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Kahnwa baaje ho badhaiya- Shah Turab and his Krishna

“Niki lagat mohe apne pia ki,Aankh rasili laaj bhari re…” Farid Ayaz Saab used to recite this kalam with “aankh rasili, aur jadu bhari re.” I had corrected him once over a WhatsApp call, and at the age of 73, he was a curious learner, had accepted it in absolute humility.Incidentally, today is the 100th… continue reading

हिन्दुस्तानी तहज़ीब की तश्कील में अमीर ख़ुसरो का हिस्सा- मुनाज़िर आ’शिक़ हरगानवी

जब हम हिन्दुस्तान की तहज़ीब का मुतालिआ’ करते हैं तो देखते हैं कि तरह तरह के इख़्तिलाफ़ के बावजूद अहल-ए-हिंद के ख़याल, एहसास और ज़िंदगी में एक गहरी वहदत मौजूद है जो तरक़्क़ी के दौर में ज़्यादा और तनज़्ज़ुल के दौर में कम होती रहती है। अमीर ख़ुसरो 653 हिज्री में ब-मक़ाम-ए-पटियाली पैदा हुए और… continue reading

अमीर ख़ुसरो की सूफ़ियाना शाइ’री-डॉक्टर सफ़्दर अ’ली बेग

सूफ़ियों के अ’क़ीदे में ख़ुदा की ज़ात ही सबसे अहम-तरीन है। जिसके तसव्वुर में इन्सान मुस्तग़रक़ हो जाए उनका कहना है कि ये इन्सानी अ’क़्ल के बस से बाहर है कि वो ख़ुदा को समझ सके और उसकी ता’रीफ़-ओ-तमजीद कर सके।दिमाग़-ए-इन्सानी ज़मान-ओ-मकान में महदूद है इसलिए जो शय ज़मान-ओ-मकान के हुदूद से मावरा हो, उस… continue reading

Learn from the Hindu how worship is done: Amir Khusro

There are as many paths as there are grains of sand. -Nizamuddin Auliya Oh you who sneer at the idolatry of the Hindu, Learn also from him how worship is done. –Amir Khusro Six yogis once came to Nizamuddin’s hospice in Ghiyaspur and started to meditate in front of his door. They did not utter… continue reading

अमीर ख़ुसरो और इन्सान-दोस्ती-डॉक्टर ज़हीर अहमद सिद्दीक़ी

आज जिस मौज़ूअ’ पर दा’वत-ए-फ़िक्र दी गई है वो “अमीर ख़ुसरो और इन्सान-दोस्ती का मौज़ूअ’ है । देखना ये है कि हज़रत अमीर ख़ुसरो ने ज़िंदगी की इस रंगा-रंगी को किस नज़र से देखा है और इसको किस तरह बरता है । इन्सान-दोस्ती का वो कौन सा नसबुल-ऐ’न है जो अमीर ख़ुसरो के सिल्सिला से… continue reading

अमीर ख़ुसरो बुज़ुर्ग और दरवेश की हैसियत से-मौलाना अ’ब्दुल माजिद दरियाबादी

ख़ालिक़-बारी का नाम भी आज के लड़कों ने न सुना होगा। कल के बूढ़ों के दिल से कोई पूछे किताब की किताब अज़-बर थी।ज़्यादा नहीं पुश्त दो पुश्त उधर की बात है कि किताब थी मकतबों में चली हुई, घरों में फैली हुई, ज़बानों पर चढ़ी हुई| गोया अपने ज़माना-ए-तस्नीफ़ से सदियों तक मक़्बूल-ओ-ज़िंदा, मश्हूर-ओ-ताबिंदा।… continue reading