ज़िक्र-ए-ख़ैर हज़रत पीर-ए-जगजोत
अक्सर वाक़िआ’त से साबित होता है कि हज़रत इमाम मोहम्मद अल-मा’रूफ़ ब-ताज-ए-फ़क़ीह मक्की ब-हुक्म-ए-सरकार-ए-दो-आ’लम सल्लल्लाहु अ’लैहि व-आलिहि वसल्लम चंद मुजाहिदों के साथ मक्कातुल-मुकर्रमा से हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाए। बा’ज़ वाक़िआ’त से ये भी साबित होता है कि खिल्जी ने 590 हिज्री 1192 ई’स्वी में बिहार पर हमला किय। यूँ तो मुसलमानों की आमद और उन की नौ-आबादियात का सिलसिला बिहार के मुख़्तलिफ़ मक़ामात में उस ज़माने से बहुत क़ब्ल ही शुरूअ’ हो चुका था। महमूद ग़ज़्नवी के भांजे सालार मसऊ’द ग़ाज़ी का बहराइच तक आना मशहूर है। मोहम्मद ग़ौरी ने बनारस तक यलग़ार की और यलग़ारों की वजह से मुसलमानों ने बिहार के मुख़्तलिफ़ मक़ामात पर अपनी सुकूनत क़ाएम कर ली। लोग दूर दराज़ से सफ़र कर के अपने दामन-ए-मुराद में फ़लाह-ओ-कामयाबी की दुआ’एँ लेकर फ़ैज़याब होते रहे। उन्हीं बिहार की अ’ज़ीम हस्तियों में एक नाम तारिकुस्सल्तनत हज़रत क़ाज़ी सय्यद शहाबुद्दीन सुहरवर्दी पीर-ए-जगजोत (काशग़री सुम्मा बिहारी) मुतवफ़्फ़ा 666 हिज्री का है,जिनकी मोहब्बतों और नवाज़िशों से बिहार अम्न का गहवारा रहा। बिहार की क़दीम रुहानी मक़ामात में मनेर शरीफ़,काको,बिहार शरीफ़ और अ’ज़ीमाबाद,पटना, क़ाबिल-ए-ज़िक्र हैं जहाँ से दा’वत-ओ-तब्लीग़ और अम्न-ओ-अमान का सिलसिला जारी-ओ-सारी है। वाज़िह हो कि आपकी दुख़्तरान के बत्न-ए-अक़्दस से काफ़ी दरवेश-ओ-औलियाउल्लाह,हुकमा-ओ-अह्ल-ए-दानिश पैदा हुए जिनका तक़द्दुस और अ’ज़्मत किसी पे पोशीदा नहीं।बा’ज़ आमदम बर सर-ए-मतलब।
विलादत-ओ-नाम:
शहाबुद्दीन नाम, विलादत-ए-बा-सआ’दत तक़रीबन 570 हिज्री 1174 ई’स्वी में मुल्क-ए-काशग़र (ईरान) में हुई।आप आ’ली नसब सादात जा’फ़री या’नी इमाम मोहम्मद जा’फ़र सादिक़ अ’लैहिस-सलाम और मुल्क-ए-काशग़र के फ़रमा-रवा थे। आपके ख़ानदान में चंद पुश्तों से सिलसिला-ए-सल्तनत चला आता था। वालिद मोहतरम का नाम सुल्तान सय्यद मोहम्मद ताज उ’र्फ़ अब्दुर्रहमान बिन सुल्तान सय्यद अहमद और वालिदा माजिदा का नाम सय्यदा राहतुन-निसा बिंत-ए-सय्यद लुत्फ़ुल्लाह है। वालिद के इंतिक़ाल के बा’द सल्तनत का बार सँभाला और उस से क़ब्ल ओ’हदा-ए-क़ाज़ी पर भी मुतमक्किन थे।इ’ल्मी सलाहियत ख़ूब थी। फ़िक़्ह-ओ-उसूल-ए-फ़िक़्ह के लिए माहिर थे। बचपन की परवरिश-ओ-पर्दाख़्त शाहाना थी मगर जज़्बा-ए-इ’श्क़-ए-इलाही ने कुछ ऐसा रंग दिखलाया कि मुल्क-ए-काशग़र की बादशाहत को तर्क करके फ़क़ीरी की राह में मा’रिफ़त की ता’लीम लेने लगे।
नसब-नामा-ए-पिदरी:
सय्यद शहाबुद्दीन पीर-ए-जगजोत बिन सय्यद मोहम्मद (सुल्तान-ए-काशग़र) बिन सय्यद अहमद बिन सय्यद नासिरुद्दीन बिन सय्यद यूसुफ़ बिन सय्यद हसन बिन सय्यद क़ासिम बिन सय्यद मूसा बिन सय्यद हम्ज़ा बिन सय्यद दाऊ’द बिन सय्यद रुक्नुद्दीन बिन सय्यद क़ुतुबुद्दीन बिन सय्यद इस्हाक़ बिन सय्यद इस्माई’ल बिन सय्यद इमाम मोहम्मद जा’फ़र सादिक़ बिन सय्यद इमाम मोहम्मद बाक़र बिन सय्यद ज़ैनुल-आ’बिदीन बिन सय्यदना इमाम हुसैन बिन सय्यदना अ’ली इब्न-ए-अबी-तालिब।
ता’लीम-ओ-तर्बियत-ओ-बै’अत-ए-ख़िलाफ़त:
इब्तिदाई ता’लीम घर ही पर ख़ानदान के बुज़ुर्गों से मुकम्मल की। इसके बा’द हज़रत नज्मुद्दीन कुब्रा वली-तराश मुतवफ़्फ़ा के हल्क़ा-ए-दर्स में दाख़िल हुए। उ’लूम-ए-ज़ाहिरी के साथ साथ उ’लूम-ए-बातिनी का भी दर्स लेते रहे। ब-क़ौल अ’यान-ए-वतन कि आप ने हज़रत नज्मुद्दीन कुब्रा ही के दस्त-ए-हक़-परस्त पर बैअ’त कर ली। दूसरी रिवायत दीगर रिवायतों पे फ़ौक़ियत ले जाती है कि आप और आपकी अहलिया बी-बी नूर उ’र्फ़ मलिका-ए-जहाँ दोनों शैख़ुश्शुयूख़ शहाबुद्दीन फ़ारूक़ी सुहरवर्दी बग़्दादी मुतवफ़्फ़ा 636 हिज्री से बै’अत का शरफ़ रखते हैं। वाज़िह हो कि पीर-ए-जगजोत को सिलसिला-ए-सुहरवर्दिया की इजाज़त-ओ-ख़िलाफ़त शैख़ुश्शुयूख़ के अ’लावा सिलसिला-ए-फ़िर्दौसिया की ख़िलाफ़त वली-तराश कुब्रा से हासिल थी। ब-क़ौल ‘‘आसार-ए-काको’’ कि हज़रत मख़्दूम सय्यद हमीदुद्दीन चिश्ती आपके जां-नशीन हुए।
जैठली में क़ियाम:
जब बादशाहत से दूर हो कर रूहानियत की जानिब माइल हुए तो हुकूमत तर्क करके अपनी अहलिया और चार साहिब-ज़ादियों को लेकर वतन से बाहर निकले। ईरान से लाहौर,और लाहौर से हिन्दुस्तान के मुख़्तलिफ़ इ’लाक़ों की सैर करते हुए सूबा-ए-बिहार के मुख़्तलिफ़ जगहों में क़ियाम फ़रमाया। बा’ज़ का ख़याल है की पहले मनेर शरीफ़ आए और बा’ज़ के नज़दीक हाजीपुर में क़ियाम फ़रमाया।फिर अपने समधी हज़रत सय्यद सूफ़ी आदम मुतवफ़्फ़ा 697 हिज्री (मदफ़न पक्की दरगाह,जैठली) ख़लीफ़ा शैख़ फ़रीदुद्दीन मसऊ’द गंज-शकर अजोधनी सुम्मा पाकपटनी की तलब पर अ’ज़ीमाबाद (पटना) से मुत्तसिल एक मक़ाम जैठली में मुस्तक़िल क़ियाम फ़रमाया । ये मक़ाम लब-ए-दरिया टीले पर वाक़े’ है।
जैठली की वज्ह-ए-तस्मिया:
जैठली की वज्ह-ए-तस्मिया बहुत है लेकिन राक़िम यहाँ दो रिवायत तहरीर कर रहा है।
एक ग्वाला जवाँ-साल मर गया था और लोग उसे जलाने की तैयारी कर रहे थे। उसकी नई-नवेली दुल्हन आकर ना’श से चिमट गई और उसके साथ जल मरने पर ब-ज़िद हुई। लोग उसे हटाने की कोशिश कर रहे थे कि ऐ’न उसी वक़्त पीर-ए-जगजोत आ पहुँचे। पूछा क्या मुआ’मला है। लोगों ने सारा माजरा कह सुनाया ।आप गवाला के पास आए और फ़रमाया ये मरा कहाँ है, फिर उसे पैर से ठोकर मार कर फ़रमाया उठ क्यूँ मटियाना पड़ा है। गवाला ने अपनी ज़ुबान में कहा जी उठली सरकार और फ़ौरन उठ बैठा। यह ‘जी उठली’ से जियोठली नाम पड़ गया।
हज़रत पीर-ए-जगजोत के नवासा या’नी मख़्दूम सय्यद अहमद चर्म-पोश बिहारी जो अभी कम-सिन थे,आपका एक हिंदू लड़के से याराना हो गया। एक रोज़ उसी के साथ खेल रहे थे।खेल अभी मुकम्मल नहीं हुआ था कि मग़्रिब का वक़्त हो गया। बक़िया खेल को दूसरे रोज़ पे मौक़ूफ़ करके आप घर चले गए। उस हिंदू लड़के ने भी घर की राह ली।इत्तिफ़ाक़ कहिए कि उसी रात वो हिंदू लड़का मर गया। जब दूसरी सुब्ह अहमद चर्म-पोश बक़िया खेल को पूरा करने के लिए उस के घर पहुँचे तो उस लड़के के इंत्क़ाल की ख़बर मिली। आप उस की मय्यत के सिरहाने खड़े हो गए और फ़रमाया ऐ फ़ुलां उठ। ये सुनते ही वो मुर्दा ये कहते हुए ज़िंदा हो गया जी उठली । उसी वक़्त से उस इ’लाक़ा का नाम ‘‘जी उठली’’ हो गया
निकाह-ओ-औलाद:
आपका निकाह बी-बी नूर उ’र्फ़ मल्का-ए-जहाँ बिंत-ए-सय्यद वजीहुद्दीन ,मुल्क-ए-काशग़र,ईरान में हुआ। इनसे चार साहब-ज़ादी मुतवल्लिद हुईं जो अपने वक़्त की मख़्दूम-ए-बा-कमाल हैं। ओ’हदा-ए-शहंशाहियत तर्क करके अपनी अहलिया और चार लड़कियों के सात हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाए।कहा जाता है कि हज़रत पीर-ए-जगजोत के घर चौदह 14 क़ुतुब मौजूद थे जो ब-यक वक़्त एक दस्तरख़्वान पर ख़ुर्द-ओ-नोश फ़रमाते।एक तो आप ख़ुद,दूसरी आपकी अहलिया बी-बी नूर उ’र्फ़ मल्का-ए-जहाँ,तीसरी आपकी चार साहिब-ज़ादियाँ (रज़िया,हबीबा,हद्या,जमाल)। चार ख़्वेश(कमालुद्दीन मुनीरी, मूसा हमदानी, सुलैमान काकवी,हमीदुद्दीन बिहारी) और चार नवासे(शर्फ़ुद्दीन, अहमद चर्म-पोश, अ’ताउल्लाह,तयमुल्लाह सफ़ैद बाज़)।सूबा-ए-बिहार का शायद ही कोई ऐसा मुक़द्दस ख़ानदान हो जिस को आप से जुज़्ईयत न पहूँची हो।आपकी साहिब-ज़ादियों का मुख़्तसर तआ’रुफ़ ये है:
बी-बी रज़िया: आपकी पहली साहिब-ज़ादी सय्यदा बी-बी रज़िया उ’र्फ़ बड़ी बुआ (मद्फ़न बड़ी दरगाह,बिहारशरीफ)मंसूब ब-हज़रत शैख़ कमालुद्दीन अहमद यहया मनेरी मुतवफ़्फ़ा690हिज्री हैं। इन से चार साहिब-ज़ादे और एक साहिब-ज़ादी (जलीलुद्दीन,शर्फ़ुद्दीन, ख़लीलुद्दीन,हबीबुद्दीन और एक दुख़तर)हुए जो अपने वक़्त के आफ़्ताब-ए-विलायत के दर्जा पर फ़ाइज़ थे।शैख़ जलीलुद्दीन फ़िर्दौसी मनेरी अपने वालिद के बा’द सज्जादा-ए-आ’लीया मनेर शरीफ़ हुए। शैख़ शर्फ़ुद्दीन अहमद यहया मनेरी सुम्मा बिहारी मुतवफ़्फ़ा782हिज्री को बैअ’त-ओ-ख़िलाफ़त ख़्वाजा नजीबुद्दीन फ़िर्दोसी देहलवी मुतवफ़्फ़ा691हिज्री से थी ।मज़ार बड़ी दरगाह,बिहार शरीफ़ में वाक़े’ है। शैख़ ख़लीलुद्दीन मनेरी सुम्मा बिहारी मुरीद-ओ-मजाज़ बिरादर-ए-बुज़ुर्ग या’नी मख़्दूम-ए-जहाँ कि मज़ार पीर-ओ-मुर्शिद के पाइं में है और शैख़ हबीबुद्दीन जो अपने बिरादर-ज़ादा या’नी मख़्दूम ज़कीउद्दीन फ़िर्दौसी बिन मख़्दूम जहाँ के साथ (मद्फ़न मुहल्ला मख़्दूम नगर,पीर भौम,ज़िला बर्दवान)आराम फ़रमा हैं।एक साइहिब-ज़ादी जिनका निकाह मीर शम्सुद्दीन माज़ंदरानी से हुआ,दोनों की मज़ार दरगाह-ए-मनेर शरीफ़ में मरजा’-ए-ख़लाइक़ है।
बी-बी हबीबा : दूसरी साहिब-ज़ादी सय्यदा बी-बी हबीबा मंसूब ब-सुल्तान सय्यद मूसा हमदानी हैं। इनसे तीन साहिब-ज़ादे हुए।सय्यद मोहम्मद हमदानी,सय्यद महमूद हमदानी और मख़्दूम सय्यद अहमद चर्म-पोश तेग़-ए-बरहना मुतवफ़्फ़ा 776 हिज्री (मद्फ़न मोहल्ला अम्बीर,बिहार शरीफ़) ख़लीफ़ा शैख़ अलाउद्दीन अ’लाउलहक़ सुहरवर्दी जिन के तवस्सुल से तिब्बत से हिन्दुस्तान तक रुहानी फ़ैज़ जारी हुआ।आपका निकाह अपने कुफ़्व ही में हुआ जिनसे दो साहिब-ज़ादे दीवान सय्यद सिराजुद्दीन अहमद और दीवान सय्यद ताजुद्दीन अहमद हुए। इस ख़ानदान के यादगार सय्यद शाह मोहम्मद नूर सुहरवर्दी नव्वरल्लाहु मर्क़दहु हैं।
बी-बी कमालः तीसरी साहिबज़ादी सय्यदा बी-बी हद्या उ’र्फ़ कमाल मंसूब ब-हज़रत शैख़ सुलैमान लंगर-ज़मीन मनेरी सुम्मा काकवी हैं,जिनसे एक ज़माने को फ़ैज़ मिलता रहा । दोनों की मज़ार काको,जहानाबाद में मरजा’-ए-ख़लाइक़ है। आपके बत्न-ए-अक़्दस से एक साहिब-ज़ादा शाह अ’ताउल्लाह कजाँवां और एक साहिब-ज़ादी सय्यदा दौलत मुतवल्लिद हुईं।मख़्दूम शाह अ’ताउल्लाह का ख़ानदान काको से मुंतक़िल होते हुए कजाँवां, नौव-आबादा, मोड़ा तालाब से मोहल्ला शाह टोली, दानापुर शरीफ़,पटना में आज ख़ानक़ाह-ए-सज्जादिया अबुल-उ’लाइया की शक्ल में मौजूद-ओ-महफ़ूज़ है जो राक़िम का मौलिद-ओ-मस्कन है। बी-बी कमाल काकोवी की साहिब-ज़ादी सय्यदा दौलत कमाल सानी(मद्फ़न:दरगाह,काको)मंसूब ब-मख़्दूम शाह हुसामुद्दीन हाँसी जिनसे मख़्दूम शाह ग़रीबुल्लाह हुसैन धक्कड़-पोश हुए।वालिद और साहिब-ज़ादे का मज़ार ख़्वाजा नक़ीउद्दीन मेहसवी के पाइं है।
बी-बी जमालः चौथी साहिब-ज़ादी सय्यदा बी-बी जमाल मंसूब ब-सय्यद हमीदुद्दीन चिश्ती बिन सय्यद सूफ़ी आदम फ़रीदी चिश्ती मुतवफ़्फ़ा 697 हिज्री हैं,जिनसे सय्यद तयमुल्लाह सफ़ैद बाज़ बिहारी तव्वुलुद हुए।ये ख़ानदान भी अपनी अ’ज़मत-ओ-बुजु़र्गी के लिहाज़ से सर-ए-फ़ेहरिस्त नज़र आता है।
विसाल-ए-पुर मलाल:
जब आप 96 बरस के हुए तो मरज़ ने तरक़्क़ी की और 666 हिज्री को इस जहान-ए-फ़ानी से दार-ए-बक़ा की जानिब लौट गए। ख़ाम मज़ार-ए-पुर-अनवार गंगा किनारे एक बुलंद चबूतरे पर अहलिया के साथ वाक़े’ है। इंतिज़ाम-ओ-एह्तिमाम ख़ुद्दाम के सुपुर्द है। आपका उ’र्स हर साल बड़े जोश-ओ-ख़रोश के साथ मनया जाता है जिसमें आपके परवाने बड़ी ता’दाद में हाज़िर हो कर सलाम-ओ-नियाज़ पेश करते हैं।
Guest Authors
- Aatif Kazmi
- Absar Balkhi
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- Ahmad Raza Ashrafi
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