ख़ानदान-ए-चिराग़ देहलवी

हज़रत ख़्वाजा नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी

शैख़-उल-मशाइख़, बादशाह-ए-’आलम-ए-हक़ीक़त , कान-ए-मोहब्बत-ओ-वफ़ा हज़रत ख़्वाजा नसीरुल-मिल्लत वद्दीन महमूद अवधी रहमतुल्लाह अ’लैह।

तकमिला-ए-सियर-उल-औलिया में है कि ’इल्म-ओ-’अक़्ल-ओ-’इश्क़ में आपका ख़ास मक़ाम था। मकारिम-ए-अख़्लाक़ में आपका काई सानी न था।

जानशीन:

आप हज़रत महबूब-ए-इलाही के ख़लीफ़ा-ओ-जानशीन थे।

वालिद-ए-बुज़ुर्गवार:

आपके वालिद-ए-माजिद का नाम सय्यद यहया यूसुफ़ था।

आपके जद्द-ए-मोहतरम का हिंदुस्तान वारिद होनाः-

सातवीं सदी हिज्री में आपके अज्दाद-ए-किराम इशा’अत-ए-दीन-ओ-तब्लीग़, रुश्द-ओ-हिदायत की ग़र्ज़ से यज़्द (ईरान) से निशापुर के रास्ते हिंदुस्तान तशरीफ़ लाए। और यहाँ मुख़्तलिफ़ शहरों जैसे मुल्तान, लाहौर, देहली, होते हुए अवध या’नी अयोध्या में क़ियाम किया। सबसे पहले हज़रत ख़्वाजा सय्यद नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी के दादा शैख़ सय्यद ’अब्दुल लतीफ़ रशीदुद्दीन अल-गीलानी यज़्दी रहमतुल्लाह ’अलैह हिंदुस्तान तशरीफ़ लाए, और लाहौर में क़ियाम किया जहाँ आपके वालिद-ए-मोहतरम सय्यद यहया यूसुफ़ गीलानी पैदा हुए।

लाहौर से ये बुज़ुर्ग-ओ-मोहतरम ख़ानदान बराह-ए-रास्त देहली से अयोध्या पहुँचा।

सादात-ए-किराम को उस दौर में सब आखों में जगह देते थे। इस ख़ानवादे को भी बहुत ’इज़्ज़त-ओ-हुरमत से नवाज़ा गया। ’इल्म-ओ-फ़ज़्ल में भी यगाना थे, इसलिए बड़ी ’इज़्ज़त-ओ-’अज़्मत और हर दिल-’अज़ीज़ी हासिल हो गई।

अबू नस्र शैख़ सय्यद ’अब्दुल लतीफ़ रशीदुद्दीन गीलानीः-

आप हज़रत ख़्वाजा नसीरुद्दीन महमूद चिराग़ देहलवी के दादा थे।

आप ही सब से पहले हिंदुस्तान तशरीफ़ लाए थे।

हज़रत यहया यूसुफ़ अल-गीलानीः-

आप हज़रत ख़्वजा नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी के वालिद-ए-माजिद हैं। आपका नाम अल-मु’ईद हज़रत शैख़ सय्यद यहया यूसुफ़ अल-गीलानी अल-हसनी था।

आपकी विलादत शहर-ए-लाहौर में हुई । लाहौर से मुंतक़िल हो कर अपने वालिद-ए-माजिद के हमराह अयोध्या तशरीफ़ लाए।

ख़ानदानी वजाहत-ओ-ज़ाती फ़ज़्ल-ओ-करम की वजह से मक़बूल-ए-’आम-ओ-ख़्वास रहे।

कार-ओ-बारः-

आप अपने वालिद और भाई के हमराह पश्मीना की तिजारत किया करते थे।

औलादः-

आपकी 2 औलादें हुईं।

  1. हज़रत बी.बी. कताना ’उर्फ़ हज़रत बड़ी बुआ रहमतुल्लाहि अ’लैहा
  2. हज़रत ख़्वाजा नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी
Hazrat khwaja Syed Nasiruddin Charagh Dehlvi R.A.

विसालः-

आपका विसाल ग़ालिबन 684 हिज्री ब-मुताबिक़ 1285 ’ईस्वी को हुआ। उस वक़्त आपके साहिबज़ादे हज़रत ख़्वाजा नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी की ’उम्र 9 वर्ष थी।

हज़रत सय्यद यहया महमूद अल-गीलानीः-

आप हज़रत ख़्वजा चिराग़ देहलवी के चचा हैं। आपके एक फ़रज़ंद तवल्लुद हुए जिनका नाम शैख़ सय्यद ’अब्दुर्रहमान था, जो ख़्वाजा कमालुद्दीन ’अल्लामा चिश्ती के वालिद हैं।

हज़रत सय्यदा बड़ी बुआः-

आप हज़रत ख़्वाजा सय्यद नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी की बड़ी बहन हैं। आप अपने दौर की मशहूर ‘आबिदा, ज़ाहिदा ख़ातून हैं। आपको अल्लाह तआ’ला ने आपने फ़ज़्ल-ए-बेकराँ से ख़ूब नवाज़ा था और रूहानियत का ’अज़ीम मर्तबा ’अता फ़रमाया था।

आप दुनिया-ए-तारीख़-ए-तसव्वुफ़ की उन ख़ास ख़्वातीन औलिया में शामिल हैं, जिन्हें मक़ाम-ए-राबि’आ ’अता हुआ।या’नी कि आप राबि’आ-ए-ज़मन हैं।

Dargah Hazrat Syeda Badi Bua R.A. Ayodhya

हज़रत चिराग़ देहलवी का अवध आनाः-

हज़रत ख़्वाजा नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी अपने पीर-ओ-मुर्शिद हज़रत ख़्वाजा महबूब-ए-इलाही से इजाज़त लेकर अक्सर दिल्ली से अवध अपनी वालिदा और हमशीरा से मिलने आते थे।

हज़रत शरीफ़ः-

आपका मज़ार गोरिस्तान बड़ी बुआ अयोध्या में वाक़े’ है। जो यतीम -ख़ाना बड़ी बुआ के पास है।

हज़रत शैख़ सय्यद ज़ैनुद्दीन ’अली अवधी चिश्ती

आप हज़रत ख़्वाजा नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी के ख़्वाहर-ज़ादा (भाँजा) और आपके ही मुरीद और ख़लीफ़ा थे।

साहिब-ए-अख़बार-उल-अख़्यार फ़रमाते हैं कि “आप हज़रत ख़्वाजा नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी के भाँजा, ख़लीफ़ा और ख़ादिम थे”।

ख़ैर-उल-मजालिस और मल्फ़ूज़ात में आपका ज़िक्र है।आपके एक मुरीद मुल्ला दाऊद आपने किताब चंदायन की इब्तिदा में आपकी मद्ह और ता’रीफ़ की है। मौलाना दाऊद मुसन्निफ़-ए-चंदायन “आपके मुरीद हैं। तोहफ़तुल-अबरार में है किः

आप ख़्वाहर-ज़ादा-ओ-ख़लीफ़ा नसीरुद्दीन महमूद चिराग़ देहलवी रहमतुल्लाह ’अलैह के थे और सोहबत-याफ़्ता-ए-हज़रत बुर्हानुद्दीन रहमतुल्लाह ’अलैह थे।

कहते हैं कि नसीर ख़ान फ़ारूक़ी वाली-ए-ख़ानदेश ने आपको जागीर देने की तमन्ना की, मगर आपने क़ुबूल नहीं फ़रमाया, और फ़रमाया, एक शहर बनाम मेरे मुर्शिद बुर्हानुद्दीन ’अलैह के जहाँ तुम फ़रोक़श हो आबाद करो और एक शहर ब-नाम मेरे जहाँ मैं  मुक़ीम हूँ बनावा दो, चुनाँचे ऐसा ही हुआ।

हज़रत चिराग़ देहलवी के ख़ादिम-ए-ख़ासः-

आप हज़रत चिराग़ देहलवी को ख़ादिम-ए-ख़ास थे और हज़रत की ख़ानक़ाह में ही अक्सर रहा करते थे।

जब हज़रत चिराग़ देहलवी पर तुराब नामी क़लंदर ने जानलेवा हमला किया और जब ख़ून हुज्रे से बाहर निकल कर बहने लगा तो हमलावर को पकड़ने वालों में हज़रत शैख़ ज़ैनुद्दीन ’अली  भी थे।

लेकिन हज़रत चिराग़ देहलवी ने उन हज़रात को बुलाकर क़सम दी कि क़लंदर को कुछ न कहना और कहा कि ‘मैं ने उसे मु’आफ़ किया’।

हज़रत ख़्वाजा सय्यद कमालुद्दीन ’अल्लामा चिश्ती

आपका नाम हज़रत ख़्वाजा सय्यद कमालुद्दीन ’अल्लामा चिश्ती था।

’उलूम-ए-हदीस-ओ-फ़िक़्ह और ’इल्म-ए-उसूल-ओ-मा’क़ूल-ओ-मंक़ूल वग़ैरा में यगाना-ए-रोज़गार थे, इसलिए आपने ‘अल्लामा ख़िताब पाया।

आप हज़रत ख़्वाजा सय्यद नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी के हक़ीक़ी ख़्वाहर-ज़ादा और ख़लीफ़ा-ए-’आज़म हैं। आप अयोध्या में तवल्लुद हुए।

आपके वालिद-ए-माजिद का नाम हज़रत सय्यद अबुल फज़्ल ’अब्दुर्रहमान क़ादरी अल-गीलानी था। आपके दादा का नाम सय्यद अबुल फ़क़ीर यहया महमूद अल-गीलानी है।

साहिब-ए-मजालिस-ए-हसनिया सफ़्हा 31 पर फ़रमाते हैं कि हज़रत ख़्वाजा कमालुद्दीन ’अल्लामा की वालिदा शैख़ नसीरुल-हक़ वद्दीन चिराग़ देहलवी की हक़ीक़ी बहन थीं। आप ज़माने की राबि’आ थीं। आपने अवध में वफ़ात पाई।

हज़रत चिराग़ देहलवी और हज़रत कमालुद्दीन ’अल्लामा चिश्ती एक ही जद्द की औलाद हैं या’नी की दोनों का आबाई ख़ानदान एक ही है।

Hazrat khwaja Syed Shaikh Kamaluddin Allama Chishty R.A.

बै’अत-ओ-ख़िलाफ़तः-

देहली में आकर आप हज़रत महबूब-ए-इलाही हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के मुरीद हुए और ख़िर्क़ा-ओ-ख़िलाफ़त पाया।

इस के बा’द आपके मामूँ हज़रत चिराग़ देहलवी ने भी आपको अपने ख़िलाफ़त से नवाज़ा।

इस तरह हज़रत कमालुद्दीन ’अल्लामा को हज़रत महबूब-ए-इलाही और हज़रत नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी दोनों बुज़ुर्गान से ख़िलाफ़त हासिल हुई।

हज़रत ख़्वाजा कमालुद्दीन ’अल्लामा चिश्ती के 3 बेटे और एक बेटी थी।

  1. हज़रत शैख़ निज़ामुद्दीन ’अली
  2. हज़रत शैख़ नसीरुद्दीन ’अली
  3. हज़रत शैख़-उल-मशाइख़ सिराजुद्दीन चिश्ती

विसालः-

हज़रत ख़्वाजा कमालुद्दीन ’अल्लामा चिश्ती का विसाल 27 ज़ीक़ा’दा 756 हिज्री ब-मुताबिक़ 1355 ‘ईस्वी को हुआ।आपका मज़ार हज़रत चिराग़ देहलवी के पायताने गुंबद में है और ज़ियारत-गाह-ए-ख़ास-ओ-’आम है।

आगे हज़रत ’अल्लामा की औलाद का तज़्किरा होगा।

हज़रत शैख़ निज़ामुद्दीनः-

साहिब-ए-माजालिस-ए-हसनिया फ़रमाते हैं कि हज़रत शैख़ निज़ामुद्दीन बहुत दाना थे। एक रोज़ मज्लिस में गए। वहाँ एक दाना से बहस की। उसने कहा कि शैख़-ज़ादे तुम जवान ही फ़ौत हो जाओगे। उसी वक़्त तप हो गया और घर पहुँच कर ’आलम-ए-बक़ा को सिधारे।

हज़रत शैख़ नसीरुद्दीनः-

हज़रत शैख़ नसीरुद्दीन ने अपने वालिद हज़रत कमालुद्दीन ’अल्लामा से ’इल्म हासिल किया था और आपकी हयात में ही तहसील-ए-’इल्म से फ़ारिग़ हो गए थे।

हज़रत नसीरुद्दीन के 2 बेटे थे।

  •  हज़रत शैख़ मोहम्मद
  •  हज़रत शैख़ मीराँ
Hazrat Khwaja Syed Nasiruddin Ali bin Hazrat Khwaja Kamaluddin Allama Chishty. Mazar mubark – Shor Gumbad, Gulbarga Karnatak

हज़रत शैख़ मोहम्मदः

आप सुल्तान इब्राहीम शाह शर्क़ी के ज़माने में जौनपुर आए और शहर-ए-ज़ा’फ़रान ख़ुर्द (वर्तमान में यकहाजी उ’र्फ़ शैख़पुर, सिकंदरपुर, ज़िला’, बलिया, यू.पी) में क़ियाम किया।

आपने 11 हज पा-पियादा (पैदल) किए। आपको फूलों से बहुत मोहब्बत थी। आपके पर्दा फ़रमाने के बा’द भी आपके मज़ार-ए-मुबारक पर फूलों की बारिश होती रहती थी, इसलिए आपको हाजी मख़्दूम शैख़ मोहम्मद उ’र्फ़ मख़्दूम शाह फूल कहा जाता है। आपकी दरगाह शरीफ़ चक हाजी उ’र्फ़ शैख़पुर, सिकंदरपुर, ज़ि’ला, बलिया यू.पी में है।

आपकी नस्ल-ए-बा बरकत में एक से एक औलिया, मख़्दूम, मशाइख़, तवल्लुद होते रहे।उर्दू अदब के मशहूर शा’इर-ओ-सूफ़ी ’अल्लामा नुशूर वाहिदी आप ही की औलाद में से हैं। राक़िम-उल-हुरूफ़ सय्यद रिज़्वानुल्लाह वाहिदी के जद्द-ए-’आला आप ही हैं।

Hazrat Makhdoom Syed Shaikh Mohammad Urf Makhdoom Haji shah Phool r. a. Bin Hazrat Nasiruddin Ali Bin Hazrat Khwaja Kamaluddin Allama Chishty , Mazar Mubarak – Chak Haji urf Shaikh Pur, Sikandar Pur, Ballia, U. P.

हज़रत शैख़ मीराँ-

साहिब-ए-मजालिस-ए-हसनिया फ़रमाते हैं कि हज़रत शैख़ मीराँ हज़रत सय्यद बंदा नवाज़ गेसू दराज़ के ख़लीफ़ा थे और आपकी औलाद गुलबर्गा शहर में ही रही। आपका मज़ार-ए-मुबारक कटोरा हौज़, शोर गुंबद, गुलबर्गा, कर्नाटक में है।

हज़रत शैख़-उल-मशाइख़ सिराजुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह ’अलैह

आप हज़रत कमालुद्दीन ’अल्लामा के जाँ-नशीन हुए और सिलसिला-ए-चिश्तिया के मसनद-ए-सज्जादगी पर फ़ाइज़ हुए। आपको हज़रत ख़्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रौशन चिराग़ देहलवी ने 4 साल की ’उम्र शरीफ़ में ख़िलाफ़त से नवाज़ा।

फ़िर कम-’उम्री में ही आपने वालिद-ए-बुज़ुर्गावर से ख़िर्क़ा-ए-ख़िलाफ़त हासिल किया।

हज़रत ख़्वाजा चिराग़ देहलवी के विसाल के बा’द आपने देहली में सुकूनत तर्क कर दी और गुजरात तशरीफ़ लाए और पटना में सुकूनत इख़्तियार की और ता-हयात यहीं रह कर आपने सिलसिले को फ़रोग़ दिया। आपका विसाल 21 जमादि-अल-अव्वल 817 हिज्री में हुआ।

आपके बा’द इस सिलसिले की गद्दी पर आपके साहिबज़ादे हज़रत ख़्वाजा शैख़ सय्यद ’इल्मुद्दीन चिश्ती बैठे।

हज़रत ख़्वाजा ’इल्मुद्दीन चिश्ती

आप हज़रत शैख़ सय्यद सिराजुद्दीन चिश्ती के साहिबज़ादे और ख़लीफ़ा-ओ-जाँ-नशीन हैं। आपको हज़रत सय्यद मोहम्मद गेसू दराज़ बंदा-नवाज़ से भी ख़िलाफ़त हासिल थी।

आप रियाज़त-ओ-’इबादत में यगाना-ए-रोज़गार थे।

आप मुरीदीन को पहले ’उलूम शरी’अत की तरफ़ रुजू’ कराते थे। आपका विसाल 26 सफ़र 829 को हुआ। आपका मज़ार पीरान-पाटन, गुजरात में है।

हज़रत ख़्वाजा शैख़ महमूद राजन रहमतुल्लाह ’अलैह

आप अपने वालिद-ए-माजिद हज़रत ख़्वाजा ’इल्मुद्दीन के ख़लीफ़ा-ओ-क़ाइम-मक़ाम थे। आपने हज़रत क़ाज़न से ख़िर्क़ा-ए-सुहरवर्दिया भी पाय़ा था।

जो शख़्स भी तकमील-ए-’उलूम-ए-ज़ाहिरी के बा’द हाज़िर-ए-ख़िदमत होता आप उसकी तर्बियत फ़रमाते और बहुत जल्द मंज़िल-ए- मक़्सूद पर पहुँचा कर ख़िलाफ़त-ओ-इजाज़त फ़रमाते।

आपका विसाल 26 सफ़र 900 हिज्री को हुआ। आपका मज़ार-ए-मुबारक अपने अज्दाद के मज़ार के क़रीब पीरान-पाटन (गुजरात) में है।

ख़्वाजा हज़रत शैख़ जमालुद्दीन जुम्मन रहमतुल्लाह ’अलैह

आपका नाम जमालुद्दीन था और लक़ब जुम्मन था। आप अपने वालिद-ए-गिरामी हज़रत ख़्वाजा शैख़ सय्यद महमूद के मुरीद-ओ-ख़लीफ़ा थे।

’आलिम-ए-’उलूम-ए-ज़ाहिरी-ओ-बातिनी और साहिब-ए-वज्द-ओ-समाअ’ थे। आपने एक दीवान भी छोड़ा है।

आप कुफ़्फ़ार के हाथों शहीद हुए।आपका साल-ए-विसाल 20 ज़िल-हिज्जा 940 जिज्री है। मज़ार-ए-मुबारक अहमदाबाद गुजरात में है।

हज़रत ख़्वाजा सय्यद हसन मोहम्मद चिश्ती

आपके वालिद-ए-गिरामी का नाम शैख़ अहमद ’उर्फ़ मिया जम्मन था, जिनका सिलसिला-ए-नसब हज़रत कमालुद्दीन ’अल्लामा तक पहुँचता है। आपको अपने वालिद-ए-गिरामी से भी ख़िलाफ़त हासिल थी।

आपका विसाल 28 ज़ीक़ा’दा 982 हिज्री को हुआ। आपका मज़ार-ए-मुबारक अहमदाबाद, गुजरात में है।

हज़रत ख़्वाजा सय्यद शैख़ मोहम्मद चिश्ती

आपका नाम-ए-मुबारक शम्सुद्दीन और लक़ब मोहम्मद है। बा’ज़ ने लिखा है कि आपका नाम ही मोहम्मद था। आप अपने वालिद-ए-गिरामी शैख़ हसन मोहम्मद चिश्ती के मुरीद-ओ-ख़लीफ़ा थे।

आपने बहुत सी किताबें भी तस्नीफ़ की। आपका विसाल 29 रबी’उल-अव्वल 1040 हिज्री को हुआ।

आपका मज़ार-ए-मुबारक अहमदाबाद, गुजरात में है।

हज़रत ख़्वाजा सय्यद शैख़ यहया मदनी

आपका नाम मुहीउद्दीन, लक़ब यहया मदनी और कुन्नियत अबू यूसुफ़ है।

आपके वालिद-ए-गिरामी का नाम शैख़ महमूद है।आप शैख़-उल-मशाइख़ शैख़ मुहम्मद चिश्ती के ख़लीफ़ा-ए-अकबर और पोते थे। आपने हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु ’अलैहि वसल्लम के इशारे पर मदीना तय्यिबा की सुकूनत इख़्तियार की थी। तक़रीबन 14 साल वहाँ रहे और वहीं 28 सफ़र 1101 हिज्री को विसाल फ़रमाया।

आपका मज़ार-ए-मुबारक मदीना तय्यिबा में जन्नत-उल-बक़ी’अ  में हज़रत ’उस्मान-ए-ग़नी रज़ी-यल्लाहु ’अन्हु के मज़ार-ए-मुबारक के क़रीब है।

मनाक़िब-ए-महबूबीन में है कि आपका विसाल 28 माह-ए-सफ़र 1122 हिज्री में हुआ।

नोट – लेखक जवाहिर-ए-नसीरी नामक किताब पर भी कार्य कर रहे हैं जो जल्द ही प्रकाशित होगी

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