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Kahnwa baaje ho badhaiya- Shah Turab and his Krishna

“Niki lagat mohe apne pia ki,Aankh rasili laaj bhari re…” Farid Ayaz Saab used to recite this kalam with “aankh rasili, aur jadu bhari re.” I had corrected him once over a WhatsApp call, and at the age of 73, he was a curious learner, had accepted it in absolute humility.Incidentally, today is the 100th… continue reading

हज़रत बेदम शाह वारसी और उनका कलाम

सूफ़ी संतों के कलाम भाव प्रधान होते हैं इसलिए जीवन पर अपनी गहरी छाप छोड़ जाते हैं. एक दिन दरगाह निज़ामुद्दीन औलिया में बैठा मैं क़व्वाली सुन रहा था. अक्सर देश भर से क़व्वाल हाज़िरी लगाने हज़रत की दरगाह पर आते हैं और कुछ कलाम पढ़ कर, महबूब-ए-इलाही के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं…. continue reading

अल-ग़ज़ाली की ‘कीमिया ए सआदत’ की तीसरी क़िस्त

द्वितीय उल्लास (भगवान् की पहचान) पहली किरण शरीर और संसार की वस्तुओं पर विचार करने से भगवान् की पहचान      सन्तों का यह वचन प्रसिद्ध है और उन्होंने यही उपदेश दिया है कि जब तुम अपने-आपको पहचानोगे तभी निःसन्देह भगवान् को भी पहचान सकोगे। प्रभु भी कहते हैं कि जिसने अपने आत्मा और मन को… continue reading

शैख़ हुसामुद्दीन मानिकपूरी

इक्सीर-ए-इ’श्क़ अ’ल्ला-म-तुलवरा हज़रत मख़्दूम शैख़ हुसामुद्दीन मानिकपूरी रहमतुल्लाहि अ’लैहि का शुमार बर्रे-ए-सग़ीर के मशाइख़-ए-चिशत के अकाबिर सूफ़िया  में होता है। आप हज़रत शैख़ नूर क़ुतुब-ए-आ’लम पंडवी बिन शैख़ अ’लाउ’ल-हक़ पंडवी रहमतुल्लाहि-अलैह के मुरीद-ओ-ख़लीफ़ा हैं। आपका तअ’ल्लुक़ सूबा-ए-उत्तरप्रदेश के एक तारीख़ी क़स्बे गढ़ी मानिकपूर, ज़िला प्रतापगढ़ से है। जिसका क़दीमी नाम कड़ा मानिकपूर है। आपकी विलादत… continue reading

ख़्वाजा शम्सुद्दीन मुहम्मद ‘हाफ़िज़’ शीराज़ी

लिसानुल-ग़ैब(‘अज्ञात का स्वर’ या स्वार्गिक रहस्यों के व्याख्याता) ख़्वाजा शमसुद्दीन मुहम्मद हाफ़िज़(1315-1390 ई.) ने आठवीं सदी हिजरों में अपनी ग़ज़लों से तसव्वुफ़ के एक बिल्कुल नए रहस्यमयी संसार का दरवाज़ा सबके लिए खोल दिया। हाफ़िज़ के जीवन के संबंध में बहुत कम जानकारी मिलती है। उनके समकालीन लोगों ने भी उनके विषय में कम ही… continue reading

मौलाना जलालुद्दीन रूमी

मौलाना जलालुद्दीन रूमी (1207-1273 ई.) विश्व के सर्वाधिक पढ़े और पसंद किये जाने वाले सूफ़ी शाइर हैं। इनकी शाइरी में रचनात्मक और भावनात्मक रस का प्रवाह इतना बेजोड़ है कि इसकी समता सूफ़ी शाइरी का कोई शाइर न कर पाया। प्रसिद्ध है –मसनवी–ए-मौलवी-ए-मा’नवीहस्त क़ुरआन दर ज़बान-ए-पहलवी(अर्थात –मौलाना रूमी की मसनवी पहलवी भाषा की क़ुरआन है… continue reading