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हज़रत ज़हीन शाह ताजी और उनका सूफ़ियाना कलाम

बाबा ताजुद्दीन नागपुरी महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत हुए हैं। मेहर बाबा ने इन्हें अपने समय के पाँच बड़े अध्यात्मिक गुरुओं में से एक माना है। महात्मा गाँधी भी बाबा ताजुद्दीन से मिलने जाया करते थे। बाबा ताजुद्दीन का व्यक्तित्व बड़ा रहस्यमयी रहा है। हजरत बाबा ताजुद्दीन का जन्म नागपुर शहर से 15 कि.मी. दूर कामठी… continue reading

हज़रत मख़दूम-ए-कबीर शैख़ साद उद्दीन ख़ैराबादी रहमतुल्लाह अलैह ख़ैराबादी (814 – 922 हि•)

हज़रत मख़दूम-ए-कबीर, हज़रत ख़्वाजा क़ाज़ी क़िदवतुद्दीन अलमारूफ़ क़ाज़ी क़िदवा क़ुद्दस-सिर्रहु की औलाद में हैं । हज़रत क़ाज़ी क़िदवा, हज़रत ख़्वाजा उसमान हारूनी रहमतुल्लाह अलैह के मुरीद व ख़लीफ़ा और सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख़्वाजा मुईन उद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह के पीर भाई थे । मुर्शिद के हुक्म पर आप हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाए और अवध में क़याम पज़ीर हुए ।हज़रत मख़दूम शैख़ साद उद्दीन ख़ैराबादी रहमतुल्लाह अलैह के वालिद का नाम मख़दूम क़ाज़ी बदरुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह अलमारूफ़ क़ाज़ी बुडढन रहमतुल्लाह अलैह है जो शहर उन्नाव के हाकिम व क़ाज़ी भी थे।

महफ़िल-ए-समाअ’ और सिलसिला-ए-वारसिया

अ’रबी ज़बान का एक लफ़्ज़ ‘क़ौल’ है जिसके मा’नी हैं बयान, गुफ़्तुगू और बात कहना वग़ैरा।आ’म बोल-चाल की ज़बान में यह  लफ़्ज़  क़रार, वा’दा या क़सम के मा’नी में भी इस्ति’माल किया जाता है। अ’रबी और ईरानी ज़बान में लफ़्ज़-ए-क़ौल का स्ति’माल मख़्सूस तरीक़े से गाए जाने वाले शे’र के लिए होता है जिसमें अ’रबी इस्तिलाह… continue reading

तजल्लियात-ए-सज्जादिया

“दिल्ली में एक मर्तबा सुल्तानुल-मशाइख़ हज़रत महबूब-ए-इलाही के उ’र्स में हज़रत सय्यिदुत्तरीक़त पे कैफ़ियत तारी थी। उमरा-ओ-मशाइख़ रौनक़-अफ़रोज़ थे। आख़िरी मुग़ल ताज-दार बहादुर शाह ज़फ़र भी शरीक-ए-मज्लिस थे। बहादुर शाह ज़फ़र को आपकी मुलाक़ात का इश्तियाक़ हुआ और आपकी ख़िदमत में मुफ़्ती सदरुद्दीन अकबराबादी के तवस्सुत से शाही महल में तशरीफ़ फ़रमा होने का दा’वत-नामा भेजा मगर आपने बा’ज़ ना-पसंदीदा उ’ज़्रात से उस पैग़ाम से किनारा-कशी इख़्तियार फ़रमाया ”

पैकर-ए-सब्र-ओ-रज़ा “सय्यद शाह मोहम्मद यूसुफ़ बल्ख़ी फ़िरदौसी”

बचपन ही से यूसुफ़ बल्ख़ी बहुत होनहार थे ।उनकी बड़ी बेटी क़मरुन्निसा बल्ख़ी फ़िरदौसी अपने वालिद-ए-माजिद का ज़िक्र करते हुए फ़रमाती हैं कि

“मेरे वालिद माजिद रहमतुल्लाहि अ’लैहि दुबले-पुतले और लंबे थे। लिबास में पाजामा-कुर्ता और टोपी पहना करते। मेहमान-नवाज़ी का बड़ा शौक़ था इसलिए अगर कोई दोस्त मज़ाक़ से भी ये कह देता कि भाई यूसुफ़ रहमानिया होटल सब्ज़ी बाग़ गए हुए कई दिन हो गए तो अब्बा जान मोहतरम उसे फौरन कहते जल्दी चलो जल्दी चलो मैं तुम्हें रहमानिया होटल ले जाता हूँ। अंग्रेज़ी और फ़ारसी में काफ़ी महारत हासिल थी। फ़ारसी और अंग्रेज़ी में घंटों बातें किया करते थे जिसमें उनके अंग्रेज़ी दोस्त होते जिनसे वो बिला झिझक अंग्रेज़ी में बातें किया करते थे। शे’र-ओ-शाइ’री से भी काफ़ी शग़्फ़ था।

हज़रत अ’लाउद्द्दीन अहमद साबिर कलियरी

बाबा साहिब फ़रमाया करते थे :

“इ’ल्म-ए-सीना-ए-मन दर ज़ात-ए-शैख़ निज़ामुद्दीन बदायूनी, इ’ल्म-ए-दिल मन शैख़ अ’लाउ’द्दीन अ’ली अहमद सरायत कर्दः”

(मेरे सीने के इ’ल्म ने शैख़ निज़ामुद्दीन बदायूनी की ज़ात में और मेरे दिल के इ’ल्म ने शैख़ अ’लाउ’द्दीन अ’ली अहमद साबिर की ज़ात में सरायत की है।