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Kahnwa baaje ho badhaiya- Shah Turab and his Krishna

“Niki lagat mohe apne pia ki,Aankh rasili laaj bhari re…” Farid Ayaz Saab used to recite this kalam with “aankh rasili, aur jadu bhari re.” I had corrected him once over a WhatsApp call, and at the age of 73, he was a curious learner, had accepted it in absolute humility.Incidentally, today is the 100th… continue reading

हाज़ा हबीबुल्लाहि मा-त-फ़ी हुब्बिल्लाह का तहक़ीक़ी जाएज़ा

ख़्वाजा-ए-आ’ज़म ने जब आ’लम-ए-ख़ाक-ओ-बार को ख़ैरबाद कहा, उस वक़्त आपकी पेशानी परः हाज़ा हबीबुल्लाहि मा-त फ़ी-हुब्बिल्लाह।(ये अल्लाह का दोस्त है जिसने अल्लाह की मुहबब्त में जान दे दी) के कलिमात ज़ाहिर हुए।

प्यारे भाई क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी -ख्व़ाजा साहब के ख़ुतूत अपने मुरीद-ए-ख़ास के नाम

इसलिए अगर तसव्वुफ़ की असलियत से वाक़िफ़ होना चाहते हो तो अपने पर आराम का दरवाज़ा बंद कर दो और फिर मोहब्बत के बल बैठ जाओ ! अगर तुम ने यह कर लिया तो समझो कि बस तसव्वुफ़ के आ’लिम हो गए।

महापुरुष हज़रत ख़्वाजा मुई’नुद्दीन चिश्ती अजमेरी

अगर मैं आप से पूछूँ कि आपने कोई फ़क़ीर देखा है तो आपका उत्तर होगा क्यों नहीं! बहुत फ़क़ीर देखे हैं। मगर मैं कहूँगा कि नहीं फ़क़ीर आपने मुश्किल से ही कोई देखा होगा। आज कल तो हर फटे हाल बुरे अहवाल को लोग फ़क़ीर कह देते हैं और हर भीक माँगने वाला फ़कीर समझा जाता है। परंतु सच पूछिए तो ये लोग फ़क़ीर नहीं होते।अस्ली फ़क़ीर किसी से कुछ माँगता नहीं। बन पड़ता है तो अपने पल्ले ही से कुछ दे देता है।वो दुनिया से जी नही लगाता। धन-दौलत की परवाह नहीं करता और बस दो कामों में मगन रहता है।

सूफ़ी और ज़िंदगी की अक़दार-ख्व़ाजा हसन निज़ामी

दुनिया तज्रिबा-गाह के बाहर बहुत वसीअ’ है और ये इतनी बड़ी दुनिया भी काएनात की वुस्अ’त के सामने एक छोटी सी लेबोरेटरी और तज्रिबा-गाह से ज़्यादा हैसियत नहीं रखती।

हज़रत महबूब-ए-इलाही ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी के मज़ार-ए-मुक़द्दस पर एक दर्द-मंद दिल की अ’र्ज़ी-अ’ल्लामा इक़बाल

हिन्द का दाता है तू तेरा बड़ा दरबार है
कुछ मिले मुझको भी इस दरबार-ए-गौहर-बार से