उमर ख़य्याम की बीस रुबाइयाँ

उमर ख़य्याम (1041-1131) अपनी किताब रुबाइयात के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध हैं। फिट्जगेराल्ड द्वारा इनकी रुबाइयात के अंग्रेज़ी अनुवाद के बाद इनका नाम मशरिक और मग़रिब दोनों में मक़बूल हो गया । मौलाना रूमी की मसनवी के बाद सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली किताबों में रुबाइयात का शुमार होता है।  कहा जाता है कि किसी वक़्त सूफ़ी ख़ानक़ाहों में आने वाले नवागंतुक विद्यार्थियों को उमर ख़य्याम की रुबाइयात पढ़ने के लिए दी जाती थी और उनसे पूछा जाता था कि आपने क्या समझा ? नवागंतुक के उत्तर पर यह निर्भर करता था कि उसे ख़ानक़ाह में प्रवेश मिलेगा अथवा नहीं । भारत में रुबाइयात का अनुवाद हिंदी के साथ साथ और भी कई भाषाओं में हुआ है । हरिवंश राय बच्चन का अनुवाद ख़य्याम की मधुशाला के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इनकी रुबाइयात से प्रेरित होकर ही उन्होंने बाद में मधुशाला लिखी जो हिंदी की एक अमर कृति है ।

ख्याति-प्राप्त शाइर होने के साथ साथ उमर ख़य्याम बड़े गणितज्ञ और ज्योतिर्विद भी थे। इन्होंने इस्लामी ज्योतिष को एक नई पहचान दी और इसके सुधारों के कारण जलाली संवत या सेल्जुक संवत का आरंभ हुआ।

खगोलशास्त्र में कार्य करते हुए उमर खय्याम ने एक सौर वर्ष की दूरी दशमलव के छः स्थानों तक शुद्ध प्राप्त की । इस आधार पर उनहोने एक नए कैलेंडर का आविष्कार किया । उस समय की ईरानी हुकूमत ने इसे जलाली कैलेंडर के नाम से लागू किया । वर्तमान ईरानी कैलंडर जलाली कैलेंडर का ही एक मानक रूप है।

ख़य्याम की इच्छा थी कि उनकी क़ब्र ऐसी जगह पर बने जहाँ पेड़ साल में दो बार फूल बरसाया करें। उनकी यह इच्छा भी पूर्ण हो गयी। इनकी दरगाह निशापुर में है जहाँ शेफ़्तालू और नाशपाती के पेड़ साल में दो दफ़ा फूल बरसाते हैं ।

ख़य्याम की 20 रुबाइयों का हिंदी तर्जुमा हम पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं . साथ में मूल फ़ारसी रुबाई भी देवनागरी लिपि में पेश जा रही है. आशा है हमारा यह प्रयास आप को पसंद आएगा

तुम्हारी उम्र, अपने मतलब और मफ़ाद में मस्त रहकर कब तक गुज़रती रहेगी और कब तक तुम इस ज़िंदगी और मौत की खोज में मश्ग़ूल रहोगे? आ और शराब पीकर नशे में हो और सब कुछ भुला दे। जिस ज़िंदगी में मस्ती और जश्न हो वह उस जीवन से, जिस में दुःख तथा परेशानी हो कहीं अच्छी है।

कल मुझ को हाट में एक कुम्हार दिखलाई दिया था जो थोड़ी-सी गीली मिट्टी को अपने पैरो से रौंद रहा था। वह मिट्टी उससे यह लफ़्ज़ कह रही थी कि मैं भी तेरे ही बराबर किसी वक़्त आदमी के रूप में थी और मुझमें भी यह सब ख़ुसूसियत मौजूद थीं।

सुस्ती में मत पड़ा रह और ख़ुदा के लिए अपने फ़राएज़ पर अमल कर। उस दुनिया का बोझ मैं अपने सिर पर लेता हूँ। बस शराब ला, मुझे और कुछ नहीं चाहिये। किसी के जान और माल को लेने का खुछ भी विचार मत कर और जो कुछ भी तुझे हासिल है,उसमें से दूसरों को भी दे।

मैं तेरी आरज़ूओं पर निर्भर करता  हूँ। अगर तुम अपनी जुदाई में मुझे तड़पाना चाहते तो तो और तड़पा, और अगर मिलने का सुख देना चाहते है तो सुख दो। तू जिस हालत में मुझे रखना चाहता है रख । मैं कभी इसके ख़िलाफ अपने मुँह से एक लफ़्ज़ भी नहीं निकालूँगा।

इस मोहब्बत-रूपी शुद्ध मदिरा को पान कर लेने से मोहब्बत के मार्ग में हमारी इज़्ज़त और भी अधिक हो गई है। मदिरा का प्याला भी हमेशा भरा ही रहता है। इस मोहब्बत की मदिरा के ज़्यादा सेवन से हमारे मस्तिष्क तक में धुंध सी छा गई है, और सच्ची मोहब्बत को हमने पहचान लिया है।

रास्ते में चलते हुए इस तरह चलो कि लोग तुझे सलाम न कर सकें और उन से ऐसा बर्ताव करो कि वह तुझे देखकर उठ न खड़े हों। मसजिद में अगर जाते हो तो इस तरह जाओ कि लोग तुझे इमाम न बना लें। नम्र बनो और अपने को होशियार ज़ाहिर मत करो।

कोई भी चीज़ ऐसी नहीं है, जो राज़ से खाली हो, लेकिन दिल को थोड़े और ज़यादा का कुछ भी ध्यान नहीं है। हर एक झुंड की कोई न कोई मंज़िल है। ये सब तय-शुदा रास्तों से आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन इश्क़ के रास्ते का कोई सालार यानी रास्ता बताने वाला ही नहीं है।

शराब के लियेमैंने पहरेज़गारी से हाथ खींच लिया और शराब-ख़ाने की धूल से वज़ू कर लिया। ऐसा मैंने इसलिये किया कि मदरसे में अपनी उम्र का जितना हिस्सा बिताया है, उसे दोबारा हासिल कर लूँ।

कोई भी दिल ऐसा नहीं है, जो तेरे जुदाई से दुख़ी न हो और कोई भी अक़लमंद आदमी ऐसा नहीं है जो तेरे लिये परेशान न हो। तुझे किसी की भी फ़िक्र नहीं है, लेकिन तेरा ध्यान सभी को है।

ऐ जले-भुने हुए और जला डालने वाले इंसान! तू इतना नीच है कि दोज़ख़ की आग भी तुझी से जलानी चाहिये। तू यह कब तक कहता रहेगा कि‘उमर’पर मेहरबानी दिखला। तू  ख़ुदा को भी मेहरबानी का सबक़ पढ़ाने कहाँ से आ गया है?

या ख़ुदा! तू रहीम और मेहरबान है और मेहरबानी से ही तेरी शोहरत है। फिर गुनाहगारों को जन्नत से महरूम क्यों किया गया है? अगर ज़िक्र-ओ-अज़कार की वजह से तू मुझे माफ करके अपनाता है, तो इसमें तेरी मेहरबानी कहाँ रही। हाँ, बुरा होने पर भी अगर तू मुझे अपनावे तब तेरा रहम और मेहरबानी ज़रूर है।

जिन दिनो मैं इश्क़ में पागल था, लगभग सभी राज़ मुझ पर ज़ाहिर थे। लेकिन जब अपने अक़्ल-ओ-ख़िरद से ज़रिया देखता हूँ, तो पता चलता है कि मैंने अब तक तो मुझे कुछ भी नहीं मालूम था।

मोहब्बत की मदिरा हमें बहुत लाभ पहुँचाती है। इससे हमारे जिस्म और जान को क़ुव्वत हासिल होती है। इसके पीने से छुपे राज़ों का पता लग जाता है। बस, मैं इस मदिरा का सिर्फ एक घूँट भर ही पीना चाहता हूँ। इसके बाद न तो हमें दुनिया की और न ही ज़िंदगी और मौत की चिंता रहेगी।

मेरे जिस्म और सेहत का तू ही सब कुछ है। तू ही जान, तू ही दिल, यहाँ तक कि जो कुछ भी है तू ही है। मैं जिस्म इसलिये बना हुआ हूँ कि तू ही मेरा जीवन है। मैं तुझमें मिटकर मिल गया हूँ। शायद जो कुछ भी है तू ही तू है। मैं कुछ भी नहीं हूँ।

हे साक़ी! मुझ को रूहानी-शराब हासिल हुई है जो मुझे बहुत मुअज़्ज़म यानी इज़्ज़त-बख़्श है। जिस ने रूहानी शराब का घूँट नहीं पिया उसका वजूद बेकार है। उसको निकम्मा कहना चाहिये। इंसान की ज़िंदगी का अस्ल मक़सद सिर्फ़ ख़ुदा से गुफ्तगू करना ही है।

इस तख़्लीक़ के सबसे अच्छे जानदार हमीं है और इस बदन के अंदर अक़्ल नाम का जो माद्दा है वह हमारे ही निस्बत से मुतअल्लिक़ है। दुनिया इस तख़्लीक़ की  एक अँगूठी के बराबर सिर्फ़ हिस्सा है और बिला-शुब्ह हम ही इस दुनिया की तरह अंगूठी के नगीने हैं।

जो आदमी मशहूर नहीं होता, उसकी ज़िंदगी बड़े आराम और सुकून से गुज़रती है। वह बढ़िया कुर्ता, और कम्बल नहीं पहनता है यह वह अच्छा करता है। ऐसा आदमी ही परिंदे के मानिंद आसमान में उड़ जाता है, और इस उजाड़ दुनिया का उल्लू नहीं बनता।

आदमी का इंसान होना अपने महबूब पर फ़िदा होना शर्त है। उस पर मैं अपने आप को न्योछावर करने के लिये तय्यार हूँ। और उसके पाँव में पड़ा रहना आसान समझता हूँ। लेकिन अगर तुम दोज़ख़ की हक़ीक़त मालूम करना चाहते हो, तो समझ लो कि ख़ुदा के नाफ़रमान जाहिल आदमी का साथ ही दोज़ख़ है।

ऐ अल्लाह! तेरी बंदगी और इबादत के मार्ग में सब बराबर हैं। किसी तरह का भी कोई फ़र्क़ नहीं है। और दोनों दुनिया में तेरे ही सेवा कोई नहीं है जिस के सामने तौबा किया जाए। तू आदमी की शैतानियत को लौटा कर सही समझ उसे अता करता है। ऐ ख़ुदा! रहम कर और यह लेन-देन कर ले।

दिल को ज़िंदगी का राज़ पूरी तरह से पता चल गया है। उसने यह भी समझ लिया है कि मौत में भी ईश्वर के कुछ राज़ छुपे हुए हैं। तू इस वक़्त अपने आपे में गुम है ,लेकिन आज तू इसके बावजूद भी मौत के राज़ को नहीं समझता। कल जब तू अपने आपे में नहीं रहेगा, तो इन बातों को क्या समझ सकेगा?

All illustrations by – M.Akbar Tadjvidi

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