online casino india

मधुमालती के अली मंझन शत्तारी राजगीरी

हज़रत इमाम हसन के वंश में से एक सूफ़ी हज़रत मीर सय्यद मोहम्मद हसनी बग़दाद से ख़ुरासान और ख़ुरासान से भारत आए और यहीं बस गए। आप का सिलसिला इस तरह हज़रत इमाम हसन से जा कर मिलता है- मीर सय्यद इमाद-उद्दीन हसनी बिन ताज-उद्दीन बिन मोहम्मद बिन अज़ीज़-उद्दीन हुसैन बिन मोहम्मद अल-क़रशी बिन अबू… continue reading

हज़रत सयय्द अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी का पंडोह शरीफ़ से किछौछा शरीफ़ तक का सफ़र-अ’ली अशरफ़ चापदानवी

विलादतः- अशरफ़-उल-मिल्लत-वद्दीन हज़रत सय्यद अशरफ़ की सन 722 हिज्री में सिमनान में विलादत-ए-बा-सआ’त हुई जो बा’द में अशरफ़-उल-मिल्लत-वद्दीन उ’म्दतुल-इस्लाम,ख़ुलासतुल-अनाम ग़ौस-ए-दाएरा-ए-ज़माँ,क़ुतुब-ए-अ’स्र हज़रत सयय्द अशरफ़ जहाँगीर अल- सिमनानी के नाम से मशहूर हुए।ये मा’नी-आफ़रीं इस्म-ए-मुबारक बारगाह-ए-मुस्तफ़वी सल्लल्लाहु अ’लैहि व-सलल्लम से तफ़्वीज़ हुआ था। हसब-ओ-नसबः– हज़रत सयय्द अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी क़ुद्दिस सिर्रहु सादात-ए-नूरिया से हैं। खुलफ़ा के अ’हद… continue reading

काउंट ग्लारज़ा का ख़त हज़रत वारिस पाक के नाम

सबा वारसी कहते हैं- दिलबर हो दिलरुबा हो आलम-पनाह वारिससुल्तान-ए-औलिया हो आलम-पनाह वारिस किस की मजाल है जो कशती मेरी डुबो देजब आप नाख़ुदा हो आलम-पनाह वारिस ये जान-ओ-दिल जिगर सब उस को निसार कर दूँजो तेरा बन गया हो आलम-पनाह वारिस हसरत यही है मेरी कि तो मेरे सामने होबाब-ए-करम खुला हो आलम-पनाह वारिस… continue reading

हज़रत मख़दूम अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी के जलीलुल-क़द्र ख़ुलफ़ा- हज़रत मौलाना सय्यद मौसूफ़ अशरफ़ अशरफ़ी जीलानी

हज़रत मख़दूम अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी की ज़ात-ए-गिरामी से सिलसिला-ए-आ’लिया क़ादरिया जलालिया अशरफ़िया और सिलसिला-ए-चिश्तिया निज़ामिया अशरफ़िया की तर्वीज-ओ-इशाअ’त हुई और कसीर औलिया-ए-रोज़गार-ओ-फ़ाज़िल उ’लमा-ओ-मशाइख़-ए-किबार दाख़िल-ए-सिलसिला हुए।आपके ख़ुलफ़ा की ता’दाद बहुत ज़ियादा है जिन्हें ख़ुद आपने अपनी हयात-ए-तय्यिबा में दुनिया के गोशे-गोशे में इशाअ’त-ए-इस्लाम और तब्लीग़-ए-दीन के लिए साहिब-ए-विलायत बना कर भेजा।आपके तक़रीबन सभी ख़ुलफ़ा अपने वक़्त के ज़बरदस्त आ’लिम-ओ-सूफ़ी थे।उन ख़ुलफ़ा ने इस्लाम की बड़ी ख़िदमत की।ज़ैल में हम आपके कुछ उन मशहूर-ओ-मा’रूफ़ ख़ुलफ़ा का ज़िक्र कर रहे हैं जिनका आपसे गहरा तअ’ल्लुक़ था।

हज़रत सय्यद अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अ’लैह

लताएफ़-ए-अशरफ़ी में हैं कि हज़रत सय्यद अशरफ़ के आने से पहले हज़रत अ’लाउद्दीन ने अपने मुरीदों को बशारत दी थी कि

आँ कसे कि अज़ दो साल इंतिज़ार-ए-ऊ मी-कशीदः-ऐम-ओ-तरीक़-ए-मुवासलत-ए-ऊ मी-दीद:-ऐम इमरोज़ फ़र्दा मी-रसद (जिल्द 2 सफ़हा 95)

और जब हज़रत सय्यद अशरफ़ पंडोह के क़रीब पहुँचे तो हज़रत अ’लाउद्दीन क़ैलूला फ़रमा रहे थे लेकिन यकायक बोले

“बू-ए-यार मी आयद” ।

Women’s voices in Bhakti Literature

For the women, Bhakti became an outlet. A study of the writings of these women Bhaktas shows that they negotiated patriarchy through Bhakti which provided a space for them. Most of these women were encultured into a certain culture which was mostly a closed, patriarchal culture, but through this movement, a certain space was created for their freedom and mobility.