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Kahnwa baaje ho badhaiya- Shah Turab and his Krishna

“Niki lagat mohe apne pia ki,Aankh rasili laaj bhari re…” Farid Ayaz Saab used to recite this kalam with “aankh rasili, aur jadu bhari re.” I had corrected him once over a WhatsApp call, and at the age of 73, he was a curious learner, had accepted it in absolute humility.Incidentally, today is the 100th… continue reading

Modern Tales of Mullah Nasiruddin -9

Out beyond ideas of wrongdoing and right doingthere is a field. I’ll meet you there.(Barks, the Essential Rumi, 36) The cop stopped his car near a coffee shop in Meram, in the outskirts of Konya. Nasruddin came out to face the young cop who had just been commissioned a year back. He showed his passport with… continue reading

रसखान के वृत्त पर पुनर्विचार-कृष्णचन्द्र वर्मा

      रसखान के जीवनवृत्त पर सर्वप्रथम प्रकाश डालने का श्रेय श्री किशोरीलाल गोस्वामी को है। वे रसखान की रचनाओं के अनन्य भक्त थे तथा बड़े श्रम से उन्होंने रसखान के काव्य और जीवनवृत्त से हिन्दी के साहित्यानुरागियों को सन् 1891 में ‘सुजान रसखान’ नामक ग्रंथ द्वारा परिचित कराया। लगभग 50 वर्ष तक हिंदी के विद्वानों… continue reading

कविवर रहीम-संबंधी कतिपय किवदंतियाँ -याज्ञिकत्रय

      प्रसिद्ध पुरुषों के विषय में जो जनश्रुतियाँ साधारण जन-समाज में प्रचलित हो जाती हैं, वे सर्वथा निराधार नहीं होतीं। यद्यपि उनमें कल्पना की मात्रा अधिक होती है, तथापि उनका ऐतिहासिक मूल्य भी कुछ-न-कुछ अवश्य होता है। किवदंतियों में मनोरंजन की सामग्री भी होती है, इस कारण वे मौखिक रूप में हो अनेकों शताब्दियों तक… continue reading

बक़ा-ए-इन्सानियत में सूफ़ियों का हिस्सा- (हज़रत शाह तुराब अ’ली क़लंदर काकोरवी के हवाला से)

क़ुरआन-ए-मजीद में इर्शाद है ‘लक़द मन्नल्लाहु अ’लल-मोमिनीना-इज़ा-ब’असा-फ़ीहिम रसूलन मिन-अन्फ़ुसिहिम यतलू अ’लैहिम आयातिहि-व-युज़क्कीहिम-व-युअल्लि’मुहुमुल-किताबा-वल-हिकमत’.(आल-ए-इ’मरान) या’नी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अ’लैहि-व-सल्लम की बि’सत का मक़्सद ये हुआ कि वो लोगों को अल्लाह तआ’ला की  आयात-ओ-निशानियों से बा-ख़बर करें।उनके नुफ़ूस का तज़्किया-ओ-निशानियों से ज़िंदगियाँ निखारें और सँवारें और उन्हें किताब-ओ-हिक्मत का सबक़ पढ़ाऐं। जिस तरह पैग़म्बरों की बि’सत मख़्लूक़ पर एहसान-ए-अ’ज़ीम… continue reading

नाथ-योगी-सम्प्रदाय के ‘द्वादश-पंथ’-परशुराम चतुर्वेदी

नाथ-योगी सम्प्रदाय के इतिहास पर विचार करते समय हमारी दृष्टि, स्वभावतः, इसके उन अनेक पंथों व शाखा-प्रशाखाओं की ओर भी चली जाती है जिनके विभिन्न केन्द्र भारत के प्रायः प्रत्येक भाग में बिखरे पड़े हैं। उनके विषय में कभी-कभी ऐसा कहा जाता है कि वे पहले, केवल 12 पृथक्-पृथक् संस्थाओं के ही रूप में, संघटित… continue reading