख़्वाजा शाह नज़ीर हुसैन और ख़्वाजा शाह वजीह हुसैन ये दोनों आपके छोटे भाई थे।आप भाईयों में सबसे बड़े और नेक थे।

हज़रत शाह अमजद हुसैन का पिदरी नसब उनके ब्याज़ से यहाँ नक़ल किया जाता है। वाज़ेह हो किआपके पिता का नसब नामा दुख़्तर ख़्वाजा सय्यद बहाउद्दीन नक़्शबंद बुख़ारी और दुख़्तर हज़रत ख़्वाजा शाह रुकनुद्दीन इश्क़ अज़ीमाबादी से बहुत सहीह तौर पर जा मिलता है।
अमजद हुसैन इब्न लतीफ़ अली इब्न लुत्फ़ अली (नवासा हज़रत इश्क़) इब्न मोहम्मद मोहसिन अली इब्न आफ़ताब अली इब्न वजीहुद्दीन इब्न मोहम्मदी ख़ाँ ग़ाज़ी इब्न मोहम्मद शरीफ़ इब्न मोहम्मद लतीफ़ इब्न मोहम्मद मुनीर (नवासा हज़रत ख़्वाजा नक़्श-बंद) इब्न अलाउद्दीन अत्तार इब्न मोहम्मद बुख़ारी।
इल्म ज़ाहिर से जब फ़ारिग़ हुए तो इल्म बातिन की तरफ़ मुतवज्जिह हुए और अपने वालिद के ज़रिआ’ जल्द नेमत बातिनी से फ़ैज़याब हो कर कामयाब ओ कामरान हुए। हज़रत शाह लतीफ़ अली नक़्शबंदी अपनी रेहलत से क़ब्ल महफ़िल लतीफ़ में आपको सिलसिला नक़्शबंदिया अबुल उलाइया में बैअत कर के इजाज़त ओ ख़िलाफ़त से नवाज़कर अपना जांनशीन नामज़द कर दिया था। लिहाज़ा अपने वालिद माजिद के बाद आप साल 1299 हिज्री 1882 ई’स्वी को बारगाह हज़रत इश्क़, तकिया शरीफ़, मीतन घाट,पटना सीटी के सज्जादा नशीन हुए।

आपको अपने ख़ुस्र मुअज़्ज़म और ख़ानक़ाह मनेर शरीफ़ के सज्जादा नशीन हज़रत सय्यद शाह अमजद हुसैन मनेरी (मुतवफ़्फ़ा 1302 हिज्री)से भी इजाज़त-ओ-ख़िलाफ़त हासिल थी।चुनांचे “तज़्किरतुस्सालिहीन” के मुसन्निफ़ लिखते हैं:
“इजाज़त ओ ख़िलाफ़त तरीक़ा नक़्शबंदिया अबुल उलाइया सुहरवर्दिया वग़ैरा से मुशर्रफ़ हो कर ब हुक्म इजाज़त पीर, मनेर शरीफ़ में अपने ख़ुस्र जनाब सय्यद शाह अमजद हुसैन से इजाज़त ओ ख़िलाफ़त ए चहारदह ख़्वानदा हासिल किया” (पेज 68)
हज़रत अमजद हुसैन अपने सिलसिला नसब और सिलसिला ए तरीक़त के हवाले से “जल्वा ए इश्क़” पर एक क़ीमती तक़रीज़ लिखी है। ये किताब वहीद इलाहाबादी के शागिर्द बाक़र अज़ीमाबादी की है। पेज 27 की इबारत मुलाहज़ा हो।
“ख़्वाजा अलाउद्दीन अत्तार ख़लीफ़ा ए मुअज़्ज़म ख़्वाजा ए ख़्वाज गान ख़्वाजा बहाउद्दीन नक़्शबंद थे। हज़रत सय्यदना शैख़ुल मशाइख़ इमामुत्तरीक़ा वश्शरीफ़ा नक़्श बंद को सिर्फ़ एक साहिब ज़ादी थी। उनका ख़्वाजा अलाउद्दीन अत्तार के साथ हज़रत ममदूह ने अक़्द फ़रमाया था चुनांचे उन्हीं साहिब ज़ादी से औलाद जारी हुई और निस्बत ए फ़र्ज़न्दियत की भी इस फ़क़ीर (अमजद हुसैन)को ब वज्ह ए ख़्वाजा अलाउद्दीन अत्तार के हज़रत नक़्शबंद से है इसीलिए बैअत भी इसी सिलसिला ए नक़्शबंदिया में हज़रत ख़्वाजा ममदूह के वक़्त से इस फ़क़ीर तक हम लोगों को होती आई है” (कीमिया ए दिल,पेज 27,मतबूआ 1318,पटना)
आपकी इल्मी लियाक़त ख़ूब थी। उक़्दा ए ला यंहल भी बड़ी आसानी से हल कर लेते। मस्नवी मौलाना रुम का दर्स रोज़ाना बारगाह हज़रत इश्क़ में दिया करते थे जिसमें अहल इल्म का मजमा ख़ूब रहता। दूर दूर से लोग आपके दर्स में शरीक होते थे। आप फ़नाईयत के उस मक़ाम पर खड़े थे जहाँ से बक़ा बिल्लाह का दरवाज़ा क़रीब था। असरार रुमूज़ और हक़ाएक़ ओ मारिफ़त को इस तरह ख़ुश उस्लूबी से मुन्कशिफ़ करते कि तालिब हैरत ओ इस्तिजाब में पड़ कर अपनी ग़ुलामी पर अश अश करता। आपकी मज्लिस बड़ी मुतबर्रक साबित होती थी।कसरत से लोग आया करते और मन की मुराद पाकर ब ख़ुशी वापस जाते। ब उन्वान ए इनायत ए इलाही कुछ ऐसी इस्तिदाद हासिल थी कि तालिबान ए हक़ को बराबर दर्स ए कलामुल्लाह शरीफ़ ओ मस्नवी से मुस्तफ़ीद फ़रमाते रहे’’। (तज़्किरतुस्सालिहीन, पेज 68)
तमन्ना इमादी फुलवारवी कहते थे कि
“हज़रत को क़ुरआन ओ हदीस का मुकम्मल इल्म हासिल था”
मुस्तजाबुद्दावात और साहिब ए इस्तिक़ामत बुज़ुर्ग हुए। बे शुमार करामतें आपकी ज़ात से ज़ुहूर में आईं जिसे तहरीर में लाना ना शाद के बस की बात नहीं। आपके तालिबीन, सालिकीन और शाइक़ीन हर वक़्त अपने इल्म की प्यास भुझाते रहते। अल्लाह पाक ने आपको कमाल ए इल्म ओ अमल से नवाज़ा था कि जिस फ़न की जानिब मौलान होता उसमें अच्छा दर्क फ़रमा लिया करते।इस तरह आपकी ज़ात सरचश्मा ए हिदायत और मंबा ए फ़ुयूज़ हुई।

हज़रत अमजद हुसैन नक़्शबंदी के तअल्लुक़ात मुआसिर उलमा ओ मशाइख़ से निहायत दिल नशीन थे। बुलंद अख़लाक़ के साथ पाकीज़ा तबीत और बाग़ ओ बहार शख़्सियत के मालिक थे। हुस्न ए सूरत, हुस्न ए सीरत के साथ हुस्न ए अख़लाक़ के मालिक थे। महद से लहद तक आपकी ज़िंदगी इत्तिबा ए रसूल का नमूना थी। बेशतर मशाइख़ से आपका ख़ानदानी रिश्ता रहा है। ख़ानक़ाह ए मुअज़्ज़म हज़रत मख़दूम ए जहाँ बिहार शरीफ़ के सज्जादा नशीन हज़रत सय्यद शाह अमीन अहमद( मुतवफ़्फ़ा 1321 हिज्री) आपके हमशीरा ए ज़ौज हुए। ख़ानक़ाह मनेर शरीफ़ के सज्जादा नशीन हज़रत मौलाना सय्यद शाह अमजद हुसैन फ़िरदौसी (मुतवफ़्फ़ा 1302 हिज्री) आपके ख़ुस्र मोहतरम( ससुर) हुए।इसी रिश्ता से ख़ानक़ाह सज्जादिया अबुल उलाइया, दानापुर के सज्जादानशीन हज़रत सय्यद शाह मोहम्मद मोहसिन अबुल उलाई (मुतवफ़्फ़ा 1364 हिज्री) के आप रफ़ीक़ ए मुकर्रम और अज़ीज़ ए मोहतरम हुए। इसी तरह ये सिलसिला काफ़ी वसीअ अरीज़ होता चला गया।
मुआसिर मशाइख़ में हज़रत हाजी सय्यद वारिस अली (मुतवफ़्फ़ा 1323 हिज्री) इम्तियाज़ी शान रखते थे।मा’मूल के मुताबिक़ मुख़्तलिफ़ जगहों की सैर करते हुए अज़ीमाबाद (पटना) भी तशरीफ़ लाते रहे और कुछ रोज़ क़याम करते।आपका हल्क़ा काफ़ी वसीअथा इसलिए मसरूफ़ियत ज़्यादा थी। बारगाह हज़रत इश्क़ में हाज़िरी देना भी आपका मामूल रहा है।वक़्त ए अस्र आप चंद साहिबान के हमराह तशरीफ़ लाए और मौजूदा सज्जादा नशीन ख़्वाजा अमजद हुसैन से मुलाक़ात फ़रमाई। इसी दौरान बंगलादेश के मुमताज़ नवाब अतीक़ुल्लाह एक नफ़ीस फ़र्श पर जुलूस थे।हाजी साहिब को आपके बग़ल में बिठाया गया तो नवाब साहिब अपनी क़ीमती उचकन को समेटना चाहा। हाजी साहिब ने फ़रमाया कि इस फ़क़ीर की गर्द आपके उचकन को न छू सकेगी, बे फ़िक्र रहें। नवाब साहिब अर्ज़ गुज़ार हुए कि हुज़ूर मैंने अदबन इसे समेट लिया। इसी दौरान मग़रिब की अज़ान हुई और महफ़िल बर्ख़ास्त हुई। शाह अमजद हुसैन ने फ़रमाया कि हज़रत नमाज़? आपने फ़रमाया कि अमजद मियाँ किस की नमाज़। इस जुमले पर आप के साहिबान अख़्यार को ख़ूब कैफ़ियत आई और नमाज़ से फ़ारिग़ हो कर राज़ ओ नियाज़ की बातें शुरूअ हो गईं ।हाजी साहिब के मरासिम आपके वालिद ए माजिद से काफ़ी थे।
मशहूर सूफ़ी बुज़ुर्ग हज़रत शाह मोहम्मद अकबर अबुल उलाई दानापुरी (मुतवफ़्फ़ा 1327 हिज्री)से भी आपके तअल्लुक़ात क़दीमाना थे। हज़रत इश्क़ के उर्स पाक के मुबारक मौक़ा पर आप अपने साहिब ज़ादे हज़रत शाह मोहम्मद मोहसिन अबुल उलाई के हमराह दानापुर से ब ज़रिआ ए कश्ती बराबर तशरीफ़ लाते बल्कि कभी कभी तो उर्स से दो या तीन रोज़ क़ब्ल साज़ ओ सामान के क़याम करते और मज्लिस ए समाअ पुर-तकल्लुफ़ अंदाज़ में मुंअक़िद किया करते।
हज़रत शाह अकबर दानापुरी की अपनी किताब ए मुस्तताब “नज़र ए महबूब” में आपका ज़िक्र इस तरह करते हैं:
“अज़ीज़ ए बा तमीज़ सईद ए कौनैन ख़्वाजा शाह अमजद हुसैन उर्फ़ अमीर मियाँ सल्लमहुल्लाहु तआला” – ये सईद ए अज़ली जनाब बिरादर ए ममुअज़्ज़म ख़्वाजा लतीफ़ अली उर्फ़ शाह मियाँ जान साहिब रहमतुल्लाहि अलैह सज्जादा नशीन तकिया हज़रत ए इश्क़ के फ़र्ज़न्द ए रशीद हैं।अपने वालिद ए माजिद के बाद अब यही साहिब ज़ादा रौनक़ अफ़रोज़ ए सज्जादा हैं। नेक बख़्ती और सआदत मंदी आपके ज़मीर में है। बद्व ए शुऊर से आसार ए नेक उनके चेहरे से पाए जाते हैं। माशा अल्लाह अपने मामूलात और तालम ओ इर्शादात में मुस्तक़ीमुल हालत हैं। आपके दो भाई (ख़्वाजा नज़ीर हुसैन, ख़्वाजा वजीह हुसैन) और भी हैं। अल्लाह तआला शानुहू उनको उनके बिरादर ए मुअज़्ज़म की तरह से नेक बख़्त ओ सआदत मंद फ़रमावे, आमीन” (सफ़हा 30)
शेर औ शाइरी का शौक़ ख़ूब रखते थे। क़दीम रिसालों से अंदाज़ा होता है कि आपका शेरी दर्क ख़ास्सा था। कम कहते थे मगर जब भी कहा ख़ूब कहा। हज़रत शाह अकबर दानापुरी के दूसरे दीवान की तबाअत पर आपका क़ित्आ’ मत्बूआ’ है जो किताब की ज़ीनत है। मुलाहज़ा हो:
क़ित्आ तारीख़ अज़ नतीजा ए फ़िक्र मीर अमजद हुसैन साहिब माह अज़ीमाबादी
खून ए दिल से जिसे कि सींचा हो
उस चमन को ख़िज़ाँ का क्या डर
भर लें दामन गुल ए मुराद से लोग
‘माह’ कह दो रियाज़ ए अकबर है
1330 हिज्री
पाकीज़ा महाफ़िल में जाया करते और माह और हसन तख़ल्लुस करते। एक ग़ज़ल आपकी “तस्वीर ए जानाँ” के उन्वान से ख़ुदा बख़्श जर्नल (शुमारा 7/8 साल ए तबाअ 1978-79 ई’स्वी पटना) सफ़हा 18 पर शाए हो चुकी है।उसे आपने मार्च 1912 ईस्वी को तहरीर किया है। दो शेर मुलाहज़ा हो:
इक ऐसी बज़्म चाहते हैं हमसे दिल फ़गार
कोई न हो जहाँ पे कि हाल आशिकार
जी ढूँढता है फिर वही फ़ुर्सत की रात दिन
बैठे रहें तसव्वुर ए जानाँ किए हुए
इसके अलावा भी आपने बहुत कुछ लिखा है जिसका अक्सर हिस्सा ग़ैर मतबूआ’ है। आपकी एक फ़ारसी मुनाजात भी मिलती है जिसमें हसन तख़ल्लुस किया है।
इलाही सर ब सर ग़फ़लत पनाहम
इनायत कुन ज़े ख़ुद आगाह रा हम
इलाही शाम ए कुफ़्रम सुब्ह गर्दां
अता कुन चश्म ए बीना जान ए ईमाँ
ज़मीनम रा ज़े लुत्फ़े आसमां कुन
दिलम फ़ारिग़ ज़े बंद ए ई ओ आँ कुन
दिलम देह हुस्न परवर ताब ओ महताब
कि हर ज़र्रा नुमायद जल्वा नाब
ब-‘हसन’ तू बुवद मश्क़म दो बाला
ज़नम चूँ नार मस्ताँ तलाला
आपके उन्फ़वान शबाब की एक तस्वीर भी मिलती है जिसमें आप फ़ुल कोट मल्बूस किए हुए हैं। शेरी सरमाया की तरह नस्री कारनामा भी शानादर रहा है। सय्यिद बाक़र अज़ीमाबादी की किताब ”कीमिया ए दिल” पर दो तक़रीज़ शामिल है। पहली तक़रीज़ जनाब हुज़ूर सय्यद शाह अमीन अहमद फ़िरदौसी की है और दूसरी आपकी तक़रीज़ ब ज़बान ओ फ़ारसी तक़रीबन 60 पेज पर मुहीत एक गराँ क़द्र तहरीर है। उस किताब की इशाअत मौलाना क़ाज़ी अब्दुल-वहीद फ़िरदौसी ने अपने मत्बा हनफ़िया मोहल्ला लोदी कटरा,पटना सीटी से शाए ओ ज़ाए किया। हज़रत शाह मोहम्मद यहया अबुल उलाई अज़ीमाबादी (मुतवफ़्फ़ा 1302 हिज्री) की फ़ुतूहात ए शौक़ पर भी ब ज़बान ए फ़ारसी 4 सफ़हात पर एक क़ीमती तक़रीज़ लिखी है।
जब आप आक़िल ओ बालिग़ हुए तो आपका अक़्द ख़ानक़ाह मनेर शरीफ़ के सज्जादा नशीन हज़रत सय्यद शाह अमजद हुसैन फ़िरदौसी मुतवफ़्फ़ा 1302 हिज्री की बड़ी साहिब ज़ादी माजिदुन्निसा उर्फ़ शरिफ़ा से हुआ। सय्यद करीमुद्दीन मीर दादी बिहारी लिखते हैं कि
“दुख़्तर अव्वलीन ख़्वाजा अमजद हुसैन मंसूब बूदंद ओ साहिब ए औलाद अंद” (स 426)
ये बुज़ुर्ग हज़रत सय्यद मोहम्मद सुल्तान चिश्ती के साहिब ज़ादे और ख़ानक़ाह मनेर शरीफ़ के सज्जादा नशीन हज़रत सय्यद क़ुतुबुद्दीन फ़िरदौसी (मुतवफ़्फ़ा 1281 हिज्री )के ख़्वेश ओ मोहतरम थे। इस तरह हज़रत ख़्वाजा अमजद हुसैन नक़्शबंदी और हज़रत अमजद हुसैन फ़िरदौसी ख़वेश और ख़ुस्र हुए। दोनों में बड़ी मोहब्बत ओ उन्सियत थी। बड़ों की रिवायत है कि मनेर शरीफ़ की अक्सर रिवायात हज़रत अमजद हुसैन के अक़्द के बाद बारगाह हज़रत इश्क़ में क़ाएम हुई। बारगाह हज़रत इश्क़ में महफ़िल ए समाअ का एक ख़ास मक़ाम है।अक्सर मक़ामात पर इसने महफ़िल ए समाअ की छाप छोड़ रखी है। यहाँ के लोगों का कहना है कि इल्म ज़बान से निकले तो वो क़ाल है और अगर क़ल्ब से निकले तो वो हाल है।
आ गया साहिबान ए क़ाल को हाल (शाह अकबर दानापुरी)
हज़रत शाह अमजद हुसैन नक़्शबंदी की अहलिया के बत्न से पाँच औलाद हुईं।तीन पिसर और दो दुख़्तर।बड़े फ़र्ज़न्द हज़रत शाह अबुल हसन ये जवानी की उम्र में फ़ौत हुए और अपने नानीहाल छोटी दरगाह मनेर शरीफ़ में दफ़्न हुए। दूसरे फ़र्ज़न्द हज़रत शाह हमीदुद्दीन नक़्शबंदी अपने वालिद के बाद मस्नद ए रुश्द ओ हिदायत पर मुतमक्किन हुए। एक ज़माना आपसे फ़ैज़याब हुआ है। और तीसरे फ़र्ज़न्द हज़रत शाह अबुल हुसैन नक़्शबंदी, ये बुज़ुर्ग भी अपने वालिद की ब तरह ए उम्दा अख़लाक़ के मालिक थे। आपका सिलसिला बंगलादेश और पाकिस्तान में ख़ूब वसीअ हुआ। आख़िरी आराम गाह मीरपुर ,ढाका है। शेर ओ शाइरी से काफ़ी रग़बत थी। ‘‘ज़िया’’ तख़ल्लुस करते। कम कहते मगर अच्छा कहते। बड़े बड़े नवाब और रईस आपकी ख़िदमत में आया करते ।आपके वालिद की पेशी गोई पर आपका निकाह नवाब अतीक़ुल्लाह (ढाका) की ज़ौजा से हुआ। बैअत ओ ख़िलाफ़त अपने वालिद से थी और तालीम ओ तल्क़ीन अपने बिरादर ए मुअज़्ज़म हज़रत हमीदुद्दीन नक़्शबंदी से पाई।
दो साहिब ज़ादी में पहली दुख़्तर बीबी मुनीबा का अक़्द आपके ख़ास मुरीद ओ मजाज़ हज़रत शाह शुऐब नक़्शबंदी हिल्स्वी से किया।ये बुज़ुर्ग भी हिलसा से पटना सीटी आए और यहाँ से मुसाहरत करके बंगलादेश चले गए और रुश्द ओ हिदायत का सिलसिला वहाँ क़ाएम किया। दूसरी दुख़्तर बीबी ज़ुहरा हज़रत शाह मतीन से मंसूब हुईं।
हल्क़ा ए मुरीदान काफ़ी वसीअ था। मौजूदा बंगलादेश का मुकम्मल इलाक़ा आपके फैज़ान से बहरावर था।क्या अमीर क्या ग़रीब, क्या काले क्या गोरे, क्या आलिम क्या जाहिल हर एक आपकी इज़्ज़त ओ हुरमत का क़ाइल था। बड़े बड़े नव्वाबीन ओ रुऊसा हल्क़ा ए यारान में दाख़िल थे। नवाब अतीक़ुल्लाह ख़ाँ (ढाका), नवाब समीउल्लाह ख़ाँ (ढाका),नवाब सलीमुल्लाह ख़ाँ (ढाका) जैसे रुऊसा का शुमार आपके ख़ास मुरीदीन में होता था। सिलसिले की अज़ीम नेमत हर एक पर मुन्कशिफ़ नहीं करते बल्कि जो उस नेमत का इस्तिहक़ाक़ रखता उसे नेअमा ए बातिनी से फ़ैज़ याब करके इजाज़त ओ ख़िलाफ़त से नवाज़ते। चंद ख़ुलफ़ा के नाम ए नामी दर्ज किए हैं।
हज़रत ख़्वाजा सय्यद शाह अबुल हसन नक़्शबंदी (साहिब ज़ादा ए अकबर)
हज़रत ख़्वाजा सय्यद शाह हमीदुद्दीन नक़्शबंदी (साहिब ज़ादा दोउम ओ जाँ नशीन)
हज़रत ख़्वाजा सय्यद शाह अबुल हुसैन नक़्शबंदी (साहिब ज़ादा ए सेउम)
हज़रत शाह शुऐब नक़्शबंदी (दमाद)

ज़िंदगी का मुकम्मल लम्हा आपने तब्लीग़ ओ इर्शाद में वक़्फ़ कर दिया।यहाँ तक कि जब ज़ोफ़ तारी हुआ फिर भी अपने मामूलात में किसी तरह का कोई फ़र्क़ आने न दिया। मामूल और आबाई रिवायत के बड़े पाबन्द थे। 22 ज़ीक़ादा ब रोज़ जुमआ 1336 हिज्री मुवाफ़िक़ 30 अगस्त 1918 ईस्वी को ब वक़्त बाद ए अस्र बारगाह हज़रत इश्क़ में अपने सफ़र को तमाम किया। आपकी रेहलत पर बंगलादेश की सर आवर्दा शख़्सियात से लेकर हिन्दुस्तान की मुअज़्ज़ज़ हस्तियों ने इज़हार अफ़्सोस किया। नमाज़ ए जनाज़ा आपके फ़र्ज़न्द ए दिल बंद ओ जाँ नशीन हज़रत ख़्वाजा सय्यद शाह हमीदुद्दीन नक़्शबंदी ने पढ़ाई।
Guest Authors
- Aatif Kazmi
- Absar Balkhi
- Afzal Muhammad Farooqui Safvi
- Ahmad Raza Ashrafi
- Ahmer Raza
- Akhlaque Ahan
- Arun Prakash Ray
- Balram Shukla
- Dr. Kabeeruddin Khan Warsi
- Faiz Ali Shah
- Farhat Ehsas
- Iltefat Amjadi
- Jabir Khan Warsi
- Junaid Ahmad Noor
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- Qurban Ali
- Raiyan Abulolai
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- Syed Moin Alvi
- Syed Rizwanullah Wahidi
- Syed Shah Shamimuddin Ahmad Munemi
- Syed Shah Tariq Enayatullah Firdausi
- Umair Husami
- Yusuf Shahab
- Zafarullah Ansari
- Zunnoorain Alavi