उ’र्स-ए-बिहार शरीफ़
पाँचवें शव्वाल को हम लोग ब-तक़रीब-ए-उ’र्स हज़रत बुर्हानुल-आ’रिफ़ीन मख़्दूम-ए-जहाँ शैख़ शरफ़ुद्दीन अहमद यहया अल-मनेरी अल-बिहारी, बिहार हाज़िर हुए।उ’र्स बि-हम्दिल्लाह ख़ैर-ओ-ख़ूबी से तमाम हुआ। इस साल मेला का भारी जमाव था। मजमा’ बहुत ज़्यादा था। अतराफ़-ओ-जवार के अ’लावा ज़िला’ पूर्निय-ओ-भागलपूर,दरभंगा-ओ-ज़िला मुंगेर-ओ-ज़िला सारन वग़ैरा वग़ैरा दूर-दराज़ मक़ामात के लोग अ’वाम-ओ-अ’माइद-ओ-मोअ’ज़्ज़ेज़ीन हाज़िर थे।आज़ाद फ़ुक़रा का बड़ा गिरोह और मशाइख़-ए-सूफ़िया का ख़ासा मजमा’ था।सूफ़ी-ए-बा-सफ़ा हज़रत मौलवी शाह मोहम्मद अ’ब्दुल क़ादिर साहिब सज्जादा नशीन इस्लामपुर,मस्त-ए-अलस्त हज़रत शाह चांद साहिब साकिन बेथू,मज्मउ’ल-फ़ज़ाइल वल-मनाक़िब शाह फ़रीद साहिब सज्जादा नशीन मनेर,साहिबुल-मज्दि-वल-करम शाह दरगाही साहिब बलख़ी ,सज्जादा नशीन रायपुरा,जनाब मौलवी शाह उ’बैदुल्लाह साहिब फ़रीदी ने’मती,सज्जादा नशीन ख़ानकाह-ए-ख़ौर फुलवारी और क़िब्ला-ओ-का’बा जनाब हज़रत मौलाना शाह मोहम्मद सुलैमान साहिब क़ादरी चिश्ती फुलवारवी दामत बरकातहुम वग़ैरहुम सूबा-ए-बिहार के मुमताज़ मशाइख़ीन जल्वा-फ़रमा थे।
मुख़्तसर कैफ़ियत-ए-उ’र्स
अस्ल उ’र्स जो ख़ानक़ाह की तरफ़ से होता है ये है कि शब-ए-शशुम को ख़ानक़ाह से दरगाह तक (जो निस्फ़ मील से कुछ ज़ाइद फ़ासले पर है ) ख़ूब रौशनी की जाती है जिसे ” चराग़ाँ कहते हैं।12 बजे शब को जनाब साहिब-ए-सज्जादा वग़ैरा दरगाह शरीफ़ पर हाज़िर हो कर सलाम-ओ-ज़ियारत के बा’द एक नया शामियाना ब-तौर-ए-शब्नमी मज़ार-ए-पुर-नूर पर नस्ब करते हैं।फिर क़ुल शुरूअ’ होता है।मज़ार-ए-मुबारक के चारों तरफ़ हज़ारहा आदमी हल्क़ा किए खड़े रहते हैं और ख़ास-ख़ास हज़रात बैठे भी होते हैं।उस वक़्त हल्क़ा-ए-दरगाह में कसरत-ए-हुजूम के बाइ’स शाने से शाने चलते हैं।फ़ातिहा के बा’द लोग ख़ानक़ाह चले आते हैं और मज्लिस-ए-समाअ’ शुरू हो जाती है जो सुब्ह तक गर्म रहती है।इस वक़्त फिर क़ुल-ओ-फ़ातिहा हो कर मज्लिस ख़त्म होती है और गागर लाने की रस्म अदा की जाती है।सातवीं को दिन के वक़्त ख़ानक़ाह में फिर मज्लिस-ए-समाअ’ होती है और उसके बा’द भी कई दिन तक क़व्वाली का सिलसिला बाक़ी रहता है।
पुलिस की चादर
5 तारीख़ दिन के चार बजे बिहार की पुलिस हज़रत मख़्दूम-ए-जहाँ के आस्ताना पर चादर ले जाती है जिसका जुलूस क़ाबिल-ए-दीद है। पुलिस का हर आ’ला-ओ-अद्ना हाकिम-ओ-मुलाज़िम जोश,ख़ुलूस और अ’क़ीदत के साथ शरीक होता है।अफ़सरान, बंदूक़,तल्वार-ओ-संगीन से मुसल्लह और सब अपनी ख़ास वर्दियों में रहते हैं।हाथी भी मुतअ’द्दिद इस जुलूस में होते हैं।आस्ताना तक ये लोग बाजों के साथ आते हैं।इस तक़रीब में न सिर्फ़ बिहार बल्कि अतराफ़-ओ-जवानिब की पुलिस के लोग भी मो’तक़िदाना शरीक होते हैं।हिन्दुओं और मुसलमानों का भी इस में कोई इम्तियाज़ नहीं।सब बिला-तख़्सीस शरीक होते हैं जो सूबा-ए-बिहार के लोगों की ख़ुश अ’कीदगी-ओ-बे-तअ’स्सुबी की दलील है।
मशाएख़ की चादर
दूसरी चादर 6 शव्वाल की शाम को हज़रत चाँद शाह साहिब की तरफ़ से बाजों और क़व्वालों के साथ जाती है।इसमें बहुतेरे मशाएख़ साथ होते हैं और ज़ौक़-ओ-वज्द के आ’लम में हर क़दम पर हू हक़ के ना’रे लगाते जाते हैं।मज़ार शरीफ़ पर चादर चढ़ाई जाने के बा’द क़ुल-ओ-फ़ातिहा और फिर मज्लिस-ए-समाअ’ होती है।मग़रिब के बा’द जनाब शाह दरगाही साहिब बलख़ी की तरफ़ से अलग वहीं आस्ताना पर क़ुल-ओ-फ़ातिहा-ओ-महफ़िल-ए-समाअ’ होती है।
मुशाए’रा
7 शव्वाल शब के वक़्त ख़ानक़ाह के कमरे पर एक पुर लुत्फ़ मुशाए’रा हुआ जिसमें ना’तिया-ओ-सूफ़ियाना-ओ-आ’शिक़ाना ग़ज़लें पढ़ी गईं।
आज़ाद फ़ुक़रा
बिहार के उ’र्स में आज़ाद-ओ-बे-नवा फ़ुक़रा का बड़ा गिरोह जम्अ’ होता है जिसमें गुज़रमार हमाली, सदा सुहाग-ओ-क़लंदर सब ही होते हैं। यहाँ से इंतिख़ाब-ए-सद्र के बा’द ये लोग तमाम आस्तानों पर दौरा करते हुए पंडोह शरीफ़ तक जाते हैं।5 शव्वाल की शाम को यहाँ ख़ानक़ाह में सब के सब मुज्तमा’ होते हैं और मशाएख़ीन भी तशरीफ़ लाते हैं और उनकी सर-गिरोही होती है।या’नी इस जमाअ’त का एक मुमताज़ शख़्स जो सरदारी की क़ाबलियत रखता है उस जमाअ’त का सर-गिरोह मुक़र्रर किया जाता है।फिर हर साल इसी मौक़ा’ पर उस का इम्तिहान होता है।और अगर किसी तौर पर उसकी ना-अहलियत साबित होती है तो उसको मा’ज़ूल कर के दूसरा सर-गिरोह मुंतख़ब होता है।उसकी इताअ’त-ओ-फ़रमाँ-बरदारी इस गिरोह के हर फ़र्द पर लाज़िम-ओ-फ़र्ज़ होती है।इस जमाअ’त में नक़ीब-ओ-चोब-दार-ओ-अ’लम-बरदार भी होते हैं। जिनकी ख़िदमतों और ओ’हदों का बा-ज़ाबता ऐ’लान दरगाह शरीफ़ में काले पत्थर पर जाकर होता है।ये लोग जहाँ जाते हैं सर-गिरोह और नक़ीब-ओ-चोब-दार-ओ-अ’लम-बरदार हम-राह होते हैं।और जब अपनी जमई’यत के साथ चलते हैं तो बार-बार ना’राहा-ए-क़लंदराना बुलंद करते जाते हैं।इन के अल्फ़ाज़-ओ-इस्तिलाहात भी मख़्सूस हैं।
इस साल भी ख़ानक़ाह में जनाब शाह मोहम्मद हयात साहिब सज्जादा नशीन-ओ-दीगर मशाएख़ के सामने सर-गिरोही का क़ज़ीया दरपेश था।बहुत झगड़ों के बा’द बिल-आख़िर साबिक़ सर-गिरोह साहिब की सरदारी बहाल रखी गई।आख़िरी फ़ैसला पर सब फ़क़ीरों ने ना’रा-ए-क़लंदराना बुलंद किया।
लुत्फ़-ए-औलिया करम-ए-औलिया।। ब-हक़-ए-पंज-तन।।।। ला इलाहा इल्लल्लाह इल्लल्लाह।
कुतुब-व-तज़्किरा-ओ-तारीख़ से मा’लूम होता है कि ये बे-नवा फ़क़ीरों का गिरोह और उनकी ये आज़ादाना रविश बहुत क़दीम से है।मगर साबिक़ में इन में बड़े बड़े आ’रिफ़ान-ए-बा-कमाल होते थे और अब ब-ज़ाहिर कोई आ’रिफ़ बा-ख़ुदा दिखाई नहीं पड़ता।सिर्फ़ रस्म बाक़ी है। मगर इस से ये ज़रूर नतीजा निकलता है कि मुसलमानों की कोई जमाअ’त कभी बे-सरदार नहीं रही।एक न एक वाजिबुल-इताअ’त सरदार अपना हमेशा मुक़र्रर करते आए
वक़्फ़ का मुलाहिज़ा
उ’र्स के बा’द हज़रत क़िब्ला-ए-आ’लम जनाब वालिद-ए-माजिद ने सोग़रा स्टेट की तरफ़ तवज्जोह फ़रमाई।वक़्फ़-नामा उसके काग़ज़ात हिसाब-ओ-किताब और औक़ाफ़ के हर सेग़े (मदारिस वग़ैरा) का मुलाहिज़ा किया।बि-हम्दिल्लाह काम अच्छी तरह जारी है।और आइन्दा बहुत कुछ हसनात-ओ-ख़ैरात की उम्मीद की जा सकती है।मगर अफ़्सोस है कि बा’ज़ हज़रात ने जनाब मौलवी मोहम्मद मूसा साहिब मुतवल्ली की नक़्स-ए-तौलियत के लिए मुक़द्दमा दाएर कर दिया है जिसकी वजह से सर-ए-दस्त बहुतेरे कारहा-ए-ख़ैर रुके पड़े हैं।लेकिन ख़ुदा ने चाहा तो इस मुख़ालिफ़त बे-ज़रूर और मुतवल्ली साहिब की परेशानी का जल्द ख़ात्मा हो जाएगा और हर सेग़ा के लिए एक कमीटी बा-ज़ाबता और मदरसा का निसाब वग़ैरा अ’नक़रीब मुरत्तब हो जाएगा।
हज़रत का वा’ज़
जुमआ’ के दिन हज़रत क़िब्ला का जामा’ मस्जिद में स़ूफियाना वा’ज़ था।हज़रत ने अपने वा’ज़ में आसार-ए-क़दीमा के इस्तिहफ़ाज़,मक़ाबिर-ए-औलिया की हिफ़ाज़त और बुज़ुर्गान-ए-दीन के मज़ारात की मरम्मत पर पुर-ज़ोर और मुवस्सिर तक़रीर फ़रमाई और अहल-ए-बिहार को इसकी तरफ़ तवज्जोह दिलाई।जनाब मौलवी मोहम्मद मूसा साहिब मुतवल्ली ने फ़रमाया कि मैं तैयार हूँ और इस काम के लिए दो हिस्से अपनी तौलियत से दूँगा।मगर एक हिस्सा पब्लिक-ए-बिहार जमा’ करे”।तख़्मीना किया गया है कि पंद्रह हज़ार रुपया में बिहार के तमाम मज़ारात की इ’मारतों की दुरूस्तगी और मक़बरों की मरम्मत हो जाएगी।बिहार के आ’म लोग इधर तवज्जोह करें या न करें मगर मौलवी मोहम्मद मूसा साहिब बे-शक मुस्तइ’द हैं और उम्मीद है कि आहिस्ता-आहिस्ता इस कार-ए-ख़ैर को बिल्कुल वही अंजाम दे देंगे।इंशा-अल्लाहु तआ’ला
हल्क़ा के अग़राज़ पर मुकालमा
मख़्दूम-ए-मुकर्रम जनाब शाह अ’ब्दुल क़ादिर साहिब,सज्जादा नशीन,इस्लामपुर ने हज़रत अल-आ’रिफ़ अल-अ’ल्लाम जनाब अल-वालिद-अल-मोहतरम से एक सोहबत में हल्क़ा-ए-निज़ामुल-मशाएख़ के अग़राज़-ओ-मक़ासिद और अंदाज़-ओ-रविश पर देर तक दोस्ताना गुफ़्तुगू की।हज़रत क़िब्ला ने जनाब शाह साहिब की तश्शफ़ी फ़रमाई और उनको अपना पूरा हम-ख़याल बना लिया।जनाब शाह साहिब मौसूफ़ वाक़ई’ सूफ़ी-ए-बा-सफ़ा हैं।वो तसव्वुफ़ को हर तरह के ग़िल-ओ-ग़िश से बिल्कुल पाक-ओ-साफ़-ओ-शरीअ’त-ए-ज़ाहिरी के पूरा पूरा मुताबिक़-ओ-मुवाफ़िक़ रखना चाहते हैं और महज़ रस्म-परस्ती को पसंद नहीं फ़रमाते।और ज़बानी क़ील-ओ-क़ाल के बजाय लोगों में हाल पैदा होना चाहते हैं।फ़जज़ाहुल्लाहु ख़ैरल-जज़ा
दीगर मशाएख़
बिहार के पीर-ज़ादगान-ओ-मशाएख़ में हज़रत शाह वसी अहमद उ’र्फ़ शाह बुराक़ी साहिब ख़लफ़-ए-रशीद जनाब हज़रत शाह अमीन अहमद साहिब अ’लैहिर्रहमा साबिक़ सज्जादा नशीन, बिहार, ख़ानक़ाह-ए-हज़रत मख़्दूम रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु की ज़ात-ए-बा-बरकात दरवेशाना हैसियत से बहुत मुग़्तनिम है।अदामल्लाहु फ़ुयूज़हु।
नीज़ मुकर्रम-ओ-मोअ’ज़्ज़म,फ़ज़ाइल-मआब जनाब सय्यिद शाह मोहम्मद सज्जाद साहिब साकिन मोहल्ला महल।(बिहार) की ज़ात निहायत क़ाबिल-ए-क़द्र और मुग़्तनिमात से है।स़ुफिया-ए-किराम ख़ुसूसन सूबा-ए-बिहार के गुज़िश्ता बुज़ुर्गान-ए-उ’ज़्ज़ाम के तारीख़ी हालात और उनके सालासिल वग़ैरा के मुतअ’ल्लिक़ उन के मा’लूमात बहुत वसीअ’ हैं।कुतुब-ए-तज़्किरा वग़ैरा पर उनकी अच्छी नज़र है।
बलख़ियों का मक़बरा
यहाँ हज़रत-ए-शैख़ुल-इस्लाम हुसैन नौशा तौहीद फ़िर्दोसी अल-मुतवफ़्फ़ा सन 944 हिज्री-ओ-हज़रत शैख़ हसन बिन हुसैन नौशा तौहीद-ओ-हज़रत मख़्दूम शैख़ अहमद लंगर दरिया इब्न-ए-हसन के मज़ारात हैं।ये मक़बरा पहाड़पुर में रौज़ा-ए-मख़्दूम से क़रीब (शिकस्ता हालत में) है।
मक़बरा-ए-अमीर
यहाँ हज़रत मख़्दूम अहमद चर्म-पोश सुहरवर्दी ज़ेर-ए-क़ब्र आसूदा हैं जो मख़्दूम शर्फ़ुद्दीन के ख़ाला-ज़ाद भाई और निहायत मोहतरम मुआ’सिर और बड़े साहिब-ए-कश्फ़-ओ-करामात-ओ-साहिब-ए-सिलसिला-ओ-ख़ानकाह थे।
रौज़ा-ए-मख़्दूम सीस्तानी
काग़ज़ी महल्ला में है।ये हज़रत मख़्दूम सय्यद मोहम्मद सीस्तानी वो बुज़ुर्ग हैं कि हज़रत मख़्दूम अशरफ़ इलाही इनके मज़ार पर ब-कमाल-ए-अदब हाज़िर होते थे।और मख़्दूम से पहले इस दयार के साहिब-ए-विलायत आप ही थे।यहाँ के सिवा मज़्कूरा बाला मज़ारात पर कहीं क़बा-ओ-गुंबद नहीं है बल्कि हज़रत मख़्दूम का मज़ार-ए-पुर अनवार तो बिल्कुल आ’म है जो ग़िलाफ़ से पोशीदा रहता है।
छोटी दरगाह
ये हज़रत मख़्दूम शाह बद्र-ए-आ’लम ज़ाहिदी का आस्ताना है।यहाँ ख़बाइस-ज़दा वग़ैरा ब-कसरत आते हैं और शिफ़ा-ओ-सेहत पाते हैं। हज़रत बद्र-ए-आ’लम मख़्दूम-ए-जहाँ के हम-अ’स्र हैं और मख़्दूम ही के हसब-ए-इर्शाद अपने वतन से बिहार आकर सुकूनत-पज़ीर हुए। आप हज़रत शैख़ फ़ख़्रुद्दीन ज़ाहिदी मेरठी के मुरीद-ओ-ख़लीफ़ा हैं।ये सिलसिला ज़ाहिदिया कहलाता है जो हज़रत अबू इस्हाक़ गाज़रूनी के ज़रिआ’ से ब-वास्ता-ए-हज़रत अबू मोहम्मद रूयम बग़्दादी के हज़रत सय्यदुत्ताइफ़ा जुनैद बग़्दादी से मिलता है।आ’ली-जनाब ख़ान बहादुर नवाब मौलवी अ’ब्दुल जब्बार ख़ाँ साहिब सी-आई आप ही की औलाद-ए-वाला नज़ाद से हैं।और सूबा-ए-बिहार के मुतअ’द्दिद ख़ानदान आपकी जुज़्ईत का शरफ़ रखते हैं।
गगन दीवान
हज़रत बंदगी मीराँ शाह गगन दीवान रहमतुलल्लाहि अ’लैहि हज़रत मख़्दूम-ए-जहाँ के मुआ’सिरीन और अकाबिर उ’क़्ला-ए-मजाज़ीब से हैं।आपका मज़ार एक बुलंदी पर निहायत पुर-फ़ज़ा मक़ाम में वाक़े’ है।
सय्यद गोशाईं
हज़रत मीर सय्यद शाह फ़ज़्लुल्लाह उ’र्फ़ शाह गोशाईं जो हज़रत सर-अंदाज़ गोसी क़ुतुबुद्दीन बीना दिल क़लंदर जौनपुरी अल-मुतवफ़्फ़ा सन 925 के दामाद-ए-अ’ज़ीज़ और ख़लीफ़ा-ए-अजल्ल हैं।और हज़रत मख़्दूम मुन्इ’म-ए-पाक अ’ज़ीमाबादी वग़ैरा के ज़रिआ’ से आपका सिलसिला सूबा-ए-बिहार में शाए’-ओ-ज़ाए’ है।आपका मज़ार-ए-पुर नूर महल्ला बारादरी में वाक़े’ है।
रौज़ा-ए-मलिक बिया
हज़रत सय्यद इब्राहीम मलिक बिया अकाबिर-ए-बुज़ुर्गों में हैं।पहाड़ के ऊपर आपका रौज़ा है।इसकी निस्बत ये मशहूर और गंज-ए-अर्शदी में मर्क़ूम है कि इस रौज़ा की बुनियाद हज़रत मख़्दूम-ए-जहाँ-ओ-हज़रत मख़्दूम अहमद चर्म-पोश-ओ-मख़्दूम सीस्तानी और एक बुज़ुर्ग ने मिलकर रखी थी।और फ़रमाया था कि “ता क़याम-ए-क़ियामत ख़्वाहद मांद” चुनाँचे आज तक वो रौज़ा निहायत उ’म्दगी-ओ-ख़ूबी से ए’लान-ए-कमा कान मौजूद है।कहते हैं कि ये बुज़ुर्ग ग़ाज़ियान-ए-इस्लाम से थे। वल्लाहु आ’लम।
रौज़ा-ए-शाह सफ़ेद बाज़
मख़्दूम के आस्ताना से थोड़ी दूर पर है।आपका पूरा नाम हज़रत मख़्दूम शाह तय्यिमुल्लाह सफ़ेद बाज़ है।हज़रत मख़्दूम शर्फ़ुद्दीन के ख़ाला-ज़ाद भाई हैं।हज़रत मख़्दूम क़ाज़ी शहाबुद्दीन पीर-ए-जगजोत के नवासा और हज़रत मख़्दूम शाह आदम सूफ़ी चिश्ती के पोते हैं। आपके वालिद-ए-माजिद मख़्दूम शाह हमीदुद्दीन सूफ़ी भी यहीं हैं।और हज़रत पीर-ए-जग्जोत-ओ-शाह आदम सूफ़ी दोनों बुज़ुर्गों के मज़ारात मक़ाम-ए-जठली पटना में मशहूर हैं।
रौज़ा-ए-शैख़ तबीला बख़्श
हज़रत शैख़ फ़रीद तबेला बख़्श भी इसी मुबारक ज़माना के बुज़ुर्ग हैं और हज़रत नूर क़ुतुबुल-आ’लम के ख़लीफ़ा हैं।मज़ार चाँदपुरा में है।
हज़रत मख़्दूम शाह सआ’दत भी हज़रत नूर क़ुतुबुल-आ’लम के ख़लीफ़ा थे और यहीं बिहार में मदफ़ून हैं।
मक़्बरा शाह कुंज नशीन
महल्ला सुकूनत में (जो महल से क़रीब) है,हज़रत शाह मंझन कुंज नशीन सुहरवर्दी और आपके सिलसिला के दीगर बुज़ुर्गों के मज़ारात हैं।हज़रत शैख़ मंझन हज़रत मौलाना दीवान शाह अ’ब्दुर्रशीद जौनपुरी के सिलसिला-ए-क़ादरिया सुहरवर्दी अहमदिया के शुयूख़ सिलसिला से हैं जिनकी शान में ये क़दीम शे’र है।
शैख़ मंझन सुतून-ए-ख़ाना-ए-दीं
लक़ब-ए-ख़ास शाह कुंज नशीं
शैख़ दौड़ क़ुरैशी जो हज़रत मंझन कुंज नशीन के पीरान-ए-तरीक़त और हज़रत सदरुद्दीन राजू क़िताल बुख़ारी के ख़ुलफ़ा से हैं वो भी बिहार में ज़ेर-ए-मरक़द आ’राम फ़रमाते हैं।
ग़र्ज़ इसी तरह और भी बड़े-बड़े औलियाअल्लाह-ओ-मशाइख़-ए-तरीक़त यहाँ मदफ़ून हैं।हज़रत अबुल-फ़य्याज़ क़मरुल हक़ शाह ग़ुलाम रशीद जौनपुरी ने अपनी किताब गंज-ए-अर्शदी में (जो सन 1135 हिज्री की तस्नीफ़ है) अक्सर मज़ारात के पते और साहिबान-ए-मज़ार के नामहा-ए-नामी तहरीर फ़रमाए हैं।और अक्सर बुज़ुर्गान,तबक़ा-ए-उ’लमा-ओ-फ़ुज़ला-ओ-मशाएख़-ओ-सूफ़िया में ऐसे हैं जिनके सिर्फ़ नाम ही नाम बाक़ी रह गए हैं।मज़ार-ओ-मदफ़न वग़ैरा का कुछ भी निशान-ओ-पता नहीं मिलता।इन्ना लिल्लाहि-वइन्ना एलैहि राजिऊ’न।व-रज़ी-अल्लाहु तआ’ला अ’न्हुम अज्मई’न।
आसार-ए-क़दीमा
बिहार में टूटे फूटे खन्डरात और इ’मारतों के मिटे हुए निशानात तो बहुत मिलते हैं मगर कोई क़दीम शाही इ’मारत बाक़ी नज़र नहीं आती।लेकिन कहीं कहीं कतबे और तुग़रे ख़राब-ओ-ख़स्ता हालत में नज़र आते हैं जो ब-दिक़्क़त-ओ-ग़ौर पढ़े जा सकते हैं।ये कतबे बहुत ही क़ाबिल-ए-क़द्र हैं।मगर निहायत अफ़्सोस है कि इनके इस्तिहफ़ाज़ की तरफ़ किसी को तवज्जोह नहीं है।जिन चंद किताबों की मैंने नक़्ल की है वो हसब-ए-ज़ैल हैं।
हज़रत मख़्दूम शर्फ़ुद्दीन के आस्ताना में मख़्दूम मौलाना मुज़फ़्फ़र बलख़ी के हुज्रा के मुक़ाबिल एक बड़ा संग-ए-सियाह जिसका एक गोशा शिकस्ता हो गया है रखा हुआ है।उस पर ये इ’बारत कंदा है।
उमिर-बि-बिनाइ हाज़िहिल-इ’मारति फ़ि-अय्यामि ममलिकतिल-मजलिसिल-आ’ला ख़ानुल-आ’ज़म ख़ाक़ान अ’ज़-ज़ल-हक़ वद्दीन ग़ियासुल-इस्लाम वलमुस्लिमीन मु’ग़ीसुल-मुल्क वस्सलातीन अबील-फ़तह तुग़रल अस्सुलतानी ख़ल्लदल्लाहु मुल्कहु अल-अ’ब्द-अल-मुबारक अल-ख़ाज़िन।तक़ब्बल्लाहु मिन्हु।फ़िल मुहर्रम सनत अर्बई’न व-सित्ता-मिअति।
ये कतबा किसी अ’ज़ीमुश्शान इ’मारत का है जो सुल्तान तुग़रल के अ’हद में उसके हस्बल-अम्र सन 640 में बनाई गई।लेकिन मख़्दूम-ए- जहाँ के रौज़ा से इसका तअ’ल्लुक़ नहीं मा’लूम होता।क्योंकि मख़्दूम का विसाल सन 782 हिज्री में है और कतबा उस से बहुत पहले का है।
हज़रत हुसैन नौशा तौहीद के मज़ार-ए-पुर-अनवार के सिरहाने यही एक कतबा रखा हुआ है जिसकी नक़्ल न ली जा सकी।
हज़रत पीर बद्र-ए-आ’लम ज़ाहिदी के मरक़द शरीफ़ के सिरहाने जो कतबा है उस पर ये अश्आ’र कंदा हैं।
मुजल्ला गश्त ईं मैमूं इ’मारत
ब-अ’ह्द-ए-बादशाह-ए-अ’द्ल-परवर
शहनशाह-ए-जहाँ फ़ीरोज़ शाह आँ कि
अज़ू आबाद शुद मेहराब-ओ-मिंबर
मलक-सीरत व मुल्क दारद किफ़ायत
फ़हीम-ए-नामवर दर हफ़्त किश्वर
गुज़िश्त: हफ़्त सद अज़ तारीख़-ए-हिज्रत
फ़र्मूदा बूद यक बर-हश्त दीगर
हमेश: बाद सरीर-ए-तख़्त-ओ-दौलत
चू नाम-ए-ख़्वेश फीरोज़-ए-मुज़फ़्फ़र
ये कतबा सन 718 हिज्री फ़ीरोज़ शाह का है।मगर नहीं मा’लूम आपकी ख़ानक़ाह की इ’मारत का है या रौज़ा का या किस इमारत का।
आस्ताना-ए-मख़्दूम अहमद चर्म-पोश में मुतअ’द्दिद कतबे हैं मगर इस ख़राब ख़स्ता हालत में कि कोशिश करने पर भी पढ़े न गए।हज़रत शाह नसीरुद्दीन शेर दश्त सुहरवर्दी (जो मख़्दूम चर्म-पोश के पोते हैं) के सिरहाने का कतबा मैंने अपने हाथों से साफ़ किया।और हुरूफ़ के उभारने की कोशिश की मगर न पढ़ सका।इसी हल्क़ा में मग़रिब तरफ़ दीवार में एक कतबा है जो क़दामत और कुहनगी से बहुत कुछ मिट गया है और बा’ज़ हिस्सा दीवार के अंदर चला गया है।कहीं कहीं से जो पढ़ा जा सका वो ज़ैल में दर्ज है।
दर अ’हद-ए-ज़िल्ल–ए-हक़ ब्राहीम शाह आँ कि
۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔ कर्द
इस्लाम रा निहाद ज़े-सर-सब्ज़-ओ-ताज़ः शुद
कुफ़्फ़ार रा ज़े-बीख़ बर आवर्द-ओ-दूर कर्द
-हसन अज़ फुलवारी शरीफ़
- साभार – निज़ाम उल मशायख़ पत्रिका
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