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Kahnwa baaje ho badhaiya- Shah Turab and his Krishna

“Niki lagat mohe apne pia ki,Aankh rasili laaj bhari re…” Farid Ayaz Saab used to recite this kalam with “aankh rasili, aur jadu bhari re.” I had corrected him once over a WhatsApp call, and at the age of 73, he was a curious learner, had accepted it in absolute humility.Incidentally, today is the 100th… continue reading

हज़रत मुल्ला बदख़्शी- पंडित जवाहर नाथ साक़ी देहलवी

नाम शाह मोहम्मद और लक़ब लिसानुल्लाह मा’रूफ़ ब-मुल्लाह शाह क़ादरी था। नूरुद्दीन मोहम्मद जहाँगीर बादशाह के अ’ह्द  मे ब-आ’लम-ए-तुफ़ूलियत वारिद-ए-कश्मीर हुए। तीन साल वहाँ क़याम रहा। वहाँ से आगरे पहुंचे।यहाँ हज़रत मियाँ नमीर सेसनाई क़ादरी लाहौरी सुनार जिनके ख़वारिक़-ए-आ’दात-ओ-करामात ने उनको मश्हूर-ए-ज़माना कर रखा था की सोहबत इख़्तियार की।आख़िर लाहौर तशरीफ़ ले गए।उनकी ख़िदमत में… continue reading

लोकगाथा और सूफ़ी प्रेमाख्यान-परशुराम चतुर्वेदी

हिन्दी के सूफ़ी-प्रेमाख्यानों का विषय प्रारम्भ से ही लोक-कथाओं जैसा रहता आया था। अतः इन्हें साहित्यिक लोकगाथा मान लेने की प्रवृत्ति स्वाभाविक ही है। तदनुसार इसके लिए अनेक उपयुक्त लक्षण भी निर्दिष्ट किये जा सकते हैं। उदाहरणार्थ, कहा जा सकता है कि मुल्ला दाऊद से ले कर ईसवी सन् की बीसवीं शताब्दी के कवि नसीर… continue reading

आस्ताना-ए-ख़्वाजा ग़रीब-नवाज़ में ख़ुद्दाम साहिब-ज़ादगान, सय्यिद-ज़ादगान औलाद-ए-हज़रत ख़्वाजा सय्यिद फ़ख़्रुद्दीन गर्देज़ी रहमतुल्लाहि अ’लैह

ये नसब-नामा-ए-मौरुसी ख़ुद्दाम-ए-हुज़ूर ख़्वाजा ग़रीब-नवाज़ रहमतुल्लाहि अ’लैह का है।ख़ुद्दाम-ए-ख़्वाजा का लक़ब इस ख़ानदान के हर फ़र्द की पहचान है।अपने मुरिस-ए-आ’ला हज़रत ख़्वाजा सय्यिद फ़ख़रुद्दीन गर्देज़ी रहमतुल्लाहि अ’लैह से इस लक़ब को मंसूब कर के इसे अपना तुर्रा-ए-इम्तियाज़ और जुज़्व नाम बनाया है। जिन मुरिस-ए-आ’ला का ज़िक्र मज़्कूरा-बाला किया है उनकी तफ़्सील ये है कि हज़रत… continue reading

अमीर ख़ुसरो की शाइ’री में सूफ़ियाना आहँग 

हिन्दुस्तान में इब्तिदा ही से इ’ल्म-ओ-अदब,शे’र-ओ-हिक्मत, तसव्वुफ़-ओ-मा’रिफ़त,अदाकारी-ओ-मुजस्समा-साज़ी और मौसीक़ी-ओ-नग़्मा-संजी का रिवाज है।अ’ह्द-ए-क़दीम से लेकर दौर-ए-हाज़िर तक ऐसी बे-शुमार शख़्सियात इस सर-ज़मीन पर पैदा होती रही हैं जिन्होंने अपने कारहा-ए-नुमायाँ से हिन्दुस्तान का नाम सारी दुनिया में रौशन किया।उन्हीं शख़्सियतों में एक ताबिंदा और बा-वक़ार नाम अबुल-हसन यमीनुद्दीन ख़ुसरो का भी है जिन्हें ‘तूती-ए-हिंद’ का शरफ़… continue reading

ज़िक्र-ए-ग़ौस-ए-आ’ज़म अ’ब्दुल-क़ादिर जीलानी- हज़रत मैकश अकबराबादी

इस्म-ए-मुबारक अ’ब्दुल-क़ादिर,लक़ब मुहीउद्दीन और कुन्नियत अबू-मोहम्मद है।नसब-ए-मुबारक वालिद-ए-बुज़ुर्गवार की तरफ़ से इमाम-ए-दोउम हज़रत सय्यिदिना हसन अ’लैहिस्सलाम तक और मादर-ए-मोहतरमा की जानिब से इमाम-ए-सेउम हज़रत सय्यदुश्शुहदा इमाम हुसैन अ’लैहिस्सलाम तक पहुंचता है। शैख़ अ’ब्दुल-हक़ मुहद्दिस दिहलिवी ने आपका ज़िक्र-ए-मुबारक और सन-ए-विलादत-ओ-वफ़ात का ज़िक्र इस तरह किया है। क़ुतुबुल-अक़ताब,फ़र्दुल-अहबाब,ग़ौसुल-आ’ज़म,शैख़-ए-शुयूख़ुल-आ’लम,ग़ौसुस्सक़लैन,इमामुत्ताइफ़ीन,शैख़ुत्तालिबीन,शैख़ुल-इस्लाम मुहीउद्दीन अबू मोहम्मद अ’ब्दुल-क़ादिर अल-हसनी-अल-हुसैनी अल-जीलानी रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु… continue reading