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Suf, Tasawwuf aur Mausiqi: Episode-1 (Fariduddin Ayaz)

We travelled by an auto rickshaw in the streets of Old Delhi, people from air conditioned SUVs rolled down their window to wish him with the humblest of salaams, he responded to them with his folded hands. Some strangers from the pavement recognized him at Connaught place and requested him to pray for them. He… continue reading

दानापुर- सूफ़ियों का मस्कन

इन्सान जिससे मोहब्बत करता है फ़ितरी तौर पर उसका ज़िक्र ज़्यादा करता है।वो चाहता है कि जिन महासिन और ख़ूबियों से मैं वाक़िफ़ हूँ दूसरे भी वाक़िफ़ हों ताकि वो खूबियाँ अपने अंदर पैदा करने की कोशिश करें।इसी जज़्बा के तहत ख़ानवादा साजदिया अबुल उलाइया, दानापुर और उनके  अज्दाद-ए-किराम कई दहाइयों से अपने औलिया-ए-किराम की… continue reading

हज़रत गेसू दराज़ हयात और ता’लीमात-प्रोफ़ेसर निसार अहमद फ़ारूक़ी

हज़रत ख़्वाजा सय्यिद मोहम्मद हुसैनी गेसू दराज़ (रहि·) सिलसिला-ए-आ’लिया चिश्तिया निज़ामिया की ऐसी बुलंद-पाया शख़्सियत हैं जिन्हों ने इस सिलसिले का रुहानी फैज़ान जुनूबी हिंद के आख़िरी सिरे तक पहुंचा दिया। आज सर-ज़मीन-ए-दकन की सैकड़ों चिश्ती ख़ानक़ाहें हज़रत गेसू दराज़ (रहि·) की कोशिशों का समरा हैं।आपके बारहवें दादा सय्यिद अ’ली हुसैनी हिरात से दिल्ली तशरीफ़ लाए… continue reading

ज़िक्र-ए-ख़ैर शाह मोहसिन अबुल-उ’लाई दानापुरी

बिहार की सर-ज़मीन से न जाने कितने ला’ल-ओ-गुहर पैदा हुए और ज़माने में अपने शानदार कारनामे से इन्क़िलाब पैदा किया।उनमें शो’रा,उ’लमा,सूफ़िया और सियासी रहनुमा सब शामिल हैं।जब ज़रूरत पड़ी तो क़ौम की बुलंदी की ख़ातिर सियासत में उतरे।जब मज़हब पर उंगलियाँ उठने लगीं तो ब-हैसीयत आ’लिम-ए-दीन उसका जवाब दिया। जब क़लम की ज़रूरत महसूस हुई… continue reading

ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी-हज़रत मुल्ला वाहिदी देहलवी

दिल्ली की जामा’ मस्जिद से साढे़ ग्यारह मील जानिब-ए-जनूब मेहरवली एक क़स्बा है जो बिगड़ कर मेहरौली हो गया है। दिल्ली वाले इसे क़ुतुब साहिब और ख़्वाजा साहिब भी कहते हैं। यहाँ बड़े-बड़े औलिया-अल्लाह मदफ़ून हैं। इनमें सबसे बड़े क़ुतुबुल-अक़ताब ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी रहमतुल्लाहि अ’लैहि हैं। यहीं क़ुतुब की नादिरुल-वजूद लाठ है। ये सुल्तान क़ुतुबुद्दीन ऐबक की मस्जिद क़ुव्वतुल-इस्लाम का मीनार है। यहीं दरवेश मनिश बादशाह शम्सुद्दीन अल्तमिश का मज़ार है और दिल्ली जिन बुज़ुर्गों की वजह से ‘बाईस ख़्वाजा की चौखट’ से मशहूर है उन बाईस में से अक्सर ख़्वाजगान इसी क़स्बा में आराम फ़रमा रहे हैं।

बक़ा-ए-इंसानियत के सिलसिला में सूफ़िया का तरीक़ा-ए-कार- मौलाना जलालुद्दीन अ’ब्दुल मतीन ,फ़िरंगी महल्ली,लखनऊ

बात की इब्तिदा तो अल्लाह या ईश्वर के नाम ही से है जो निहायत मेहरबान और इंतिहाई रहम वाला है और सब ता’रीफ़ तो ईश्वर या अल्लाह की ही है जो सब जगतों का पालनहार है।जिसका कोई साझी नहीं है।जो निहायत रहम वाला मेहरबान है।उसका सलाम मोहम्मद सल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम,आल-ए-मोहम्मद,अस्हाब-ए-मोहम्मद सल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम और उनके… continue reading