Qawwalon ke Qisse -6 Muhammad Yaqoob Khan aur Madar Bakhsh Khan ka Qissa

मुहम्मद याक़ूब ख़ां फुलवारीशरीफ ज़िला पटना में रहा करते थे उनके ताल्लुक़ात निहायत वसीअ थे। दूर दूर तक उनकी पहचान थी। सितार लाजवाब बजाते थे जिन लोगों को इनकी  महफ़िल याद है वो बड़े ख़ुशनुमा अंदाज़ में आपकी तारीफ़ किया करते हैं ।जब क़व्वाली गाना शुरू करते थे तो पहले सिर्फ सितार बजाते और ऐसा बोल काटते कि सितार से ख़ुद बख़ुद ला-इलाहा इल-लल्लाह की आवाज़ आती लोग इस कैफ़ीयत पर मस्त होते। फिर बाज़ाबता कलाम गाते। बदन पर शीरानी और शाना पर पटका और दो पल्ला की टोपी मलबूस रखते ।बिहार की तक़रीबन तमाम ख़ानक़ाहों में ये  ही कलाम पढ़ा करते थे। आज भी इनकी औलाद ने  इस फ़न को जारी रखा है। याक़ूब ख़ां बीसवीं सदी में बिहार के क़व्वालों में बुलंद मुक़ाम रखते हैं।इनके साथ अबदुर्रहीम ख़ां क़व्वाल भी गाया करते थे जो इनके नायब थे इस तरह एक पूरी टीम आपके पास तैयार रहती थी ।क़व्वाली की इब्तिदा ज़्यादा-तर इस हम्द से करते थे,

ए बेनियाज़ मालिक मालिक है नाम तेरा

मुझको है नाज़ तुझ पर मैं हूँ ग़ुलाम तेरा

मदार बख़्श ख़ां बिहार के एक कामयाब और बेहतरीन क़व्वाल थे। उनकी आवाज़ में तहज़ीब-ओ-शाइस्तगी थी। ।इनका ज़माना वह था जब बिहार सूफ़ियों से मामूर था। इस ज़माने में कव्वालों को नज़राना दूसरी तरह दिया जाता था कि अगर कोई कलाम या शे’र पसंद आता तो सूफ़ी अपनी कोई पसंदीदा चीज़े क़व्वाल को नज़र कर दिया करते और इस चीज़ को नवाब लोग अच्छी क़ीमत देकर ख़रीद लिया करते थे। तज़किरा-अल-अबरार में भी  मदार बख़श का ज़िक्र आता है जिसमे शहर छपरा मुहल्ला करीम चक में हज़रत हकीम सय्यद शाह मज़हर हुसैन मुनीमी की ख़ानक़ाह में उर्स की मजलिस का वाक़या दर्ज है ।

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