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पद्म श्री अ’ज़ीज़ अहमद ख़ाँ वारसी क़व्वाल

फ़नकार अपने मुल्क की तहज़ीब-ओ-तमद्दुन का नुमाइंदा होता है और तहज़ीब-ओ-तमद्दुन किसी मुल्क की सदियों पुरानी रिवायात का नाम है, अगरचे कि तरक़्क़ी-पसंद अफ़राद रिवायात से चिमटे रहने के बजाय नई सम्तें मुत’अय्यन कर के, अपने आपको ‘अस्र-ए-हाज़िर से हम-आहंग करने में अपनी बक़ा महसूस करते हैं और ज़माना भी उनकी हौसला-अफ़ज़ाई करता है, लेकिन… continue reading

हज़रत सय्यद तसद्दुक़ अ’ली असद अमजदी

हज़रत मौलाना सय्यद तसद्दुक़ अ’ली सुल्तान असद का वतन शहर-ए- मेरठ सय्यदवाड़ा मुहल्ला अंदरकोट, इस्माई’ल नगर है। आपका नसब-नामा 35 वीं पुश्त में हज़रत इमाम जा’फ़र-ए-सादिक़ से जा मिलता है। आपके आबा-ओ-अज्दाद अफ़्ग़ानिस्तान से सुल्तान महमूद ग़ज़नवी के हमराह हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाए। इस ख़ानवादे के लोग ग़ैर मुनक़सिम हिंदुस्तान के मुख़्तलिफ़ इ’लाक़ों मऊ, शम्साबाद, रावलपिंडी… continue reading

हज़रत मख़्दूम सय्यद शाह दरवेश अशरफ़ी चिश्ती बीथवी

हज़ारों साल तक ही ख़िदमत-ए-ख़ल्क़-ए-ख़ुदा कर के ज़माने में कोई एक बा-ख़ुदा दरवेश होता है इस ख़ाकदान-ए-गेती पर हज़ारों औलिया-ए-कामिलीन ने तशरीफ़ लाकर अपने हुस्न-ए-विलायत से इस जहान-ए-फ़ानी को मुनव्वर फ़रमाया और अपने किरदार-ए-सालिहा से गुलशन-ए-इस्लाम के पौदों को सर-सब्ज़-ओ-शादाब रखा। अगर ग़ज़नवी-ओ-ग़ौरी जैसे मुबल्लिग़-ए-आ’ज़म सलातीन के अहम मा’रकों को हम फ़रामोश नहीं कर सकते… continue reading

आज रंग है !

रंगों से हिंदुस्तान का पुराना रिश्ता रहा है. मुख़्तलिफ़ रंग हिंदुस्तानी संस्कृति की चाशनी में घुलकर जब आपसी सद्भाव की आंच पर पकते हैं तब जाकर पक्के होते हैं और इनमें जान आती है. यह रंग फिर ख़ुद रंगरेज़ बन जाते हैं और सबके दिलों को रंगने निकल पड़ते हैं. होली इन्हीं ज़िंदा रंगों का त्यौहार है.

क़ुतुबल अक़ताब दीवान मुहम्मद रशीद जौनपूरी उ’स्मानी अज़ मौलाना हबीबुर्रहमान आ’ज़मी, जौनपुर

क़ुदरत का ये अ’जीब निज़ाम है कि एक की बर्बादी दूसरे की आबादी का सबब होती है, एक जानिब एक शहर उजड़ता है तो दूसरी तरफ़ दूसरा आबाद होता हैI  यही हमेशा से चला आता रहा है, इसी कानून-ए-फ़ितरत के तहत जब फ़ित्ना-ए-तैमूरी की हलाकत-ख़ेज़ियों से मग़रिब में दिल्ली की इ’ल्मी, तमद्दुनी और मुआ’शरती दुनिया में बाद-ए-ख़िज़ां के… continue reading

शैख़ सा’दी का तख़ल्लुस किस सा’द के नाम पर है अज़ जनाब मौलवी मुहम्मद ए’जाज़ हुसैन  ख़ान साहब, रईस-ए-पटना

शैख़ सा’दी के मुआ’सिर शम्स बिन क़ैस राज़ी की तसनीफ़ अल-मो’जम फ़ी-मआ’इर-ए-अशआ’रिल  अ’जम, मिर्ज़ा मुहम्मद बिन अ’ब्दुल वहाब क़ज़वीनी के तर्तीब-ओ-तहशिया से शाए’ हुई है, इस पर मिर्ज़ा साहब का एक बसीत आ’लिमाना मुक़द्दमा भी सब्त है। इस मुक़द्दमा में मिर्ज़ा साहब मौसूफ़ ने शैख़ सा’दी के तख़ल्लुस पर इस तक़रीब से नज़र डाली है कि इस मुआ’सिर… continue reading